नोटबंदी के बाद विश्वबैंक ने भारत की वृद्धि दर का अनुमान घटाकर सात प्रतिशत किया  

Sanjay SrivastavaSanjay Srivastava   11 Jan 2017 6:00 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
नोटबंदी के बाद विश्वबैंक ने भारत की वृद्धि दर का अनुमान घटाकर सात प्रतिशत किया  विश्वबैंक।

वाशिंगटन (भाषा)। विश्वबैंक ने नोटबंदी के बाद चालू वित्त वर्ष में भारत की आर्थिक वृद्धि दर के बारे में अपने अनुमान को घटा दिया है पर उसके अनुसार अब भी यह सात प्रतिशत के ‘मजबूत' स्तर पर रहेगी। पहले का अनुमान 7.6 प्रतिशत था।

साथ ही विश्वबैंक ने यह भी कहा है कि आने वाले वर्षों में देश की वृद्धि अपनी तेज लय पकड़ लेगी और 7.6 और 7.8 प्रतिशत के स्तर को पुन: प्राप्त कर लेगी।

विश्वबैंक की एक ताजा रपट में कहा गया है कि बड़े मूल्य के नोटों को तत्काल चलन से हटाने के सरकार के नवंबर के निर्णय से ‘वर्ष 2016 में अार्थिक वृद्धि धीमी पड़ी है' पर रपट में कहा गया है कि धीमी पड़ने के बावजूद भारत की वृद्धि दर मार्च 2017 को समाप्त होने जा रहे वित्त वर्ष में अब भी मजबूत 7 प्रतिशत तक रहेगी।

रपट में कहा गया है कि तेल की कीमतों में कमी और कृषि उत्पाद में ठोस वृद्धि से नोटबंदी की चुनौतियों का प्रभाव काफी हद तक कम हो जाएगा। इस तरह भारत चीन से आगे निकल कर सबसे तीव्र वृद्धि कर रही प्रमुख अर्थव्यवस्था बना हुआ है।

विश्वबैंक को ‘ उम्मीद ' है कि वर्ष 2017-18 में गति पकड़ कर भारत की वृद्धि दर 7.6 प्रतिशत और 2019-20 में 7.8 प्रतिशत तक पहुंच जाएगी। उसका कहना है कि सरकार द्वारा शुरू किए गए विभिन्न सुधारों से घरेलू आपूर्ति की अड़चने दूर होंगी और उत्पादकता बढ़ेगी। बुनियादी ढांचे पर खर्च बढ़ने से कारोबार का वातावरण सुधरेगा और निकट भविष्य में अधिक निवेश आएगा।

रपट में यह भी कहा गया है कि मेक इन इंडिया अभियान से देश के विनिर्माण क्षेत्र को मदद मिलेगी। इस क्षेत्र को घरेलू मांग और नियमों में सुधार का भी फायदा होगा। मंहगाई दर में कमी और सरकारी कर्मचारियों के वेतन मान में सुधार से भी वास्तविक आय और उपभोग के ब़ढ़ने में मदद मिलेगी। इसी संदर्भ में अनुकूल वर्षा और बेहतर कृषि उपज का भी उल्लेख किया गया है।

विश्वबैंक की रपट में कहा गया है कि नोटबंदी का ‘मध्यावधि में एक फायदा यह है कि बैंकों के पास नकद धन बढ़ने से ब्याज दर में कमी करने और आर्थिक गतिविधियों के विस्तार में मदद मिलेगी।' लेकिन देश में अब तक 80 प्रतिशत से ज्यादा कारोबार नकदी में होता रहा है, इसे देखते हुए नोटबंदी के चलते ‘अल्प काल ' में कारोबारियों और व्यक्तियों की आर्थिक गतिविधियों में व्यवधान बना रह सकता है।

रपट में यह आशंका भी जताई गयी है कि पुराने नोट बंद कर उन्हें नए नोटों से बदलने मेंं आ रही दिक्कतों से जीएसटी और श्रम सुधार जैसे अन्य नीतिगत आर्थिक सुधारों की योजना के धीमा पड़ने का खतरा भी है।

नोटबंदी का नेपाल और भूटान की अर्थव्यवस्थाओं पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है क्योंकि इन अर्थव्यवस्थाओं को भारत से मनीआर्डर के रूप में काफी पैसा जाता है।

      

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.