67% किसान तीनों कृषि कानूनों को लेकर हैं जागरूक, पंजाब हरियाणा में सबसे ज्यादा जागरुकता: गांव कनेक्शन सर्वे

देश में हाल ही में लागू हुए तीनों कृषि कानूनों को केंद्र सरकार किसानों और किस्मत बदलने वाला बता रही है लेकिन किसान संगठन और विपक्ष इसे किसानों का डेथ वारंट बता रहे। देश के सबसे बड़े ग्रामीण मीडिया संस्थान गांव कनेक्शन ने कई राज्यों में किसानों के बीच सर्वे कराया। 'द इंडियन फार्मर परसेप्शन ऑफ न्यू एग्री लॉ' की रिपोर्ट, बता रही है देश के आम किसानों की राय।

Mithilesh DharMithilesh Dhar   22 Oct 2020 9:57 AM GMT

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67% किसान तीनों कृषि कानूनों को लेकर हैं जागरूक, पंजाब हरियाणा में सबसे ज्यादा जागरुकता:  गांव कनेक्शन सर्वे

देश में लागू हुए तीन नए कृषि कानूनों को लेकर 67 फीसदी किसान जागरूक हैं। नए कृषि बिल का विरोध करने वाले (52%) किसानों में से 36% को कृषि कानूनों की जानकारी नहीं थी। जबकि समर्थन करने वाले (18%) भी इन कानूनों से जागरूक नहीं थे। पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश के किसान सबसे ज्यादा जागरूक हैं और बिलों को लेकर विरोध भी यहां सबसे ज्यादा है। बिल को लेकर जारुकता और विरोध में मध्यम और बड़ी जोत के किसान ज्यादा हैं, इनमें 69 फीसदी वे किसान हैं जो पहले से न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर अपनी फसलें बेचते रहे हैं।

गांव कनेक्शन के सर्वे में शामिल लगभग 35 फीसदी किसानों ने कहा है कि मंडी के बाहर उपज बेचने की आजादी और खुली मंडी पर बना नया कानून किसानों के पक्ष में है। वहीं अनुबंध खेती (कॉन्टैक्ट खेती) और आवश्यक वस्तु संशोधन कानून 2020 के बारे में जानने वाले किसानों में से क्रमश: 46 और 63 फीसदी इन कानूनों को किसानों के पक्ष में मानते हैं।

कृषि प्रधान देश भारत में 27 सितंबर 2020 की तारीख इतिहास में दर्ज हो गयी। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हस्ताक्षर के बाद कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए तीन नये कृषि बिल उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020, मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवाओं पर कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) अनुबंध विधेयक 2020, और आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक देश में कानून बनकर लागू हो गये। इन कानूनों का कई राज्यों में विरोध जारी है, जबकि एनडीए सरकार किसानों को ये समझाने कि कोशिश में है कि बिल उनके हित में हैं और इससे कृषि का भविष्य बदल जाएगा।

देश के सबसे बड़े ग्रामीण मीडिया संस्थान गांव कनेक्शन के रूरल इनसाइट विंग ने देश के 16 राज्यों के 5,022 किसानों के बीच रैपिड सर्वे कराया। रैपिड सर्वे में मार्जिंन ऑफ एरर 5 फीसदी है। तीन अक्टूबर से 9 अक्टूबर 2020 के बीच हुए इस फेस टू फेस सर्वे में किसानों से कृषि कानूनों, खुले बाजार, वन नेशन वर्न मार्केट, मंडी, न्यूनतम समर्थन मूल्य, कृषि अध्यादेशों के प्रभाव, किसानों आशंकाओं, केंद्र सरकार और राज्यों सरकार के फैसलों से लेकर कृषि से आमदनी और भविष्य के फैसलों आदि को लेकर सवाल किए गए। सर्वे में शामिल किसानों की आर्थिक स्थिति की बात करें तो 47 फीसदी किसान बीपीएल (गरीबी रेखा से नीचे) वाले जबकि 42 फीसदी एपीएल (गरीबी रेखा से ऊपर) से संबंध रखते थे। सर्वे में शामिल 85 फीसदी किसानों ने कहा कि कृषि उनकी आय का प्रमुख जरिया है।

