पड़ताल: अनट्रेंड ड्राइवर और खस्ताहाल सड़कें हादसों का कारण

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पड़ताल: अनट्रेंड ड्राइवर और खस्ताहाल सड़कें हादसों का कारणभारत में सबसे ज्याद सड़क हादसों में जान गंवाते हैं लोग।

गुरुवार को एटा में एक स्कूल बस और ट्रक की टक्कर में 13 बच्चों की मौत हो गई है, जबकि 40 बच्चे घायल हो गए हैं। यह हादसा एटा के अलीगंज रोड पर हुआ। इस हादसे ने सड़क पर बढ़ती अराजकता पर बड़ा सवालिया निशान लगाया है। सरकारी आंकड़ों पर इंडियास्पेंड द्वारा किए गए विश्लेषण से पता चलता है कि 13 बच्चे 71 भारतीय लोगों में से हैं जो कार या टैक्सी दुर्घटनाओं में रोज़ाना अपनी जान गवांते हैं। इंडिया स्पेंड की एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक भारत में सड़क दुर्घटनाओं के कारण रोज़ाना होने वाली मौत की संख्या, आतंकवाद से होने वाली सालाना मौत के मुकाबले चार गुना अधिक है।

वर्ष 2014 में कम से कम 139,671 लोग भारत की सड़कों पर दुर्घनाओं का शिकार बनें, यानि कि प्रतिदिन 382 मौत। तुलना के लिए हम इन आंकड़ों पर नज़र डाल सकते हैं। वर्ष 2014 में आतंकवाद संबंधित घटनाओं के कारण करीब 83 लोगों (नागरिकों और सुरक्षा कर्मियों) की मौत हुई थी।

सड़क पर होने वाली दुर्घनाएं मुख्यत: तीन कारणों से होती हैं- गाड़ी तेज़ चलाना, शराब पी कर गाड़ी चलाना एवं अधिक भार वाली गाड़ियां चलाना। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय से नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार दो वर्षों में सड़क दुर्घनाओं की संख्या में गिरावट होने के बाद वर्ष 2014 में सड़क दुर्घटनाओं की संख्या में फिर वृद्धि देखी गई है। माना जाता है कि सड़क पर होने वाली अधिकतर घटनाएं, करीब एक तिहाई, ड्राइवर की गलती के कारण के होती हैं। इन गलतियों में तेज़ रफ्तार में गाड़ी चलाना, शराब पी कर गाड़ी चलाना, सड़क के गलत दिशा में चलना, एवं गाड़ी चलाते वक्त ठीक प्रकार सिगनल न देना शामिल हैं। दिसंबर 2015 में, दिल्ली यातायात पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट की सख्त यातायात नियमों को लागू करने की सिफारिशों का पालन किया है जैसे कि, नियमों का उल्लंघन करने वालों के लाइसेंस को तीन महीने के लिए निलंबित की जाती है।

यूपी के ऐटा में हादसे के बात क्षतिग्रस्त बस।

सबसे अधिक सड़क हादसे इस पर चलने वाले लोगों की लापरवाही से होते हैं। लोग न तो सीट बेल्ट बांधते हैं, न ही हेलमेट पहनना चाहते हैं। नियमों को तोड़ना अपनी शान समझते हैं। इस वजह से हादसे बढ़ते हैं। इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों को नियमों को कड़ाई से पालन कराना होगा। तभी हादसों में कमी लाई जा सकती है।
अनिल अग्रवाल, एडीजी, ट्रैफिक, उत्तर प्रदेश

