जैविक खेती की वजह से श्रीलंका में आयी है आर्थिक अस्थिरता; अफवाह है या फिर हकीकत समझना होगा

किसी देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए वहां की खेती को स्वावलम्बी बनाना होगा इसके लिए बाजार आधारित उत्पाद से दूरी बनाना कर खेत आधारित व्यवस्था का सर्जन करके जैविक खेती के अभियान को आगे बढ़ाना होगा।
#Sri Lanka

वर्तमान समय में श्रीलंका के विषय में विश्वभर में चर्चा व चिंतन जारी है। इसी परिपेक्ष्य में यह भी देखने, सुनने और पढ़ने में आ रहा है कि श्रीलंका की आर्थिक अस्थिरता का कारण जैविक खेती भी है। कई बुद्धि जीवियों की इस तरह की टिप्पणियों से विश्वभर में जैविक खेती या प्राकृतिक खेती के आलोचकों को नई ऊर्जा मिली है, क्योंकि उनका मानना है कि कृषि रसायनों के बिना खेती करना मुर्खता है, वही जैविक व प्राकृतिक खेती के समर्थको में चिंता का विषय पनप गया। साथ ही उक्त दोनों श्रेणियों के बीच उन लोगों में भय का वातावरण बन रहा है। जो भविष्य में अपना करियर जैविक खेती में बनाने वाले है।

अर्न्तराष्ट्रीय मुद्दे पर वर्तमान में की जा रही टिप्पणियों के पीछे की रणनीति की जानकारी तो नहीं है, लेकिन इस वैज्ञानिक युग में प्रर्याप्त सुचनाएं (सारगर्भित) होते हुए ऐसी टिप्पणियां राष्ट्र के लिए महज अफवाह होते हुए भी चिन्ता पैदा कर देंगी। जब इस विषय पर चिन्तन करते हैं तो यह विषय महज अफवाह साबित होता है।

आप सब को जानकारी होगी कि श्रीलंका को जैविक देश बनाने की घोषणा 29 अप्रैल 2021 को हुई। मतलब इससे पहले देश में एग्रीकल्चर रसायन का प्रयोग अनुमतः था और श्रीलंका की आर्थिक अस्थिरता की नींव तो पांच साल पहले ही लग गई। वर्ष 2018-19 की जीडीपी की चर्चा करें तो वर्ष 2018 में जीडीपी 2017 के मुकाबलें 0.31 कम रही। वर्ष 2019 में जीडीपी वर्ष 2018 के मुकाबले 0.94 कम, वर्ष 2020 में जीडीपी वर्ष 2019 के मुकाबले माइनस 3.62 प्रतिशत एवं वर्ष 2021 में जीडीपी वर्ष 2020 के मुकाबले 7.27 प्रतिशत वृद्धि हुई।

उपरोक्त आंकड़ों में साल 2017 से वर्ष 2020 तक एग्रो केमिकल को प्रति बधित न होते हुए भी जीडीपी माइनस तक गई है। वही जिस वर्ष एग्रो केमिकल पर प्रतिबन्ध लगा उस वर्ष की जीडीपी अचानक बढ़ी है न की कम हुई। दूसरी बात आपको बताएं कि श्रीलंका की जीडीपी इस विवरणानुसार लगता है कि जैविक देश घोषणा से कृषि के विकास में नुकसान नही हुआ है। हां यह सच है कि उत्पादन को कोरोना काल में समय पर एक्सपोर्ट नहीं करने की वजह से नारियल, रबर, चाय जैसे आर्थिक व्यवस्था वाले उत्पाद खराब जरूर हुए जिससे अरबों खरबों का नुकसान हुआ, लेकिन इसमे दोष जैविक खेती का नहीं, कोरोना काल में एक्सपोर्ट का बैन होना है। एग्रीकल्चर सेक्टर का योगदान एग्रो केमिकल प्रतिबन्धित होने के बाद 7.4 प्रतिशत रहा। वहीं वर्ष 2016 में जब एग्रो केमिकल प्रतिबन्धित नहीं थे तब भी जीडीपी में योगदान एग्रीकल्चर का 7.43 प्रतिशत ही था। ठीक वैसे ही जीडीपी में योगदान पिछले 5 वर्षो में इतना ही नजर आता है।

