दिव्यांगों के लिए वैज्ञानिक योगदान ज़रूरत

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दिव्यांगों के लिए वैज्ञानिक योगदान ज़रूरतएनबीआरआई में मंगलवार को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस का आयोजन किया गया जिसका विषय दिव्यांग थे।

लखनऊ। राजधानी स्थित एनबीआरआई (राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान) में मंगलवार को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस का आयोजन किया गया, जिसका विषय ‘दिव्यांग व्यक्तियों के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी’ रखा गया। इस अवसर पर संस्थान के निदेशक प्रो. एसके बारिक ने कहा, “समाज के कुछ तबके खासकर दिव्यांगों के लिए वैज्ञानिक योगदानों की पहुंच अभी बहुत कम है और इसके लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।”

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उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों में विशेष प्रतिभाएं छिपी होती हैं, जिन्हें बाहर निकालने के लिए प्रयास किए जाने की जरूरत है। उनका कहना है, “वैसे तो अनुसंधान के क्षेत्र में संस्थान के वैज्ञानिकों ने सराहनीय प्रगति की है, लेकिन हमें समाज के ऐसे तबके के लिए भी काम करने की जरूरत है।” इस मौके पर लगभग 300 दिव्यांग बच्चों ने भाग लिया। इस मौके पर दिव्यांगों की प्रतिभा को विज्ञान की मदद से निखारने पर जोर दिया गया।

कार्यक्रम में मौजूद मुख्य अतिथि प्रो. गणेश पांडेय, निदेशक सेंटर ऑफ बायोमेडिकल रिसर्च, पीजीआई ने औषधीय पौधों के संरक्षण की उपयोगिता बताते हुए कहा, “औषधीय पौधों से मिले प्राकृतिक तत्व आज भी औषधि शोध के लिए बहुत जरूरी हैं। क्योंकि इस समय प्रचलित 75 फीसदी औषधियां या तो सीधे प्राप्त की जाती हैं या पौधों से प्राप्त यौगिकों से मिले शोधन और कृत्रिम संश्लेषण से।” उन्होंने बताया कि किसी एक औषधि के शोध और विकास पर लगभग 10 साल का समय आता है। इसके साथ ही अधिक लागत भी लगती है। यह लागत और समय पादप आधारित औषधियों में और अधिक बढ़ जाती है। इसके अलावा लंबे शोध के बाद निकले औसतन लगभग पांच हजार तत्वों में से केवल एक ही औषधि के कुल में विकसित हो पाता है। इसके साथ ही केवल उसी को मान्यता मिल पाती है। प्रो. गणेश पांडेय ने बताया कि इन चुनौतियों के बाद भी औषधियों से मिलने वाले सभी तरह के तत्व बेहद उपयोगी है।

इस दौरान संस्थान की ओर से डॉ. शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय (लखनऊ) के साथ शिक्षण और शोध कार्यों पर साथ काम करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किया गया।

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