तेलंगाना की मंडियों में कैसे पहुंच रहा बिहार का धान?

तेलंगाना अपने यहां पैदा होना वाले धान की ख़रीद देश में सबसे ज्यादा तो कर ही रहा है, साथ ही दूसरे प्रदेश से आया धान भी ख़रीद रहा। प्रदेश में राइस मिलों की संख्या भी बहुतायत में है। ऐसे में व्यापारी बिहार से कम कीमत में धान ख़रीदकर अपने यहां उससे मुनाफ़ा कमा रहे हैं। विशेष सीरीज़ 'MSP का मायाजाल' की तीसरी कड़ी में हम इसी मुद्दे पर बात कर रहे हैं।

Mithilesh DharMithilesh Dhar   28 Jan 2021 7:00 AM GMT

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तेलंगाना की मंडियों में कैसे पहुंच रहा बिहार का धान?बिहार में किसानों को धान की सही कीमत नहीं मिल रही है और वही धान तेलंगाना जैसे राज्यों में अच्छी कीमत पर बिक रहा। (फोटो- गांव कनेक्शन)

"हमारे यहां मंडी में धान बिक भी जाए तो किसानों को जल्दी पैसा नहीं मिलता। यहां के व्यापारी जो धान 900, 1000 रुपए क्विंटल में ख़रीद रहे थे, वही धान साउथ से आए व्यापारियों को मैंने 1,300-1,400 रुपए क्विंटल में बेचा। हमें कुछ करना ही नहीं पड़ा। उनके आदमी आए। खुद तौला, पैक किया और नकद पैसे देकर गए। किसानों को ज्यादा कीमत मिली और कुछ फायदा मुझे भी हो गया," मुकेश कुमार (बदला हुआ नाम) बताते हैं।

बिहार के गया जिले के रहने वाले मुकेश छोटे किसान (लगभग दो एकड़) हैं और साथ में सरिया, सीमेंट की दुकान भी चलाते हैं। पिछले साल वे किसी काम से तेलंगाना के निजामाबाद जिले में गये थे। वहां वे एक राइस मिल संचालक से मिले जो बिहार से धान खरीदने को राज़ी हो गया। वही व्यापारी नवंबर 2020 में गया आया और किसानों से धान खरीदकर ले गया।

निजामाबाद से गया की दूरी लगभग 1,300 किमी है। इतनी दूर आने के बाद और ज्यादा कीमत देने के बाद व्यापारियों को फायदा क्या हुआ?

इस सवाल के जवाब में मुकेश कहते हैं, "एक व्यापारी कम से तीन-चार 22 टायर ट्रक लेकर आता है। और मैं यहां छोटे किसानों को तैयार करता हूं जिन्हें पैसे की तुरंत जरूरत होती है। ये व्यापारी पूरी तैयारी से यहां आते हैं। बोरी से लेकर सिलाई की मशीन तक होती है उनके पास। किसानों को यहां से ज़्यादा कीमत देते हैं। आप कह सकते हैं कि मैं बिचौलिये की भूमिका में रहता हूं। इसीलिए आपको नाम लिखने से मना कर रहा।"एक 22 टायर वाले ट्रक की क्षमता लगभग 1,000 क्विंटल (100 टन) की होती है।

इस समय पूरे देश की मंडियों में खरीफ फसलों की ख़रीद हो रही है। बिहार में भी ख़रीद हो रही है लेकिन वहां के किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से काफ़ी कम कीमत पर अपनी फसल बेचने को मजबूर हैं। ऐसे में तेलंगाना, हरियाणा और पंजाब के व्यापारी और राइस मिलर्स बिहार से धान ख़रीदकर अपने राज्यों में बेच रहे हैं।

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न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी वह मूल्य है जिस पर सरकार किसानों से उनकी फसल ख़रीदती है। ये व्यवस्था किसानों को खुले बाज़ार में फ़सलों की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव से बचाने के लिए लागू की गई है।

