राजस्थान बॉर्डर पार कर पाकिस्तान पहुंच गईं 250 बकरियां

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, कई साल पहले पाकिस्तान से भी कुछ मवेशी इसी तरह चरते हुए भारत में घुस आए थे, बाद में उन्हें बीएसएफ के हवाले किया गया था, लेकिन जब भी भारत से बकरी या अन्य मवेशी पाकिस्तान की तरफ जाते हैं वे वापस नहीं आ पाते।

Madhav SharmaMadhav Sharma   21 Aug 2020 4:24 AM GMT

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राजस्थान बॉर्डर पार कर पाकिस्तान पहुंच गईं 250 बकरियां

जयपुर (राजस्थान)। खबर जैसलमेर के सरहदी गाँवों से है, पाकिस्तान की सीमा से लगे करीब सात गाँवों के पशुपालकों की 250 से ज्यादा बकरियां चरते हुए सीमा पार कर गई। बकरियों से ही आजीविका चलाने वाले ये पशुपालक अब बेहद परेशान हैं।

घटना 10 अगस्त की है, जैसलमेर के पांचला, सुंदरा, गुंजनगढ़, पोछीणा, मिठडाऊ, करड़ा, बीजारण तला और केरड़ा गांवों से ये बकरियां पाकिस्तान की तरफ चली गई हैं। दरअसल, तेज हवा के कारण थार रेगिस्तान में रेत के टीले (सेंड ड्यून्स) अपनी जगह बदलते रहते हैं। कई बार ये टीले 15-20 फीट ऊंचे होते हैं और इसमें बॉर्डर पर हो रखी तारबंदी (फेंसिंग) भी दब जाती है और इसे पार कर कई बार जानवर अंतरराष्ट्रीय सीमा पार कर जाते हैं।

पोछीणा गांव के चतुर सिंह उन पीड़ित पशुपालकों में से एक हैं जिनकी बकरियां गई हैं। चतुर सिंह ने गांव कनेक्शन को बताया, "मेरे पास 40 बकरी थीं, करीब आठ दिन पहले बहुत तेज आंधी आई थी जिसमें बॉर्डर पर फेंसिंग भी रेत में दब गई थी। अंतरराष्ट्रीय सीमा से हमारा गांव महज तीन किमी ही दूर है, ऐसे में हमारे पशु चरते हुए सीमा तक चले जाते हैं। उस दिन फेंसिंग रेत में दबी होने के कारण मेरी सभी बकरियां बॉर्डर क्रास कर गईं।"


चतुर सिंह के बेटे बलवीर सिंह ने बताया कि सीमावर्ती गांवों में पशुपालन ही आय का सबसे बड़ा जरिया होता है। ग्रामीण इन्हें दिनभर चराते हैं और शाम को दूध बेचकर पैसा कमाते हैं।

चतुर सिंह की तरह ही बिंजारण तला गांव के जवान सिंह की 16 बकरियां दूसरी तरफ निकल गई हैं। इसके अलावा पोछीणा के ही लालसिंह की 80, ओनार सिंह की 25, देसल सिंह की 15, भौम सिंह 10 और हुकुम सिंह की 20 बकरियां पाकिस्तान की ओर चली गई हैं। ये वे लोग हैं जो अभी तक बीएसएफ और प्रशासन तक पहुंचे हैं। पीड़ित लोगों की संख्या ज्यादा भी हो सकती है। ये सभी गांव अंतरराष्ट्रीय सीमा से 1-5 किमी के अंदर स्थित हैं।

रेगिस्तान को अच्छे से समझने वाले और इसकी इकोलॉजी पर काम कर रहे मालम सिंह जामड़ा गांव कनेक्शन से ऐसी घटनाओं के बारे में विस्तार से बात करते हैं। वे बताते हैं, "रेगिस्तान रहस्यों से भरी भूमि है, यहां के रेत के टीले जितना पर्यटकों को सुखद लगते हैं, ये उतने ही दुखदायी यहां के निवासियों के लिए हैं। एक रात पहले जहां रेत का बड़ा पहाड़ होता है, अगली ही सुबह वहां उतना ही बड़ा गढ्ढा दिखाई देता है। ऐसा ही इस बार हुआ, तेज आंधी में 10 और 11 अगस्त को इन गांवों के आस-पास बड़े टीले बन गए। इन टीलों के नीचे भारत की ओर से हो रही फेंसिंग भी दब गई। अक्सर यहां ऐसी घटनाएं होती रहती हैं।'्र

मालम सिंह आगे कहते हैं, "ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, कई साल पहले पाकिस्तान से भी कुछ मवेशी इसी तरह चरते हुए भारत में घुस आए थे, बाद में उन्हें बीएसएफ के हवाले किया गया था, लेकिन जब भी भारत से बकरी या अन्य मवेशी पाकिस्तान की तरफ जाते हैं वे वापस नहीं आ पाते।"

पीड़ित परिवारों ने कलक्टर, मंत्री के नाम ज्ञापन दिया

पोछीणा के चतुर सिंह सहित पीड़ित पशुपालकों ने रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और जैसलमेर जिला कलेक्टर आशीष मोदी के नाम सोमवार को ज्ञापन दिया है। इसमें इन्होंने लिखा है कि इनका मुख्य काम पशु पालन ही है। बकरियों के पाकिस्तान चले जाने से वे बेरोजगार हो गए हैं। इस बार ज्यादा संख्या में मवेशी जाने से उन्हें ज्यादा आर्थिक नुकसान हुआ है। ऐसे में उन्हें मुआवजा दिया जाए या उनके पशु वापस दिलाए जाएं।


गांव कनेक्शन ने इस संबंध में जैसलमेर जिला कलेक्टर आशीष मोदी से भी बात की। कलेक्टर आशीष मोदी बताते हैं, "जैसलमेर-बाड़मेर बॉर्डर पर ये घटना हुई है। बकरियों की अनुमानित संख्या 250 बताई जा रही है। प्रशासन ने बीएसएफ से रिपोर्ट मंगाई है। रिपोर्ट आने के बाद ही मुआवजे या किसी अन्य विकल्प पर विचार किया जाएगा।


    

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