जीएम फसलों ने 1500 पर्सेंट बढ़ाया जहरीले ग्लाइफोसेट का चलन, भारतीय किसान भी करते हैं इस्तेमाल

1974 में ग्लाइफोसेट को बाजार में उतारा गया था। 1995 में दुनिया भर में 5.1 करोड़ किलो ग्लाइफोसेट का इस्तेमाल होता था जो 2014 में बढ़कर 75 करोड़ किलो हो गया- यानि लगभग 15 गुना। इस बढ़ोतरी के पीछे जीएम फसलों के चलन को जिम्मेदार बताया गया है।

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
जीएम फसलों ने 1500 पर्सेंट बढ़ाया जहरीले ग्लाइफोसेट का चलन, भारतीय किसान भी करते हैं इस्तेमाल

इस साल, तीन राज्यों ने अपने यहां खरपतवार नाशक ग्लाइफोसेट का इस्तेमाल रोकने की कोशिश की। वे ऐसा इसलिए कर रहे थे ताकि अपने यहां जेनेटिकली मॉडिफाइड (जीएम) खरपतवारनाशक प्रतिरोधी (एचटी) की अवैध खेती को रोक सकें। तेलंगाना के कृषि सहकारिता और परिवार कल्याण मंत्रालय ने 10 जुलाई 2018 को इससे जुड़ा एक नोटिस जारी किया। इसके अनुसार, अगर भले ही विक्रेता ग्लाइफोसेट का गैर-कृषि इलाके में इस्तेमाल करना चाहते हैं तब भी उन्हें कृषि अधिकारी से मंजूरी लेनी होगी। भारत में ग्लाइफोसेट का इस्तेमाल केवल चाय के बागानों और गैर-कृषि इलाकों में करने की अनुमति है। (जेनेटिकली मॉडिफाइड या आनुवांशिक संशोधित फसल वे फसलें हैं, जिनके आनुवांशिक पदार्थ डीएनए में बदलाव किए जाते हैं। दुनिया भर के वैज्ञानिक इनके इस्तेमाल पर एकमत नहीं हैं क्योंकि उन्हें अंदेशा है कि ये इन फसलों को खाने वाले मनुष्यों और जानवरों के आनुवंशिक पदार्थ में हानिकारक फेरबदल कर सकते हैं।)

इससे पहले आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र ने भी इसी तरह के प्रतिबंध लगाए थे। महाराष्ट्र के यवतमाल जिले के सब-डिविजनल एग्रीकल्चर अफसर कैलाश वानखेड़े कहते हैं, "हम अपने क्षेत्र में इस हानिकारक रसायन की मौजूदगी नहीं चाहते।" एचटी पौधों पर ग्लाइफोसेट का असर नहीं होता, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2015 में ग्लाइफोसेट को संभावित कैंसरजनक के रूप में वर्गीकृत किया था।

1500 फीसदी बढ़ गया ग्लाइफोसेट का इस्तेमाल

1974 में ग्लाइफोसेट को बाजार में उतारा गया था। 1995 में दुनिया भर में 5.1 करोड़ किलो ग्लाइफोसेट का इस्तेमाल होता था जो 2014 में बढ़कर 75 करोड़ किलो हो गया- यानि लगभग 15 गुना। इस बढ़ोतरी के पीछे जीएम फसलों के चलन को जिम्मेदार बताया गया है। भारत में 2014-15 में 8.6 लाख किलो ग्लाइफोसेट की बिक्री दर्ज की गई।

यह भी देखें: कपास किसानों के लिए बड़ा दिन, बीटी कपास के बीज पर मोनसेंटों कंपनी का पेटेंट लागू करने की याचिका खारिज

अमेरिका में ग्लाइफोसेट बनाने वाली कंपनी पर 4000 मुकदमे

अमेरिका भर में ग्लाइफोसेट बनाने वाली कंपनी मॉन्सेंटो पर लगभग 4000 मुकदमे चल रहे हैं। इनमें पहले केस की सुनवाई सैन फ्रांसिस्को में शुरू हुई है जिसमें ड्वेन जॉनसन नाम के एक शख्स ने आरोप लगाया है कि ग्लाइफोसेट के इस्तेमाल से उसे जानलेवा कैंसर हो गया है। मूलत: अमेरिकी कंपनी मॉन्सेंटो को 7 जून 2018 को जर्मन फार्मा कंपनी बेयर ने खरीद लिया है।