बिहार से पंजाब और हरियाणा तो धान जाता रहा है, लेकिन अब तेलंगाना भी जा रहा। कारण कि तेलंगाना में इस समय धान की ख़रीद एमएसपी पर सबसे ज्यादा हो रही है वहां राइस मिलों की संख्या भी काफी है। धान का एमएसपी (ग्रेड ए धान का 1,888 रुपए प्रति क्विंटल और अन्य धान के लिए 1,868 रुपए प्रति क्विंटल) आमतौर पर खुले बाजार की कीमत से अधिक होता है।

पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों के भी व्यापारी बिहार से धान खरीदकर अपने राज्यों में अच्छी कीमत पर बेच रहे हैं।

जैसा कि हमने आपको इस सीरिज़ की दो कड़ियों में बताया था कि एमएसपी पर उत्पादन की तुलना में धान खरीदने के मामले में तेलंगाना वर्ष 2019-20 में सबसे आगे रहा। राज्य में उत्पादन की तुलना में 97% धान की खरीद एमएसपी पर हुई। यह 2017 की अपेक्षा 68% ज्यादा है, केंद्रीय कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार। इन दोनों रिपोर्ट्स को आप यहां और यहां पढ़ सकते हैं।

वर्ष 2017-18 में बिहार में 80.93 लाख टन धान की पैदावार हुई जबकि एमएसपी पर खरीद महज 9.80 फीसदी उपज की ही हुई। इसी तरह 2018-19 में 61.65 लाख टन धान में से 15.42 फीसदी और 2019-20 65.84 लाख टन में से 20.37 फीसदी धान की ही ख़रीद हुई।


धान की बिक्री के लिए बिहार में किसानों को सहकारिता विभाग के साथ ऑनलाइन पंजीकरण करना पड़ता है, लेकिन आंकड़ों से पता चलता है कि सरकारी ख़रीद एजेंसी प्राइमरी एग्रीकल्चरल क्रेडिट सोसाइटीज़ (PACS) और व्यापार मंडल के माध्यम से राज्य में काफी कम ख़रीद हुई है।

वित्त वर्ष 2019-2020 में केवल 409,368 किसानों ने धान ख़रीद के लिए ऑनलाइन आवेदन किया। उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय की एक रिपोर्ट की मानें तो खरीफ विपणन वर्ष 2019-20 (9 सितंबर 2020 तक) में बिहार के 279,402 किसानों को एमएसपी का लाभ मिला। इससे चार वर्ष पहले भी प्रदेश के 275,484 लाख किसानों से धान की ख़रीद सरकारी दर पर हुई थी। वर्ष 2017-18 में तो ये आंकड़ा 163,425 पर आ गया था।

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बिहार की अपेक्षा दूसरे प्रदेशों की बात करें तो वर्ष 2019-20 (9 सितंबर तक) छत्तीसगढ़ के 18,38,593, हरियाणा के 18,91,622 किसानों से धान की ख़रीद एमएसपी पर हुई। दूसरे राज्यों से बिहार बहुत पीछे है।

कृषि और खाद्य प्रसंस्कृत उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) की वर्ष 2017-18 की रिपोर्ट के अनुसार बिहार धान के उत्पादन के मामले में देश में पांचवें स्थान पर था। पूरे प्रदेश में 79.46 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि है जिसमें 32 लाख हेक्टेयर भूमि पर धान की खेती होती है।

बिज़नेस लाइन की एक खबर के अनुसार खरीफ सीजन 2020-21 में तेलंगाना सरकार ने कुल 45 लाख टन धान की ख़रीद सरकारी दर पर की है। इसके अलावा लगभग 13 से 14 लाख टन दूसरे प्रदेश से आए धान की भी ख़रीद हुई।

खाद्य, नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता संरक्षण विभाग, तेलंगाना राज्य में ऑनलाइन ख़रीद प्रबंधन प्रणाली के तहत धान की ख़रीद करता है। तेलंगाना के करीमपुर जिले के ऑनलाइन ख़रीद प्रबंधन प्रणाली (OPMS) के मंडल अधिकारी टी संतोष कुमार ने गांव कनेक्शन को फोन पर बताया, "राज्य में राइस मिलों की संख्या भी बहुत तेजी से बढ़ी है और इन मिलों में ज्यादातर वर्कर उत्तर प्रदेश और बिहार के होते हैं। मिलर्स उनके ही माध्यम से जाकर वहां से धान लेते हैं क्योंकि वहां के किसानों को सही कीमत नहीं मिलती।"

