गाँव में काम ठप्प भाग 3: खेतिहर मजदूरों पर मढ़ रहे पुराने 1000-500 के नोट

Ashwani NigamAshwani Nigam   14 Nov 2016 8:31 PM GMT

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गाँव में काम ठप्प भाग 3: खेतिहर मजदूरों पर मढ़ रहे पुराने 1000-500 के नोटफोटो गाँव कनेक्शन।

अश्वनी कुमार निगम/बसंत कुमार

मोहनलालगंज/लखनऊ। 500 और 1000 के नोट बंद होने से जहां आम लोग परेशान हैं, वहीं गांव के खेतिहर मजूदर भी आर्थिक शोषण का शिकार हो रहे हैं। खेतों में रोजाना मजदूरी करके रोजी-रोटी चलाने मजदूरों को काम के बदले काम कराने वाले ठेकेदार पुराने 500 और 1000 की नोट देकर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं, वहीं इसके बहाने ठेकेदार अपने काले धन को सफेद भी करने लगे हैं।

तीन दिन से नहीं कर रहे मजदूरी

मोहनलालगंज जिले के मऊ गांव की एक हजार आबादी वाले मादोखेड़ा गांव में अधिकतर लोग खेतों में काम करने वाले दैनिकभोगी मजदूर हैं। इस गांव में महिला और पुरूष दोनों मजदूरी करके अपना गुजारा बसर करते हैं। लेकिन नोटंबद होने से इनकी परेशानी बढ़ गई और पिछले तीन दिन से इस गांव के लोग काम करने नहीं जा रहे हैं। खेतिहर मजदूर के रूप में काम करने वाली रमावती देवी आजकल गांव के सरपत और काश को इकट्ठा करके झाडू बना रही हैं। वह बताती हैं कि खेतों में आलू लगने का समय चल रहा है। हर दिन 200 से लेकर 250 रुपए वह कमा लेती थीं, लेकिन पिछले दिन से घर बैठी हैं। ठेकेदार काम करने के बाद भी मजदूरी के रूप में पुराने 500 और 1000 के नोट थमा रहा है। पुराना नोट कोई ले नहीं रहा है। ऐसे में हम लोग घर बैठे हैं।

हम लोग न तो पढ़े-लिखे हैं, न ही बैंक में खाता है

रमावती देवी।

रमावती देवी के साथ ही काम करने वाली सुखदेई ने बताया कि हम लोगों को आलू के खेतों में काम करने से अच्छा पैसा मिल जाता था, लेकिन जब से नोटबंदी हुई है, हमारे सामने संकट खड़ा हो गया है। मजदूरी के पैसे में एक हजार और 500 की पुरानी नोट ही दी जा रही है। हम लोग न तो पढ़े-लिखे हैं और न ही हमारा बैंक में खाता है। इसके बाद भी जब हम बैंक में पैसा बदलने गये, तो हमारा पैसा नहीं बदला गया। ऐसे में हमारे घरों में दाना-पानी के भी लाले पड़ गए हैं। हमारे घरों में मर्द भी निराश होकर घर बैठे हैं। हमारी कोई सुनवाई नहीं है।

एक-दो दिन का अनाज है, फिर क्या करेंगे

बबीता देवी।

इसी गांव की बबीता देवी जो मनरेगा मजूदर हैं, बताती हैं कि नोटबंदी के बाद से मनरेगा का काम बंद हो गया है। ठेकेदार ने काम पर आने से अभी मना किया है। उसका कहना है कि जब पैसा जाएगा, तब आना। पहले जो काम किया है, उसका भी पैसा नहीं मिला है। घर में जो अनाज हैं और सब्जियां हैं, उसी से काम चल रहा है। लेकिन एक दो दिन के अंदर वह भी खत्म हो जाएगा। फिर हम लोग क्या करेंगे।