यह भी पढ़ें- देश का हर दूसरा किसान कृषि कानूनों के विरोध में, 59 फीसदी किसान चाहते हैं एमएसपी पर बने कानून: गांव कनेक्शन सर्वे

सबसे पहले बात अगर तीनों बिलों को लेकर जागरुकता की करें तो सबसे ज्यादा जागरुकता पंजाब, हरियाणा में दिखी तो सर्वे में सबसे कम जागरुकता पूर्वी क्षेत्र के राज्यों पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़ में दिखी। यहां सिर्फ 46 फीसदी किसान ही किसान प्रदर्शनों के बारे में जागरूक थे

गांव कनेक्शन के सर्वे में निकलकर आया है जो किसान (77 फीसदी) पहले से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अपनी उपज बेच रहे थे, वे एमएसपी पर न बेचने वाले किसानों (51 फीसदी) से ज्यादा अच्छे तरीके से कानूनों से वाकिफ थे। सर्वे में शामिल किसानों से जब पूछा गया कि उनकी राय में किसान कृषि बिलों का विरोध क्यों कर रहे हैं इसके जवाब में 49 फीसदी ने कहा क्योंकि उन्हें लगता है कि कृषि कानून किसान विरोधी है जबकि 49 फीसदी ने ही माना कि बेहतर फसल मूल्य के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं।

सर्वे में शामिल 5,022 लोगों में से 56 फीसदी किसान ऐसे रहे जिन्होंने कहा कि मंडी के बाहर उपज बेचने की आजादी और खुली मंडी से संबंधित लागू हुये नये कानून के बारे में जानते हैं। 24 फीसदी किसानों ने कहा कि वे इस नये कानून के बारे में नहीं जानते जबकि 20% किसानों ने इस पर कुछ भी कहने से मना कर दिया।

सर्वे से संबंधित विस्तृत रिपोर्ट The Rural Report-2: THE INDIAN FARMER'S PERCEPTION OF THE NEW AGRI LAWS गांव कनेक्शन की इनसाइव वेबसाइट www.ruraldata.in पर पढ़ सकेंगे।


इतने ही लोगों से जब पूछा गया कि क्या आपको लगता है कि नया कानून मंडी/APMC के बाहर कृषि उपज बेचने की आजादी और खुला बाजार किसानों के पक्ष में है? इस सवाल के जवाब में 1,756 यानी की कुल 35% किसानों ने हां, 31 फीसदी किसानों ने 'ना' और 15% किसानों ने कहा कि इस पर कुछ कहना अभी जल्दबाजी है।


सीमांत और लघु श्रेणी (36%) और मध्यम और बड़ी जोत वाले (33%) दोनों में एक तिहाई से अधिक किसानों को लगता है कि मंडी/एपीएमसी के बाहर और खुले बाजार में कृषि उपज बेचने की स्वतंत्रता का यह नया कानून किसानों के पक्ष में है।

मंडी के बाहर और खुले बाजार में फसल बेचने की आजादी किसानों को कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून, 2020 के तहत मिली है। यह कानून राज्य सरकारों को मंडियों के बाहर की गई कृषि उपज की बिक्री और खरीद पर टैक्स लगाने से रोकता है और किसानों को लाभकारी मूल्य पर अपनी उपज बेचने की स्वतंत्रता देता है। सरकार का कहना है कि इस बदलाव के जरिए किसानों और व्यापारियों को किसानों की उपज की बिक्री और खरीद से संबंधित आजादी मिलेगी, जिससे अच्छा माहौल पैदा होगा और दाम भी बेहतर मिलेंगे।