फोटो प्रतीकात्मक

क्षमता से अधिक सामान लाद कर ले जाना भी एक वजह

भारी लादन, विशेष कर ट्रकों में अत्यधिक सामान लाद देने से उन्हें नियंत्रित करना कठिन हो जाता है खास कर जब उन्हें ब्रेक लगाने की आवश्यकता हो। हालांकि भारतीय राजमार्गों पर ऐसी ट्रकें खूब देखने को मिलती है। इसी प्रकार ट्रकों पर लदे हुए सामान जो बाहर तक निकले हुए होते हैं (जैसे कि ट्रकों से बाहर की ओर निकले स्टील के छड़) राजमार्गों पर आमतौर पर देखने को मिल जाते हैं जो कि कानूनी रूप से अवैध भी है। इन दोनों कारणों के कारण वर्ष 2014 में सड़कों पर 36,543 मौत हुई हैं। इन दोनों कारणों पर रोक लगाई जा सकती है और पिछले कुछ वर्षों में इस प्रवृति में गिरावट भी देखने मिली है। भारी ट्रक यातायात राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों पर ही देखी जाती है, इन पर बेहतर निगरानी और प्रवर्तन से कई लोगों की जान बचाई जा सकती है।

दुपहिया वाहन से अधिक सड़क दुर्घटनाएं

देश की सड़कों पर चलने वाली वाहनों में सबसे अधिक संख्या दुपहिया वाहनों की है। इसलिए सड़कों पर होने वाली दुर्घटनाएं भी सबसे अधिक दुपहिया वाहनों की ही होती हैं। वर्ष 2014 में सड़क से होने वाली कुल मौतों में से 30 फीसदी दुपहिया वाहन वाले ही थे जबकि साइकल पर चलने वाले लोगों की हिस्सेदारी 3 फीसदी एवं पैदल चलने वाले लोगों की हिस्सेदारी नौ फीसदी दर्ज की गई है।

मुंबई में होते हैं कम हादसे

वर्ष 2014 में देश के 50 बड़े शहरों में सड़क हादसों में मौत का शिकार होने वाले लोगों की संख्या 16,611 दर्ज की गई है। इनमें से अधिकतर हादसे दिल्ली, चेन्नई एवं बंग्लुरु में हुई हैं। दिल्ली एवं चेन्नई में सड़क हादसों में होने वाली मौत की संख्या में लगातार गिरावट दर्ज की गई है। अन्य क्षेत्रों की तुलना में बड़े शहरों में सड़क उपयोगकर्ताओं पर निगरानी रखना एवं कानून लागू करना अधिक आसान होता है। दिल्ली मेट्रो भी सड़कों को अधिक सुरक्षित बनाने में खास भूमिका निभा सकता है। जन परिवहन प्रणाली हर रोज़ दो मिलियन से अधिक लोगों को ले जाने एवं ले आने का काम करती है एवं वाहनों को सड़क से दूर रखती है जिससे सड़कों पर कम भीड़ एवं कम दुर्घटनाएं होती हैं। सड़क हादसों के मामले में मुंबई की स्थिति बेहतर है। चेन्नई, बैंगलुरु एवं कानपुर जैसे शहरों की तुलना में मुंबई में कम सड़क दुर्घटनाएं होती हैं। इसका एक मुख्य कारण यह है कि मुंबई की जनसंख्या के अनुपात में शहर के सड़कों पर चलने वाली वाहनों की संख्या कम है क्योंकि इसके पास कुशल, बहुत अतिभारित यद्यपि, जन परिवहन प्रणाली मौजूद है।

सड़क सुरक्षा सप्ताह

2017 में सड़क सुरक्षा सप्ताह 11 जनवरी से 17 जनवरी तक मनाया गया। भारतीय उपमहाद्वीप में लोगों को राष्ट्रीय सड़कों की सुरक्षा के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए सड़क सुरक्षा अभियान का आयोजन आईएसएस भारत, एचएसई (स्वास्थ्य, सुरक्षा और वातावरण) द्वारा की गई पहल है। आईएसएस भारत ने देश में जनवरी के पहले हफ्ते में पूरे सप्ताह के दौरान सड़क सुरक्षा सप्ताह को मनाने की घोषणा की गई थी। इस अभियान का आयोजन करने का लक्ष्य सड़क सुरक्षा के लिए सिर्फ साधारण नियमों का पालन करने के द्वारा सुरक्षित सड़क यात्रा पर जोर देना था।

