गरीबों की दवा पर अमीर डाल रहे डाका
दरख्शां कदीर सिद्दीकी 26 Nov 2016 8:47 PM GMT
लखनऊ। सरकारी अस्पतालों में लोकल परचेज के नाम पर सरकार से करोड़ों रुपये आने के बावजूद यहां आने वाले मरीजों को इधर से उधर भटकना पड़ रहा है। कुल बजट जोकि करीब 10 करोड़ रुपये है, उसका 40 फीसदी हिस्सा यानी चार करोड़ रुपये तो रसूखदारों पर खर्च किये गये, जबकि जरूरतमंदों को बाहर की महंगी दवाएं लिखी जाती रहीं। साल दर साल ऑडिट रिपोर्ट में ये गड़बड़ियां सामने आती रहीं। मगर कोई हल नहीं निकल सका। इतना ही नहीं, सीएम अखिलेश यादव के आदेश के बाद अस्पताल प्रशासन ने लोकल परचेज की सुविधा होने के बावजूद प्रमुख सचिव सूचना नवनीत सहगल के ड्राइवर रामसुंदर पांडेय को 18 हज़ार की दवाएं लिख दीं।
क्या कहते हैं नियम
जबकि नियम यह है कि अस्पताल में जो दवाएं नहीं हैं, वह मरीजों को लोकल परचेज फंड से खरीदकर उपलब्ध करवाई जाए। बीपीएल और गरीब वर्ग के मजदूरों के लिए ये व्यवस्था की गई। इसके लिए अस्पताल को शासन से हर साल औसतन 10 करोड़ रुपये मिलते हैं। वित्तीय वर्ष 2014-15 की ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक, एलपी के इस फंड का करीब 40 फीसदी हिस्सा यानी चार करोड़ रुपये वीआईपी और रसूखदारों पर खर्च किए गए हैं। अस्पताल प्रशासन का दावा है कि व्यवस्था के तहत शासन-प्रशासन के विशेष तबके को सीधे दवाएं देने का प्रावधान है।
कैँसर जैसे असाध्य रोगों के लिए भी नही है लोकल परचेज
किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में कैंसर का इलाज करा रहे मरीजों को दवाइयां समय से नहीं मिल पा रही हैं। फतेहपुर निवासी मुंह में कैंसर से पीड़ित अमित (65 वर्ष) के बेटे ने बताया कि छह महीने से पापा का इलाज चल रहा है।
दवाईयां न मिलने से जब मर गयी आलिया
बीते पाँच महीने पहले सरफराजगंज निवासी आलिया नाम की बच्ची (3 साल) को कैंसर था। मां-बाप गरीब होने के कारण इलाज नही करा पा रहे थे। आसाध्य रोग होने के बावजूद केजीएमयू उन्हें दवाई न होने की बात कहकर बाहर की दवाई लिखता था। मां-बाप जबतक दवाई लाकर दे पाए, तब तक इलाज चलता रहा। जब मां-बाप ने दवाई लाने में असमर्थता जताई तो अलिया को घर भेज दिया गया। और करीब तीन महिने बाद आलिया की दवाई न मिलने से मौत हो गयी।
जब बोले परिजन
आलिया के पिता रिजवान ने बताया कि वह साईकिल का काम करते हैं। गरीबी हालात में जितना बन पड़ा हमने किया। और जब पैसे खत्म हो गए तो हम मजबूर हो गए। रिजवान ने बताया कि डाक्टर जो दवाईयां लिखते थे, वह अस्पताल के मेडिकल स्टोर पर मिलती नही थी।
लोकल परचेज के बजट के लिए कोई बाधा नही है। जितना खर्च होता है, उतना मिल जाता है। वह हमारे कर्मचारियों के इलाज के लिए आता है। इसके आलावा आसाध्य रोगों के मरीजों पर खर्च होता है।एससी तिवारी, सीएमएस, केजीएमयू
ड्राइवर राम सुंदर की हालत का लिया जायजा
नवनीत सहगल के ड्राईवर से मिलने शनिवार करीब सुबह 11 बजे मुख्य सचिव राहुल भट्टनागर और वीसी रविकांत पहुंचे और ड्राइवर राम सुंदर की हालत का जायजा लिया। मुख्य सचिव भटटनागर ने रामसुन्दर पाण्डे की बेटी राविता पाण्डे को अच्छे इलाज और जल्द ही ड्राइवर की हालत में सुधार होने का आश्वासन दिया।
More Stories