चार दिन से नहीं गया काम पर

अजय।

मोहनलालगंज के धनुवासांड गांव के अजय बल्ली काटने वाले दैनिक मजदूर हैं। पिछले चार दिनों से अजय के पास काम नही है। गांव की चौपाल पर अपने साथियों के साथ बेरोजगार बैठे अजय से जब बात हुई तो उन्होंने कहा कि नोटबंदी के बाद से लकड़ी काटने का काम कराने वाले ठेकेदार ने काम पर आने से मना कर दिया है। क्योंकि उसके पास सौ-सौ के नोट नहीं है। पुराना 500 और 1000 का नोट कोई ले नहीं रहा है। ऐसे में बिना काम के हम लोग हो गए हैं। इसी गांव के ओमप्रकाश जो गांव से सब्जियों को थोक में खरीदकर बाजार ले जाकर बेचने का काम करते हैं। ओमप्रकाश भी घर बैठे हैं। पूछने पर बताते हैं कि गांव के जो बड़े किसान हैं उनसे नगद सब्जी खरीदना पड़ता है। पुराना 1000 और 500 का नोट अब लिया नहीं जा रहा है। ऐसे में न तो सब्जी खरीद पा रहा हूं और न ही बेचने जा रहा हूं।

अनाज के बदले पैसा नहीं दे रहे आढ़ती, धान क्रय केन्द्र भी बंद

लल्लन यादव।

खरैना गांव के लल्लन यादव ने बताया कि खेतों में आलू बोने का काम चल रहा था, लेकिन दो दिन से बुवाई बंद है क्योंकि मजदूरों को उनकी मजदूरी देने के लिए फुटकर पैसे नहीं हैं। उनका कहना है कि उनके यहां धान अच्छा पैदा हुआ है। धान बेचने के लिए जब वह आढ़ती के पास गए तो उसने भी अभी धान लेने से मना कर दिया। सरकारी धान क्रय केन्द्र अभी शुरू नहीं हुआ है। ऐसे में इस साल आलू की बुवाई तय समय पर नहीं हो पाएगी। इसी गांव के मिथिलेश जो एक किसान हैं, वह बताते हैं कि पहले अनाज देने के बाद गांव में स्थित किराना दुकान से घर के जरूरत के सामान मिल जाते थे, लेकिन नोटबंदी के कारण दुकानदारी ने अनाज लेने से मना कर दिया है। ऐसे में मसाला-तेल नहीं खरीद पा रहे हैं।

दाना-पानी के पड़ गए लाले, कैसे बच्चों को ले जाएं मेला

सोमवार को दिन के एक बज रहे हैं, मोहनलालगंज के मऊ गांव के मादोखेड़ा में बच्चों में जबर्दस्त उत्साह है। बच्चे खुश हैं कि आज कार्तिक मेला में वह जाएंगे और खूब मस्ती करेंगे। इन बच्चों में बबीता देवी का 6 साल का बच्चा श्याम भी शामिल है। गांव के बाकी बच्चों की तरफ वह अपनी मां से जल्द से जल्द तैयार होकर मेले जाने की जिद कर रहा है लेकिन उसे नहीं पता कि इस बार वह मेला नहीं देख पाएगा। हर दिन मजूदरी करके घर का खर्चा चलाने वाली बबीता के पैसा नहीं है। एक हजार और 500 के नोट बंद होने के बाद उनको मजूदरी के पैसे नहीं मिले हैं। वह बताती हैं कि हर साल बच्चों को कार्तिक पूर्णिमां के मेले का बच्चों को इंतजार रहता है। इस दिन मोहनलालगंज का बड़ा मेला लगता है। हर साल बच्चों को लेकर जाती थी लेकिन इस बार पैसा नहीं है कैसे जाऊं।

नहीं मिल रहा काम, वापस लौट रहे मजदूर

नोटबंदी के कारण मजदूरों को काम मिलना बंद हो गया है। शामली जिला के रहने वाले तेजपाल राजमिस्त्री का काम करते हैं। तेजपाल रोजाना शामली फाटक पर पहुंचते है। यहीं से ठेकेदार उन्हें अपने यहां काम करने के लिए ले जाते हैं। तेजपाल बताते हैं कि 500 और 1000 रुपए के नोट बंद होने के एक-दो दिन बात तक काम मिला, उसके बाद काम मिलना बंद हो गया है। ठेकेदारों के पास पुराने नोट हैं और वो नहीं चल रहा तो हम ले नहीं रहे हैं। घर में कुछ पैसे थे, उससे एक-दो दिन काम चला। अब तो घर खर्च के भी पैसे नहीं है।