सरकार का दावा है कि इस बिल से किसान अपनी उपज देश में कहीं भी, किसी भी व्यक्ति या संस्था को बेच सकते हैं। इस अध्यादेश में कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी मंडियों) के बाहर भी कृषि उत्पाद बेचने और खरीदने की व्यवस्था तैयार करना है। इसके जरिये सरकार एक देश, एक बाजार की बात कर रही है। केंद्र सरकार कृषि क्षेत्र में इसे सबसे बड़ा और ऐतिहासिक बदलाव बता रही है, लेकिन दूसरी ओर विपक्ष और किसान संगठन इसका विरोध भी कर रहे हैं। गांव कनेक्शन के सर्वे में शामिल 31% किसानों को लगता है कि ये किसानों के पक्ष में नहीं है।


किसान बिलों की लेकर 3 चीजों पर विवाद है। बिलों में एमएसपी का जिक्र न होना, मंडी के बाहर खुले बाजार, जिसे टैक्स में छूट है, कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग जिससे आशंका जताई जा रही है कि कंपनियां खेती पर हावी हो जाएंगी और तीसरा आवश्यक वस्तु अधिनियम में बदलाव से कालाबाजी और जमाखोरी को बढ़ावा। संसद में बिल पास होने के बाद केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने इन सभी आशंकाओं को निराधार बताया और कृषि कानूनों को खेती की दशा बदलने वाले बताया।

कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश (Farmers' Produce Trade and Commerce (Promotion and Facilitation) Act, 2020) पर उन्होंने कहा, " इसके जरिए हमने किसान को स्वतंत्रता दी है। वे फसल मंडी में बेचे, मंडी के बाहर बेचे, घर, वेयर हाउस पर जब जहां जैसे चाहे, जिस व्यक्ति को चाहे अपनी उपज बेचने को स्वतंत्र है।" लेकिन किसान संगठनों का कहना है ये बिल देश में किसानों का बड़ा सहारा बनी एपीएसपी को खत्म कर देगा, क्योंकि मंडी में बेचने पर टैक्स लगेगा और बाहर बेचने पर टैक्स नहीं होगा ऐसे में मंडियां कुछ दिनों में उपयोग हीन हो जाएंगी। फिर धीरे से इनका निजीकरण किया जाएगा।

कृषि कानूनों के पक्ष या फिर विरोध में हैं किसान?

मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवाओं पर कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) अनुबंध विधेयक 2020, को भी लेकर कई तरह की आशंकाएं हैं। सरकार का तर्क है कि यह अध्यादेश किसानों को शोषण के भय के बिना समानता के आधार पर बड़े खुदरा कारोबारियों, निर्यातकों आदि के साथ जुड़ने में सक्षम बनाएगा। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर कहते हैं कि इससे बाजार की अनिश्चितता का जोखिम किसानों पर नहीं रहेगा और किसानों की आय में सुधार होगा। इस कानून में अनुबंध खेती (कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग) की बात है।

गांव कनेक्शन ने अपने सर्वे में भी किसानों से अनुबंध खेती (कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग) पर पारित हुए नये कानून पर सवाल पूछे। सर्वे में शामिल 49 फीसदी किसानों ने कहा कि वे इस नये कानून के बारे में जानते हैं जबकि 26% किसानों ने कहा कि उन्हें इस बारे में जानकारी नहीं है। 25 फीसदी किसानों ने इस पर कुछ भी कहने से मना कर दिया।

अनुबंध खेती (कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग) को लेकर बने नये कानून को लेकर जिन किसानों को इसकी जानकारी (49 फीसदी 2,460) किसानों में से 46 फीसदी किसानों को लगता है कि ये किसानों के पक्ष में है जबकि 40 फीसदी किसानों को लगता है कि ये किसानों के पक्ष में नहीं है। तीन फीसदी ने कुछ भी कहने से मना कर दिया जबकि 11% किसानों ने कहा कि अभी इस पर कुछ कहना जल्दबाजी होगा।

