46 फीसदी किसानों को डर- नए कृषि कानूनों से किसानों का शोषण करने वाली कंपनियों को मिलेगा बढ़ावा: गांव कनेक्शन सर्वे

16 राज्यों के 5000 से ज्यादा किसानों के बीच हुए सर्वे में जब नरेंद्र मोदी सरकार, किसानों के हित और बड़ी कंपनियों को लेकर सवाल किए गए तो चौंकाने वाले नतीजे सामने आए हैं...

Arvind ShuklaArvind Shukla   24 Oct 2020 6:38 AM GMT

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46 फीसदी किसानों को डर- नए कृषि कानूनों से किसानों का शोषण करने वाली कंपनियों को मिलेगा बढ़ावा: गांव कनेक्शन सर्वे

46 फीसदी किसानों को लगता है कि नए कृषि कानूनों के लागू होने के बाद किसानों का शोषण करने वाली कंपनियों, प्राइवेट प्लेयर (बड़े कारोबारी) और मल्टीनेशनल कंपनियों को बढ़ावा मिलेगा। जबकि 22 फीसदी को लगता है ऐसा नहीं होगा, वहीं 32 फीसदी लोगों ने इस पर कुछ कहने से मना कर दिया। ये आंकड़े कृषि कानूनों को लेकर गांव कनेक्शन द्वारा कराए गए रैपिड सर्वे में निकल कर आये हैं।

सरकार के मुताबिक कृषि सुधारों का मुख्य लक्ष्य किसानों की आय में सुधार करना है। लेकिन कोरोना लॉकडाउन के दौरान अध्यादेश के रूप में लाए गए इन बिलों को (अब कानून) विपक्ष और किसान संगठन शुरू से इसे सरकार का 'आपदा में अवसर' बता रहे हैं। सरकार का कहना है कि खुले बाजार से प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, निवेश होगा, इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप होगा, जिससे किसानों को फायदा होगा। रोजगार के अवसर और किसानों की आमदनी बढ़ेगी। लेकिन किसान संगठनों का कहना है ये कानून बड़ी-बड़ी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए दूरगामी साजिश है। किसानों के भी एक बड़े वर्ग को डर है कि खुले बाजार, कांट्रैक्ट फॉर्मिंग और आवश्यक वस्तु अधिनियम में स्टॉक की छूट हटने से कालाबाजारी और जमाखोरी बढ़ेगी, जिसका फायदा किसान नहीं व्यापारियों और बड़ी कंपनियों को मिलेगा।

बड़ी कंपनियों को लेकर किसानों का ये डर गांव कनेक्शन के सर्वे में भी निकल कर आया है। 16 राज्यों में 5,000 से ज्यादा छोटी और बड़ी जोत वाले किसानों के बीच कराए फेस टू फेस सर्वे में किसानों से जब ये पूछा किया कि नए कानूनों को ध्यान में रखते हुए उन्हें क्या लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार किसके समर्थन में है? जिसके जवाब में सर्वे में शामिल 35 फीसदी लोगों ने कहा सरकार किसानों की समर्थक है, जबकि 45 फीसदी ने कहा कि सरकार मीडिल मैन (आढ़ती-बिचौलिए), व्यापारी, निजी कंपनियों/ कॉरपोरेट और बहुराष्ट्रीय कंपनियों की समर्थक है। वहीं 11 फीसदी को लगता है कि केंद्र सरकार किसान और व्यापारी दोनों की समर्थक है जबकि 10 फीसदी के मुताबिक किसी अन्य की। इस सवाल के जवाब में उत्तरदातों को 6 विकल्प दिए गए थे। (विस्तृत चार्ट नीचे देंखे)


देश के प्रख्यात खाद्य एवं निर्यात नीति विशेषज्ञ देविंदर शर्मा कहते हैं "कंपनियों और कॉरपोरेट से किसान इसलिए डरे हैं क्योंकि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में वो अपनी उंगलियां जला चुके हैं। आलू, टमाटर से लेकर वालमार्ट के साथ बेबीकॉर्न तक की खेती में किसानों के अनुभव अच्छे नहीं रहे हैं।" देविंदर शर्मा लगातार किसान उद्ममियों को वही सुविधाएं देने की हिमायत करते रहे हैं जो किसी कॉरपोरेट को इंडस्ट्री लगाने के लिए दी जाती हैं।

