नोटबंदी का 11वां दिन: गाँवों में अब तक कम नहीं हुईं मुश्किलें

Kushal MishraKushal Mishra   19 Nov 2016 5:58 PM GMT

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नोटबंदी का 11वां दिन: गाँवों में अब तक कम नहीं हुईं मुश्किलेंबाराबंकी के भगवानपुर गाँव के बाहर बैंक के खुलने का इंतजार करते ग्रामीण।

लखनऊ। देश में नोटबंदी का आज 11वां दिन है। सरकार के कालेधन के खिलाफ इस प्रहार के बीच इन 11 दिनों के भीतर शहरों में जहां देश के नागरिक बैंक के बाहर लंबी-लंबी कतारों में खड़े नजर आए हैं, वहीं भारत के गाँवों की तस्वीरें और भी विकट नजर आई हैं। पिछले 11 दिनों से 1000 और 500 के नोट चलन से बाहर होने के बाद न केवल किसान और ग्रामीण परेशान हुए हैं, बल्कि गाँवों के विकास का पहिया भी थम चुका है। आइये आपको बताते हैं कि इन 11 दिनों में गाँवों में नोटबंदी का क्या असर पड़ा और किसानों को अपनी नकदी निकालने और बदलवाने के लिए किन-किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा।

40 किमी दूर तक नोट बदलवाने गये ग्रामीण

नोटबंदी की घोषणा ग्रामीणों के लिए एक बड़ी मुसीबत बनकर उभरी। राजस्थान के बमोरी ब्लॉक के आस-पास के 25 से ज्यादा गाँवों के लोगों को नोट बदलवाने के लिए 40 किलोमीटर दूरी तक तय करनी पड़ी। यानी गाँव में जो सबसे पास बैंक था, वह 40 किमी दूर था। इन गाँवों के ग्रामीणों को आने जाने के लिए 80 से 100 रुपये तक खर्च करने पड़े। बैंक पहुंचकर ग्रामीण लंबी-लंबी कतार में लगे। कभी-कभी पूरा-पूरा दिन कतार में लगने के बावजूद उनके नोट नहीं बदल सके और सिर्फ कतार में खड़े हुए गुजरा। बैंक में भारी भीड़ इसलिए भी थी, क्योंकि पूरे जिले में ऐसे गाँवों की संख्या लगभग 400 के आसपास रही। इन ग्रामीणों की मानें तो बैंक तक दूरी तय करने के लिए जो आवागमन का रास्ता है, उसमें सिर्फ एक बस ही है। जो सुबह चलती है और शाम को वापस आती है।

हाथों में नकदी नहीं, फसल कटाई के भी पैसे नहीं

नोटबंदी का असर साफ तौर पर खेती-किसानी पर नजर आया। धान की फसल तैयार होने के बावजूद भी किसानों के पास खेतिहर मजदूरों को कटाई के पैसे देने के लिए भी नकदी नहीं है। ऐसे में अगली फसल की तैयारी करने की बात तो किसानों के लिए दूर की बात रही। किसान, खेतिहर मजदूर सभी खेती-किसानी छोड़कर बैंकों के बाहर कतार में नोट बदलने का इंतजार करते नजर आए। वहीं, पूरे-पूरे दिन कतार में खड़े होने के बावजूद पैसे मिलने की गारंटी नहीं थी। ऐसे में जिन किसानों को अपनी फसल की तैयारी के लिए खेतों में नजर आना चाहिए, वे सुबह से ही बैंक के बाहर नजर आए।

खाली बैठे रहे खेतिहर मजदूर

गाँवों में नोटबंदी का असर किसान, खेतिहर मजदूर और दुकानदार पर साफ दिखाई दिया। एक तरफ जहां किसानों के पास फसल की बुवाई के लिए भी नकदी की मशक्कत करते नजर आए, वहीं खेतिहर मजदूर भी गाँवों में खाली बैठे नजर आए और आर्थिक शोषण का शिकार बने। मोहनलालगंज के एक हजार आबादी वाले मादोखेड़ा गाँव में अधिकतर खेतिहर मजदूर हैं। इस गाँव में पुरुष और महिला दोनों मजदूरी करके अपना गुजारा बसर करते हैं। नोटबंदी के असर की वजह से इस गाँव के खेतिहर मजदूर कई दिनों तक काम न मिलने से खाली बैठे रहे। ऐसा इसलिए क्योंकि ठेकेदार काम के बावजूद भी खेतिहर मजदूरों को 500 और 1000 के पुराने नोट थमा रहे थे। ऐसे में खेतिहर मजदूरों को रोजी-रोटी के भी लाले पड़ गये।

ग्रामीणों की अपनी-अपनी समस्याएं

घर में बेटे की शादी है और एक दिन पहले मैं बैंक के बाहर कतार में खड़ा हूं। मेरा नंबर आने से पहले ही बैंक में कैश खत्म हो गया। बैंक में पैसे जरूरत के समय के लिए जमा किया था, मगर आज मैं खुद निकाल नहीं पा रहा हूं। शादी तो करनी पड़ेगी, मगर वह खुशी नहीं मिलेगी। यह मेरे जीवन का बहुत कटू अनुभव है।
सरदार बग्गा सिंह, बांय गाँव, सोनीपत (गन्नौर)

मेरा बेटा बीमार हैं और मेरे पास दवा खरीदने के लिए भी पैसे नहीं है। सरकार ने कालेधन पर लगाम लगाने के लिए यह फैसला किया है, मगर मुश्किल में हम ग्रामीण हैं। हमारे पास घर की रोजी-रोटी चलाने तक के पैसे नहीं है। दुकानदार उधार देने को तैयार नहीं है। काफी परेशानी हो रही है।
किसान इम्मुद्दीन मिया, तालगांव, झारखंड

   

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