एक फिल्मी गाने की लाइनें हैं, “मछली है सागर का मेवा और भी देगा मेवा देवा”… यह महज एक सुंदर रूपक नहीं बल्कि हकीकत है। इंसानों की बहुत बड़ी आबादी ऐसे ही तमाम समुद्री संसाधनों के सहारे जिंदा है। लेकिन प्राकृतिक संसाधनों के प्रति हमारी लापरवाही और कृतघ्नता वाला रवैया समुद्र की उपजाऊ गोद को भी बंजर बना रहा है। वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि समुद्र में तेजी से ऐसे इलाके बढ़ रहे हैं जहां कोई भी जीव नहीं पनप सकता, उन्होंने ऐसे इलाकों को नाम दिया है डेड जोन।
इस चेतावनी से जुड़ी एक घटना है। आज से दो बरस पहले 2016 में दक्षिण अमेरिकी देश चिली के नागरिक एक सुबह हैरान रह गए। उनके समुद्री तटों पर मरी हुई सालमन मछलियों के विशाल ढेर लगे थे। ये लगभग 2.3 करोड़ मछलियां समुद्र से बहकर यहां आईं थीं। फिर इसके बाद चिली के तटीय कस्बे टाल्टेन में हजारों मरी हुई सार्डीन मछलियां बहकर आईं। चिली ने इन घटनाओं को जहरीले ज्वार या टॉक्जिक टाइड का नाम दिया। यह सिलसिला काफी दिनों तक जारी रहा मरी जेली फिश, चिड़ियां यहां तक कि स्तनपायी जानवरों की लाशें भी बहकर आती रहीं।
संकेत साफ था, समुद्र में कोई इलाका इतना जहरीला हो गया था कि वहां के जीव दम तोड़ रहे थे। चिली की सरकार ने इसके लिए समुद्री शैवालों या एल्गी की संख्या में विस्फोटक बढ़ोतरी को जिम्मेदार ठहराया। इसे एल्गल ब्लूम कहा जाता है। इसका एक और नाम है रेड टाइड या लाल ज्वार। ये शैवाल लाल रंग के होते हैं और जब इनकी बेतादाद बढ़ोतरी होती है तो समुद्र का पानी लाल हो जाता है। इतनी बड़ी तादाद में मौजूद शैवाल जब एक साथ मरते और सड़ते हैं तो समुद्र के पानी में घुली ऑक्सीजन को खत्म कर देते हैं। धीरे-धीरे ऑक्सीजन इतनी कम हो जाती है कि कोई भी समुद्री जीव जिंदा नहीं रह पाता।
खेतों का पानी और सीवेज थे जिम्मेदार
चिली की सरकार का यह आरोप सही था लेकिन यह तस्वीर का केवल एक ही रुख है। तटीय इलाकों के पास एल्गल ब्लूम की एक वजह है समुद्री पानी का बढ़ता तापमान और दूसरी, खेती व सीवेज से निकलने वाले पानी का समुद्र में मिलना। इस पानी में मौजूद नाइट्रोजन इन शैवालों के लिए बड़ी मात्रा में पोषक तत्वों का काम करती है। ये ही वे दो कारक हैं जो दुनिया भर के समुद्र तटीय इलाकों में डेड जोन तैयार कर रहे हैं। इन दोनों के लिए ही इंसानी हरकतें जिम्मेदार हैं।
संयुक्त राष्ट्र के इंटरगवर्नमेंटल ओशनोग्राफिक कमिशन की एक स्टडी के मुताबिक, चिली की यह घटना एक बहुत बड़े संकट की झलक भर है। अमेरिका के स्मिथसोनियन एनवायरनमेंटल रिसर्च सेंटर के शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन में दावा किया था कि 1950 की तुलना में दुनिया भर के तटीय इलाकों में डेड जोन की मौजूदगी 10 गुना तक बढ़ी है।
दूसरी तरफ समुद्री पानी के बढ़ते तापमान की वजह से खुले समुद्र में इस तरह के बंजर इलाकों में चौगुनी बढ़ोतरी हो रही है। वैज्ञानिकों का निश्चित तौर पर मानना है कि समुद्र में बढ़ती गर्मी इंसान की हरकतों से होने वाले जलवायु परिवर्तन का परिणाम है। समुद्र के पानी का बढ़ता तापमान भी उसमें से ऑक्सीजन बाहर निकाल कर उसे डेड जोन में तब्दील कर देता है।
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समुद्र का गरम पानी यों खत्म करता है ऑक्सीजन
