गरीबों की जिंदगी में उजाला ला रही है यह युवा महिला डॉक्टर

Astha SinghAstha Singh   7 Dec 2017 9:08 PM GMT

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गरीबों की जिंदगी में उजाला ला रही है यह युवा महिला डॉक्टरडॉ आंचल गुप्ता। 

डॉ आंचल गुप्ता और नेत्रम नेत्र फाउंडेशन ने अब तक 150 से अधिक शिविर आयोजित किए हैं, जिसमें प्रत्येक शिविर में कम से कम 200-250 लोग शामिल हो चुके हैं। यह संख्या 60,000 से अधिक पहुंच चुकी है। अब तक इस युवा नेत्र रोग विशेषज्ञ ने 5000 से ज्यादा प्रो-बोनो या चैरिटी में मोतियाबिंद की सर्जरी की है।

बचपन में पिता को देखकर मिली प्रेरणा

डॉ. आंचल (34 वर्ष) ‘गाँव कनेक्शन’ को बताती हैं, "गरीबों और असहायों की सेवा की प्रेरणा बचपन में ही मुझे मेरे पिता से मिली, जो डॉक्टर थे। मेरा जन्म बनारस में हुआ। हमारे घर में अक्सर वैसे गरीब किसान आते थे, जिनके हाथ या पैर की अंगुलियां काम करते-करते या दुर्घटना में चोटिल हो जाती थीं। चूंकि मेरे पिता ऑर्थोपेडिक सर्जन थे, इसलिए उनका इलाज कर देते थे। पैसे देने में अक्षम लोग कई बार पिता को अनाज दे जाते थे। जब कभी रात में पिता उन गरीबों का इलाज करते थे, तब मैं टॉर्च दिखाकर उनकी मदद करती थी।"

2017 में देखें तो वह तीन साल की लड़की जो अब 34 साल की हो चुकी है, बिल्कुल उनके जैसे ही काम करते दिखती है अंतर बस इतना है कि वो एक नेत्र विशेषज्ञ हैं, जो अपने नेत्रम आईकेयर चैम्बर से चिकित्सा शिविरों का संचालन करती है और ऐसे रोगियों का इलाज करती हैं, जो इसका वहन नहीं कर पाते हैं ।

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डॉ आंचल (34 वर्ष) ने गाँव कनेक्शन बताती हैं, "एक नेत्र रोग विशेषज्ञ बनने का विकल्प मझे अपने व्यक्तिगत अनुभवों से आया, जब बचपन में मैं मोटा-रिमयुक्त चश्मा पहनती थी और मुझे हमेशा नेत्र रोग विशेषज्ञ की आवश्यकता होती है।"

वो आगे बताती हैं, "मुझे पता है कि कैसा लगता है जब आपके शरीर का सबसे कीमती अंग दोषपूर्ण हो। यहां तक कि जब आप सिर्फ 10 सेकेंड के लिए अपनी आँखें बंद करते हैं, तो आप बेचैन हो जाते हैं। सोचिए आपको कैसा लगेगा यदि आपको ये पता चले कि आप कभी उजाला नहीं देख पाएंगे या आप ऐसे दौर में जाने वालें हैं जहाँ कुछ दिन बाद आपको दिखना बंद हो जाएगा ।"

नेत्र जांच करने वाली वैन के साथ डॉ आंचल।

कॉर्पोरेट करियर छोड़कर लोगों की मदद करना चुना

किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज, लखनऊ और मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज, दिल्ली जैसे देश के कुछ बेहतरीन संस्थानों में अध्ययन करने के बाद, आंचल के पास बेहतर विकल्प था कि वो एक कॉर्पोरेट जीवन शैली जीती और खूब धन अर्जित करतीं लेकिन आंचल ने वो राह चुनी जो सबसे अलग थी।

वह बताती हैं, "मैं एक आई स्पेशलिस्ट हूं और मेरा जीवन वैसे लोगों के जीवन में रोशनी लाने के लिए समर्पित है, जिनके पास महंगे इलाज के लिए पैसे नहीं हैं।"

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कब और क्यूँ शुरू किया नेत्रम आई फाउंडेशन

आंचल बताताी हैं, “अंततः 2012 में मैंने नेत्रम आई फाउंडेशन नाम की एक संस्था बनाई, जहां आंखों का इलाज होने के अलावा गरीबों की चिकित्सा पर खास ध्यान दिया जाता है। मेरा कार्य क्षेत्र दिल्ली और एनसीआर है। फाउंडेशन में गरीब मरीजों की आंखों की जांच मुफ्त में होती है, जबकि चश्मा, दवा और ऑपरेशन के लिए मामूली पैसे लिए जाते हैं।”

वह आगे कहती हैं, “शुरुआत में मैंने आस-पास के करीब 35 ऑप्टिशियन्स को अपने अभियान से जोड़ा। मैं उन्हें आंखों से जुड़ी तमाम बीमारियों के बारे में बताती हूं, फिर उन्हें कहती हूं कि जांच कराने आए लोगों की आंखों में अगर कोई जटिलता दिखे, तो उसकी फोटो खींचकर व्हाट्सऐप पर मुझे भेज दें। जब भी ऐसे मामले सामने आते हैं, हमारी टीम, जिसमें दूसरे डॉक्टर भी हैं, उसका समाधान सुझाती है। इस तरह स्मार्टफोन के जरिए आंखों की बीमारी का पता चल जाता है और उनका इलाज भी सुझा दिया जाता है। जब कोई गंभीर मामला सामने आता है, तब वैसे मरीजों को तत्काल हमारी नेत्रम एंबुलेंस से हमारे अपने बेस सेंटर में ले आया जाता है। दिल्ली-एनसीआर में नेत्रम के अभी तक कुल छह केंद्र खुल चुके हैं।”

कैसे और कहां लगाती हैं आई कैम्प्स

हम अलग-अलग इलाकों में आई कैंप भी लगाते हैं, जहां आंखों की जांच तो मुफ्त होती है, जबकि चश्मे के लिए पचास रुपए कीमत ली जाती है। कैंप लगाने में चूंकि खर्च होता है, इसलिए कोशिश यही होती है कि कम से कम सौ चश्मे बिक जाएं। हमारे फाउंडेशन में सप्ताह में दो दिन गरीबों की आंखें मुफ्त में जांची जाती हैं। सिक्योरिटी गार्ड्स, घरों में काम करने वाली महिलाएं, ऑटो चालक, झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोग और वरिष्ठ नागरिकों को मुफ्त जांच के दायरे में रखा जाता है। अब तक हम डेढ़ सौ से अधिक आई कैंप लगा चुके हैं।

मामूली सुविधाओं के साथ कभी एक बेसमेंट में शुरू हुआ नेत्रम आई फाउंडेशन आज पांच हजार वर्ग फीट जगह में है और इसके पास पांच डॉक्टरों की टीम है। लेकिन अभी तो मेरे काम की शुरुआत ही हुई है। मैं उस दिन के सपने देखती हूं, जब इस फाउंडेशन की बड़ी-सी बिल्डिंग होगी, अलग से आई इंस्टीट्यूट होगा, जहां डॉक्टरों को ‘तमसो मां ज्योतिर्गमय’ के सेवा भाव से आंखों की बीमारी दूर करने के बारे में बताया जाएगा और गरीबों की सेवा पर खास ध्यान रहेगा।

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देश में अपने-अपने स्तर पर बदलाव लाने वाले, नई सोच विकसित करने वाले, दूसरों के लिए नई राह दिखाने वाले लोगों की कहानियां गांव कनेक्शन के सेक्शन बदलता इंडिया में पढ़ें

        

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