साहब कोर्ट बैठेगी ??...जवाब.. पता नही

उत्तर प्रदेश के अधिकांश तहसीलों में मुकदमें की डेट पर वादियों (किसानों और ग्रामीणों) का तहसील आना और शाम 5 बजे तक बैठ कर वापस लौट जाना आम बात है क्योकि किसी को ये पता नहीं रहता की कोर्ट बैठेगी या नहीं।

Ashwani Kumar DwivediAshwani Kumar Dwivedi   16 July 2019 6:21 AM GMT

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साहब कोर्ट बैठेगी ??...जवाब.. पता नही

लखनऊ। "ढाई साल से तहसील में हदबरारी का मुकदमा लड़ रहा हूं, हर डेट पर तहसील जाना होता है, बड़े-बुजुर्ग कह गये हैं "कचहरी जाने का मतलब पूरा दिन गया " इसका मतलब अब समझ में आ रहा हैं। लखनऊ जनपद की सदर तहसील के अंतर्गत आने वाले राजस्व ग्राम ककौली में मेरी साढ़े 9 विस्वा जमीन पैतृक जमीन है, हर पेशी पर चढ़ावा चढ़ाने के बाद जैसे तैसे उपजिलाधिकारी कोर्ट ने मेड़बंदी के लिए आदेश दे कर दिया उस आदेश के बाद भी करीब 3 महीने हो रहे हैं लेखपाल से लेकर कानूनगो, तहसीलदार के चक्कर काट रहा हुईं आज तक मेडबंदी नहीं हो पाई, अच्छा ख़ासा पैसा खर्च हो गया कोर्ट कचहरी में गरीबों के लिए न्याय आज भी बहुत महंगा है।"

ये कहना है उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के सदर तहसील के अंतर्गत आने वाले ग्राम पंचायत अल्लू नगर दिगुरिया के ग्राम ककौली निवासी किसान आशीष कुमार का जो की अपनी थोड़ी सी जमीन पर खेती के साथ मजदूरी करके अपना परिवार का पोषण कर रहे है।

आशीष आगे बताते हैं, "सबसे बड़ी समस्या ये है कि तहसील में कभी ये पता नही होता की कोर्ट बैठेगी नहीं बैठेगी। डेट वाले दिन आप टाइम से पहले निकल भी नहीं सकते क्योकि एसडीएम कोर्ट कभी भी बैठ सकती हैं और इसी में ज्यादातर बार पूरा दिन खराब हो जाता है।

सरकार की नजर में जनता के न समय की कीमत है न पैसे की ...

"कुछ याद रहे न रहे लेकिन मुकदमे की डेट हमेशा याद रहती है अब जमींन जायदाद कोई ऐसे ही तो छोड़ नहीं देगा, लेकिन तहसील में नाटक बहुत है कभी बायकाट कभी कोर्ट नहीं बैठी, अघोषित जाड़ों की छुट्टी, गर्मियों की छुट्टी हर साल जून का महीना पूरा तहसील में छुट्टी का होता हैं। इस महीने में कभी भी तहसील में कोर्ट नही बैठती इसी तरह राजस्व के मुकदमें साल दर साल तक चल जाता है। गांवो में ज्यादातर जमीनी विवाद मेड-खेत के होते है। अब मुकदमा तो मुकदमा चाहे वो बीघा भर जमीन का हो या बिस्सा भर जमींन का हो, "ये कहना है बाराबंकी जनपद के अयोध्या नगरी गाँव के रहने वाले रामबालक महतो (70 वर्ष) का जो पिछले 12 वर्षो से बीकेटी तहसील में प्रदेश के एक बड़े पुलिस अधिकारी के खिलाफ जमींन का मुकदमा लड़ रहे है । इनकी आर्थिक स्थिति ऐसी है कि घर में कच्ची मिटटी की दीवाले और छप्पर के अलावा और कुछ नहीं है। फिर भी न्याय व्यवस्था पर भरोसा करके दौड़ जारी है।

