देश के 39 फीसदी किसानों को मंडी व्यवस्था खत्म होने का डर, नए बिलों से 39 फीसदी को ही MSP पर दिख रहा खतरा: गाँव कनेक्शन सर्वे

देश में हाल ही में लागू हुए तीनों कृषि कानूनों को केंद्र सरकार किसानों और किस्मत बदलने वाला बता रही है लेकिन किसान संगठन और विपक्ष इसे किसानों का डेथ वारंट बता रहे। देश के सबसे बड़े ग्रामीण मीडिया संस्थान गांव कनेक्शन ने कई राज्यों में किसानों के बीच सर्वे कराया। 'द इंडियन फार्मर परसेप्शन ऑफ न्यू एग्री बिल्स' की रिपोर्ट, बता रही है नए कृषि कानूनों के लेकर किसानों के डर क्या हैं।

Divendra SinghDivendra Singh   20 Oct 2020 10:35 AM GMT

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देश के 39 फीसदी किसानों को मंडी व्यवस्था खत्म होने का डर, नए बिलों से 39 फीसदी को ही MSP पर दिख रहा खतरा: गाँव कनेक्शन सर्वे

39 फीसदी किसानों को लगता है कि नए कृषि कानूनों से मंडी और एपीएमसी व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी तो 39 फीसदी को डर है कि नए कृषि कानून आने के बाद भविष्य में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकार फसलें खरीदना बंद कर देगी और ये एमएसपी खत्म हो जाएगी। बिल का विरोध करने वाले (52 फीसदी) किसानों में से 57 फीसदी को लगता है नए कानूनों से वो खुले बाजार में अपनी उपज बेचने को मजबूर होंगे। ये आंकड़े कृषि बिलों को लेकर देश के 16 राज्यों में कराए गए गांव कनेक्शन के रैपिड सर्वे में निकल कर आएं हैं।

भारत में कृषि कानून लागू हो गए हैं। पंजाब हरियाणा समेत कई राज्यों में कई किसान संगठन तीनों बिलों का विरोध कर रहे हैं, तो महाराष्ट्र के कुछ इलाकों में बिल के समर्थन में भी प्रदर्शन हुए हैं। कृषि कानूनों को लेकर विरोध, हंगामे, उम्मीदों के बीच देश के सबसे बड़े ग्रामीण मीडिया संस्थान गांव कनेक्शन ने देश के 16 राज्यों के 53 जिलों के 5022 किसानों के बीच फेस टू फेस रैपिड सर्वे कराया। जिसमें कृषि बिलों को लेकर किसानों से कई सवाल पूछे गए। सर्वे के जरिए जानने की कोशिश की है कि क्या वो बिलों के विरोध में हैं तो क्यों और अगर समर्थन में हैं तो क्यों। कृषि अध्यादेशों में किसानों के लिए क्या अच्छा है? किस बात से उन्हें भविष्य में डर है?

गांव कनेक्शन के सर्वे में निकल कर आया है कि किसानों को सबसे बड़ा डर अपनी उपज बेचने को लेकर है। सर्वे से संबंधित विस्तृत रिपोर्ट The Rural Report-2: THE INDIAN FARMER'S PERCEPTION OF THE NEW AGRI LAWS गांव कनेक्शन की इनसाइट वेबसाइट www.ruraldata.com पर पढ़ सकते हैं।

संसद के दोनों सदनों से पास होने और देश में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हस्ताक्षर होने के बाद 27 सितंबर से देश में तीनों नए कृषि कानून लागू हो गए हैं। गांव कनेक्शन के सर्वे में तीनों बिलों, कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश 2020, कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020 आवश्यक वस्तु अधिनियम 2020 को लेकर बात की गई है।

ये भी पढ़ें: देश का हर दूसरा किसान कृषि कानूनों के विरोध में, 59 फीसदी किसान चाहते हैं एमएसपी पर बने कानून: गांव कनेक्शन सर्वे

कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश, 2020, राज्य सरकारों को मंडियों के बाहर की गई कृषि उपज की बिक्री और खरीद पर टैक्स लगाने से रोकता है और किसानों को लाभकारी मूल्य पर अपनी उपज बेचने की स्वतंत्रता देता है। सरकार का कहना है कि इस बदलाव के जरिए किसानों और व्यापारियों को किसानों की उपज की बिक्री और खरीद से संबंधित आजादी मिलेगी, जिससे अच्छे माहौल पैदा होगा और दाम भी बेहतर मिलेंगे। लेकिन किसानों के अपने संशय हैं।

गांव कनेक्शन के सर्वे में किसानों से पूछा गया उन्हें लगता है कि नये कृषि बिल के कारण देश में मंडी प्रणाली/एपीएमसी खत्म हो जायेगी? इस सवाल के जवाब में 39% ने 'हां' कहा तो 28 फीसदी ने 'ना' जबकि 33 फीसदी ने कहा कि वो इस पर कुछ कह नहीं सकते हैं।

सर्वे में शामिल किसानों से पूछा गया कि क्या आपको लगता है कि नये कृषि बिल के कारण देश में मंडी प्रणाली/एपीएमसी खत्म हो जायेगी?

