विश्व पुस्तक मेले में हिमाचल के कवियों की कृतियों की धूम
गाँव कनेक्शन 16 Jan 2017 11:53 AM GMT

नई दिल्ली (आईएएनएस)। प्रगति मैदान में रविवार को संपन्न विश्व पुस्तक मेले में जिस तरह पाठकों व साहित्य प्रेमियों ने कविता संग्रहों और खासकर नए कवियों की कृतियों में उत्साह दिखाया, उससे यह साफ हो गया है कि कविता अभी भी सहित्य की प्रमुख विधा के रूप में स्थापित है और नई पीढ़ी में अपने समय के कवियों को पढ़ने की उत्सुकता बराबर बनी हुई है।
पुस्तक मेले में हिमाचल के कवियों ने अपनी कृतियों के साथ देश के कविता क्षितिज पर अपने खास और चौंध भरी उपस्थिति दर्ज करवाई है।
विश्व पुस्तक मेले में जहां लीलाधर जगूड़ी, मंगलेश डबराल, लीलाधर मंडलोई सरीखे वरिष्ठ कवियों के कविता संग्रहों को शोधार्थियों और काव्य प्रेमियों ने हाथों हाथ लिया। वहीं केशव, प्रमोद कौंसवाल, गीत चतुर्वेदी, शिरीष कुमार मौर्य, गुरमीत बेदी, ओम नागर, सुरेंद्र रघुवंशी और पवन करण के कविता संग्रह भी पाठकों की पसंद बने।
विश्व पुस्तक मेले में सुरेंद्र रघुवंशी का कविता संग्रह 'स्त्री में समुद्र', गीत चतुवेर्दी का 'न्यूनतम मैं', जारा जकी का 'रेत की दीवारें', गुरमीत बेदी का 'मेरी ही कोई आकृति', पवन करण का 'इस तरह मैं', राकेश रंजन का 'दिव्य कैदखाने में', दिनेश कुशवाहा का 'इतिहास में अभागे', प्रेम रंजन अनिमेष का 'बिना मुंडेर की छत', रमा भारती का 'चिनार', आरती गुप्ता का 'ये जिंदगी तुम आना' और सविता भार्गव का कविता संग्रह 'अपने आकाश में' रिलीज हुए।
गुरमीत बेदी का कविता संग्रह 'मेरी ही कोई आकृति' इसी साल प्रकाशित हुआ है और इसकी भूमिका वरिष्ठ कवि पदमश्री लीलाधर जगूड़ी ने लिखी है। गुरमीत बेदी हिमाचल साहित्य अकादमी से पुरस्कृत कवि हैं और 'मौसम का तकाजा' के बाद 'मेरी ही कोई आकृति' उनका दूसरा कविता संग्रह है। इधर के वर्षों में पहाड़ के कवि के रूप में उन्होंने कविता जगत में अपनी विशेष उपस्थिति दर्ज करवाई है। उनका कहानी संग्रह 'सूखे पत्तों का राग' भी विश्व पुस्तक मेले का हिस्सा बना जिस की भूमिका चित्रा मुदगिल ने लिखी है। पुस्तक मेले में हिमाचल के कवियों सुरेश सेन निशांत और आत्मा रंजन के काव्यसंग्रह भी अपनी खास उपस्थिति दर्ज करवाने में सफल रहे।
पहाड़ों में भारी बर्फबारी के बावजूद पहाड़ के उत्साही कवि व साहित्यकार विश्व पुस्तक मेला में पहुंचे और पाठकों के साथ संवाद में मशगूल रहे। हिमाचल प्रदेश सहित देश के पर्वतीय राज्यों में रचे जा रहे साहित्य को भी विश्व पुस्तक मेले में खासा नोटिस किया गया और पहाड़ के सहित्य ने अपनी विशेष मौजूदगी का एहसास कराया।
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