उत्तर प्रदेश सहित 14 राज्यों में है इंसेफेलाइटिस का असर 

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उत्तर प्रदेश सहित 14 राज्यों में है इंसेफेलाइटिस का असर उत्तर प्रदेश सहित 14 राज्यों में है इंसेफेलाइटिस का असर 

गोरखपुर (भाषा)। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर मेडिकल कालेज में संदिग्ध हालात में एक के बाद एक 60 बच्चों की मौत ने पूरे देश को हिला दिया है, मगर उत्तर प्रदेश समेत देश के 14 राज्यों में इस बीमारी का असर है और रोकथाम की बजाय इलाज पर ध्यान देने की वजह से बीमारी का प्रकोप बरकरार है।

केंद्रीय संचारी रोग नियंत्रण कार्यक्रम के अनुसार उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, असम और बिहार समेत 14 राज्यों में इंसेफेलाइटिस का प्रभाव है, लेकिन पश्चिम बंगाल, असम, बिहार तथा उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में इस बीमारी का प्रकोप काफी ज्यादा है। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, महराजगंज, कुशीनगर, बस्ती, सिद्धार्थनगर, संत कबीरनगर, देवरिया और मउ समेत 12 जिले इससे प्रभावित हैं।

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गोरखपुर समेत पूर्वांचल में मस्तिष्क ज्वर और जलजनित बीमारी 'इंटेरो वायरल' की रोकथाम के लिये काम कर रहे डॉक्टर आरएन सिंह ने बताया कि बिहार के कुछ जिलों के हालात भी गोरखपुर जैसे ही बुरे हैं। उन्होंने आरोप लगाते हुए दावा किया कि बाकी राज्यों में इंसेफेलाइटिस की वजह से होने वाली मौतों का आंकड़ा दबा दिया जाता है इसलिए गोरखपुर समेत पूर्वांचल में इस बीमारी की मौजूदगी की गूंज सबसे ज्यादा सुनाई देती है।

डॉक्टर सिंह ने कहा कि गोरखपुर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में हर साल मस्तिष्क ज्वर से सैकडों बच्चों की मौत होती है। दरअसल, सरकारों को पता ही नहीं है कि उन्हें करना क्या है। शासकीय तथा सामाजिक प्रयासों से टीकाकरण के जरिये जापानी इंसेफेलाइटिस के मामलों में तो कमी लायी गई है, लेकिन जलजनित रोग 'इंटेरो वायरल' को रोकने के लिये कोई ठोस कार्यक्रम नहीं है। इस समय सबसे ज्यादा मौतें 'इंटेरो वायरल' की वजह से ही हो रही हैं।

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उन्होंने कहा, ''अभी सरकार को यह पता ही नहीं है कि उनको करना क्या है। जलजनित रोगों को रोकने के लिये कई साल पहले बना राष्ट्रीय कार्यक्रम अभी तक प्रभावी तरीके से लागू नहीं हुआ है।'' सिंह ने कहा कि इस कार्यक्रम के तहत जापानी इंसेफेलाइटिस की रोकथाम के उपाय होने थे, 'इंटेरो वायरल' रोकने के लिये हर 10 घरों पर एक इंडिया मार्क हैण्डपम्प लगना था। जब तक खुले में शौच बंद नहीं होगा, पर्याप्त संख्या में इण्डिया मार्क हैण्डपम्प नहीं लगेंगे तब तक यह बीमारी नहीं जाएगी।

उन्होंने कहा कि बीमारी को फैलने से रोकने के लिए एहतियाती उपाय करने की बजाय सब इसके इलाज पर काम कर रहे हैं, जबकि इसका कोई इलाज ही नहीं है। यह बीमारी इसलिए ही बनी हुई है, जब तक इसकी रोकथाम को प्राथमिकता नहीं दी जाएगी, तब तक कुछ नहीं होगा। डॉक्टर सिंह ने कहा कि इसकी रोकथाम के लिये 'होलिया मॉडल ऑफ वॉटर प्यूरीफिकेशन' का प्रयोग किया जाना चाहिये। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इस पर मुहर लगायी है।

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पानी को साफ करने की इस सर्वसुलभ पद्धति के बारे में जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि इसमें पीने के साफ पानी को किसी साफ बर्तन में छह घंटे के लिए धूप में रख देने से उसके सारे विषाणु मर जाते हैं। उन्होंने कहा कि इस पद्धति को हर व्यक्ति अपना सकता है क्योंकि इसपर किसी तरह का कोई खर्च नहीं आता है।

पूर्वांचल में ही दिमागी बुखार का प्रकोप फैलने के कारणों के बारे में पूछे जाने पर सिंह ने बताया कि इस इलाके में सबसे ज्यादा अशिक्षा और पिछड़ापन है। लोगों में साफ-सफाई की आदत नहीं है। साथ ही जागरुकता की कमी की वजह से यह इलाका इन संचारी रोगों का गढ़ बना हुआ है।

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उन्होंने इंसेफेलाइटिस की रोकथाम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के योगदान की सराहना करते हुए कहा कि योगी इस बीमारी के उन्मूलन के लिये वर्ष 1996 से लगातार काम कर रहे हैं। योगी के प्रयासों से ही वर्ष 2006 में 65 लाख बच्चों को टीके लगाये गये थे। मुख्यमंत्री योगी ने हाल में गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में बच्चों की संदिग्ध हालात में मौत के बाद भावुक अंदाज में कहा था कि वह इस बीमारी के खिलाफ पिछले करीब दो दशक से लडाई लड़ रहे हैं और उन्होंने अनेक बच्चों को इस बीमारी की वजह से दम तोडते हुए देखा है लिहाजा उनकी तकलीफ को उनसे बेहतर और कोई नहीं समझ सकता।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने जेपी नड्डा ने मुख्यमंत्री योगी की मांग पर गोरखपुर में एक क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र स्थापित करने की घोषणा की है। केंद्र सरकार इसके लिए 85 करोड़ रुपए देगी। मालूम हो कि पिछले तीन दशक में पूर्वांचल में इंसेफेलाइटिस की वजह से 50 हजार से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। इस साल गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में अब तक इस बीमारी से कुल 139 बच्चों की मृत्यु हुई है। पिछले साल 641 तथा वर्ष 2015 में 491 बच्चों की मौत हुई थी।

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