किसानों को टमाटर का 1 से 2 रुपए किलो का मिल रहा भाव, किसी ने खेत में फेंका तो किसी ने जोत डाली खड़ी फसल

सुखबीर पंघाल ने अपना 10 एकड़ टमाटर जोत डाला है तो राजेश सिंह ने एक ट्राली से ज्यादा टमाटर खेत में ही फेंक दिया है। हरियाणा में कई दूसरे किसान टमाटर और शिमला मिर्च की अपनी खड़ी फसल जोत रहे हैं। जानते हैं क्यों?

Arvind ShuklaArvind Shukla   11 May 2021 3:17 PM GMT

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केंद्रीय कृषि एवं किसान मंत्रालय ने 10 मई को जारी एक बयान में कहा कि बागवानी क्षेत्र के लिए सरकार ने 2250 करोड़ रुपए जारी किए हैं, क्योंकि संभावनाओं से भरा ये क्षेत्र किसानों की आमदनी बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

इसी दिन दिल्ली में कृषि मंत्रालय (कृषि भवन) के मुख्यालय से करीब 130 किलोमीटर हरियाणा में भिवानी जिले के कई सब्जी उत्पादक किसानों ने अपने कई ट्राली टमाटर खेत में फेंक दिए थे। लॉकडाउन के चलते लगातार हो रहे घाटे के चलते भिवानी जिले मे तोशाम तहसील के कई दर्जन किसान अपनी फसल खेत में ही जोत चुके हैं।

किसान राजेश सिंह के पास इस बार 3 एकड़ में टमाटर था, लेकिन जैसे ही अप्रैल के आखिर में टमाटर निकलने शुरु हुए लॉकडाउन लग गया। टमाटर की जो कैरेट (25 किलो) 200-300 रुपए जानी थी उसके 30 से 60 रुपए मिलने लगे। 10 मई को भी उनका एक ट्राली टमाटर टूटा लेकिन उन्होंने मंडी न ले जाकर खेत में ट्राली फिंकवा दी।

"मंडी ले जाकर क्या करेंगे। जितना भाड़ा लग जाएगा उतने तो वहां पैसे नहीं मिलेंगे। चंडीगढ़ और आसपास की मंडियों में 1 से 2 रुपए किलो तक टमाटर बेचना पड़ा है। खेती की लागत तो छोड़े, तुड़ाई, छंटाई और भाड़ा जेब से देने से अच्छा है खेत में ही फेंक दो।" गुस्से में राजेश सिंह कहते हैं।

राजेश हरियाणा के भिवानी जिले के निंघाना कलां गांव के रहने वाले हैं। ये तोशाम तहसील में आता है। यहां बड़े पैमाने पर टमाटर, शिमला मिर्च और दूसरी सब्जियों की खेती होती है।

भिवानी जिले के ही खरखड़ी माकवान गांव के किसान सुखवीर सिंह पंघाल (40 वर्ष) ने अपनी 10 एकड़ फसल पर अपने हाथों से ट्रैक्टर चला दिया। सुखबीर के मुताबिक अगर सही हालात होते तो उनकी फसल जिसमें करीब 7 से 8 लाख की लागत आई थी और 16 से 18 लाख रुपए की कमाई हो सकती थी।

सुखवीर कहते हैं, "टमाटर की बुवाई से लेकर मंडी तक पहुंचाने में करीब 130 रुपए कैरेट का खर्च आता है। पिछले दिनों में जब मैं टमाटर लेकर चंडीगढ़ गया तो 20 से 50 रुपए कैरेट का भाव मिला। वहां से वापस आने के बाद मैंने पहले अपना 5 एकड़ फिर बाकी सारा टमाटर जुतवा दिया। मिलना कुछ था नहीं पैसा घर से जा रहा था।"

