ये इश्क़ नहीं आसान ... 

Swati ShuklaSwati Shukla   8 Feb 2019 7:15 AM GMT

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ये इश्क़ नहीं आसान ... प्यार के लिए लाखों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी, जिनमें से आत्महत्या भी शामिल हैं।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। पिछले 15 वर्षों में पुरानी मानसिकता और रूढ़ीवादिता के कारण प्यार के लिए लाखों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी, जिनमें से आत्महत्या भी शामिल हैं।

जिला मुख्यालय से पांच किलोमीटर दूर त्रिवेणी नगर की रहने वाले ब्यूटी मिश्रा (40 वर्ष) बताती हैं, "मेरी बहन बहुत सुन्दर थी। वो एक लड़के से प्यार करती थी। घर वालों ने शादी के लिए मना कर दिया। कुछ दिन बाद घर में जब वह अकेली थी, तो उसने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। शादी के लिए अगर घर वाले मान जाते तो शायद मेरी बहन आत्महत्या न करती।"

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एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2001 से लेकर वर्ष 2015 के बीच भारत में प्यार की वजह से 38 हज़ार 585 लोगों की हत्याएं हुईं, जिसमें से इरादतन और गैर इरादतन हत्याएं भी शामिल हैं। 15 वर्षों के बीच 58 हज़ार 178 लोगों ने प्यार से जुड़ी अलग-अलग वजहों से खुदकुशी की। यानी प्यार में लोग सिर्फ दूसरों की जान ही नहीं ले रहे हैं, बल्कि आत्महत्या भी कर रहे हैं। इसी तरह इन 15 वर्षों के दौरान अपहरण के 2 लाख 60 हज़ार मामले दर्ज किए गए और इनके पीछे भी मुख्य कारण प्यार ही था। ज्यादातर अपहरणों का मकसद किडनैप की गई लड़की से शादी करना था।

लखनऊ बख्शी का तालाब ब्लॉक के चदनापुर गाँव में रहने वाले रमेश मिश्रा (39 वर्ष) बताते हैं, "मेरे छोटे भाई ने अपनी शादी के एक दिन पहले जहर पीकर आत्महत्या कर ली, क्योंकि उसकी पसंद की लड़की से शादी न होकर दूसरी लड़की से शादी की जा रही थी। शादी के तय होने के पहले उसने घर में कुछ नहीं बताया। शादी तय होने के दिन उसने ये बात बताई, लेकिन कोई तैयार नहीं हुआ।" समाजसेविका सुनीता बंसल आगे बताती हैं, "22 साल की एक लड़की अपनी शादी के तीन दिन पहले घर छोड़ कर चली गई क्योंकि वो ये शादी नहीं करना चाहती थी, लेकिन मां बाप ने उसकी बात नहीं सुनी और शादी जबदस्ती करवा रहे थे। जिस लड़के से प्यार करती थी, उसी से शादी करना चाहती थी। उसने कई बार आत्महत्या करने की कोशिश की, लेकिन उसकी जान बच गई।"

नहीं करते हैं समझाने की कोशिश

समाजसेविका एवं काउन्सलर गैर सरकारी संगठन सात्विक वेलफयर फाउंडेशन की अध्यक्ष सुनीता बंसल बताती हैं, "जब परिवार के लोग बच्चों को समय नहीं देते और समझने की कोशिश नहीं करते तब बच्चे अवसाद में आ जाते हैं और आत्महत्या करने की कोशिश करते। लड़का और लड़कियां अपनी बात किसी से कह नहीं पाते या समाज और परिवार का डर होता है। गाँव में शिक्षा का स्तर बहुत कम है। ग्रामीणों में समाज और परिवार को इतना महत्व दिया जाता है, जिसके कारण ऐसी घटनाएं होती हैं। जिसकी वजह से बच्चे आत्महत्या करते हैं। माता-पिता और बच्चों के बीच बातचीत न होना भी सबसे बड़ा कारण है। माता-पिता बच्चों के ऊपर मर्जी डालते हैं, न कि उन्हें समझते हैं।"

सिर्फ पांच फीसदी महिलाएं करती हैं जीवनसाथी का स्वयं चुनाव

इंडिया स्पेंड की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 15 से 81 वर्ष की महिलाएं अपने पति-पिता और परिवार और रिश्तेदारों के अनुसार अपना जीवनयापन करती हैं। 73 प्रतिशत अपने जीवन साथी का चयन माता-पिता रिश्तेदारों के अनुसार करती है, सिर्फ पांच प्रतिशत भारतीय महिलाएं ही अपने अनुसार अपने पति का चयन करती हैं। यही नहीं, 80 प्रतिशत भारतीय महिलाएं किराने की दुकान और अस्पताल जाने के लिए परिवार के सदस्य या पति व पिता की इजाजत मांगती है, यहां तक कि वह खाना क्या बनाएंगे, इसका निर्णय भी उनके घर के मुखिया ही लेते हैं। अस्पताल जाने के लिए 80 प्रतिशत महिलाएं अपने परिवार के किसी सदस्य बड़े सदस्य या पति की इजाजत लेती हैं।

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