50% ग्रामीण भारतीयों ने जताया भारतीय वैक्सीन पर भरोसा, लगभग आधे ग्रामीणों ने कहा- मुफ्त कोरोना वैक्सीन दिलाने वाली पार्टी को देंगे वोट: गाँव कनेक्शन सर्वे

Nidhi JamwalNidhi Jamwal   26 Dec 2020 6:06 PM GMT

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कोरोना महामारी के बीच गांव कनेक्शन ने देश के 16 राज्यों में सर्वे कराया है जिसमें कोरोना, जांच, covid 19 और वैक्सीन को लेकर चौंकाने वाले आंकडे सामने आए हैंकोविड 19 (कोरोना) को लेकर गांव कनेक्शन के सर्वे में कई रोचक तथ्य निकलकर आएं हैं.. covid

भारत के सबसे बड़े ग्रामीण मीडिया प्लेटफॉर्म गाँव कनेक्शन द्वारा कराए गए एक राष्ट्रीय सर्वे के अनुसार लगभग 50 फीसदी ग्रामीण भारतीयों ने कहा है कि वे किसी विदेशी कंपनी के बजाए भारतीय कंपनी द्वारा उपलब्ध कराए गए कोविड-19 वैक्सीन पर भरोसा दिखाएंगे। इसी तरह आधे से थोड़े कम ग्रामीण भारतीयों ने कहा है कि वे उस राजनीतिक दल को वोट देंगे जो उन्हें मुफ्त कोरोना वैक्सीन उपलब्ध कराने का वादा करेगा।

सर्वे के अन्य निष्कर्षों के अनुसार लगभग 15 फीसदी परिवारों ने अपने घर या दोस्तों के बीच कम से कम किसी एक व्यक्ति के कोविड-19 पॉजिटिव होने की बात स्वीकार की है। ग्रामीण लोगों का कहना है कि वे आजकल इम्यूनिटी बढ़ाने वाले उत्पादों, सब्जियों और फलों पर अधिक पैसा खर्च कर रहे हैं। वहीं इनमें से ज्यादातर लोग मांसाहारी भोजन और बाहर का खाना खाने से परहेज कर रहे हैं।

सर्वे के मुताबिक कम से कम 51 फीसदी उत्तरदाताओं का मानना है कि कोरोना वायरस संकट चीन का षड्यंत्र है। वहीं इनमें से 22 प्रतिशत लोगों ने इस संकट के लिए आम नागरिकों की लापरवाही और असावधानी को जिम्मेदार ठहराया है। हालांकि 18 फीसदी ग्रामीण कोरोना के प्रसार को सरकार की विफलता के तौर पर देखते हैं।

अंग्रेजी में ये रिपोर्ट यहां पढ़ें- 50% rural Indians trust coronavirus vaccine made by an Indian company over a foreign company; nearly half will vote for any party that offers the vaccine free: Gaon Connection Survey


ये निष्कर्ष 'कोरोना वैक्सीन और ग्रामीण भारत' विषय पर किए गए एक सर्वे में सामने आए हैं। इस विषय पर आयोजित यह अपने तरह का पहला सर्वे है, जिसे भारत के सबसे बड़े ग्रामीण मीडिया प्लेटफ़ॉर्म 'गाँव कनेक्शन' ने लोगों के बीच जाकर किया है। "दी रूरल रिपोर्ट 3 : कोविड-19 वैक्सीन एंड रूरल इंडिया" विषय पर किया गया यह सर्वे मुफ्त में उपलब्ध है, जिसे वेबसाइट www.ruraldata.in से डाउनलोड किया जा सकता है।

एक दिसंबर से 10 दिसंबर के बीच किए गए इस सर्वे में देश के 16 राज्यों और एक केंद्रशासित प्रदेश के 60 जिलों को शामिल किया गया, जिसमें 6040 से अधिक ग्रामीण उत्तरदाताओं ने भाग लिया। इन राज्यों का चयन केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के कोविड-19 से संबंधित आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए किया गया, जिसमें पूर्व से लेकर पश्चिम और उत्तर से लेकर दक्षिण तक कोरोना से सबसे कम प्रभावित से लेकर कोरोना से सबसे अधिक प्रभावित राज्य शामिल हैं।