बिहार से धान तेलंगाना पहुंच रहा। (फोटो- तेलंगाना टुडे)

"हमारे यहां मंडियों में कई बार दूसरी किस्म का धान भी आता है जिसकी खेती हमारे यहां नहीं होती, लेकिन उसकी क्वालिटी अच्छी होती है तो हम उसे ख़रीद लेते हैं। बाहर का धान लेने की हमारे यहां मनाही भी नहीं है। महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के किसान तो खुद ही यहां धान बेचने आ जाते हैं," संतोष ने आगे बताया।

एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार तेलंगाना में इस समय लगभग 2,200 राइस मिले हैं जिसे सरकार और बढ़ाने की कोशिश कर रही है। खबरों की मानें तो मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने जिलों के कलेक्टर से मिलर्स को ज़मीन मुहैया कराने के आदेश दिये हैं। उनका तर्क है प्रदेश में धान की आवक बहुत ज्यादा है। ऐसे में कुटाई के लिए ज्यादा मशीनें चाहिए।

जिला निजामाबाद में एसके राइस मिल के मालिक राहुल असाती बताते हैं, "हम अभी महाराष्ट्र और बिहार से धान मंगा रहे हैं। बिहार का धान सस्ता पड़ता है। कई बार हम धान पूरा कूट लेते हैं और कई बार मंडी में सरकारी दर पर भी बेच देते थे। हमें दोनों स्थिति में फायदा होता है।"

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राइस मिलर्स की कमी भी एक बड़ी वजह है जिस कारण बिहार में धान की ख़रीद प्रदेश सरकार नहीं कर पा रही है। आप इस पर गांव कनेक्शन की विस्तृत रिपोर्ट पढ़ सकते हैं।

बिहार में धान ख़रीद की स्थिति क्या है, इसे आप कैमूर ज़िले के मसाढ़ी पंचायत के पंकज कुमार से भी समझ सकते हैं। इस बार छह एकड़ में धान लगाने वाले पंकज ने गांव कनेक्शन को फोन पर बताया, "लगभग 100 क्विंटल धान पैदा हुआ था। मंडी में बेचने के लिए रजिस्ट्रेशन करा लिया था, लेकिन जब गया तो बताया गया कि नमी 17% से ज्यादा है। अंत में मैंने पूरा धान एक व्यापारी को 1,100 रुपए क्विंटल के हिसाब से बेच दिया। उस व्यापारी ने वही धान पंजाब ले जाकर 1,700-1,800 रुपए क्विंटल में बेच दिया।"

खरीफ सीज़न 2020-21 की शुरुआत से ही बिहार से धान पंजाब में अवैध तरीके से बचा जा रहा है। गांव कनेक्शन ने इस पर एक विस्तृत रिपोर्ट की थी जिसे आप यहां पढ़ सकते हैं।

बिहार में सरकार ने इस साल तो धान ख़रीद की समय सीमा को भी दो महीने घटा दिया है। जो ख़रीद 31 मार्च तक होनी थी उसे घटाकर 31 जनवरी तक कर दिया गया है, जबकि बिहार सहकारिता विभाग के आंकड़ों के अनुसार तय लक्ष्य 45 लाख मीट्रिक टन की अपेक्षा 25 जनवरी 2021 तक 19.62 लाख मीट्रिक टन की ही ख़रीद हो पाई है।

बिहार में धान ख़रीद की स्थिति ऐसी क्यों है? यह सवाल हमने सहकारिता विभाग के रजिस्ट्रार शम्भू सेन से बात की। वे बताते हैं, "हमारी सरकार पूरी तरह से प्रतिबद्ध है कि किसानों की उनकी पूरी उपज खरीदी जाए। जहां ख़रीद नहीं हो पाती वहां उपज में कोई दिक्कत होगी। और हमने जो लक्ष्य तय किया है, उसे भी पूरा करेंगे। पैक्स हर जिले में (धान की) अच्छी ख़रीद कर रहा है।"

   

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