यूपी में एक फोन पर महिलाओं की मदद करने वाली योजना का बुरा हाल

फंड न मिलने से दम तोड़ रही 181 महिला हेल्पलाइन, कर्मचारियों को कई महीनों से नहीं मिली सैलरी, रेस्कयू वैन के रुक गए पहिए

Neetu SinghNeetu Singh   6 Dec 2019 10:15 AM GMT

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यूपी में एक फोन पर महिलाओं की मदद करने वाली योजना का बुरा हाल

लखनऊ। जहां पूरे देश में बढ़ती बलात्कार की घटनाओं और महिलाओं के प्रति हिंसा को लेकर लोगों में गुस्सा है, वहीं उत्तर प्रदेश में एक फोन काॅल पर महिलाओं तक मदद पहुंचाने वाली योजना सरकारी उपेक्षा और फंड की कमी से दम तोड़ रही है।

मुश्किल समय में 181 महिला हेल्पलाइन पर एक फोन कॉल करने भर से पीड़िता के पास पहुंचने रेस्क्यू वैन (गाड़ी से पहुंचने वाली टीम), और एक ही छत के नीचे महिलाओं को सभी सुविधाएं उपलब्ध करवाने वाले 'वन स्टॉप सेंटर' में काम इसलिए सुस्त हो गया है क्योंकि गाड़ियों में न डीजल भर पा रहा और न ही कर्मचारियों को सैलरी मिल पा रही है।

उत्तर प्रदेश में महिला कॉल सेंटर 181 और वन स्टॉप सेंटर का काम इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि देशभर में अपराधों को दर्ज करने वाली संस्था एनसीआरबी की वर्ष 2017 की रिपोर्ट के अनुसार देश भर में महिलाओं पर होने वाले अपराधों में उत्तर प्रदेश पहले नंबर पर है।

हाल ही में जारी रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017 में देशभर में 3.59 लाख मामले महिलाओं पर हिंसा के दर्ज़ हुए, जिनमें से 56,011 मामलों के साथ यूपी पहले नंबर पर था।

उत्तर प्रदेश में 181 महिला हेल्पलाइन में काम करने वाली एक महिला कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "मानदेय न मिलने की वजह से पिछले पांच-छह महीने से किसी भी केस को गम्भीरता से नहीं लिया जा रहा है इसमें हमारी मजबूरी है। हम पीड़िता की मदद तभी उसके घर जाकर कर सकते हैं जब हमारे पास 181 की रेस्क्यू वैन होगी।"


उस महिला कर्मचारी ने आगे कहा, "महिला सुरक्षा के लिए बनी हेल्पलाइन में काम करने वाली सभी महिलाएं हैं, जो पिछले छह-सात महीने से मानदेय न मिलने की वजह से मानसिक रूप से परेशान हैं, हमारे घर में ही लड़ाई झगड़े होते हैं। इन हालातों में हम कैसे दूसरी महिलाओं की मदद कर पाएंगे जब खुद ही पीड़ित हैं।" यहां काम करने वाली 350 से अधिक महिला कर्मचारियों को फरवरी से मानदेय नहीं मिला है।

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जिलेस्तर पर तैनात 181 की रेस्क्यू वैन पैसे के आभाव में खड़ी हुई है। फील्ड काउंसलर अब पीड़िताओं की मदद के लिए घर-घर नहीं जा पा रही हैं। 181 पर आने वाली काल्स के जरिये जितने मामले फोन द्वारा सुलझाए जा सकते हैं बस उतने ही सुलझाए जा रहे हैं, किसी पीड़ित महिला का न तो रेस्क्यू किया जा रहा है और न ही किसी केस का फालोअप किया जा रहा है।

महिला हेल्पलाइन 181 के प्रोजेक्ट हेड आशीष वर्मा बताते हैं, "जून महीने से मानदेय नहीं मिला है जिसकी वजह से रेस्क्यू कार्य बाधित है। उच्च अधिकारियों को पत्र भेजा जा चुका है जैसे ही भुगतान हो जाएगा सेवाएं सुचारू रूप से चालू हो जायेंगी।"

इस संबंध में उत्तर प्रदेश महिला कल्याण विभाग की प्रमुख सचिव मोनिका एस गर्ग से फोन पर बात करने की कोशिश की गयी पर काल रिसीव नहीं हुई।

सुदूर गांव में रहने वाली पीड़ित महिला की 181 नंबर पर आयी एक फोन काल्स से उसे उसके घर पर नि:शुल्क मदद मिले इस मंशा से आठ मार्च-2016 को महिला हेल्पलाइन 181 छह सीटर से और प्रदेश के 11 जिलों में 'आपकी सखी आशा ज्योति केंद्र' पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू किया था। ये 24 घंटे चलने वाली नि:शुल्क हेल्पलाइन है। इस योजना के अच्छे परिणाम को देखते हुए उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने इसे अपनी महत्वाकांक्षी योजनाओं में शामिल किया और इसका विस्तार किया।