गाँव कनेक्शन के इस सर्वे में, देश के उत्तरी राज्यों के अंतर्गत उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, जम्मू और कश्मीर और हरियाणा को शामिल किया गया है। वहीं दक्षिणी राज्यों में केरल, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक शामिल है। पश्चिमी राज्यों में महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश व पूर्वी व उत्तर-पूर्वी राज्यों के अंतर्गत ओडिशा, असम, पश्चिम बंगाल और अरुणाचल प्रदेश को शामिल किया गया है।

लगभग 47 प्रतिशत ग्रामीण भारतीयों ने कहा है कि वे उस राजनीतिक दल को वोट देंगे जो उन्हें मुफ्त कोरोना वैक्सीन उपलब्ध कराएगा या कराने का वादा करेगा। हालांकि 27 प्रतिशत लोगों का विचार इसके उलट है। इनका कहना है कि मुफ्त वैक्सीन का इस बात पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा कि अगले चुनाव में वे किस पार्टी को अपना समर्थन देंगे।

ये भी पढ़ें- कोरोना से बचने के लिए लोगों ने जमकर खाया च्वनप्राश, गिलोय, खूब पिया काढ़ा, 49 फीसदी ने इम्युनिटी बूस्टर पर खर्च किए ज्यादा पैसे


वैक्सीन और मतदान के इतर, लगभग आधे ग्रामीण नागरिकों (50.5%) ने कहा कि वे किसी भारतीय कंपनी द्वारा उपलब्ध कराए गए कोविड-19 वैक्सीन पर अधिक भरोसा करते हैं। 16 फीसदी लोगों का कहना है कि वे इसके लिए किसी विदेशी कंपनी द्वारा बनाए गए वैक्सीन पर भी भरोसा कर लेंगे। वहीं 29 फीसदी लोगों का कहना है कि वे ऐसे किसी भी वैक्सीन पर भरोसा करते हैं जिसे भारत सरकार ने अनुशंसित किया हो।

कुल 6040 उत्तरदाताओं में प्रत्येक चार में से एक व्यक्ति ने कहा कि उनके घर में कम से कम एक सदस्य ने कोविड-19 का परीक्षण करवाया है। सर्वे के मुताबिक ऐसे घरों का अनुपात पूर्वी और उत्तर-पूर्वी राज्यों में सबसे अधिक (42.6%) जबकि उत्तरी राज्यों (10.9%) में सबसे कम है।

रिपोर्ट के अनुसार 25.9 प्रतिशत परिवारों ने अपने परिवार के सदस्यों का कोविड -19 परीक्षण करवाया, जिनमें से आधे से अधिक, यानी 59 प्रतिशत परिवारों ने अपने घर में कम से कम एक व्यक्ति के कोरोनो संक्रमित होने की बात कही। कुल मिलाकर 6,040 उत्तरदाता परिवारों में से 15 प्रतिशत ने अपने घर अथवा दोस्तों में कम से कम एक व्यक्ति के कोविड-19 पॉजिटिव होने की बात स्वीकार की है।

कोरोना वायरस के लिए परीक्षण किए गए ग्रामीण लोगों में यह पाया गया कि दक्षिणी राज्यों में प्रत्येक चार घरों में से तीन (75.9%) संक्रमित हैं, जो कि देश में सर्वाधिक है। इसके विपरीत, यह उत्तरी राज्यों में सबसे कम था जहां केवल 12 प्रतिशत ग्रामीण परिवार ही पॉजिटिव पाए गए।

सर्वे के दौरान आधे से भी कम (44 फीसदी) परिवारों ने कहा कि वे वैक्सीन के लिए भुगतान करने को तैयार हैं। हालांकि इनमें से 36 फीसदी ने कहा कि वे इसके लिए भुगतान करने को तैयार नहीं हैं। उत्तरी राज्यों में सर्वाधिक 51 फीसदी लोगों ने कहा कि वे वैक्सीन के लिए भुगतान करेंगे। इसी तरह पूर्वी व उत्तर-पूर्वी राज्यों में 47 फीसदी, पश्चिमी राज्यों में 37 फीसदी और दक्षिणी राज्यों में 33 फीसदी लोगों ने कोरोना वैक्सीन के लिए भुगतान करने में अपनी सहमति व्यक्त की।