सुखबीर टमाटर की खेती में लागत और अच्छी मार्केट मिलने पर मुनाफे का गणित बताते है। 10 एकड़ में मेरी लागत करीब 8 लाख रुपए आई होगी। अगर सब ठीक रहता तो एक एकड़ में 600 कैरेट टमाटर निकलता है। यानि 10 एकड़ में 6000 कैरेट टमाटर होना चाहिए था। अगर 200-250 में भी जाता तो कम से कम 15 लाख रुपए मिलते। लेकिन मिला कुछ नहीं।"

सुखबीर ने पिछले साल 25 एकड़ टमाटर लगाया था लेकिन 2020 में कोरोना लॉकडाउन के चलते हुए जबर्दस्त घाटे के चलते उन्होंने इस बार सिर्फ 10 एकड़ में लगाया था और उसमें भी नुकसान उठाना पड़ा।

फल और सब्जियों की खेती नगदी फसल मानी जाती हैं। कम समय की इन फसलों में लागत तो ज्यादा लगती है लेकिन मुनाफे की संभावना भी रहती है। केंद्र सरकार लगातार किसानों से परंपरागत (धान-गेहूं) की खेती से हटकर बाजार की मांग के अनुरूप खेती (फल-सब्जी आदि) के लिए प्रेरित कर रही है।

किसान राजेश सिंह का खेत जिन्होंने अपना टमाटर खेत में फेंक दिया।

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने 10 मई को जारी बयान में बताया कि बागवानी में किए जा रहे सरकारी हस्तक्षेप और योजनाओं के चलते बागवानी का रकबा और उत्पादन तेजी से बढ़ा है। मंत्रालय के मुताबिक वर्ष 2019-20 के दौरान देश में 25.66 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर बागवानी क्षेत्र का अब तक का सर्वाधिक 320.77 मिलियन टन उत्पादन हुआ था, जो वर्ष वर्ष 2020-21 के पहले अग्रिम अनुमान के अनुसार देश में 27.17 लाख हेक्टेयर भूमि पर बागवानी क्षेत्र का कुल उत्पादन 326.58 लाख मीट्रिक टन रहने का अनुमान है।

केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने अपने बयान में कहा कि किसानों की आय को बढ़ाने में बागवानी क्षेत्र की भूमिका और व्यापक संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए, भारत सरकार ने वर्ष 2021-22 में बागवानी क्षेत्र के विकास के लिए 2250 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। ये आवंटन केन्द्र सरकार द्वारा समर्थित 'मिशन फॉर इंटिग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ हॉर्टिकल्चर (एमआईडीएच)' योजना के अंतर्गत किया गया है। योजना के तहत वर्ष- 2014-15 से फल, फूल, सब्जियों, जड़, कंद, मशरूम, मसालों, नारियल, काजू, सुगंधित पौधों समेत बागवानी फसलों की बढ़ावा देने और मौजूदा संभावनाओं को साकार करने के लिए आर्थिक मदद की जा रही है।

ये लेकिन ये लगातार दूसरा साल है जब गर्मियों के सीजन में उगाई जाने वाली फल-फूल और सब्जियों की खेती करने वाले किसानों को झटका लगा है। ज्यादातर ये फसलें मार्च से लेकर जून तक तैयार होती है और इसी दौरान लॉकडाउन लगा है।

गांव कनेक्शन ने उत्तर प्रदेश से लेकर महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश तक तरबूज, हरी मिर्च, शिमला मिर्च, टमाटर और आम किसानों के मुद्दे को उठाया है। महाराष्ट्र में अल्फांशों आम का कारोबार लगभग बंद पड़ा है। तो यूपी, मध्यप्रदेश से लेकर बिहार झारखंड तक के किसान तरबूज की फसल 3 से 4 रुपए किलो में बेचने को मजबूर है संबंधित खबर

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हरियाणा में ही तोशाम तहसील के खरकड़ी माकवान गांव के एक किसान अऩिल कुमार (35वर्ष) के पास 5 एकड़ टमाटर (यूएस 2853 वैरायटी) था।