बुजुर्ग राम बालक बताते हैं, "हमारे घर से तहसील की दूरी 25 किलोमीटर हैं जिस दिन मुकदमे की तारीख होती है घर से खाना बाँध कर निकलते है, जानते है की काम कुछ हो न हो पूरा दिन जायेगा। कचहरी पहुचने के बाद तहसील की कोर्ट के बाहर बैठने की ड्यूटी पूरे दिन की होती है। बस दिन में तीन-चार बार जाकर पूछना होता है पेशकार साहब से "कोर्ट आज बैठेगी या नहीं" और पेशकार साहब का भी हमेशा की तरह मुस्कराते हुए सरकारी जवाब," पता नही अभी साहब मीटिंग में है या दूसरा जवाब बैठ भी सकती है और नही भी।" मतलब ये घर पहुचने में रात होना तय है और परिणाम कुछ नहीं। शुरू-शुरू में परेशानी होती थी,गुस्सा आता था, पर अब धक्के खाने की आदत पड़ गयी है। सरकार की नजर में न तो गरीबों के समय की कोई वक्त है न ही पैसे की। और न ही हम जैसे लोगों की कोई सुनने वाला है पर जिद है जब तक जिन्दा है हक़ की लड़ाई लड़ते रहेंगे आज नही तो कल फैसला जरुर होगा।"

लखनऊ के मडियाव निवासी जमीनी मामलों के अधिवक्ता करुणा शंकर तिवारी बताते हैं, "एक तो राजस्व में जमींन सम्बन्धी मुकदमों की संख्या अधिक है दूसरा कारण ये है की एसडीएम् के पास तहसील स्तर पर दो तरह के काम होते है एक प्रशाशनिक और दूसरा न्यायायिक कार्य, ऐसे में एसडीएम् को जब समय मिलता है तो वह न्यायायिक मामलों की सुनवाई कोर्ट में करता है। हाँ ये बड़ी समस्या है कि कोर्ट का बैठना पूर्व निश्चित न होने के कारण दूर-दराज गांवो से आये फरियादियों को असुविधा का सामना करना पड़ता है। और उनका पूरा दिन अधिकतर बर्बाद हो जाता हैजबकि उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 में उपजिलाधिकारी "न्यायायिक "अपर जिला अधिकारी "न्याययिक "को चुने जाने का प्रावधान तो है लेकिन अभी तक पीठासीन अधिकारी नियुक्त न किये जाने के कारण राजस्व मामलों के निस्तारण में विलम्ब हो रहा हैं

"डिजिटल सूचना व्यवस्था के माध्यम से वादियों और उनके अधिवक्ता को कोर्ट से सूचना मिलनी चाहिए कि, "कोर्ट बैठेगी या नहीं बैठेगी और अगली पेशी कब होगी " सभी अधिकारीयों को सरकार द्वारा स्मार्ट फोन दिए गये है और ये सूचना मेसेज अथवा व्हाट्सएप के माध्यम से आसानी से दी जा सकती है। यह व्यवस्था मा.उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट में भी है जो की अन्य जगह भी लागू होनी चाहिए ताकि दूर-दराज से आये वादियों को दिक्कतों का सामना न करना पड़े। जरा सा एक्टिव होने से एक दिन में सैकड़ों किसानो-फरियादियों का समय,श्रम और पैसा बचाया जा सकता है और उनके मन में धीरे-धीरे न्यायायिक व्यवस्था के प्रति जो असंतोष और असम्मान, अविश्वास उत्पन्न हो रहा है उसे रोका जा सकता है। ये गंभीर और जनहित से जुड़ा विषय है इसका जिम्मेदारों को संज्ञान लेना चाहिए।

चन्द्र भूषण पाण्डेय (पूर्व न्यायाधीश ,पूर्व विधिक सलाहकार मा.राज्यपाल उत्तर प्रदेश व् हाईकोर्ट अधिवक्ता )

विषय पर गाँव कनेक्शन द्वारा वार्ता करने पर आयुक्त एवं सचिव राजस्व परिषद् उत्तर प्रदेश गौरी शंकर प्रियदर्शी कहते हैं, "मानवीय दृष्टिकोण से भी ये जरुरी है कि फरियादियों समय अनावश्यक खराब न हो और तहसील में कोर्ट बैठेगी या नहीं इसकी जानकारी फरियादियो को हो। उन्होंने बताया की अभी मैंने जल्दी चार्ज लिया है राजस्व परिषद् की इस समस्या पर क्या सोच है या इसके लिए क्या किया गया है मै इस पर सम्बंधित अधिकारीयों से बात करूँगा।

     

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