श्रीलंका की सरकारी रिपोर्ट संख्या – CE2021-0002, जिसका शीर्षक Grain and Feed Annual-2021 के अनुसार श्रीलंका की मुख्य फसल धान की वार्षिक उत्पादकता की तुलना में 2.5 प्रतिशत बड़ी है। उत्पादन इस समय रिकार्ड तोड़ चुका है। लेकिन यह सच है कि इसके बाद भी खाद्य सकंट चरम पर पहुंच चुका है। इसकी वजह है श्रीलंका की विदेश नीति, न कि खेती या जैविक खेती। क्योंकि श्रीलंका में जहां अधिकतम जनसंख्या का भोजन चावल है। वहीं एक बड़ा वर्ग गेहूं पर भी आधारित है और गेहूं का उत्पादन श्रीलंका में होता नहीं 100 प्रतिशत गेहूं आयात किया जाता है। लेकिन श्रीलंका की विदेशी मुद्रा न्यून स्तर पर आने की वजह से से अन्य आवश्यक वस्तुओं की तरह गेहूं(आटा) पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया गया। इसके कारण गेहूं की निर्भरता व व्यवस्था चावल से होने लगी। इसलिए चावल की भी खपत अचानक बढ़ गई, वर्ष 2018-19 में चावल की खपत 250000 मीट्रिक टन खपत थी जो वर्ष 2019-20 में 3 मिलियन मीट्रिक पर चला गया और साल 2020-21 में 3.05 मिलियन मीट्रिक टन से पार कर चुका था। तो वर्ष 2022 का दौर तो संकटमय होना तय था। खाद्य संकट के अलावा आर्थिक संकट में भी यदि कहीं जैविक खेती का विषय आये तो पहले निम्नलिखित विवरण को समझ लिजिए

श्रीलंका की आर्थिक व्यवस्था में मूल आयाम तीन प्रकार के हैं, जिसमें प्रथम प्राईवेट रेयिटेन्स, द्वितीय टेक्सटाइल और गारमेन्ट है तृतीय स्थान पर्यटन का है। उपरोक्त इन तीनों आयामों में महत्वपूर्ण क्षेत्र पर्यटन है, पूर्व में जीडीपी में 12 प्रतिशत योगदान रहा है। जो धीरे धीरे कम होता जा रहा है। वर्ष 2018 में श्रीलंका में 2.3 मिलियन पर्यटको से 4.4 बिलियन डॉलर का योगदान से जीडीपी में 5.6 प्रतिशत से भागीदारी रही। वही वर्ष 2019 में 4.6 प्रतिशत कम होते हुए वर्ष 2020 में जीडीपी में योगदान 0.80 प्रतिशत पर सिमट गया। अर्थात् श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को अस्थिर करने में पर्यटन भी एक महत्वपूर्ण बिन्दु है। इसका मूल कारण कोरोना व चर्च पर हुआ हमला है।

पर्यटन के बाद एक बिन्दु है – टैक्स। टैक्स का श्रीलंका की अर्थव्यवस्था में 13 प्रतिशत योगदान रहता है, लेकिन वहां की तत्कालीन सरकार द्वारा इस योगदान को नकार दिया था। अर्थात् टैक्स मुक्त व्यवस्था शुरू कर दी। ये भी आर्थिक अस्थिरता का कारण बना।

जैविक खेती की घोषणा के बाद खेती में आवश्यक इंफास्ट्रचर बनाने की बजाय चीन के माध्यम से अनावश्यक इंफास्ट्रचर जैसे बदंरगाह, सड़कें, भवन निर्माण का कार्य करके कर्जयुक्त व्यवस्था का सृजन इस दौर में हुआ।

