भारत में था सरस्वती नदी का अस्तित्व लेकिन इलाहाबाद में कभी नहीं हुआ गंगा-यमुना से संगम
Ashish Deep 15 Oct 2016 9:33 PM GMT
नई दिल्ली (भाषा)। सरस्वती नदी अस्तित्व में थी, जिसे अब तक केवल मिथक समझा जाता रहा है। इसकी तस्दीक सरकार द्वारा गठित एक विशेषज्ञ समिति ने की है। समिति का कहना है कि यह नदी हिमालय से निकलती थी और गुजरात में समुद्र में मिल जाती थी।
अगर यह दावा सही है तो फिर सरस्वती नदी इलाहाबाद कैसे पहुंची। वैज्ञानिकों का मत है कि चूंकि सरस्वती का बहाव कभी इलाहाबाद में नहीं रहा। हां, हिमालय से निकलते समय कई स्थानों पर यमुना में इसका मिलन होने के प्रमाण जरूर मिले हैं। शायद इसीलिए पुराणों में संगम में गंगा, यमुना और सरस्वती के मिलन की बात को बल मिला।
इस बीच केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने कहा कि सरकार रिपोर्ट पर कार्रवाई करेगी और जिसे उनके अनुसार ‘चुनौती नहीं दी जा सकती है।’ सरकार को रिपोर्ट सौंपते हुए समिति का नेतृत्व करने वाले प्रोफेसर केएस वल्दिया ने कहा, ‘‘हम लोग इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि सरस्वती नदी अस्तित्व में थी और बहती थी। यह हिमालय से निकलकर पश्चिमी सागर की खाड़ी में मिलती थी।’’ प्रतिष्ठित भूवैज्ञानिक वल्दिया ने कहा कि यह नदी हरियाणा, राजस्थान और उत्तरी गुजरात से होकर बहती थी। इसके लिए समिति ने भूमि की बनावट का अध्ययन किया। केंद्रीय भूजल बोर्ड के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार कच्छ के रण के रास्ते पश्चिमी सागर में मिलने से पहले वह पाकिस्तान से होकर गुजरती थी और नदी की लंबाई करीब 4,000 किलोमीटर थी।
हम लोग इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि सरस्वती नदी अस्तित्व में थी और बहती थी। यह हिमालय से निकलकर पश्चिमी सागर की खाड़ी में मिलती थी। यह नदी हरियाणा, राजस्थान और उत्तरी गुजरात से होकर बहती थी।प्रोफेसर केएस वल्दिया, अध्ययन प्रमुख
अधिकारी ने दावा किया कि नदी का एक तिहाई हिस्सा अभी पाकिस्तान में है। इसका दो-तिहाई हिस्सा अर्थात करीब 3000 किलोमीटर भारत में है। अपनी रिपोर्ट में सात सदस्यीय समिति ने कहा कि नदी की दो शाखाएं थीं- पश्चिमी और पूर्वी। अतीत में हिमालय से निकलने वाली सतलुज नदी प्राचीन सरस्वती नदी की पश्चिमी शाखा को दर्शाती है। वहीं मरकंडा और सरसुती इसके पूर्वी शाखा को दिखलाती हैं।
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