वो बताते हैं, "गर्मियों में शादी बारात और दूसरे आयोजनों के चलते हम लोगों को अक्सर अच्छे रेट मिलते थे। लेकिन इस बार यही कोई 10-15 दिन से टमाटर निकलना शुरु हुए थी कि लॉकडाउन लग गया। तो न दिल्ली में भाव मिला ना चंड़ीगढ़ की मंडी में। सिर्फ टमाटर ही नहीं शिमला मिर्च और घिया (तरोई) और पेठा (कद्दू) का भी भाव नहीं मिल रहा है।"

भारतीय किसान यूनियन (हरियाणा) से जुड़े किसान नेता रमेश कुमार गांव कनेक्शन को बताते हैं, "भिवानी समेत हरियाणा के कई जिलों में सब्जी की अच्छी पैदावार होती है। अकेले खरखड़ी मकवान गांव में ही 100 किसान होंगे और पूरे गांव 500-600 एकड़ में सब्जी की खेती होती है। इस बार सब किसान नुकसान में हैं।"

रमेश कुमार आगे कहते हैं, "किसान का टमाटर कोई 2 रुपए किलो लेने वाला नहीं है लेकिन शहर में 20 रुपए का रेट है। सरकार ने पिछले साल के लॉकडाउन में किसानों के हुए नुकसान से कोई सबक नहीं मिला। दुकानें ही नहीं खुलने दे रहे हैं। 100 दुकाने हैं उन्हें कहीं साप्ताहिक बांट दिया है। आधी दुकानें सुबह खुलती है आधी शाम को, तमामकायदे कानूनों के डर से खरीदने वाला बाहर ही नहीं निकल रहा है। सरकार को किसानों की कुछ भरपाई करनी चाहिए।"

एक तरह किसान बेहाल हैं, तो दूसरी तरफ उपभोक्ता महंगाई से परेशान हैं। पेट्रोल, डीजल, दाल और खाद्य तेलों के अलावा सब्जी-फलों (शहरों में) की कीमत भी बढ़ गई हैं। उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय की 10 मई के आंक़ड़ों के मुताबिक पिछले एक महीने में सरसों, सोयाबीन, वनस्पति, सूरजमुखी और पाम ऑयल और अरहर (तूर) दाल की कीमतों में काफी बढ़ोतरी हुई है।

दिल्ली की आजादपुर मंडी में फल और सब्जी का कारोबार करने वाले व्यापारी राजेश कुमार कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि बस कीमतें ही बढ़ी हैं। आवक भी कम हुई है। वे बताते हैं, "जो फुटकर विक्रेता हमसे प्रतिदिन 40 किलो सब्जी ले जाता था, वह 20 किलो ही ले जा रहा है। हम जो सब्जी मंगा रहे हैं, वह बिक ही नहीं पा रहा। लॉकडाउन की वजह से बिक्री आधी हो गयी है। ऐसे में फुटकर विक्रेताओं ने कीमत बढ़ा दी है।"

वो आगे बताते हैं, दिल्ली की आजादपुर मंडी में पिछले महीने जो भिंड़ी 10-15 में थी वो 20-30 में बिकने लगी है जबकि टमाटार 2-5 रुपए किलो से बढ़कर 8 से 10 रुपए किलो में पहुंच गया है। हरी सब्जियों की कीमतों में भी बढ़ोतरी है। क्योंकि कई राज्यों में लॉकडाउन है जिस कारण पर्याप्त माल मंडी तक पहुंच ही नहीं पा रही है।"

हरियाणा के सुखबीर कहते हैं, ये सीजन हम जमींदारों (किसानों) के लिए कमाई का जरिया होता था, कोई दूसरा काम नहीं है। अब मूंग और ज्वार बोएंगे। देखते हैं क्या होता है,ऐसा ही रहा तो सब्जियां कौन लगाएगा। यहां तो इनका बीमा भी नहीं होता है।'

देश के ज्यादातर राज्यों में सिर्फ धान और गेहूं जैसी फसलों का बीमा होता है। जल्द खराब होने वाली फसलों (फल-सब्जी के लिए) किसान लगातार बीमा की सुविधा की मांग करते रहे हैं।

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