ये भी पढ़ें- कितने फीसदी लोगों को आज भी लगता है कि कोरोना महज सर्दी जुकाम है? जानिए क्या कहता है ये सर्वे


जो लोग वैक्सीन के लिए भुगतान करने को तैयार थे, उनमें से दो-तिहाई उत्तरदाताओं ने कहा कि वे कोविड-19 वैक्सीन की दो खुराक के लिए 500 रुपए से कम का भुगतान करना चाहते हैं, इसके अलावा एक-चौथाई ने कहा कि वे इसकी दो खुराक के लिए 500 रुपये से 1000 रुपये के बीच भुगतान करने को तैयार हैं।

दिलचस्प बात यह है कि इस महामारी ने सरकारी अस्पतालों के महत्व को दर्शाया है। गाँव कनेक्शन ने अपने सर्वे में यह पाया कि लगभग दो-तिहाई (66.5%) उत्तरदाता अपने इलाज के लिए सरकारी अस्पतालों में गए, वहीं केवल 11 प्रतिशत ने ही इसके लिए निजी अस्पतालों की ओर रुख किया।

इसके साथ ही सर्वे में यह भी पाया गया कि आधे उत्तरदाताओं ने कोरोना काल में च्यवनप्राश, गिलोय, काढ़ा और विटामिन की गोलियां जैसे इम्युनिटी बूस्टिंग उत्पादों को खरीदने और उपभोग करने में अधिक पैसा खर्च किया है।

कोविड-19 ने ग्रामीण नागरिकों के भोजन की आदतों को बदल दिया है। लगभग 70 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि उन्होंने बाहर का खाना खाना बंद कर दिया है। 33 प्रतिशत से अधिक ने कहा कि उन्होंने अधिक सब्जियां खाना शुरू कर दिया है, जबकि 30 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे आजकल अधिक फल खा रहे हैं।


कुल उत्तरदाता परिवारों में से लगभग 54 प्रतिशत ने कहा कि वे मांसाहारी खाद्य पदार्थों जैसे अंडे, चिकन, मांस, मछली, आदि का सेवन कर रहे हैं। लगभग 40 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने बताया कि कोरोना काल में उनके मांसाहारी खाद्य पदार्थों की खपत में कमी आई थी। लगभग नौ फीसदी परिवारों ने कहा कि कोरोना काल के दौरान उन्होंने मांसाहारी भोजन का सेवन बंद ही कर दिया है। इन लोगों में यह डर है कि मांसाहार के सेवन से कोरोनो वायरस फैलता है।

कई ग्रामीण परिवारों को अभी भी महामारी में भोजन की कमी का सामना करना पड़ रहा है। गाँव कनेक्शन सर्वे में यह बात सामने आई है कि प्रत्येक चौथे बीपीएल (गरीबी रेखा से नीचे) परिवार के सदस्यों ने कहा कि उनके परिवार के सदस्यों को खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं मिल पा रहा है। इस सर्वे में 48 प्रतिशत गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल), 45 प्रतिशत गरीबी रेखा से ऊपर (एपीएल) और पांच प्रतिशत अंत्योदय योजना (एएवाई) परिवार शामिल हुए।

केवल 18 प्रतिशत नागरिकों ने कोरोनो वायरस संकट को सरकार की विफलता के रूप में देखा है। यह निष्कर्ष 20 राज्यों और 3 केंद्र शासित प्रदेशों में इस साल 25300 उत्तरदाताओं के बीच गाँव कनेक्शन द्वारा किए गए एक अन्य राष्ट्रीय सर्वेक्षण के निष्कर्षों से मेल खाता है, जिसमें 74 फीसदी लोगों ने माना था कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की एनडीए सरकार कोरोना संकट से निपटने में सफल रही है।

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