निर्माण के बाद से ही दिव्यांगों के शौचालयों पर जड़ रखा है ताला

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निर्माण के बाद से ही दिव्यांगों के शौचालयों पर जड़ रखा है तालादिव्यांगों के लिए बने शौचालय की राह में लगा कूड़े का अंबार।

रवीश कुमार वर्मा (कम्यूनिटी जर्नलिस्ट- उम्र-24 वर्ष )

फैजाबाद। जिले के सरकारी भवनों के प्रांगणों में बने दिव्यांगों के लिए शौचालयों का हाल बदहाल है। इनमें कहीं ताले जड़े रहते हैं तो कहीं इन्हें कूड़ादान बना दिया गया है।

भले ही सरकार दिव्यांगों की सुविधाएं बढ़ाने के लिए कई योजनाएं बनाती हो मगर अधिकारियों की लापरवाही के चलते सारी कवायद खोखली साबित हो जाती हैं। आलम यह है कि जनपद के सरकारी दफ्तरों के पास बने शौचालय खंडहर में तब्दील हो रहे हैं। सरकारी भवनों में बने दिव्यांगों के लिए शौचालय खंडहर में तब्दील हो चुके हैं।

इन शौचालयों पर निर्माण के बाद से ही जड़ा पड़ा है ताला।

जिले में ऐसे भी कई सरकारी दफ्तर हैं जहां या तो शौचालय की व्यवस्था ही नहीं है या जहां हैं भी वहां रखरखाव का बड़े स्तर पर अभाव है। शौचालयों के पास झाड़ियां उग आई हैं। ऐसे में दिव्यांगों को काफी दिक्कत का सामना करना पड़ता है। फैजाबाद विकास भवन में प्रवेश करते ही गेट के पास बना दिव्यांगों का शौचालय कूड़ादान बन चुका है। हक़ीकत तो ये है कि इसका इस्तेमाल करने की कोई सोचता भी नहीं है। लापरवाही ऐसी कि जब से यह बना है तब से आज तक उसका ताला तक नहीं खोला गया है।

ऐसा ही नजारा कचहरी, जिला निर्वाचन कार्यालय, पंचायत एवं नगरीय निकाय फैजाबाद व्यापमं निदेशक अभियोजन के प्रांगणों में बने शौचालयों की है। यहां भी गंदगी का अंबार लगा हुआ है और निर्माण के बाद से लेकर अब तक उसका ताला तक नहीं खुला है। वहीं, इन जगहों पर लगे हैंडपंप जमीन में धंसे हुए हैं। उनकी मरम्मत भी नहीं की गई है।

इस बाबत वहां के समाजसेवी एवं विकलांग नेता शिव सामंत (40 वर्ष) ने बताया, "दिव्यांगों को होने वाली असुविधा के लिए सीधे तौर पर प्रशासनिक व्यवस्था जिम्मेदार है। शौचालयों के पास लोग कूड़ा फेंकते हैं। ऊपर से इन शौचालयों का निर्माण दिव्यांगों को देखते हुए नहीं किया गया है।" इस बारे में फैजाबाद जनपद के विकलांग जन विकास अधिकारी राजबहादुर सिंह बताते हैं, "हमारे पास शौचालय को संचालित करने के लिए न तो कर्मचारी की व्यवस्था है और न ही रखरखाव के लिए कोई बजट। ऐसे में चाहकर भी हम कोई क़दम नहीं उठा पाते हैं।"

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

 

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