प्राकृतिक संसाधनों को बचाकर पृथ्वी को बचाने में दें योगदान

Anusha MishraAnusha Mishra   22 April 2018 11:35 AM GMT

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प्राकृतिक संसाधनों को बचाकर पृथ्वी को बचाने में दें योगदानपहली बार 1970 में विश्व पृथ्वी दिवस मनाय गया था।

हर साल 22 अप्रैल को विश्व पृथ्वी दिवस पूरी दुनिया में मनाया जाता है। इस दिन की शुरुआत करने का श्रेय अमेरिका के गेलार्ड नेलसन को जाता है जिन्होंने सबसे पहले अमेरिका में औद्योगिक विकास के कारण बढ़ रहे प्रदूषण और इससे होने वाले दुष्परिणामों की ओर दुनिया का अमेरिका ध्यान आकर्षित किया था।

पर्यावरणीय सुरक्षा पर ध्यान देने और इस पर काम करने के उद्देश्य से पहली बार 1970 में विश्व पृथ्वी दिवस मनाय गया था। इसके बाद से 192 देशों में इस दिन को मनाने की शुरुआत हुई।

दरअसल, 1969 में, सैन फ्रांसिस्को के जॉन मैककोनल नाम के एक शांति कार्यकर्ता पृथ्वी दिवस को सक्रियता से शुरू करवाने के कार्यक्रम में शामिल थे और उन्होंने गेलार्ड नेल्सन ने मिलकर पर्यावरणीय सुरक्षा के लिए इस दिन को वैश्विक रूप से मनाने का प्रस्ताव रखा।

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पर्यावरण में बढ़ते प्रदूषण की मुश्किल को सुलझाने के लिए इन दोनों ने लोगों को जागरूक करने का जिम्मा उठाया। एक कार्यक्रम के जरिए उन्होंने लोगों से एक साथ मिलने की योजना बनाई। इस कार्यक्रम में लाखों लोगों ने पृथ्वी दिवस को मनाने की इच्छा जताई। आमतौर पर, पूरे विश्वभर में जरूरी क्षेत्रों में नये पौधे को लगाने के आम कार्य के साथ पृथ्वी दिवस कार्यक्रम को मनाने की शुरुआत हुयी।

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सबसे पहले अमेरिका में औद्योगिक विकास के कारण बढ़ रहे प्रदूषण की ओर ध्यान दिया गया

22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस उत्सव की तारीख की स्थापना करने के अच्छे कार्य में भागीदारी के लिये अमेरिका के विस्कॉन्सिन सीनेटर गेलॉर्ड नेल्सन को स्वतंत्रता पुरस्कार के राष्ट्रपति मेडल से सम्मानित किया गया। बाद में लगभग 141 राष्ट्रों के बीच वर्ष 1990 में डेनिस हेज (वास्तविक राष्ट्रीय संयोजक) के द्वारा वैश्विक तौर पर पृथ्वी दिवस के रूप में 22 अप्रैल को मनाने का निर्णय लिया था। बहुत सारे पर्यावरणी मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित करने के लिये पृथ्वी सप्ताह के नाम से पूरे सप्ताह भर के लिये इसे मनाया गया। और इसी तरह 1970 से हर साल 22 अप्रैल को हर साल पृथ्वी दिवस मनाने की शुरुआत हुई।

क्या हैं प्राकृतिक संसाधन और कैसे बचाएं इन्हें

प्राकृतिक संसाधन दरअसल, वे संसाधन हैं जिनके लिए कृत्रिम तौर पर कोई प्रयास नहीं करने पड़ते और कुदरती तौर पर ही हमें इनकी सुविधाएं मिलती रहती हैं लेकिन मुश्किल यह है कि हम इन प्राकृतिक संसाधनों को मुफ्त का मानकर इनका इतना दोहन और बर्बादी करते हैं कि इनके ऊपर खतरा मंडराने लगा है।