सरकार के तीनों नए कानूनों में ही निवेश की बात है। ओपन मार्केट होगा, तो मंडी के बाद कहीं भी कोई भी कितना भी सामान खरीद सकेगा। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में किसानों के बड़े प्रोसेसर (प्रसंस्करणकर्ता), थोक विक्रेता, बड़े खुदरा व्यापारियों से लेकर निर्यातकों तक के साथ जुड़ने में सक्षम (समझौता खेती) बनाने की बात है। इसी तरह आवश्यक वस्तु अधिनियम में स्टॉक लिमिट हटा दी गई है। अब बड़े कारोबारी या कंपनी कितना भी स्टॉक कर सकते हैं। (विशेष परिस्थितियों को छोड़कर जैसे- 23 अक्टूबर को प्याज की कीमत फुटकर बाजार में 150 रुपए किलो पहुंचने पर सरकार ने फिर प्याज स्टॉक की लिमिट तय कर दी है।)

संसद से बिल पास होने के बाद एक समारोह में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने एक समारोह में कहा, "कालाबाजारी और जमाखोरी तब होती है जब खाद्यान की कमी हो, हमारे यहां तो सरप्लस है, बड़ी मात्रा में फसलें बर्बाद हो रही हैं। गोदामों में रखे-रखे अनाज सड़ जा रहा है। सरकार के पैसे और जनता के टैक्स का नुकसान होता है अब इसमें निजी निवेश बढ़ेगा, बड़ी कंपनियां ज्यादा खरीद करेंगी तो उसे रखने का इंफ्रास्ट्रक्चर भी बनाएंगी, जिससे रोजगार मिलेंगे। किसानों की आमदनी बढ़ेगी।"

किसान संगठनों का सवाल है कि अगर निवेश से ही फायदा है तो निवेश सरकार ने क्यों नहीं किया? निवेश यानि पैसा, और जो कंपनियां या कॉरपोरेट लगाएंगे तो वो मुनाफा भी वसूलेंगे। हरियाणा के रोहतक रीजन में सरकारी खरीद पर शोध कर रहे महर्षि दयानंद विश्विद्यालय, रोहतक के रिसर्च स्कॉलर मोहित रांगी कहते हैं, "आम लोगों में राजनीतिक दलों के प्रति एक नजरिया होता है कि सत्ता हासिल होने पर वह किसके हितों को ज्यादा तवज्जो देती है, "वर्तमान सरकार के लिए भी पहले जो किसानों के मन में संशय था उसके वादों और हकीकत में अंतर देखने के बाद पक्का हुआ है। कॉरपोरेट को लेकर किसानों के दो वर्गों में अलग-अलग तरह के प्रतिक्रिया मिलेगी, जो परंपरागत किसान हैं, किसी यूनियन या पार्टी से जुड़ा है तो उसका रिएक्शन अलग होगा, जो शिक्षित किसान है उसका रिएक्शन अलग होगा लेकिन संशय दोनों के मन दिखेगी।'

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए रांगी कहते हैं, "किसानों के सामने कई उदाहरण हैं, जीओ पहले मुफ्त था अब वो धीरे-धीरे अपने रेट बढ़ा रहा है। बीएसएनएल बंद होने की कगार पर है। देश में कभी एयरइंडिया का सिक्का चलता था अब देखिए। दूसरा किसान का एक वर्ग भी तो देख रहा है कि रेलवे का निजीकरण हो रहा है, हवाई अड्डे बड़ी कंपनियों के हाथों में जा रहे हैं, कमाई देने वाली सरकारी कंपनियां बेची जा रही हैं। तो कंपनियों को एपीएमसी (APMC), एमएसपी (MSP), कांट्रैक्ट फॉर्मिंग आदि सबको लेकर मन में सवाल तो उठेंगे ही।'

कृषि कानूनों को लेकर विपक्षी पार्टियों और किसान संगठनों के विरोध और केंद्र सरकार की दलीलों के बीच देश के सबसे बड़े ग्रामीण मीडिया संस्थान गांव कनेक्शन के रूरल इनसाइट विंग ने देश के 16 राज्यों के 53 जिलों में 5,022 किसानों के बीच रैपिड सर्वे कराया। तीन अक्टूबर से 9 अक्टूबर 2020 के बीच हुए इस सर्वे में किसानों से कृषि कानूनों, मंडी, न्यूनतम समर्थन मूल्य, कृषि कानूनों के प्रभाव, किसानों की आशंकाओं, उनकी जोत, फसल उगाने से लेकर केंद्र सरकार और राज्यों सरकार के फैसलों से लेकर कृषि से आमदनी और भविष्य के फैसलों आदि को लेकर सवाल किए गए थे।

