कई ऐतिहासिक लम्हों का गवाह रिफह-ए-आम भवन आज बदहाल 

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कई ऐतिहासिक लम्हों का गवाह रिफह-ए-आम भवन आज बदहाल कई यादों को समेटे हुए है ऐतिहासिक रिफह-ए-आम क्लब।

बसंत कुमार

लखनऊ। कई ऐतिहासिक लम्हों का गवाह रिफह-ए-आम भवन आज बदहाल पड़ा हुआ है। इस भवन से उपन्यास सम्राट प्रेमचंद ने प्रगतिशील लेखक संघ की पहली बैठक की अध्यक्षता करते हुए साहित्य पर अपना ऐतिहासिक भाषण दिया था। इतना ही नहीं, अंग्रेजों के खिलाफ़ असहयोग आन्दोलन में क्षेत्र के लोगों को शामिल करने के लिए महात्मा गाँधी ने जिस जगह पर कार्यक्रम को सम्बोधित किया था, वह भी इसी भवन में हुआ था। इसके अलावा वर्ष 1920 में महात्मा गाँधी ने हिन्दू-मुस्लिम एकता पर भी भाषण इसी भवन के सभागार में दिया था। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि यह भवन कई यादों को अपने में समेटे हुए है। मगर रिफह-ए-आम आज बदहाल और ज़र्जर स्थिति में है।

आज यह है हाल

क्लब के इसी सभागार मे साहित्यकार प्रेमचंद ने बैठक को किया था संबोधित।

लखनऊ के गोलागंज स्थित अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई का केंद्र रहा रिफह-ए-आम क्लब के आसपास कूड़ा भरा हुआ है। रिफह-ए-आम के सामने ग्राउंड में एक तरफ बच्चे खेलते नज़र आते हैं तो दूसरी तरफ कुछ लोग नशा करते नज़र आते हैं। कोई कपड़ा साफ़ करता नज़र आता है तो कोई सोया हुआ है। ग्राउंड का इस्तेमाल राजनीतिक रैलियों और शादियों के लिए भी होता है। 18 दिसम्बर को आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने यहीं पर जनसभा की थी।

सरकार से नहीं मिलती मदद

चक्रपाणि पाण्डेय।

रिफह-ए-आम की देख-रेख चक्रपाणि पाण्डेय करते हैं। ज़्यादा उम्र हो जाने के कारण चक्रपाणि पाण्डेय ठीक से बातचीत नहीं कर पाते। वो बस इतना बताते हैं कि मैं इस क्लब का मैनेजर हूँ और इसकी देख-रेख करता हूँ। सरकार से हमें कोई मदद नहीं मिलती है। इस भवन की देख-रेख की ज़िम्मेदारी उनको किसने दी, इसकी जानकारी वो नहीं देते हैं।

तब बनाया गया रिफह-ए-आम

इतिहासकार योगेश प्रवीन।

उत्तर प्रदेश के यश भारती पुरस्कार से सम्मानित इतिहासकार डॉ. योगेश प्रवीन इस ऐतिहासिक भवन की जानकरी देते हुए बताते हैं कि जब लखनऊ में अंग्रेजों ने अपना क्लब बनाना शुरू किया और उनके क्लब के बाहर साफ़ शब्दों में लिखा होता था 'कुत्ते और हिंदुस्तानियों का अंदर आना मना है' इससे नाराज़ होकर हिन्दुस्तानियों ने रिफह-ए-आम की स्थापना की थी। इसके लिए लखनऊ के आसपास के रजवाड़े, तालुकदारों ने सहयोग किया। 100 साल पुराना यह क्लब बेहद खूबसूरत है और उसी तर्ज़ पर बना है जैसे लखनऊ की तमाम शानदार इमारतें बनी है। रिफह-ए-आम क्लब का अपना एक इतिहास रहा है।

रिफह-ए-आम में हुए कई ऐतिहासिक कार्य

  • इतिहासकार योगेश प्रवीन बताते हैं कि प्रेमचंद ने हिंदी-उर्दू और साहित्य को लेकर अपना ऐतिहासिक भाषण इस क्लब में दिया था। उन्होंने प्रगतिशील लेखक संघ की पहली बैठक की अध्यक्षता भी यहीं की थी।
  • इसके अलावा जब लखनऊ में वेश्यावृति पर रोक लगा दी गई तो चौक की तवायफें इसी क्लब के मैदान में जमा हुईं और उन्होंने अपनी विचार रखे। उन्होंने कहा कि हमें बर्बाद ना किया जाए। हम मानव इतिहास के अटूट हिस्सा है।
  • एक बार अंग्रेज इसके सभागार में सभा कर रहे थे। अंग्रेजों के हिंदुस्तानी समर्थक अंदर से नारे लगा रहे थे कि 'चरखे की हो गई चू-चू' तो बाहर खड़ी भारतीय जनता ने नारा लगाया कि 'गोरे साहब की कू-कुकुड़ू'।

क्या कहते हैं अधिकारी

इतिहासकार योगेश प्रवीन आगे बताते हैं कि अपने साथ एक इतिहास लेकर चल रहा यह क्लब आज उपेक्षा का शिकार है। आज पूरे लखनऊ का सौन्दर्यकरण हो रहा है, लेकिन रिफह-ए-आम क्लब की फ़िक्र ना आम जनता को है और ना ही प्रशासन को। उत्तर प्रदेश डायरेक्टरेट ऑफ़ आर्कियोलॉजिकल के उत्खनन एंव अन्वेषण अधिकारी रामविनय बताते हैं कि यह भवन हमारे निगरानी में नहीं है। इस भवन को लेकर कुछ विवाद चल रहा है जिसके कारण इसे हमें नहीं दिया गया है।

  

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