ऐसे रुक सकते हैं सड़क हादसे

हादसे होने वाले खतरनाक स्थानों पर सूचना या चेतावनी बोर्ड लगाए जाएं। 2 ट्रैफिक पुलिस की ओर से कर्मचारी की तैनाती की जाए। 3 ऐसे स्थानों से पहले स्पीड ब्रेकर बनाए जाएं। 4 रेलिंग या पैरापिट या रोड डिवाइडर के इंडीकेटर लगाए जाएं। 5 सड़कों की हालत सुधारी जाए। 6 शराब के नशे में वाहन न चलाएं।

जरूर पहनें हेलमेट

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हेलमेट अनिवार्य रूप से पहन कर चलने से सड़क पर होने वाली क्षति को 72 फीसदी एवं मौत के खतरे को 39 फीसदी रोका जा सकता है। देश में कुछ ही शहरों में हेलमेट पहनना अनिवार्य किया गया है और वह भी सिर्फ उनके लिए जो वाहन चालक हैं, पीछे बैठे लोगों के लिए नहीं। साइकल चलाने वालों के लिए भी हेलमेट पहनना अनिवार्य नहीं किया गया है। इसे विडंबना ही कहेंगे कि देश के कुछ शहरों जैसे पुणे एवं मदुरई में हेलमेट पहनना अनिवार्य किए जाने के विरोध में प्रदर्शन होता रहा है।

फोटो प्रतीकात्मक

ये हैं नियम

कैबिनेट ने मोटर व्हीकल एक्ट के संशोधन को मंजूरी दे दी है। सड़क यातायात की सुरक्षा को ग्लोबल स्टैंडर्ड का बनाने के लिए एक्ट में संशोधन किए गए हैं। इसके साथ ही कैबिनेट ने केंद्र द्वारा चलाई जाने वाली कई योजनाओं को भी मंजूरी दी है।

मोटर व्हीकल एक्ट

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता ने मोटर व्हीकल संशोधन बिल को मंजूरी मिल गई है। सरकार के मुताबिक नए नियमों से अगले पांच साल में सड़क दुर्घटनाओं को घटाकर मौजूदा स्तर के 50 फीसदी तक लाया जा सकेगा। नए नियमों के मुताबिक हिट एंड रन मामलों में मुआवजा 25 हजार से बढ़ाकर 2 लाख किया जाएगा। वहीं सड़क दुर्घटनाओं में मुआवजा 10 लाख तक किया जाएगा। इसके साथ बिल में 28 नए सेक्शन भी जोड़े गए हैं, जो ग्रामीण इलाकों में यातायात, पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन और ट्रांसपोर्ट से जुड़ी ऑनलाइन सर्विस को बेहतर बनाने के लिए हैं। इसके साथ ही नाबालिग द्वारा नियम तोड़ने पर अभिभावक या वाहन के मालिक की भी जिम्मेदारी को लेकर भी नियम बनाए गए हैं। इसके साथ ही नशे में वाहन चलाने, बिना लाइसेंस वाहन चलाने, ओवर स्पीडिंग, ओवर लोडिंग को लेकर नियम और सख्त किए गए हैं। वहीं, ट्रांसपोर्ट व्हीकल की अनिवार्य ऑटोमैटिक फिटनेस टेस्टिंग 1 अक्टूबर 2018 से लागू की जाएगी।

10 गुना तक होगी पेनल्टी

ट्रैफिक नियम तोड़ने पर आम जुर्माना 100 रुपए से बढ़कर 500 रुपए होगा। वहीं, बिना लाइसेंस गाड़ी के गलत इस्तेमाल पर 1000 की जगह 5000 रुपए की पेनल्टी होगी। बिना लाइसें वाहन चलाने पर 500 रुपए की जगह 5000 रुपए भरने पड़ सकते हैं। वहीं ओवरस्पीडिंग पर 2000 और खतरनाक तरीके से गाड़ी चलाने पर 5000 रुपए का जुर्माना लगेगा। शराब पीकर गाड़ी चलाने पर अब 2000 रुपए की जगह 10 हजार रुपए भरने होंगे। सीट बेल्ट न लगाने पर 1000 रुपए की पेनल्टी लगेगी। नाबालिग द्वारा नियम तोड़ने पर अभिभावक या वाहन के मालिक पर पेनल्टी या फिर सजा मिल सकती है।

अमित भंडारी, इंडिया स्पेंड

    

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