लॉकडाउन के समय 31 फीसदी कम लगे टीके, 19% शिशुओं को जन्म के बाद हेपेटाइटिस बी का टीका नहीं लग पाया

केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने लोकसभा में बताया कि लॉकडाउन के समय टीकाकरण कार्यक्रम प्रभावित हुआ है। टीकाकरण कार्यक्रम में पिछले वर्ष की तुलना में इस बार 31% की गिरावट दर्ज की गई है

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लॉकडाउन के समय 31 फीसदी कम लगे टीके, 19% शिशुओं को जन्म के बाद हेपेटाइटिस बी का टीका नहीं लग पायापिछले साल की अपेक्षा इस साल 31 फीसदी कम हुआ टीकाकरण। (फोटो साभार tribuneindia)

कोरोना के संक्रमण के रोकने के लिए देशभर में लगे लॉकडाउन के समय जन्म लेने वाले 19.4 फीसदी शिशुओं को जन्म के बाद हेपेटाइटिस बी का टीका नहीं लग पाया। इसके अलावा टीकाकरण कार्यक्रम में पिछले वर्ष की तुलना में इस बार 31 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। सरकार ने एक सवाल के जवाब में लोकसभा में ये जानकारी दी।

संसद के मानसून सत्र में शुक्रवार 18 सितंबर को असम के नगांव से लोकसभा सांसद प्रद्युत बोरदोलोई के सवाल के जवाब में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री अश्वनी चौबे ने बताया कि लॉकडाउन के शुरुवाती चरण में देश की स्वास्थ्य सेवाओं पर असर पड़ा, लेकिन राज्यों के साथ मिलकर स्थिति को सामान्य बनाने की कवायद हो रही है जिसका असर भी दिख रहा।

लिखित जवाब में उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के समय जन्म लेने वाले 19.4 फीसदी शिशुओं को जन्म के बाद हेपेटाइटिस बी का टीका नहीं लग पाया। इसके अलावा टीकाकरण कार्यक्रम में पिछले वर्ष की तुलना में इस बार 31 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की गई है।

दमुक्र सांसद कनिमोझी करुणानिधि के एक सवाल के जवाब में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री अश्वनी चौबे ने बताया कि वर्ष 2020 में अप्रैल से जून के बीच देश के 4,413,896 बच्चों को बीसीजी, पटावैलेट, एमएमआर वैक्सीन और पोलियो ड्रॉप्स की खुराक दी गई, जबकि पिछले साल इस समय 5,814,588 बच्चों को बीसीजी, पटावैलेट, एमएमआर वैक्सीन और पोलियो ड्रॉप्स की खुराक दी गई थी।

यहाँ जानिये हेपेटाइटिस के 'ए, बी, सी'

42 फीसदी गर्भवती महिलाओं की नहीं हुई नियमित जांच

कोरोनाकाल में ग्रामीण भारत की मुश्किलों को समझने के लिए भारत के सबसे बड़े ग्रामीण मीडिया संस्थान गांव कनेक्शन के डेटा और इनसाइट्स विंग 'गांव कनेक्शन इनसाइट्स' द्वारा एक राष्ट्रीय सर्वे किया गया। यह सर्वे देश के 23 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 179 जिलों में 30 मई से 16 जुलाई, 2020 के बीच हुआ था, जिसमें 25,300 उत्तरदाता शामिल हुए।

टीककरण पर लोकसभा में सरकार द्वारा दी गई जानकारी

सर्वे में गर्भवती महिलाओं से यह पूछा गया था कि क्या गर्भवती महिला का लॉक डाउन के दौरान टीकाकरण और प्रसव पूर्व जांच हुई है या नहीं? इस सवाल के जवाब में 58 फीसदी लोगों ने हां कहा वहीं 42 प्रतिशत का जवाब न में था।

एक गर्भवती महिला के लिए प्रसव पूर्व होने वाली नियमित जांचें और टीकाकरण लगना कितना जरूरी है, अगर समय से नहीं लग पाया तो क्या मुश्किलें आ सकती हैं? इस सवाल के जवाब में डॉ उषा एम कुमार (स्त्री रोग विशेषज्ञ) कहती हैं, "किसी भी गर्भवती महिला की नौ महीने के दौरान होने वाली जांचें और अल्ट्रासाउंड हर महीने के हिसाब से जरूरी होते हैं। जांच न होना माँ और बच्चा दोनों के लिए बहुत खतरनाक हैं। टीका एक दो महीने न लगने से कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन शुरुआती तीन महीने की जांचें और अल्ट्रासाउंड बहुत ही महत्वपूर्ण हैं।"

यह भी पढ़ें- ग्रामीण भारत की 42% गर्भवती महिलाओं की नहीं हुई नियमित जांचें और टीकाकरण: गाँव कनेक्शन सर्वे

डॉ उषा दिल्ली के मैक्स अस्पताल की वरिष्ठ सलाहकार हैं। गाँव कनेक्शन के सर्वे के अनुसार हर 10 में से चौथी गर्भवती महिला की प्रसव पूर्व जांच (चेकअप) और टीकाकरण नहीं हो पाया।

गाँव कनेक्शन के सर्वे के अनुसार अगर राज्यवार आंकड़ों की प्रसव पूर्व जांच और टीकाकरण होने की बात करें तो सबसे ज्यादा टीकाकरण राजस्थान- 87 प्रतिशत, उत्तराखंड- 84 प्रतिशत, बिहार- 66 प्रतिशत, मध्य प्रदेश- 64 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश- 57 प्रतिशत, असम- 55 प्रतिशत, झारखंड- 52 प्रतिशत और केरल में 48 प्रतिशत हुआ। सबसे कम टीकाकरण और प्रसव पूर्व जांच ओडिशा में 33 प्रतिशत और पश्चिम बंगाल में 29 प्रतिशत हुआ।

  

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