यूपीए सरकार में भी हो चुके हैं RTI में संशोेधन, जानिए क्या है पूरा मामला

Sachin Dhar DubeySachin Dhar Dubey   26 July 2019 10:32 AM GMT

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यूपीए सरकार में भी हो चुके हैं RTI में संशोेधन, जानिए क्या है पूरा मामला

लखनऊ। लोकसभा के बाद अब राज्यसभा में भी आरटीआई में संशोधन का विधेयक पास हो गया है। केंद्र सरकार की ओर से लाए गए इस विधेयक का विरोध भी हो रहा है। विधेयक के विरोध में यह हवाला दिया जा रहा है कि सरकार का यह फैसला सूचना के अधिकार को कमजोर करेगा।

सदन में कांग्रेस तृणमूल कांग्रेस, डीएमके और एआईएमआईएम के साथ अन्य विपक्षी पार्टियां ने भी आरटीआई में संशोधन के विधेयक का विरोध किया। लेकिन इससे पहले यूपीए सरकार ने भी अपने कार्यकाल में आरटीआई में कई तरह के संशोधन करने की कोशिश की थी और कुछ संशोधन भी किए थे। उस समय यूपीए सरकार पर भी ऐसे सवाल उठे थें।

यूपीए के समय में भी आरटीआई में हुआ था संशोधन

दरअसल जो पार्टी विपक्ष में होती उसे सूचना अधिकार का कानून बहुत भाता है। सरकार को घेरने का यह उनका मुख्य हथियार होता है। लेकिन जब उसी पार्टी की सरकार आ जाती है तो वही पार्टी उसी कानून को बदलने की कोशिश करने लगते हैं। विधेयक का विरोध कर रही कांग्रेस ने आरटीआई कानून आने के केवल एक साल बाद ही साल 2006 फाइल पर नोटिंग की जानकारी न देने से संबंधित एक संशोधन बिल लेकर आई थी। उस समय जनता के काफी विरोध के बाद सरकार को पीछे हटना पड़ा था और संशोधन बिल को ठंडे बस्ते में डालना पड़ा था।

आरटीआई कार्यकर्ता संजय थूल बताते हैं कि वर्ष 2013 के जून महीने में सूचना आयोग ने नोटिस जारी की थी कि सभी राष्ट्रीय राजनीतिक दल भी सूचना के अधिकार में आते हैं। उस समय सभी राजनीतिक पार्टियां सूचना आयोग के इस नोटिस के खिलाफ खड़ी हो गई थी। ठीक दो महीने बाद 12 अगस्त, 2013 को मनमोहन सरकार राजनैतिक पार्टियों को आरटीआई से बाहर रखने के लिए संशोधन बिल लेकर आई। बिल पास भी हुआ और इसे स्टैंडिंग कमेटी में भी भेजा गया। आज सारी पार्टियां आरटीआई के दायरे से बाहर हैं।

आरटीआई कानून के धारा 13 और 16 में किया गया है बदलाव

दरअसल केंद्र सरकार ने आरटीआई कानून 2005 की धारा 13 और 16 में संसोधन के लिए दोनो सदनों में विधेयक पास करा दिया है। जिसमें धारा 13 में संशोधन के बाद मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त के वेतन भत्ते को सरकार ही निर्धारित करेगी। इसके अलावा इससे पहले धारा 16 की तहत इन आयुक्तों का कार्यकाल नियुक्त होता था। लेकिन अब इसमें संशोधन के बाद मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त के कार्यकाल का फैसला भी सरकार ही करेगी।

दीपक कुमार जो एक छात्र हैं और प्रतियोगी परिक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं। वह लगातार विभिन्न विषयों पर आरटीआई भी लगाते रहते हैं। वह कहते हैं कि सरकार के इस संशोधन से आरटीआई की स्वायत्ता खत्म हो जाएगी। जब सरकार इन अधिकारियों का वेतन, भत्ते और कार्यकाल पर फैसला लेगी ,तो यह अधिकारी सरकार के प्रति जवाबदेह होंगे। इसके बाद आरटीआई के तहत किस तरह की जानकारियां मिलेंगी इसपर विश्वास करना मुश्किल होगा। आरटीआई की जानकारियों को लेकर फिर सरकार का रवैया मनमानापूर्ण हो जाएगा।

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दीपक आगे बताते हैं कि सरकार की ओर से किए गए कामों या भ्रष्टाचार को जानने के लिए पहले हम सूचना आयोग जाते थे। सूचना आयोग से मिली जानकारी पर विश्वास करते थें। लेकिन अब आयोग के अधिकारियों को लेकर जब सरकार ही फैसला लेगी तो वह शायद दबाव की वजह से इस तरह की सूचना नहीं दे पाएंगे, जिन सूचनाओं की हमें असल में आवश्यकता है।

इससे पहले केंद्र सरकार ने पिछले साल भी सूचना के अधिकार कानून में संशोधन करने का प्रयास किया था। लेकिन उस समय आरटीआई कार्यकर्ताओं और विपक्ष के भारी विरोध के चलते वह विधेयक पास नहीं हो सका था।

   

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