जल संसाधन

विश्व में पर्यावरण प्रदूषण इस कदर बढ़ता जा रहा है कि जल जैसे प्राकृतिक संसाधन पर भी कई देशों में खतरा उत्पन्न हो गया है। पर्यावरण असंतुलन के कारण कहीं भीषण बाढ़ आ रही है तो कहीं पूरे साल बारिश ही नहीं हो रही। ऐसे कई वैज्ञानिक शोध हैं जिनमें यह कहा गया है कि अगर समय रहते जल संरक्षण की ओर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले वर्षों में पीने वाला पानी मिलना मुश्किल हो जाएगा। इसलिए इसके संरक्षण की ओर ध्यान देने की जरूरत है।

घरों में जल संरक्षण

वर्षा के जल को पोखर और तालाब आदि के माध्यमों से अथवा बांध द्वारा एकत्र कर रखा जाना चाहिए और घर के धुलाई करने, कपड़े धाने आदि के लिए इसका इस्तेमाल करना चाहिए। वॉटर हारवेस्टिंग प्लांट बनाकर भी बारिश का जल संरक्षित किया जा सकता है। इसके साथ ही हमें जल प्रदूषण को रोकने के लिए भी ठोस और कारगर कदम उठाने चाहिए।

वायु संसाधन

वायु एक ऐसा संसाधन है, जिसकी कमी में मनुष्य या कोई भी जीव-जंतु जीवित नहीं रह सकता। पेड़-पौधे ऑक्सीजन और कार्बनडाइड गैसों की प्रकृति में संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। अतः वायु के संरक्षण हेतु हमें ज्यादा-से-ज्यादा पेड़-पौधे लगाने चाहिए। इसके साथ ही वायु संरक्षण हेतु निम्न उपाय किए जाने चाहिए। इसके साथ ही हमें प्रदूषण मुक्त वाहनों का प्रयोग करना चाहिए। कल कारखानों को इस तरह से बनवाना चाहिए कि उनसे कम से कम प्रदूषण हो और प्रदूषण की रोकथाम के उचित इंतजाम हों। कारखानों की चिमनियां ऊंची बनाई जाएं। इसके अलावा यह भी जरूरी है कि वायु प्रदूषण फैलने वाले लोगों पर कठोर कानूनी कार्यवाही की जाए।

वन संसाधन

वनों के संरक्षण के लिए ज्यादा-से-ज्यादा पौधे लगाए जाएं।

मनुष्य को स्वस्थ वातावरण प्रदान करने में वनों का महत्वपूर्ण योगदान है। दरअसल, पेड़-पौधे प्रकृति में गैसों का संतुलन बनाए रखने के साथ-साथ वर्षा कराने में भी सहायक होते हैं। इसके साथ ही वे दुर्लभ जीव-जंतुओं का आवास भी होते हैं। इसलिए इनका संरक्षण बहुत जरूरी है क्योंकि इनसे हमें खाने के लिए फल और सब्जियों के अलावा इमारती लकड़ियां, औषधि व ईंधन आदि भी मिलता है। इसलिए यह जरूरी है कि वनों के संरक्षण के लिए इनकी अंधाधुंध कटाई पर रोक लगाई जाए और ज्यादा-से-ज्यादा पौधे लगाए जाएं।

मृदा संसाधन

पृथ्वी की ऊपरी उपजाऊ सतह को मृदा या मिट्टी कहते है। वनों के कटाव तथा अत्यधिक वर्षा एवं पशुओं की अनियंत्रित चराई आदि से इसका ह्रास होता है। मृदा संरक्षण हेतु यह आवश्यक है कि वनों के कटाव को रोका जाए, क्योंकि पेड़-पौधों की जड़े मृदा को बांधकर रखती है। मृदा संरक्षण हेतु पशुओं की चराई पर नियंत्रण किया जाना चाहिए। मृदा को विषाक्त होने से बचाने हेतु कम-से-कम कीटनाशकों व उर्वकों आदि का प्रयोग किया जाना चाहिए, ताकि मृदा कम-से-कम प्रदूषित हो। रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर कंपोस्ट खाद आदि का प्रयोग किया जाना चाहिए।

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