गांव कनेक्शन सर्वे: जानिए कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कानून के पक्ष के पक्ष या विपक्ष में हैं आम किसान?

देश में हाल में लागू हुए तीनों कृषि कानूनों में से एक कानून कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग यानी अनुबंध खेती पर भी आधारित है। देश के सबसे बड़े ग्रामीण मीडिया संस्थान गांव कनेक्शन ने कई राज्यों में किसानों के बीच सर्वे कराया। द इंडियन फार्मर परसेप्शन ऑफ न्यू एग्री बिल्स की रिपोर्ट, बता रही है कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के कानून पर देश के आम किसानों की राय।

Kushal MishraKushal Mishra   19 Oct 2020 2:27 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
गांव कनेक्शन सर्वे: जानिए कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कानून के पक्ष के पक्ष या विपक्ष में हैं आम किसान?

सरकार कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग यानी अनुबंध खेती के कानून को देश के किसानों की किस्मत बदलने वाला बता रही है, जबकि विपक्ष और किसान संगठनों का कहना है कि इस कृषि कानून से खेती पर अडानी-अंबानी जैसे कॉरपोरेट हावी हो जाएंगे, सरकार की दलीलों और विपक्ष के दावों के बीच क्या कहते हैं देश के आम किसान?

कृषि कानूनों को लेकर सरकार की दलीलों और किसान संगठनों के विरोध के बीच देश के सबसे बड़े ग्रामीण मीडिया संस्थान गाँव कनेक्शन ने 16 राज्यों के 5,022 किसानों से बातचीत कर रैपिड सर्वे कराया। इस सर्वे में सामने आया कि सिर्फ 49 फीसदी यानी 2,460 किसानों को कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को लेकर जानकारी थी। इन किसानों ने कहा कि उन्हें कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक, 2020 के बारे में जानकारी है, जो संविदा पर खेती की बात करता है।

सर्वे में यह भी सामने आया कि इन 49 फीसदी (2,460) किसानों में से 46 फीसदी किसान कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग पर आए नए कानून के पक्ष में हैं, जबकि 40 फीसदी किसानों ने कहा कि ये बिल किसान विरोधी है। जबकि 3 प्रतिशत ऐसे भी किसान थे, जो न पक्ष में थे, न विपक्ष में। वहीं 11 प्रतिशत किसानों ने कहा कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के नए कानून पर अभी कोई भी टिप्पणी करना जल्दबाजी होगी।

कृषि कानूनों को लेकर गाँव कनेक्शन के रूरल इनसाइट विंग का यह ख़ास रैपिड सर्वे 16 राज्यों में किसानों से आमने-सामने बातचीत कर 3 से 9 अक्टूबर के बीच पूरा हुआ। गांव कनेक्शन ने सर्वे के दौरान छोटे और बड़े सभी तरह के किसानों को शामिल किया। इस सर्वे में 72 फीसदी लघु और सीमांत किसान शामिल रहे, जबकि 28 फीसदी मध्यम और बड़े किसान रहे। वहीं सर्वे में शामिल 85 फीसदी किसानों के लिए कृषि उनकी आय का प्रमुख जरिया है। रैपिड सर्वे में मार्जिंन ऑफ एरर 5 फीसदी है।

पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, केरल, असम, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, बिहार और उत्तराखंड के 53 जिलों में गेहूं, धान, मक्का, फल-सब्जियां, औषधीय पौधों की खेती से लेकर कपाई और राई तक खेती करने वाले किसानों के बीच ये सर्वे किया गया। सर्वे से संबंधित विस्तृत रिपोर्ट The Rural Report-2: THE INDIAN FARMER'S PERCEPTION OF THE NEW AGRI BILLS गांव कनेक्शन की इनसाइट वेबसाइट www.ruraldata.in पर पढ़ सकते हैं।

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग यानी किसी कंपनी और किसानों के बीच लिखित करार, कंपनी खाद-बीज से लेकर तकनीक तक, सब कुछ किसान के लिए उपलब्ध कराती है, अपना पैसा लगाती है और किसान अपने खेत में कंपनी के लिए फसल उगाता है। अंत में जब उपज तैयार होती है तो किसान कॉन्ट्रैक्ट में पहले से तय कीमत पर कंपनी को अपनी उपज बेच देता है। सरकार के मुताबिक नया कानून किसानों को बुआई से पहले बिक्री की गारंटी देता है।