महिला एवं बाल विकास कल्याण विभाग की पूर्व कैबिनेट मंत्री रीता बहुगुणा जोशी ने 23 जून-2017 को हरी झंडी दिखाकर प्रदेशभर में 'आपकी सखी आशा ज्योति केन्द्र' और महिला हेल्पलाइन 181 को छह सीटर से बढ़ाकर 30 सीटर कर दिया था। यूपी के 75 जिले में रेस्क्यू वैन और फील्ड काउंसलर की नियुक्ति भी कर दी।

आशीष वर्मा ने बताया, "फोन कॉल्स की संख्या भी लगातर कम हो रही है। बिना बजट के हर सम्भव पीड़िताओं की मदद फोन काल्स के द्वारा ही की जा रही है, पर जिलेस्तर पर चलने वाली रेस्क्यू वैन और स्टॉफ किसी पीड़िता की घर जाकर मदद करने में सक्षम नहीं है, क्योंकि डीजल के लिए भी पैसे नहीं हैं।"

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नि:शुल्क महिला हेल्पलाइन 181 का उद्देश्य ये था कि महिला हिंसा से संबन्धित कोई भी महिला या उसका पड़ोसी इस हेल्पलाइन पर फोन करके अपनी परेशानी बता सकता है केस की गम्भीरता को देखते हुए जिले में बने वन स्टॉप सेंटर (आशा ज्योति केंद्र) पर तैनात स्टाफ रेस्क्यू वैन की मदद से पीड़िता की घर जाकर नि:शुल्क मदद करेगी। वन स्टॉप सेंटर और 181 दोनों एक दूसरे से जुड़ीं योजनाएं हैं लेकिन अब सरकार इसे भी अलग-अलग करने की कोशिश में है।

वन स्टॉप सेंटर की एक प्रभारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "सुविधाएं जितनी एक सेंटर पर होनी चाहिए थीं उतनी पहले से ही बहुत कम थीं। अब एक नया शासनादेश 26 जुलाई 2019 को जारी किया गया है जिसमें तमाम फेरबदल किये हैं। पहले एक प्रभारी की न्युक्ति 40,000 के मासिक वेतन पर की गयी थी जो अब 24,000 कर दी गयी है," आगे बताती हैं, "स्टाप पहले से कम था अब उसे भी कम किया जा रहा है। एक रेस्क्यू वैन पर्याप्त नहीं थी इनकी संख्या बढ़ाना चाहिए था जबकि जो एक है डीजल के आभाव में वही नहीं चल पा रही है।"


उत्तर प्रदेश में निर्भया फंड का 119 करोड़ रुपए का बजट है जिसमें अभी तक मात्र तीन करोड़ 93 लाख रूपये ही खर्च हुए हैं इसके बावजूद महिला सुरक्षा की महत्वपूर्ण योजनाएं बंद होने के कगार पर हैं।

घट रहा काल्स का ग्राफ

इस हेल्पलाइन में मार्च 2016 से मार्च 2017 जब 11 जिलों में पायलट प्रोजेक्ट था तब कुल 13,30,139 फोन कॉल्स आयीं थीं, अप्रैल 2017 से मार्च 2018 तक 17,93402 कॉल्स, अप्रैल 2018 से मार्च 2019 तक 21,56173 कॉल्स वहीं अप्रैल 2019 से अगस्त 2019 तक मात्र 8,15,359 ही कॉल्स आयीं।

निजी कम्पनी ने पांच महीने तक कर्मचारियों को दिया वेतन

इस योजना के संचालन की जिम्मेदारी निजी क्षेत्र की कम्पनी 'जीवीके एमआरआई' को पांच वर्षों के लिए दी गयी थी। विभाग की तरफ से फरवरी 2019 से इस कम्पनी का भुगतान रोक दिया गया था। कम्पनी ने कर्मचारियों को जून महीने तक का वेतन खुद से दिया जिससे योजना ठप न हो, लेकिन फिर भी बजट पास नहीं हुआ।

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अब ये निजी क्षेत्र की कम्पनी इस योजना को खुद से चलाने में सक्षम नहीं है। इसमें काम करने वाले कर्मचारियों को जुलाई महीने से कोई मानदेय नहीं मिला जिसकी वजह से जिले स्तर पर तैनात 181 की रेस्क्यू वैन खड़ी हैं।

पांच लाख से ज्यादा महिलाओं को मिली मदद

उत्तर प्रदेश में 181 महिला हेल्पलाइन पांच लाख से ज्यादा पीड़ित महिलाओं की मदद कर चुकी है जबकि दो लाख से ज्यादा महिलाओं का रेस्क्यू किया गया है। जबकि हजारों घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं के सुलह समझौता कराए गये हैं। सैकड़ों लड़कियों का बाल विवाह रोका गया है।

रेप और गैंगरेप जैसी घटनाओं में जब कई बार मामले ग्रामीण क्षेत्रों में लोग संकोचवश दर्ज नहीं करवाते ऐसे में इस हेल्पलाइन पर मामले दर्ज हो जाते हैं क्योंकि यहां सुनने वाली महिलाएं होती हैं।


  

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