जब समुद्र का पानी गर्म हो जाता है तो समुद्र की जलराशि में अलग-अलग तापमान के पानी की अलग-अलग परतें बन जाती हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि गर्म पानी हल्का होने की वजह से ऊपर ही बहने लगता है। इससे समुद्र में चलने वाला स्वाभाविक जल-चक्र रुक जाता है। समान्यत: समुद्र में ऊपर का पानी नीचे और नीचे का पानी ऊपर होता रहता है। ऊपर बहने वाले पानी में ऑक्सीजन अधिक होती है जब यह नीचे जाता है तो सतह के नीचे रहने वाले जीवों को लगातार ऑक्सीजन मिलती रहती है। लेकिन जब पानी गर्म हो जाता है तो सिर्फ ऊपर ही बहता रहता है और नीचे वाले पानी में धीरे-धीरे ऑक्सीजन की कमी होने लगती है।
इसके अलावा गर्म पानी में ऑक्सीजन घोलने की क्षमता भी घट जाती है। इसका मतलब गर्म पानी वाले इलाकों में रहने वाले समुद्री जीवों को ऑक्सजीन पाने के लिए पहले से ज्यादा जद्दोजहद करनी होगी। इस तरह खुले समुद्र में भी डेड जोन वाले इलाके बढ़ रहे हैं।
समुद्र में मौजूद इन बंजर इलाकों से बचकर बाहर निकलने वाली मछलियों का जमकर शिकार हो रहा है। इससे बहुत सी प्रजातियों के लुप्त होने की आशंका बढ़ गई है।
हमारी गलती की सजा भी है बड़ी
हमारी बहुत सी गतिविधियां जलवायु परिवर्तन के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। लेकिन जीवाश्म ईंधन (कोयला, गैस, पेट्रोलियम पदार्थों) का बेरोकटोक इस्तेमाल और जंगलों की कटाई ये दो बड़ी वजहें हैं इस पर्यावरणीय तबाही के लिए। जीवाश्म ईंधन के जलाने से निकलने वाली कार्बन डाई ऑक्साइड धरती का तापमान बढ़ा रही है। इस कार्बन डाई ऑक्साइड को जंगल सोखते थे लेकिन हम उन्हें भी लगातार काटकर संकट को और गंभीर बना रहे हैं। वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड के मुताबिक, हर साल 187 लाख एकड़ वन्य क्षेत्र का सफाया हो रहा है। इसका नतीजा ग्लोबल वॉर्मिंग या धरती के तापमान में बढ़ोतरी के रूप में सामने आया है।
समुद्र केवल हमारी खाद्य सुरक्षा को ही मजबूत नहीं करते बल्कि हमें ऑक्सीजन भी देते हैं। आपको यह जानकारी हैरानी होगी कि धरती पर मौजूद ऑक्सीजन की आधी मात्रा हमें समुद्रों से मिलती है। समुद्र में फाइटोप्लैंक्टन नामके सूक्ष्म जीव होते हैं जो पौधों की ही तरह सूरज की रोशनी और कार्बन डाइ ऑक्साइड से अपने लिए भोजन बनाते हैं और बदले में हमें ऑक्सीजन देते हैं।
बढ़ती डेड जोन इनका भी खात्मा कर रही है। समुद्र के पानी में ऑक्सीजन की कमी से नाइट्रस ऑक्साइड गैस बनने लगती है। नाइट्रस ऑक्साइड जलवायु परिवर्तन की दर को और बढ़ा देती है। यह कार्बन डाई ऑक्साइड की तुलना में वातावरण से 300 गुना ज्यादा गर्मी सोखती है।
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अभी भी देर नहीं हुई है
संयुक्त राष्ट्र के एक वर्किंग ग्रुप ने इस समस्या पर शोध करने के बाद बताया कि अभी भी हालात सुधर सकते हैं। इससे पहले भी लंदन की टेम्स नदी और अमेरिका की चीसापीक खाड़ी में प्रदूषण के ऊंचे स्तर को नियंत्रित किया जा चुका है। ग्रुप ने इसके लिए तीन स्तर पर काम करने की बात कही है :
1. जीवश्म ईंधन से निकलने वाली गैसों और जल प्रदूषण में कटौती
2. डेड जोन से बाहर निकल रही मछलियों के लिए नो कैच जोन बनें
3. समुद्र में डेड जोन को पहचानने वाली बेहतर प्रणाली विकसित कर उससे निपटने के प्रभावी उपाय किए जाएं
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