कृषि कानूनों का विरोध करने वाले किसान संगठनों का कहना है कि मंडी के अंदर टैक्स और बाहर टैक्स नहीं होने सी मंडी व्यवस्था कमजोर होगी। और धीरे-धीरे सरकार कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी मंडियों) को बंद कर सकती है।

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के संयोजक वीएम सिंह पिछले दिनों गांव कनेक्शऩ से हुई बात में कहते हैं, "सरकार एक राष्ट्र, एक मार्केट बनाने की बात कर रही है, लेकिन उसे ये नहीं पता कि जो किसान अपने जिले में अपनी फसल नहीं बेच पाता है, वह राज्य या दूसरे जिले में कैसे बेच पायेगा। क्या किसानों के पास इतने साधन हैं और दूर मंडियों में ले जाने में खर्च भी तो आयेगा। और छोटे किसानों को न तो बाहर के लोगों से लड़ने की ताकत है न वो इंटरनेट पर अभी अपना सामान बेच लेने में सक्षम है यही कारण है किसान इसके विरोध में है।"

मध्य प्रदेश के युवा किसान नेता और राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन मध्य प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष राहुल राज कहते हैं कि इससे मंडी की व्यवस्था ही खत्म हो जायेगी। वे कहते हैं "सरकार के इस फैसले से मंडी व्यवस्था ही खत्म हो जायेगी। इससे किसानों को नुकसान होगा और कॉरपोरेट और बिचौलियों को फायदा होगा।"

मंडी के अतिरिक्त किसानों को दूसरा सबसे बड़ा एमएसपी को लेकर है। गांव कनेक्शन के सर्वे में 39 फीसदी किसानों ने कहा कि उन्हें लगता है कि नए कृषि बिल आने के बाद एमएसपी प्रणाली भविष्य में खत्म हो जाएगी, जबकि 27 फीसदी लोग इससे इत्तेफाक नहीं रखते। वहीं 34 फीसदी लोगों ने एमएसपी के भविष्य को लेकर कहा कि वो कुछ कह नहीं सकते हैं।


शायद यही वजह रही है कि जब किसानों से पूछा गया कि क्या आपको लगता है कि एमएसपी प्रणाली को देश में एक अनिवार्य कानून बनाया जाना चाहिए? इसके जवाब 59 फीसदी ने कहा 'हां' 16 फीसदी ने कहा ना और 25 फीसदी ने कहा कुछ कह नहीं सकते।

महाराष्ट्र के नाशिक जिले के देवला तालुका के किसान संदीप मागर कहते हैं, "सरकार ने नए कानून में कह दिया कि किसान कहीं भी फसल बेच सकता है, लेकिन ये कैसे हो पाएगा, अभी अपनी लोकल मंडी में तो कितनी परेशानी होती, अगर हम बाहर लेकर जाएंगे, तो वहां पर पता नहीं सही दाम भी मिलेगा कि नहीं। बड़े किसान तो अपना उत्पाद कहीं भी ले जाकर बेच सकते हैं, लेकिन छोटे किसान कैसे कर पाएंगे।"

सर्वे के दौरान जब किसानों से सवाल किया गया क्या उन्हें लगता है कि नए कृषि बिलों से किसानों का शोषण करने वाली कंपनियों को बढ़ावा मिलेगा तो 46 फीसदी किसानों ने जवाब हां में दिया, 22 फीसदी ने कहा नहीं जबकि 32 फीसदी ने कहा वो कुछ कह नहीं सकते।

सर्वे के दौरान किसानों ने कहा कि नए कृषि बिलों से किसानों का शोषण करने वाली कंपनियों को बढ़ावा मिलेगा

33% किसानों ने कहा कि सरकार एमएसपी की व्यवस्था खत्म कर देगी

गाँव कनेक्शन के सर्वे में ये बात सामने आयी कि 33 प्रतिशत किसानों को लगता है कि सरकार एमएसपी की व्यवस्था को ही खत्म कर सकती है। किसान संगठनों और कृषि जानकारों को भी संशय है कि लग रहा है कि कृषि बिल के बाद एमएसपी की व्यवस्था खत्म हो जायेगी, जबकि सरकार इससे इनकार कर रही है।

संसद में बिल पास होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि किसानों को कुछ लोग बरगला रहे हैं, देश में एमएसपी थी, है, और रहेगी। किसानों के हंगामों को देखते हुए इस बार सरकार ने एक महीने पहले रबी सीजन के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा की थी।