भारतीय किसान क्यों इस्तेमाल करना चाहते हैं ग्लाइफोसेट

ग्लाइफोसेट के जहरीले असर के बाद भी भारत के किसान इसे खरपतावारनाशक के रूप में इस्तेमाल करना चाहते हैं, क्योंकि इससे खरपतवार निकालने की लागत बहुत कम हो जाती है। मजदूरी की तुलना में देखा जाए तो यह लगभग तीन गुना कम हो जाती है। लेकिन किसान ग्लाइफोसेट को सभी तरह की फसलों पर इस्तेमाल करते हैं। वे फसल के पौधे को प्लास्टिक की बाल्टी से ढंक देते हैं और उसके बाद खरपतवार पर ग्लाइफोसेट का छिड़काव कर देते हैं।

चूंकि जीएम फसलों पर ग्लाइफोसेट का असर नहीं होता इसलिए किसान बिना इसके खतरों की परवाह किए धडल्ले से इसका इस्तेमाल करते हैं। महाराष्ट्र के यवतमाल इलाके में किसानों के हक के लिए काम करने वाले एनजीओ शेतकारी न्याय हक आंदोलन समिति के संयोजक देवानंद पवार कहते हैं, "किसानों को सेहत पर पड़ने वाले दीर्घकालिक दुष्प्रभावों की चिंता नहीं है। वे तो आज जिंदा रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।"

यह भी देखें: जब जीएम के दावे पूरी तरह गलत साबित हो चुके हैं तो सरकार क्यों दे रही है इसे बढ़ावा ?

राज्यों के पास नहीं रोक लगाने का अधिकार

कीटनाशक अधिनियम, 1968 के मुताबिक, राज्य सरकारें किसी कृषि रसायन की बिक्री, वितरण और इस्तेमाल को 60 दिन से ज्यादा समय के लिए नहीं रोक सकतीं। केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अधीन आने वाली सेंट्रल इंसेक्टीसाइड बोर्ड एंड रजिस्ट्रेशन कमिटी ही किसी भी कृषि रसायन की बिक्री और उसके इस्तेमाल पर पूरी तरह से रोक लगा सकती है।

ग्लाइफोसेट के सेहत पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव

ग्लाइफोसेट सेहत के लिए हानिकारक इसके सुबूत अब दुनिया भर में मिल रहे हैँ। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफॉर्निया के सैन डियागो स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं का कहना है कि जीएम फसलों के चलन के बाद लोगों का ग्लाइफोसेट से संपर्क 500 प्रतिशत बढ़ा है। दक्षिण अमेरिकी देश अर्जेंटीना में देखा गया जहां जीएम सोयाबीन की खेती की गई उन इलाकों में राष्ट्रीय औसत से 3 गुना ज्यादा गर्भपात हुए। जानकारों का कहना है कि ग्लाइफोसेट किडनी, लीवर, आंतों, तंत्रिका तंत्र और प्रतिरोधक क्षमता को नुकसान पहुंचाता है और कैंसर का कारण बनता है।

यह भी देखें: खेत-खलिहान : क्या जीएम फसलों से होगी हमारी खाद्य सुरक्षा ?

भारत में भी इसके खिलाफ उठ रही है आवाज

भारत में भले ही ग्लाइफोसेट के दुष्प्रभावों पर कोई वैज्ञानिक शोध नहीं हुई है फिर भी तमाम संगठन इसे बैन करने के लिए कार्यक्रम चला रहे हैं। अलायंस फॉर सस्टेनेबल एंड होलिस्टिक एग्रीकल्चर नाम की संस्था ने इस मामले में कृषि मंत्रालय को ज्ञापन दिया है। यवतमाल के वसंतराव नायक गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज के डीन मनीष बी. श्रीगिरीवास का कहना है, "ग्लाइफोसेट का कोई एंटीडोट या प्रतिकारक दवा नहीं है इसलिए इसका इस्तेमाल नहीं होना चाहिए।"

हाल ही में भारतीय संसद में भी नेताओं ने ग्लाइफोसेट की मदद से उगाई गई दालों के आयात के मुद्दे पर सरकार का ध्यान अपनी ओर खींचा है। सरकार ने इस मामले की जांच करने का आश्वासन दिया है।

(विभा वार्ष्णेय का यह लेख मूल रूप से डाउन टू अर्थ में प्रकाशित हो चुका है।)

यह भी देखें: जीएम सरसों के बाद अब जीएम मक्के पर रार

     

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.