खेती करूं या बैंक में लाइन में लगूं

जगजीवन।

मोहनलालगंज के भैरो खेड़ा गाँव निवासी जगजीवन अपने बुजुर्ग पिता रामावतार के साथ गेहूँ की फसल लगाने के लिए खेत में पानी जमा रहे हैं। 80 वर्षीय जगजीवन को काला धन का मतलब नहीं पता। सरकार द्वारा नोटबंदी के सम्बन्ध में सवाल पूछने पर जगजीवन बताते हैं कि लोगों ने कहा कि अब पांच सौ और हज़ार के नोट नहीं चलेंगे। वैसे हमारे पास तो पांच सौ और हज़ार के ज़्यादा नोट नहीं थे, लेकिन जो थे उसे दुकानदारों ने लेना बंद कर दिया। मेरा बेटा खेती करे या बैंक में लाइन लगे। मैं बुजुर्ग आदमी बैंक में घंटों तो लग नहीं सकता।' वहीं, उनके बेटे जगजीवन कहते हैँ कि अभी नए फसल लगाने का वक़्त है और हम फसल लगाएं या बैंक जाएं। बैंकों में भी पैसे नहीं है। पापा ने पेंशन से कुछ रुपए बचा रखे थे, उसी से घर और खेती का काम चल रहा है। मंडी में अनाज की बिक्री और खरीद बंद पड़ी है।

रुपए नहीं होने के कारण पुराने बीज इस्तेमाल हो रहा

मोहनलालगंज के मऊ गाँव निवासी किसान रामलगन यादव बताते हैं कि नोटबंदी के कारण हम गेहूँ के नए बीज नहीं खरीद पाए और खेतों में पुराने बीज ही इस्तेमाल कर रहे है। पुराने बीज इस्तेमाल करने से उत्पादन पर असर पड़ता है, लेकिन हम मजबूर हैं। उनहेंने बताया कि हमने खाद पहले ही खरीद लिया था इसीलिए हमें बहुत ज़्यादा परेशानी नहीं हो रही है। नोटबंदी से ललितपुर जनपद में किसानों का बुरा हाल है। अनाज की बिक्री बिल्कुल रुक गयी है। छिल्ला गाँव निवासी भरत लोधी बताते हैं कि बुधवार को 10 क्विंटल धान बेचने मंडी गया था, जहाँ व्यापारियों ने कहा कि धान रख दो, पैसा बाद में ले जाना। अब हम किसान धान बेचकर ही अपना परिवार चलाते हैँ। मैं अपना धान वापस लेकर आ गया। मेरे पास गेहूँ बोने के लिए खाद, बीज और मजदूरों को देने के लिए पैसा नहीं है। कहाँ से गेहूँ की बुआई करें, हमारे खेत उखड़ रहे हैं।

उन्हें नहीं मिल रहे पैसे

ग्राम दिगवार तहसील महरौनी निवासी नन्दकिशोर का कहना है कि बैंकों में पैसे बदलने के लिए लम्बी-लम्बी कतारे लगी हैं। घंटों इंतजार के बाद बैंक में पैसे खत्म हो जाते हैं। जिन लोगों का दूसरे बैंक में अकाउंट है उन्हें बैंक अधिकारी पैसे नहीं दे रहे है।

बीज दुकानों पर पसरा सन्नाटा

मोहनलालगंज के खरैना में महक सीड स्टोर चला रहे आरएस यादव बताते हैं कि जिस समय बीजों की सबसे ज़्यादा बिक्री होती है, उस समय दुकान पर सन्नाटा है। सुबह से शाम होने को है गिने-चुने लोग ही बीज लेने आए है। नोटबंदी के कारण बिक्री पर काफी असर पड़ा है।

     

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