लेकिन खरीद सीजन में जिस तरह से कई राज्यों में धान की खरीद हो रही है, किसान संगठन इसे कृषि कानूनों का नतीजा बता रहे हैं। सरकार ने ए ग्रेड धान की न्यूनतम कीमत 1888 रुपए तय की है जबकि यूपी समेत कई राज्यों में धान 1200-1300 रुपए प्रति कुंतल बिक रहा है।

राष्ट्रीय किसान महासंघ के प्रवक्ता अभिमन्यु कोहाड़ कहते हैं, "प्रधानमंत्री और कृषि मंत्री बार-बार अपने भाषणों में जिक्र कर रह है कि MSP जारी रहेगी, तो सरकार क्यों नहीं MSP की बात को विधयेक में जोड़ देती हैं? 2006 में बिहार में APMC मंडियों को खत्म कर दिया गया। उस समय कहा गया था कि निजी क्षेत्र काफी निवेश करेगा, जिससे किसान तरक्की के रास्ते पर बढ़ेगा। प्रधानमंत्री भी अपने भाषण में कह रहे थे कि किसानों की हालत अच्छी है। बिहार के किसानों की मुख्य फसल मक्का है। उसका सरकारी रेट 1850 रुपए कुंतल हैं, लेकिन, आज व्यापारी उसे 500-600 रुपए कुंतल में खरीद रहे हैं। ये तरक्की है या बर्बादी? इसी कारण बिहार का किसान अपनी 5-5 एकड़ की जमीन को छोड़कर पंजाब, हरियाणा में दूसरे की जमीन पर मजदूरी करते हैं।"

ये भी पढ़ें: कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कानून के पक्ष में 46% किसान, 40% विरोध में, समर्थन करने वाले 51 फीसदी छोटे किसान : गांव कनेक्शन सर्वे

अपनी तरह के पहले सर्वे में शामिल हर दूसरे किसान ने तीनों कृषि कानूनों का विरोध किया तो वहीं 35 प्रतिशत किसान इन केंद्रीय कानूनों को अपना समर्थन भी दिया। हालांकि विरोध करने वाले (52%) किसानों में से 36 को कृषि कानूनों की जानकारी नहीं थी। जबकि समर्थन करने वाले (18%) भी इन कानूनों से जागरुक नहीं थे।

विरोध करने वाले किसानों से जब पूछा गया कि उनके विरोध की वजह क्या हैं तो 57% ने कहा कि खुले बाजार में कम कीमत पर बेचनी पड़ेगी फसल, 38 फीसदी को लगता है कृषि बिल के बाद किसानों की निर्भरता निजी कंपनियों पर बढ़ेगी, 36% ने कहा कि सरकार खुले बाजार की वजह अनाज कम खरीदेगी, 33 फीसदी को डर है कि सरकार एमएसपी की व्यवस्था खत्म कर देगी, वहीं 32% को डर है कांट्रैक्ट फार्मिंग कानून के चलते किसान अपने ही खेत में बधुंआ मजदूर बनकर रह जाएंगे। 15% किसानों ने ऊपर के सभी कारणों को विरोध की वजह बताई तीन फीसदी ने कहा कह नहीं सकते विरोध क्यों कर रहे हैं जबकि एक फीसदी ने बताया अन्य कारण है विरोध की वजह।


सर्वे में शामिल 5022 किसानों से जब पूछा गया कि कृषि बिलों को देखते हुए उन्हें क्या लगता है कि नरेंद्र मोदी सरकार किसानों की विरोधी है? समर्थक है या फिर उदासीन है? इसके जवाब में 44 फीसदी ने कहा समर्थक है, 28 फीसदी ने विरोधी तो 20 फीसदी ने कहा उन्हें पता नहीं। हालांकि 48 फीसदी किसान ये मानते हैं नए कृषि क़ानूनों से किसानों का शोषण करने वाली कंपनियों और कॉरपोरेट को बढ़ावा मिलेगा।

लेकिन जब किसानों से ये पूछा गया कि आपको क्या लगता है कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार किसानों, किसानों और व्यापारियों, कॉरपोरेट, आढ़ती-बिचौलिए, प्राइवेट कंपनियों, मल्टीनेशनल में किसके समर्थन करती है तो 35 फीसदी ने कहा किसानों के, जबकि 45 फीसदी ने कहा कि प्राइवेट कंपनी, मिडिल मैन और मल्टीनेशनल का समर्थन करती है।

कृषि कानूनों के जरिए किसानों की आमदनी को लेकर सरकार भले ही बहुत आशावान हो लेकिन किसानों तात्कालिक अपनी आमदनी ज्यादा बढ़ती नजर नहीं आ रही है। महज 29 फीसदी को लगता है नए कानूनों के सहारे 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी हो पाएगी।

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