ज़िम्मेदारी हज़ारों की, मेहनताना 100 रुपये भी नहीं
Devanshu Mani Tiwari 1 Jan 2017 1:54 PM GMT
रायबरेली। जिले के हरचंदपुर ब्लॉक में नफीपुर गाँव की आशा कार्यकत्री उमा मिश्रा (35 वर्ष) को फरवरी 2016 के बाद उनकी पोलियो ड्यूटी का पैसा नहीं मिला है। कहने को तो पोलियो ड्यूटी पर एक आशा कार्यकत्री को 75 रुपए मिलते हैं और वो भी तब जब वो 500 घरों में जाकर 150 से अधिक बच्चों को पोलियो ड्राप पिलाती है।
सरकार ने प्रति 1,000 की आबादी पर एक आशा कार्यकत्री रखने का लक्ष्य निर्धारित किया है। रायबरेली जिले से करीब 20 किमी. उत्तर दिशा में हरचंदपुर ब्लॉक में नफीपुर व तमंगलपुर गाँव में आशा कार्यकत्री के पद पर तैनात उमा बताती हैं, ‘’जिस दिन पोलियो दिवस पर ड्यूटी लगती है, वो पूरा दिन घरों के चक्कर काटने में चला जाता है। घरों में जाकर पोलियो ड्रॉप पिलानी पड़ती है, इसके बाद भी ये पक्का नहीं रहता कि पैसा मिलेगा कि नहीं।’’
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के मुताबिक मौजूदा समय में भारत में 24 लाख आशा कार्यकत्रियां हैं, जिसमें उत्तर प्रदेश में कुल 1,40,094 आशा कार्यकत्री हैं, जो कि पूरे देश में सबसे अधिक है। रायबरेली जिला स्वास्थ्य विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक जिले में इस वर्ष फरवरी, अप्रैल, मई और सितंबर माह में पोलियो दिवस मनाया जा चुका है। इसके बावजूद जिले में हरचंदपुर ब्लॉक में कार्यरत सभी आशा कार्यकत्रियों को उनकी पोलियो ड्यूटी का पैसा इससे पहले फरवरी 2016 में मिला था और तब से आज तक उन्हें कोई पैसा नहीं मिला है।
पोलियो ड्यूटी को आशा कार्यकत्री सिर्फ पैसा पाने के लिए करती हैं। ड्यूटी में ध्यान कुछ खास नहीं रहता है क्योंकि उनके ऊपर और भी बहुत सारी ज़िम्मेदारियां होती हैं।बलराम तिवारी, आशा समन्वयक, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन
रायबरेली जिले के मुख्य चिकित्साधिकारी राकेश यादव ने बताया, “पूरे जिला का जो भी स्वास्थ्य विभाग का बजट मिलता है उसे ब्लॉकवार भेज दिया जाता है।”
उन्होंने बताया कि आशा बहू को किसी भी ड्यूटी का पैसा उसका सुपरवाइज़र देता है। इसलिए कभी-कभी उन्हें यह पैसा मिलने में देरी हो जाती है।’’ ‘’जिले में जिन ब्लॉकों की आशाओं को पोलियो का पैसा नहीं मिला है, वो सभी अपने ब्लॉक अधिकारी (बीपीएम) से इसकी जानकारी देकर पैसा ना मिल पाने की वजह जान सकते हैं।’’ राकेश यादव आगे बताते हैं।
रायबरेली जिले के अलावा कानपुर देहात में जरैलापुरवा गाँव की आशा कार्यकत्री सीमा (32 वर्ष) को भी उनकी पिछली पोलियो ड्यूटी का पैसा नहीं मिला है। सीमा कहती हैं,’’ बात 75 रुपए की नहीं है, असली बात यह है कि हमारी सुपरवाइज़र खुद इस संदेह में रहती हैं कि कहीं फलाने गाँव की आशा अगले महीने काम ना छोड़ दे इसलिए वो हमारी ड्यूटी का पैसा रोक लेती हैं और उसे इकट्ठे दो या तीन ड्यूटी का पैसा देती हैं। कायदे से ये होना चाहिए कि जिस दिन ड्यूटी लगे उसी दिन हमे पैसा मिलना चाहिए।’’
भारत सरकार ने वर्ष 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य योजना के अंतर्गत ग्रामीण स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर करने के लिए आशा बहू नियुक्त करने की शुरुआत की थी। प्रतापगढ़ जिले के सढ़वाचंद्रिका ब्लॉक के कोल बझान गाँव में तैनात आशा कार्यकत्री सरोज सिंह (52 वर्ष) को पिछली दो पोलियो ड्यूटी का पैसा नहीं मिला है। सरोज बताती हैं,’’ हमे मई और अक्टूबर माह में पोलियो ड्यूटी का पैसा नहीं मिला है। एक ड्यूटी पर अचानक डिलीवरी का केस आ गया था, इसलिए बीच में ही जाना पड़ा। उसके पैसे नहीं मिले।’’
रायबरेली जिले में हरचंदपुर ब्लॉक में जिला स्वास्थ्य विभाग की ओर से तैनात ब्लॉक प्रोग्राम मैनेजर (बीपीएम) आरती सिंह बताती हैं कि चाहे वो इंटीग्रेटेड चाइल्ड डेवलपमेंट स्कीम के कार्यक्रम हो या पोलियो ड्यूटी आशा बहुओं को ही ड्यूटी पर सबसे पहले लगवाया जाता है। पोलियो ड्यूटी पर तो कभी कभार पैसे मिल जाते हैं पर आईसीडीएस प्रोग्राम में आशाओं से फ्री में काम करवाया जाता है, जो गलत है।’’
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