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग देश के किसानों के लिए कोई नया शब्द नहीं है। कानून बनने से पहले भी महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा समेत दक्षिण राज्यों के कई छोटे-बड़े किसान कंपनियों के साथ कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग करते आये हैं। समझौता खेती को लेकर किसानों के खट्टे मीठे अपने-अपने अनुभव हैं।

यह भी पढ़ें : देश का हर दूसरा किसान कृषि कानूनों के विरोध में, 59 फीसदी किसान चाहते हैं एमएसपी पर बने कानून: गांव कनेक्शन सर्वे

एलोवेरा की खेती के लिए इस कॉन्ट्रैक्ट में शामिल रहे यूपी में बाराबंकी जिले के बेलहरा गाँव के किसान कैलाश 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "हमारे जैसे 65 किसानों ने एलोवेरा की खेती कॉन्ट्रैक्ट पर की थी, मगर बारिश की वजह से जब पैदावार में कमी आई तो कंपनी वाले उपज लेने के समय गायब हो गए।"

"कई किसानों ने सेंटर में जाकर दौड़-भाग की तो कंपनी ने थोड़ी बहुत उपज किसानों से ली और कीमत भी वैसी किसानों को नहीं मिली, जब किसानों का नुकसान हुआ तो अनुबंध छोड़ दिया, छह साल पहले हल्दी की अनुबंध खेती में भी किसानों को नुकसान हुआ था," कैलाश बताते हैं।

गाँव कनेक्शन सर्वे में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग पर नए कानून के सवाल को लेकर यह भी सामने आया कि देश के पूर्वी राज्यों (पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़) में 66 फीसदी किसान सरकार का समर्थन करते नजर आये, जबकि उत्तर पश्चिम राज्यों (पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश) 57 फीसदी किसान कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग पर नए कानून के पक्ष में नहीं हैं।

सर्वे में ख़ास बात यह भी निकल कर सामने आई कि देश के 51 फीसदी लघु और सीमान्त किसान कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग पर सरकार के नए कानून के पक्ष में खड़े नजर आये, जबकि पांच एकड़ से अधिक जमीन पर खेती करने वाले 37 फीसदी मध्यम और बड़े किसान कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग पर सरकार के नए कानून के पक्ष में नहीं हैं।

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के नए कानून के बारे में जानकारी रखने वाले 2,460 किसानों में से आधे से ज्यादा छोटे और सीमांत किसान इस कानून के पक्ष में हैं।

गुजरात के भरूच जिले के कविथा गांव के रहने वाले जैमिन पटेल पिछले सात सालों से एक दर्जन से अधिक फल और सब्जियों की जैविक खेती करते आ रहे हैं। कई राज्यों से किसान जैमिन से खेती के बारे में सलाह लेने भी आते हैं।

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग पर नए कानून को लेकर जैमिन 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, हमारे राज्य में भी पहले से कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग होती आई है और किसानों के यह अनुभव रहे हैं कि फसल की गुणवत्ता कम होने पर कंपनी से उन्हें नुकसान उठाना पड़ा है, तो कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग भले ही बेहतर हो, मगर किसी कंपनी के साथ करार से पहले किसानों को फसल की गुणवत्ता और ग्रेडिंग के बारे में सीखाना चाहिए, क्योंकि जानकारी के आभाव में किसानों का नुकसान होना तय है, जैसा पहले भी होता आया है।"

वहीं गुजरात से इतर आदिवासी बाहुल्य राज्य छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में राजा राम त्रिपाठी किसानों का एक समूह बनाकर कई सौ एकड़ में करीब 700 किसानों के साथ वनोषधियों (जड़ी बूटी, मसाले) की खेती कर रहे हैं। मगर देश में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को लेकर बने नए कानून का वह समर्थन नहीं करते।

राजा राम त्रिपाठी 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "इस कानून में कई विसंगतियां हैं, सरकार कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की बात कर रही है तो जो बड़ी कंपनियां आएँगी वे खेती का उद्धार करने तो नहीं आएँगी, वो तो लाभ कमाने आये हैं।"

