ग्रामीणों को नहीं पीना पड़ेगा ज़हरीला पानी
Rishi Mishra 19 Jan 2017 1:16 PM GMT
लखनऊ। यूपी के ग्रामीण इलाकों में पानी की गुणवत्ता सुधारने के लिए 42 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। ऐसे इलाके जहां के पानी में गड़बड़ियां पाई गईं हैं, वहां नये सिरे से पेयजल के लिए इंतजाम किये जाएंगे।
खासतौर पर जहाँ हैंडपंप लगातार लाल निशान लगाकर बंद किये जा रहे हैं, उन जिलों को शामिल किया जाएगा। राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल स्वच्छता मिशन के तहत राज्य भर में पानी की गुणवत्ता सुधारने के लिए 42 करोड़ रुपये से काम होगा। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश पर केंद्र और राज्य दोनों सरकार इस दिशा में काम करेंगी। इसके तहत नई पेयजल लाइनें बिछाई जाएंगी। पुराने खराब हैंडपंपों की मरम्मत के साथ में खराब भूगर्भ जल वाले इलाकों में सुधार के लिए जागरूकता अभियान और टैंकर वगैरह की व्यवस्था भी इस माध्यम से की जाएगी।
मैनपुरी जिले की किशनी तहसील के निवासी रामअरज तिवारी बताते हैं, “हमारे यहां तो कई वर्षों से सरकारी हैंडपंप पानी गंदा दे रहा है।कई बार शिकायत की गई तो कर्मचारी आकर सैंपल भी ले गए लेकिन अभी तक सही न हुआ पानी। अब दूसरे गाँव से पीने का पानी लाना पड़ता है।”
उत्तर प्रदेश में 42 लाख ट्यूबवेल, 25 हजार गहरे कुएं, 32 हजार से अधिक राजकीय नलकूप भूमिगत जल निकाल रहे हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दूषित पेयजल पीने से जनता त्राहि-त्राहि कर रही है। वेस्ट यूपी के छह ज़िलों मेरठ, बागपत, मुजफ्फरनगर, शामली, सहारनपुर और गाज़ियाबाद में स्थिति भयावह होती जा रही है। इसे देखते हुए एनजीटी ने पश्चिमी यूपी के तकरीबन 154 गांवों में हैण्डपम्प के पानी की सैम्पलिंग कराने के निर्देश दिए थे।
बागपत के एक व्यक्ति ने दूषित पानी को लेकर एनजीटी में रिट दायर की थी। मेरठ में काली नदी के किनारे बसे गांवों का एनजीटी की टीम ने कुछ महीने पहले दौरा भी किया था। यहां के लोग चिपचिपा और कीड़ायुक्त पानी पीकर बीमार पड़ रहे हैं और कोई सुध लेने वाला नहीं है।
मुजफ्फरनगर की सिखेड़ा गाँव की शिक्षिका रश्मि मिश्रा बताती हैं कि आलम यह है कि हैण्डपम्प का पानी पांच मिनट में पीला पड़ जाता है और पानी में कीड़े रेंगते हुए दिखाई देते हैं। ख़ासतौर पर मेरठ में काली नदी के किनारे बसे गांवों की हालत बदतर है। एनजीटी ने भी माना है कि वेस्ट यूपी में हैण्डपम्प के पानी से बड़ी आबादी को खतरा है। इसी को ध्यान में रखते हुए आचार संहिता लागू होने से पहले राज्य सरकार के ग्राम्य विकास विभाग की ओर से इस आशय का शासनादेश जारी कर दिया गया था। इसमें लगभग 42 करोड़ रुपये की धनराशि जारी की गई है जिसमें 21 करोड़ रुपये का केंद्रीय अंश भी शामिल है।
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