नए कानून लागू होने के बाद देश में ये इकलौता सर्वे था, जिसमें किसानों से उनकी राय पूछी गई थी। तीनों कानूनों के समर्थन की बात पर सर्वे में शामिल 52 फीसदी किसानों ने कहा 'नहीं', 35 फीसदी किसानों ने कहा 'हां' जबकि 13 फीसदी किसान न पक्ष में थे न विपक्ष में। विरोध करने वाले (52%) किसानों में से 36% को कृषि कानूनों की जानकारी नहीं थी। जबकि समर्थन करने वाले (35%) में 18% भी इन कानूनों से जागरूक नहीं थे।

गांव कनेक्शन के सर्वे में शामिल दो तिहाई (67 फीसदी) किसान तीनों नए कृषि कानूनों, (1) कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) बिल (2) कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक, 2020 और (3) आवश्यक वस्तु अधिनियम 2020 के बारे में जानकारी रखते हैं, इन्हें किसानों के प्रदर्शन के बारे में भी जानकारी थी। सर्वे से संबंधित विस्तृत रिपोर्ट The Rural Report-2: THE INDIAN FARMER'S PERCEPTION OF THE NEW AGRI LAWS गांव कनेक्शन की इनसाइट वेबसाइट www.ruraldata.in पर पढ़ सकते हैं।

ये भी पढ़ें- धान का सरकारी रेट 1888, किसान बेच रहे 1100-1200, क्योंकि अगली फसल बोनी है, कर्ज देना है

गांव कनेक्शन ने उत्तरदाताओं से कृषि कानूनों के विरोध और समर्थन दोनों की वजह भी पूछी। किसानों से सवाल किया गया कि अगर वो तीनों कृषि कानूनों के विरोध में हैं तो क्यों? इसके जवाब में बिल का विरोध करने वाले 52 फीसदी किसानों में से 57% फीसदी ने कहा कि क्योंकि इससे किसानों को खुले बाजार में कम कीमत पर अपनी उपज बेचनी पड़ेगी, जबकि 38 फीसदी ने विरोध की वजह बताई कि कृषि बिलों से किसानों की निजी कंपनियों पर निर्भरता बढ़ जाएगी। 36 फीसदी को डर है कि इससे खुले बाजार की वजह से सरकार एमएसपी पर कम खरीद करेगी जबकि 33 फीसदी किसानों को डर है कि नए कानूनों से एमएसपी व्यवस्था ही खत्म हो जाएगी। वहीं 32 फीसदी उत्तरदाताओं ने बिल का विरोध इसलिए किया उन्हें डर है कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग जैसे कानून से किसान अपने ही खेत में बंधुआ मजदूर बनकर रह जाएगा। 20 फीसदी किसान मानते हैं नए कानून से जमाखोरी और कालाबाजारी बढ़ेगी जबकि 15% किसानों ने ऊपर के सभी कारणों को विरोध की वजह बताई। वहीं 3 फीसदी को पता नहीं विरोध क्य़ों कर रहे, वहीं 01 फीसदी ने कारण (can't say) नहीं बताया।

गांव कनेक्शन के सर्वे के दौरान किसानों से पूछा गया कि नए कानूनों को देखते हुए आपको क्या लगता है कि मोदी सरकार किसान विरोधी है समर्थन या फिर उदासीन है। यहां पर किसानों को 4 विकल्प दिए गए थे। जवाब में 44 फीसदी किसानों ने कहा कि सरकार किसान समर्थक है, 28 फीसदी ने किसान विरोधी है, 20 ने कहा पता नहीं जबकि 9 फीसदी ने कहा कि वो कुछ कह नहीं सकते हैं।


सवाल- कृषि बिलों को देखते हुए आपको क्या लगता है मोदी सरकार किसान विरोधी है, समर्थक या फिर उदासीन है?

44% समर्थक

28% विरोधी

20% पता नहीं

09% कह नहीं सकते

सर्वे के ये आंकड़े बताते हैं कि किसानों के एक वर्ग का केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर भरोसा है, लेकिन जब बात कंपनियों की आती है किसानों के उत्तर भी बदले हुए मिलते हैं। पक्षधर की बात करें तो किसानों को राज्य सरकारों पर केंद्र सरकार की तुलना में ज्यादा भरोसा दिखता है।

सर्वे में शामिल सभी किसानों से जब पूछा गया कि नए कानूनों को देखते हुए आप को क्या लगता है कि राज्य सरकार किसकी समर्थक है, जो सबसे ज्यादा 37 फीसदी लोगों ने कहा कि उनकी राज्य सरकार किसानों की समर्थक है। जबकि 38 फीसदी (मिलाकर) ने अपनी सरकारों को प्राइवेट कंपनियों, आढ़तियों, बिचौलियों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों की समर्थक बताया। 11 फीसदी अन्य की समर्थक बताया।

सवाल- नए कानूनों को देखते हुए आपको क्या लगता है आपकी राज्य सरकार किसकी समर्थक है?