हाल में कृषि बिलों के खिलाफ देश भर में किसान संगठनों ने प्रदर्शन किये। किसान संगठनों का कहना है कि इन कानूनों से कृषि क्षेत्र में बड़ी कंपनियों के आने से सबसे ज्यादा मार लघु और सीमान्त किसानों पर पड़ेगी, मगर सिर्फ कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के कानून की बात करें तो पांच एकड़ से कम कृषि भूमि पर खेती करने वाले 51 फीसदी से ज्यादा किसान कानून के पक्ष में नजर आये।

मध्य प्रदेश में किसान कांग्रेस के कार्यवाहक अध्यक्ष केदार सिरोही 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, एक अच्छा और एक बुरा, कोई चीज बुरी नहीं है, मगर जो छोटे जोत के किसान हैं, उनके लिए शंकाएं गहरी हैं कि कोई टाई वाला उनके पास आकर उनकी हिस्सेदारी ले जाएगा।"

Read in English - Highest opposition to the new agri laws among northwest region farmers; greatest support in the west region: Gaon Connection Rural Survey

"किसानों की कई समस्याएँ हैं, अब अगर कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में किसान की थोड़ी सी फसल में गुणवत्ता कम होती है तो कितना मूल्य कम होगा, यह किसान को पता नहीं। पेप्सिको के मामले में देखें तो अगर किसान अपनी उपज ले देकर दूसरी जगह बेच देते हैं तो कानूनी पेंच फसेंगे जो किसानों की मुश्किलें बढ़ाएंगे, क्वालिटी के नाम पर कंपनियां का फायदा उठाएंगी और किसान को पैसा नहीं मिलेगा, कोई मोनिटरिंग करने वाला नहीं," केदार सिरोही बताते हैं।

किसान संगठनों का ये भी तर्क है कि इससे कॉरपोरेट कंपनियां और पैसे वाले किसान के खेत पर हावी हो जाएंगे, किसान खेत में मजदूर बनकर रह जाएंगे। लेकिन सरकार इन तर्कों को नकारती है। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि इस बिल में सिर्फ किसान की फसल का समझौता होगा, खेत का नहीं, किसान जब चाहें कांट्रैक्ट तोड़ सकते हैं लेकिन कंपनी या प्रोसेसर नहीं।

केन्द्रीय कृषि मंत्री ने यह भी कहा कि अभी तक कोई कानून नहीं था तो गांव में कंपनियां काम करने में कतराती थीं अब ऐसा नहीं होगा। नए कानून से ग्रामीण एरिया में निवेश बढ़ेगा, किसानों को गेहूं-धान की बजाए नगदी फसल के ज्यादा मौके मिलेंगे।

कृषि उद्ममों से जुड़ी कंपनियों भी कहती हैं नए कानून से अच्छा काम करने वाले, गुणवत्ता युक्त उत्पादन करने वाले किसानों को फायदा होगा। बिहार, यूपी, झारखंड और ओडिशा के 3 तीन लाख 30 हजार किसानों के साथ काम रही कंपनी देहात किसानों को बीज खाद, तकनीकी और उपज खरीदने का काम करती है यानी एक तरह की समझौता खेती है।

देहात के संस्थापक श्याद सुंदर सिंह कहते हैं, "हमारी कंपनी से जुड़े किसानों को खेती की जानकारी मिलने और बिना मंडी गए खरीदारों तक पहुंचाने से हर किसान को 20-30 फीसदी ज्यादा आमदनी हो रही है। दूसरी बात एक रिफार्म अपने आप में एक एंड गेम नहीं है, वो एक शुरुआत है। एक एग्री टेक कंपनी के रूप में हम इसका स्वागत करते हैं। कृषि कानूनों के रूप एक शुरुआत हुई है, जिसमें जो गैप (खामियां) हैं उन्हें आगे दूर किया जा सकता है।"

कृषि बिलों को लेकर गाँव कनेक्शन ने अपने सर्वे में देश के किसानों से कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से जुड़े कानून की जानकारी होने पर भी सवाल किये। इस पर 49 फीसदी (2,460) किसानों को हाल में पारित अनुबंध खेती के कानून की जानकारी थी, जबकि 26 फीसदी (1,310) किसान इस नए कानून के बारे में नहीं जानते थे, जबकि 25 फीसदी (1,252) किसान कुछ भी कह नहीं सके।

गाँव कनेक्शन सर्वे में सामने आया कि 49 फीसदी किसान कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के नए कानून के बारे में जानकारी रखते हैं।

