ओडिशा: लॉकडाउन के बीच 32 आदिवासियों के घर तोड़े, परिवारों के पास न रहने की कोई जगह न खाने-पीने का इंतजाम

Mithilesh DharMithilesh Dhar   26 April 2020 3:00 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
ओडिशा: लॉकडाउन के बीच 32 आदिवासियों के घर तोड़े, परिवारों के पास न रहने की कोई जगह न खाने-पीने का इंतजाम

देश में लगे लॉकडाउन के बीच ओडिशा के जिला कालाहांडी में 32 आदिवासी परिवार के घरों को वन विभाग ने तोड़ दिया। इन घरों में 90 से ज्यादा लोग रहते थे, जिनके पास अब न तो खाने की व्यवस्था है, न ही कड़ी धूप से बचने के लिए छत। महुए के पेड़ के नीचे रह रहे हैं, महुआ ही खा रहे हैं।

"हमारे पास अब न तो रहने के लिए जगह है और न ही कुछ खाने के लिए। हमारी मुर्गियां, बकरियां सब पता नहीं कहां चली गईं। जब लोग घर तोड़ने आये थे (24 अप्रैल को) तब सभी आदमी लोग पास के गांव गये थे जहां हमारे एक जानने वाले गुजर गये थे। शाम को आये तो हमारा घर था ही नहीं। छोटे-छोटे बच्चों के साथ हम महुए के पेड़ के नीचे रह रहे हैं। बारिश हुई तो पता नहीं कहां जाउंगा।" ग्राम पंचायत सागड़ा, गांव नेहला के आदिवासी सुंधार मांझी बताते हैं।

ग्राम पंचायत सागड़ा का गांव नेहला जिला मुख्यालय कालाहांडी से लगभग 15 किमी दूर है। यह गांव खांडुल माली फॉरेस्ट एरिया के पास है। दक्षिण ओडिशा के इस क्षेत्र में कई बाक्साइट खदाने भी हैं।

लॉकडाउन के समय फॉरेस्ट विभाग ने ऐसा क्यों किया, ओडिशा में लंबे समय से आदिवासियों की आवाज उठाने वाले ग्रीन नोबेल पुरस्कार विजेता और लोकशक्ति अभियान संस्था के अध्यक्ष प्रफुल सामांत्रा समझाते हैं।

वे गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "आदिवासी यहां पिछले छह महीने से रह रहे हैं। इनका गांव यहां से लगभग 15 किमी दूर पहाड़ पर स्थित माखागुड़ा में था। वर्ष 2017 में लैंडस्लाइड की वजह से इनके वहां के घर टूट गये फिर ये यहां आकर बस गये और वन अधिकार कानून के तहत इन्हें यहां से कोई हटा नहीं सकता। शुक्रवार की दोपहर बड़ी संख्या में फॉरेस्ट विभाग के लोग पहुंचते हैं और मिट्टी, घास-फूस से बने इनके घरों को तोड़ देते हैं।"


"ऐसे में समय में जब देश में लॉकडाउन चल रहा है, हमारे प्रधानमंत्री लोगों से घरों में रहने की अपील करते हैं तो इधर 90 से ज्यादा लोगों को बेघर कर दिया गया। ये सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कैसे करेंगे, इनके सामने तो अब जिंदा बने रहने की ही चुनौती होगी। जैसे-जैसे तापमान बढ़ेगा इनकी दिक्कतें बढ़ेगी। इन लोगों को साजिशन यहां हटाया गया।" वे आगे कहते हैं।

प्रफुल आगे बताते हैं, "इन्हें यहां से हटाने का प्रयास पिछले छह महीने से हो रहा था। ये पूरा क्षेत्र एलिफेंट सेंचुरी क्षेत्र में आता है। ऐसे में जब लॉकडाउन है तो यहां कोई आ भी नहीं पायेगा और विभाग जो चाहता है वह हो भी जायेगा। आज दूसरा दिन है, लेकिन मीडिया में इस अमानवीय व्यवहार की कहीं कोई खबर नहीं है। कुछ लोग वहां जाने का प्रयास कर रहे थे जिन्हें फॉरेस्ट विभाग के लोगों ने जाने नहीं दिया। आदिवासी लगातार मांग कर रहे थे कि उन्हें कहीं दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया जाये, उन्हें खेती के लिए जमीन दी जाये तो वे खुद ही चले जाएंगे। अब प्रशासन ने अपना काम भी कर दिया और लोगों को पता भी नहीं चलेगा।"

यह भी पढ़ें- कोरोना लॉकडाउन संकट के बीच कैसा है राजस्थान के आदिवासी गांवों का जीवन?

