‘आम लोगों ने ऐसे बनाया भारत का ग्रामीण अखबार’ 

Divendra SinghDivendra Singh   3 Dec 2017 10:32 AM GMT

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‘आम लोगों ने ऐसे बनाया भारत का ग्रामीण अखबार’ याामिनी त्रिवाठी

अब उनका ज्यादातर वक्त ग्रामीण महिलाओं के बीच गुजरता है। वो सताई गई लड़कियों के लिए पुलिस से लेकर महिला कल्याण विभाग तक चक्कर लगाती हैं। वो शर्म और संकोच के विषय माने जाने वाले माहवारी जैसे मुद्दे पर यूपी के दर्जनों जिलों में सैकड़ों जनजागरुकता अभियान चलाती हैं।

वो मुंबई में अच्छी सैलरी पर लाइम लाइट में रहने वाली जॉब कर रही थीं, बॉलीवुड स्टार क्रिकेटरों के बीच उठना बैठना था। हवाई जहाज के बिजनेस क्लास में सफर करती थीं, लेकिन एक दिन उन्होंने अपना बैग उठाया और सेलेब्रेटी मैनेजमेंट की जॉब छोड़ लखनऊ लौट आईं।

अब उनका ज्यादातर वक्त ग्रामीण महिलाओं के बीच गुजरता है। वो सताई गई लड़कियों के लिए पुलिस से लेकर महिला कल्याण विभाग तक चक्कर लगाती हैं। वो शर्म और संकोच के विषय माने जाने वाले माहवारी जैसे मुद्दे पर यूपी के दर्जनों जिलों में सैकड़ों जनजागरुकता अभियान चलाती हैं। उनकी बदौलत सैकड़ों महिलाएं और छात्राएं नागरिक पत्रकार बनकर अपने गांव की आवाज़ उठा रही हैं। अब वो मैडम यामिनी त्रिपाठी से यामिनी दीदी हो गईं, ज्यादातर महिलाएं उन्हें इसी नाम से पुकारती हैं।

ग्रामीण महिलाओं के साथ यामित्री त्रिपाठी।

अपने अनुभव को साझा करते हुए गाँव कनेक्शन फाउंडेशन की ट्रस्टी यामिनी त्रिपाठी बताती हैं, “मैंने मुंबई में एक फुल टाइम नौकरी छोड़कर गाँव कनेक्शन में काम करना शुरू किया। मुझे बस इतना यक़ीन था कि यह अख़बार गाँव के लोगों की ज़िंदगियां बदल सकता है। मैंने गाँव कनेक्शन से ही गाँव देखा। सिर्फ एक सोच को एक अख़बार की शक्ल लेते हुए, कि आज हमने गाँव कनेक्शन को पांच वर्ष के सफर को पूरा होते देखा है।

अखबार और पत्रकारिता से नहीं था कोई नाता

अख़बार और पत्रकारिता के क्षेत्र से मेरा कोई लेना देना नहीं रहा। इसलिए निश्चित उदाहरण नहीं थे, कि कैसे अखबार के साथ लोगों तक पहुंचना है। शायद यही कारण था कि पारंपरिक तरीकों से अलग इसके लिए नए मॉडल खोजते रहे। जब हमें पता चला कि यह अखबार स्कूल में बच्चों को बेचा या बांटा नहीं जाता, बल्कि क्लास में पहले, दूसरे और तीसरे स्थन पर आने वालों को सालाना सब्सक्रिप्शन पुरस्कार दिया जाता है। जो हमें और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। हमारा अखबार संग्रहणीय है, यह जानकार बहुत खुशी होती है।

ग्रामीण इलाकों के स्कूली बच्चों के साथ यामिनी त्रिपाठी।

साथ ही, आज भी अखबार का प्रसार विभाग काफी कुछ पुरुष प्रधान माना जाता है, मेरे लिए और मेरी टीम की एक महिला सहयोगी सौम्या टंडन के लिए इस क्षेत्र में काम करना काफी चुनौती भरा था। हमें स्वीकारने में लोगों को बहुत समय लगा, पर शायद यही खासियत थी कि सभी का इतना प्यार मिला कि आज हम इस मुकाम पर हैं।

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गाँव कनेक्शन फाउंडेशन के जरिए उत्तर प्रदेश के सोनभद्र से मेरठ और ललितपुर से सिद्धार्थनगर तक 41 ज़िलों में लाखों महिलाओं, किसानों व बच्चों से जुड़कर उन्हें आत्म निर्भर बनाया, जिससे आगे चलकर वही लोग अपने समाज के लोगों की आवाज़ बन पाए। इससे हम लोगों ने समाज में एक नया बदलाव देखा।

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स्वयं फेस्टिवल के जरिए हम प्रदेश के सात लाख लोगों ने जुड़ पाए, जिसमें हमने किसानों के लिए किसान गोष्ठी, छात्र-छात्राओं के लिए कैरियर काउंसलिंग व आरटीआई जैसे सेशन चलाया जिससे उन्हें नई जानकारियां मिली। ग्रामीण महिलाओं के लिए माहवारी जैसे बातें जिनपर कोई बात नहीं करना चाहता उस पर भी खुलकर चर्चा की। किशोरियों के आत्मरक्षा के लिए ट्रेनिंग और साथ ही लड़कों को इन सब बातों के लिए जागरूक किया गया।

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मुझे इस बात की खुशी है कि हमारे नेतृत्व में कई जैसी लड़कियां उभरकर आईं, ये लड़कियां समाज की बंदिशों को तोड़कर न केवल खुद की अलग पहचान बनायी बल्कि दूसरों के लिए प्रेरणा बन रहीं हैं। इन लड़कियों को हमने पत्रकारिता का प्रशिक्षण देकर उन्हें मुखर बनाया।

गाँव कनेक्शन एक परिवार है जिसे हम सभी ने इतने प्यार से यहां तक पहुंचाया है। हमारा प्रयास रहेगा कि गाँव कनेक्शन अखबार को ज्यादा से ज्यादा लोकल भाषाओं में छाप सकें और दूसरे राज्यों तक पहुंचा पाएं। आप सभी के सहयोग से ऐसे ही हम आगे बढ़ते रहेंगे। इस कनेक्शन को ऐसे ही मजबूत बनाए रखना है, गाँव कनेक्शन की इस यात्रा में सहभागी बनने के लिए आप सभी को शुक्रिया।

वीडियो- देश के पहले ग्रामीण फेस्टिवल की झलकियां

      

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