इसमें यह भी सामने आया कि पश्चिमी राज्यों (गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश) के 75 प्रतिशत किसान कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग पर नए कानून के बारे में जानते थे, जबकि सबसे कम दक्षिण राज्यों (केरल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश) के 39 प्रतिशत किसानों को ही कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के नए कानून के बारे में जानकारी थी।

इस बारे में उत्तर प्रदेश में केन्द्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (सीमैप) के प्रधान वैज्ञानिक और करीब 15 सालों से किसानों के साथ अनुबंध खेती पर काम कर रहे डॉ. संजय कुमार 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को लेकर हमारे देश में बहुत ज्यादा काम नहीं हुआ है, बिल की कमियों को सुधार जा सकता है, बड़ी बात यह है कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में जब तक किसानों और कॉर्पोरेट के बीच विश्वास नहीं होगा, तब तक यह सफल नहीं हो सकता।"

"बेहतर यह होता कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में किसी स्थानीय सरकारी संस्था का साथ भी मिलता, जो किसान और कॉर्पोरेट दोनों के साथ हो, इससे फायदा यह होता है कि दोनों तरफ विश्वास पैदा होता है, तो दोनों पहलू हैं, एक तो किसान की उपज कंपनी उठाती है और सीधा पैसा किसान के खाते में चला जाता है, दूसरा बड़ी कंपनियां तो नहीं, मगर जो बिचौलिया और छोटी कंपनियां होती हैं, वो कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को काफी बदनाम कर रहे हैं, तो स्थानीय स्तर पर नियंत्रण के लिए इस पर व्यवस्था होनी चाहिए, कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग बहुत अच्छा अनुभव रहा है, मगर मॉनिटरिंग बॉडी जरूरी है," डॉ. संजय कुमार बताते हैं।

46 फीसदी किसान यह मानते हैं कि तीनों कृषि कानून से किसानों का शोषण करने वाली कंपनियों/निजी कंपनियों को बढ़ावा मिलेगा।

अपनी तरह के पहले सर्वे में शामिल 52 फीसदी किसान ने तीनों कृषि कानूनों का विरोध किया तो वहीं 35 प्रतिशत किसान इन केंद्रीय कानूनों को अपना समर्थन भी दिया। विरोध करने वाले (52%) किसानों में से 36 को कृषि कानूनों की जानकारी नहीं थी। जबकि समर्थन करने वाले (18%) भी इन कानूनों से जागरूक नहीं थे।

सर्वे से जुड़े मुख्य तथ्य

52% किसानों ने कहा कि वो कृषि कानूनों का विरोध करते हैं, लेकिन विरोध करने वाले किसानों में 36 %किसानों को कृषि बिलों की जानकारी नहीं थी

35% किसानों ने नए कृषि बिलों का समर्थन किया, लेकिन इनमें से 18% नए बिलों को लेकर जागरुक नहीं थे।

66% किसान नहीं चाहते कि उनका बच्चा भी किसान बने।

49% किसानों को एफपीओ (किसान उत्पादक संगठन) के बारे में कोई जानकारी नहीं।

51% किसानों ने कहा खेती फायदेमंद है।

25% किसानों ने कहा- तीनों कृषि कानून मोदी सरकार का सबसे बड़ा किसान विरोधी कदम।

25% किसानों ने कहा- देश में कर्ज़माफी न करना मोदी सरकार का सबसे बड़ा किसान विरोधी कदम।

32% किसानों की राय पीएम किसान निधि (साल के 6000 रुपए) को मोदी सरकार का सबसे बड़ा किसान हितैषी फैसला।

44% किसानों ने कृषि कानूनों के लागू करने के फैसले पर कहा कि मोदी सरकार किसान हितैषी है।

35% किसानों ने कृषि कानूनों को देखते हुए मोदी सरकार को किसान समर्थक बताया।

44% किसानों ने कहा मोदी सरकार बड़ी कंपनियों, एमएनसी, निजी व्यापारियों और व्यापारियों की समर्थक है।

46% किसानों ने कहा, कृषि बिलों से किसानों का शोषण करने वाली कंपनियों/निजी कंपनियों को बढ़ावा मिलेगा।

यह भी पढ़ें :

यूपी : धान का सरकारी रेट 1888, किसान बेच रहे 1100-1200, क्योंकि अगली फसल बोनी है, कर्ज देना है


    

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.