"आदिवसियों के लिए यहां से जिला मुख्यालय और पंचायत पास पड़ता था जिस कारण उन्हें अक्सर कुछ न कुछ मिल जाया करता था, जबकि पुराने गांव न तो इनके पास रहने का ठिकाना था और न ही वहां अस्पताल या दूसरी सुविधाएं हैं। यही कारण था वे यहां रह रहे थे।" वे आगे कहते हैं।

कालाहांडी जिला अदालत में वकील और सुप्रीम कोर्ट में आदिवासी मामलों के याचिकाकर्ता सिद्धार्थ नायक का आरोप है कि प्रशासन बड़ी कंपनियों के साथ मिलकर सेंचुरी के क्षेत्र को कम करना चाहता है।

आदिवासियों ने सरकार से मदद की मांग की है।

वे कहते हैं, "यहां से कुछ दूरी पर वेदांता की बाक्साइट खनन परियोजना है। ये लोग लगातार प्रयास कर रहे हैं कि सेंचुरी क्षेत्र को कम करके खनन के क्षेत्र को बढ़ाया जाये। इसीलिए फॉरेस्ट विभाग नहीं चाहता कि आदिवासी लोग यहां रहें, जबकि यहां रहने का उनके पास कानूनी अधिकार है। घटना के बाद मैं वहां कुछ टीवी पत्रकारों के साथ गया लेकिन मुझे वहां जाने नहीं दिया गया। हमने कुछ तस्वीरें ली थीं जिसे फॉरेस्ट विभाग के अफसरों ने डिलीट करा दिये।"


सिद्धार्थ आगे बताते हैं, "इनका जहां गांव हैं वह लगभग घटनास्थल से 15 किमी दूर है। वहां आने-जाने का कोई रास्ता नहीं है। ये आदिवासी लोग वहां बस राशन लेते जाते हैं। इनके वहां के घर नष्ट हो चुके हैं। ये वर्ष 2017 से ही अपने लिए दूसरी जगह की मांग कर रहे हैं। जिला प्रशासन और इनके बीच बात भी चल रही थी। अगर कुछ करना ही था तो लॉकडाउन के बाद करते। छोटे-छोटे बच्चे हैं। यहां का तापमान अभी से 35-40 डिग्री सेल्सियस है। इस गर्मी में वे कैसे रह रहे होंगे, उनके खाने का सामान भी सब खराब हो चुका है।"

यह भी पढ़ें- झारखंडः साल 2019 तक सिर्फ 61 हजार आदिवासियों को मिल पाया जमीन का पट्टा

इस मामले को लेकर हमने डीएफओ कालाहांडी साउथ टी अशोक कुमार से भी बात की। अपना पक्ष रखते हुए वे कहते हैं, "ये आदिवासी यहां अभी लॉकडाउन के बाद रहने आये थे। हम इन्हें लगातार समझा रहे थे कि अभी तो लॉकडाउन का समय है, आप लोग अपने गांवों में रहिए। उनका गांव घटनास्थल से 12-13 किमी दूर पहाड़ी पर है, लेकिन वे लोग यहीं रहने की जिद करने लगे। ऐसे में हमें उन पर कार्रवाई करनी पड़ी। जहां ये आदिवासी रह रहे थे वह जगह सागड़ा रिजर्व फॉरेस्ट की जमीन है, ऐसे में उन्हें कैसे रहने देते। ये लोग अभी अपने गांव गये थे जहां इन्हें सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत राशन दिया गया और एक हजार-हजार रुपए भी दिये गये।"

"घटना के बाद एक वकील मौके पर पहुंचे थे, हमने उनके उनका आईकार्ड मांगा लेकिन वे नहीं दिखा पाये, इसलिए उन्हें वहां से हटाना पड़ा। किसी टीवी पत्रकार के बारे में तो कोई जानकारी नहीं है।" अशोक कुमार आगे कहते हैं।

मौके पर वन विभाग की टीम

डीएफओ कालाहांडी साउथ टी अशोक कुमार कहते हैं कि ये जगह फॉरेस्ट रिजर्व एरिया में रह रहे थे, इस पर सिद्धार्थ नायक कहते हैं, "अगर ऐसा था तो प्रशासन को पहले देखाना चाहिए था और इन सभी लोगों को नोटिस देना चाहिए था। फॉरेस्ट रिजर्व एरिया में कोई इतनी आसानी से तो रह नहीं सकता।"

ट्राइबल आर्मी के प्रवक्ता यश मेघवाल वन विभाग की इस कार्यवाही को गलत बताते हुए कहते हैं, "ये 32 आदिवासी परिवार वहां अपील करने के बाद रह रहे थे, उनकी बात प्रशासन से चल रही थी, ऐसे में इस समय ऐसा नहीं करना चाहिए था। सरकार को इन आदवासियों के हक के लिए बोलना चाहिए।"


वहीं इंडियन सोशल ऐक्शन फोरम (ओडिशा) के राज्य संयोजक नरेंद्र मोहंती कहते हैं, "फॉरेस्ट विभाग ने यह काम खनन माफिया के दबाव में किया है। बड़ी-बड़ी कंपनियां वहां खनन के फिराक में हैं। सभी लोग आदिवासियों की जमीन से बाक्साइट लूटना चाहते हैं।"

पिछले 40 वर्षों से आदिवासियों के अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे प्रदीप साहू इस मामले को अमानवीय करार देते है। वे कहते हैं, " एफआरए एक्ट 2005 के अनुसार फॉरेस्ट विभाग के पास आदिवासिसों के घर तोड़ने के अधिकार नहीं होते। इस मामले में तो आदिवासियों को नोटिस तक नहीं दी गई। यह मानवाधिकार का उल्लंघन है।"

  

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.