भारत में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 84 फीसदी किसान लघु और सीमांत हैं। गांव कनेक्शन ने सर्वे के दौरान छोटे और बड़े सभी तरह के किसानों को शामिल किया। सर्वे में तीन चौथाई यानि ( 72 फीसदी) किसानों के पास 5 एकड़ से कम जमीन थी, जबकि 28 फीसदी के पास पांच एकड़ से ज्यादा जमीन थी। सर्वे में शामिल ज्यादातर किसान चावल (66फीसदी) की खेती करते हैं जबकि उसके बाद गेहूं (46 फीसदी), ज्वार-बाजरा (23 फीसदी) 17 फीसदी दालें, 11 फीसदी सब्जियां, बाकी कपास, गन्ना,तिलहन, सब्जियां, जूट आदि उगाने वाले किसान थे। सर्वे में शामिल किसानों की आर्थिक स्थिति की बात करें तो 47 फीसदी किसान बीपीएल (गरीबी रेखा से नीचे) वाले जबकि 42 फीसदी एपीएल (गरीबी रेखा से ऊपर) से संबंध रखते थे। सर्वे में शामिल 85 फीसदी किसानों ने कहा कि कृषि उनकी आय का प्रमुख जरिया है।

अगर क्षेत्र के हिसाब से देंखे तो उत्तर पश्चिम क्षेत्र ( पंजाब हरियाणा हिमाचल प्रदेश) में 76 फीसदी किसानों ने लगता है नए कानूनों से बड़ी कंपनियों आदि को बढ़ावा मिलेगा तो पश्चिमी क्षेत्र (महाराष्ट्र-गुजरात) में 58 फीसदी ऐसा मानते हैं। दक्षिण (केरल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश) में महज 32 फीसदी को लगता है कि कंपनियों को बढ़ावा मिलेगा, यहां गौर करने वाली बात ये कि कुछ न कह सकने की स्थिति वाले किसानों का प्रतिशत 58 है। तो उत्तरी क्षेत्र (यूपी बिहार, उत्तराखंड) में 34 फीसदी को लगता है कि बड़ी कंपनियों को बढ़ावा मिलेगा।

गांव कनेक्शन ने सर्वे पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, असम, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, केरल, तेलंगाना और आंध्रप्रदेश में किया।

नए कानूनों (सुधारों) के जरिए सरकार का दावा है कि किसानों की आमदनी तेजी से बढ़ेगी। एनडीए सरकार 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने की बात लगातार करती कही है।

36 फीसदी किसान मानते हैं कि नए कृषि कानूनों से देश की कृषि व्यवस्था में सुधार आएगा तो सिर्फ 29 फीसदी को लगता है नए कानूनों के सहारे 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी हो पाएगी।


मोहित रांगी कहते हैं, "एक बात मैं और जोड़ना चाहूंगा, कृषि कानूनों को अभी काफी शोध की जरुरत ताकि धरातल पर इन सुधारों का सही विश्लेषण किया जा सके क्योंकि सरकार ने इन कानूनों को लागू करने से पहले राज्य सरकारों और किसान हितैषी संस्थाओं/ यूनियन से संवाद नहीं किया।"

पंजाब विधानसभा में नए बिलों, किसानों के विरोध के बीच धान की खरीद में कई राज्यों से आ रही शिकायतों और प्याज की आसमान छूती कीमतों को देखते हुए किसान संगठन और विपक्ष कृषि कानूनों पर सवाल उठा रहे हैं।

देविंदर शर्मा कहते हैं, "आंकड़ों से इतर देखिए तो किसानों के लिए ये वक्त (तीन कानूनों के बाद) बहुत बड़ा अवसर है। अब देश को भी समझना है और किसानों को भी, उन्हें राजनीति की टोपी को उतारकर किसान बनकर सोचना है। पंजाब के किसानों राजनीति को बदल कर रख दिया है। पंजाब के किसानों ने नेताओं को मजबूर कर दिया कि वो किसानों के समर्थन वाले बिल लाएं। पंजाब में जो हुआ उसका किसानों को कितना लाभ मिलने वाला है ये नहीं कहा जा सकता लेकिन जो बहस पूरी देश में छिड़ गई है वो किसानों के लिए कुछ बदलाव लेकर जरुर आएगी।"

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