अब चर्चा करते है जैविक कृषि पर

बतौर लेखक मैं स्वंय जैविक खेती का शोधकर्ता भी हूं। पिछले 11 वर्षो से 200 से ज्यादा प्रकार की फसलों पर प्रयोगिक अनुभव भी रखता हूं। जैविक खेती में ज्ञान की जरूरत ज्यादा है और आदान (इनपुट) की आवश्यकता कम। जैविक खेती में प्रारम्भ में जहां भी उत्पादन कम होने की बात आई, वहां ज्ञान की दक्षता का अभाव भी पाया गया। हमारे केन्द्र पर सचांलित शोध कार्यों में पिछले वर्ष 43 फसलों का उत्पादन रसायनिक खेती की तुलना मे डेढ़ गुणा ज्यादा था। जैसे गेहूं प्रति हेक्टेयर 60, सरसों 36 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हमारा सामान्य उत्पादन रहा। इसके अलावा हमारे किसानों का उत्पादन भी जैविक खेती में उत्कृष्ट रहा। पूर्व में श्रीलंका के समकक्ष देश भूटान में वर्ष 2008 में जैविक देश की घोषणा हुई। बिना किसी आर्थिक स्थिरता के वर्ष 2020 में सम्पूर्ण भूटान जैविक खेती पर स्थिर हुआ। आत्मनिर्भर स्वालम्बी देश के रूप में आज उदाहरण है। दूसरा उदाहरण भारत में सिक्किम राज्य का है, वर्ष 2003 में जैविक प्रदेश बनाने की घोषणा हुई और बिना किसी आर्थिक अस्थिरता के वर्ष 2016 में जैविक प्रदेश के रूप में देश का पहला राज बना। तीसरा उदाहरण राजस्थान राज्य में डुंगरपुर जिला का है। वर्ष 2016 में जैविक जिला बनाने की घोषणा हुई, बतौर चीफ ट्रेनर में इस कार्य में शून्य से शिखर तक यहां प्रतिभागी रहा हूं। यहां पर भी बिना किसी आर्थिक अस्थिरता के सफलता हासिल होने पर अग्रसर है।

उपरोक्त सभी तथ्यों से साबित होना है कि श्रीलंका की आर्थिक अस्थिरता में जैविक खेती का कोई सम्बन्ध नहीं है।

बहुत कम लोगो को जानकारी होगी कि श्रीलंका के समकक्ष दुनिया में ऐसे कई राष्ट्र है जहां श्रीलंका से भी ज्यादा आर्थिक अस्थिरता बन चुकी है। इसमें अफ्रीका देशों में छः देश प्रमुख है। लेबनान, सुरीनाम, जाम्बिया, रूस, बेलारूस, यूक्रेन, ट्युनीशीया, घाना, इजीप्ट, अर्जेन्टीना, इक्वाडोर, इथोविया, केन्या, माइजीरिया, पाकिस्तान, आदि प्रमुख देश है।

हाल ही खबरों के अनुसार चर्चा में आया है कि अमेरिका में मंदी की भविष्यवाणी दुनिया के अर्थशास्त्री कर चुके हैं। भारत के पड़ोसी देशों की हालात सबसे ज्यादा खराब है। पाकिस्तान और नेपाल भी आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं। नेपाल के बैकों में खाते खाली हैं। पाकिस्तान में 6 हफ्ते का मुद्रा भण्डार शेष है। पाकिस्तानी रूपया निचले स्तर पर है। नेपाल में सिर्फ 7 महीने का विदेशी मुद्रा भण्डार बचा है।

तो क्या उपरोक्त सब देशों में जैविक खेती की घोषणा हो गई क्या इन देशो में केमिकल फार्मिग या कृषि रसायन पर प्रतिबन्ध है। ऐसा कुछ नही है।

किसी देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए वहां की खेती को स्वावलम्बी बनाना होगा इसके लिए बाजार आधारित उत्पाद से दूरी बनाना कर खेत आधारित व्यवस्था का सर्जन करके जैविक खेती के अभियान को आगे बढाना होगा। हालांकि यह तय है कि इस कार्य से कृषि रसायन निर्माता और विक्रताओं के कारोबार कम होगें तो यह सब अपनें लाभ के लिए जैविक खेती के विषय पर जनता को गुमराह करकें विद्रोह शुरू करेगे।

सरकार को इस अभियान को बन्द करने के लिए मजबूर करेंगे। ऐसे झूठे विद्रोह की असली नब्ज यदि तत्कालिन सरकारें नहीं ढूंढ़ पाती है तो उनके आगे झुकते हुए जैविक खेती के विषय को रोककर उक्त रसायन निर्माता और विक्रताओं को ही वित पोषित करतें हुए राष्ट्र को दूषित करेगी इसलिए सभी पाठकों से आग्रह है कि किसी भी अफवाह पर ध्यान न देते हुए जैविक खेती से पुण्य कार्य में आत्मविश्वास के साथ लगे रहिए ताकि प्रकृति, पर्यावरण, पेड़ पौधे, पशु पक्षी, के साथ सूक्ष्म से विशालमय जीवों की रक्षा का विषय टिकाऊ रहे।

(डॉ. पवन के टाक, गोयल ग्रामीण विकास संस्थान कोटा व श्रीरामशान्ताय जैविक कृषि अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केन्द्र के मुख्य प्रबन्धक एवं शोधकर्ता हैं, लेखक के निजी विचार हैं।)

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