इसरो के नए मिशन पीएसएलवी-सी38 से रचेगा एक और कीर्तिमान

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इसरो के नए मिशन पीएसएलवी-सी38 से रचेगा एक और कीर्तिमानपीएसएलवी-सी38/कार्टोसेट-2 उपग्रह।

मंगलम् भारत

लखनऊ । आज गुरूवार को सुबह 5 बजकर 29 मिनट पर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अपने 31 सैटेलाइटों को भेजने वाले पीएसएलवी-सी38/कार्टोसेट-2 सैटेलाइट का 28 घंटे का काउंटडाउन शुरू कर दिया। यह सैटेलाइट 23 जून शुक्रवार सुबह 9 बजकर 29 मिनट पर लॉन्च किया जाएगा।

श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर के फर्स्ट लॉन्च पैड से इस सैटेलाइट को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा। पीएसएलवी-सी38 की यह 40वीं फ्लाइट है।

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कौन-कौन से देश भेज रहे हैं अपने सैटेलाइट

इसमें 14 देशों के 29 नैनो सैटेलाइट हैं, जिसमें ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, चेक रिपब्लिक, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका, लताविया, लिथूनिया व स्लोवाकिया देश शामिल हैं। एक सैटेलाइट भारत का है। इसके अलावा 31वां सैटेलाइट स्वयं पीएसएलवी-सी38 है।

पीएसएलवी का कुल वज़न 712 किलोग्राम है, जबकि भेजे जाने वाले अन्य 30 सैटेलाइटों का कुल वज़न 243 किलोग्राम है। इस पूरे सैटेलाइट का कुल वज़न 955 किलोग्राम है।

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अमेरिका क्यों कराता है भारत से सैटेलाइटों को प्रक्षेपण

पिछले कुछ सालों में इसरो की साख बढ़ी है। अमेरिका के पास सबसे बड़ी स्पेस एजेंसी नासा है, इसके बाद भी वह इसरो के पास से अपने सैटेलाइट भिजवाता है। इसका कारण भारत द्वारा भेजे गए सैटेलाइटों की लागत का न्यूनतम होना है।

अमेरिका ने मंगल ग्रह पर अपना सैटेलाइट भेजने में 671 मिलियन डॉलर यानि 4326 करोड़ रूपए खर्च किये, वहीं भारत ने मंगलयान नामक सैटेलाइट को मंगल ग्रह तक भेजने में 74 मिलियन डॉलर यानि 477 करोड़ रूपए खर्च किये। यह अमेरिका में लागत की तुलना में 10 गुना कम है। इसके पहले भी अमेरिका भारत से अपने सैटेलाइटों का प्रक्षेपण कराता रहा है। दूसरे देशों के सैटेलाइट भेजने से भारत को आर्थिक फ़ायदा भी होता है।

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श्रीहरिकोटा से ही क्यों लॉन्च होता है भारत का हर सैटेलाइट

श्रीहरिकोटा सैटेलाइट को अंतरिक्ष में भेजने का सबसे बेहतर स्थान है। कोई भी क्षेत्र सैटेलाइट को भेजने के लिये दो ज़रूरतों को पूरा करना आवश्यक है। उसके आस पास का क्षेत्र समुद्री हो और उस क्षेत्र में मौसम ठीक रहता हो। श्रीहरिकोटा के आस पास का क्षेत्र महासागरीय है, जिसके कारण सैटेलाइट से गिरने वाला मलबा समुद्र में गिरता है।

इसके अलावा श्रीहरिकोटा कम आबादी वाला क्षेत्र है। पृथ्वी पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है। श्रीहरिकोटा से प्रक्षेपित हर यान जब पूर्व की ओर छोड़ा जाता है, तो पृथ्वी से बाहर निकलने पर इसको अतिरिक्त गति भी मिलती है।

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जितने भी संचार उपग्रह हैं, वे सभी भूमध्य रेखा के ठीक ऊपर हैं। किसी भी सैटेलाइट को भेजने के लिये भूमध्य रेखा या उसके समीप होना सैटेलाइट से जुड़ी जानकारी को अंतरिक्ष में भेजने के लिये बेहतर बनाता है। यही कारण है कि श्रीहरिकोटा से ही भारत का हर सैटेलाइट भेजा जाता है।

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