देश में 45 किसान संगठनों के राष्ट्रीय समन्वयक और प्रगतिशील किसान और छत्तीसगढ़ में पिछले कई वर्षों से आदिवासियों के बीच कांट्रैक्ट फार्मिंग करा रहे राजाराम त्रिपाठी अनुबंध कानून पर सवाल उठाते हैं। वो कहते हैं, "असल में अनुबंध खेती को लेकर किसानों की कई शंकाएं हैं जिसे सरकार ने विधेयक में दूर नहीं किया। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में हम देखें तो फायदा दो चीजों पर होता है, एक तो उत्पादन और दूसरा मूल्य पर। मूल्य की गारंटी सरकार पहले एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर देती थी, लेकिन कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग पर नहीं दे रही है।" किसान संगठनों को संविदा खेती में कोर्ट जाने की विकल्प न होने पर भी ऐतराज है।

गांव कनेक्शन के सर्वे में बड़ी जोत की अपेक्षा छोटी जोत के किसानों का मानना है कि अनुबंध खेती को लेकर बने कानून उनके पक्ष में है। पांच एकड़ से ज्यादा खेत वाले 51 फीसदी किसान इसे किसानों के पक्ष में नहीं मानते जबकि पांच एकड़ से कम खेत वाले 51% इसे नये कानून को किसानों के पक्ष में मान रहे हैं। छोटी जोत के किसान इस कानून को बड़ी जोत के किसानों की अपेक्षा ज्यादा हितकर मान रहे हैं। लेकिन किसान नेताओं कहना है इससे प्राइवेट कंपनियां खेती पर हावी हो जाएंगी।


देश के केंद्रीय कृषि नरेंद्र सिंह तोमर का भी यही कहना है। उन्होंने अपने एक बयान में कहा, "देश में 86 फीसदी छोटे किसान हैं। खेती का रकबा (खेती की जोत) दिनों-दिन कम हो रही है। तो किसान अपने खेत में कोई निवेश नहीं कर पाता। दूसरा प्रोसेसर (कारोबारी-कंपनी) किसान (प्रॉड्यूसर) तक नहीं पहुंच पाता। ऐसे में कई बार छोटा किसान के पास इतना कम उत्पादन होता है कि अगर वो मंडी ले जाए तो किराया नहीं निकलता है। ऐसे में अगर छोटे किसान मिलकर महंगी फसलों की खेती करेंगे और एकत्र होकर बेचेंगे तो उन्हें फायदा होगा।"

तीसरा कानून है आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020। इस कानून में बदलाव करके आवश्यक वस्तुओं की सूची से अनाज, दाल, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू जैसी वस्तुओं को हटा लिया गया है। इन वस्तुओं पर राष्ट्रीय आपदा या अकाल जैसी विशेष परिस्थितियों के अलावा स्टॉक की सीमा नहीं लगेगी। इस पर सरकार का मानना है कि अब देश में कृषि उत्पादों को लक्ष्य से कहीं ज्यादा उत्पादित किया जा रहा है। किसानों को कोल्ड स्टोरेज, गोदामों, खाद्य प्रसंस्करण और निवेश की कमी के कारण बेहतर मूल्य नहीं मिल पाता है।

यह भी पढ़ें- गांव कनेक्शन सर्वे: जानिए कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कानून के पक्ष के पक्ष या विपक्ष में हैं आम किसान?

पहले व्यापारी फसलों को किसानों के औने-पौने दामों में खरीदकर उसका भंडारण कर लेते थे और कालाबाज़ारी करते थे, उसको रोकने के लिए Essential Commodity Act 1955 बनाया गया था, जिसके तहत व्यापारियों द्वारा कृषि उत्पादों के एक लिमिट से अधिक भंडारण पर रोक लगा दी गयी थी। भंडारण कनरे वालों पर जुर्माना और जेल का प्रावधान था लेकिन अब वो नहीं रहेगा।


गांव कनेक्शन के सर्वे में शामिल 44 फीसदी (2,231) किसानों ने कहा कि वे आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 के बारे में जानते है। 25 फीसदी किसान इस नये बदलावों के बारे में नहीं जानते जबकि 30% लोगों ने कुछ भी कहने से मना कर दिया। इसमें ध्यान देने वाली बात यह भी है कि 41 फीसदी ही छोटे किसान (5 एकड़ से कम खेत) इस कानून में हुए बदलावों के बारे में जानते हैं। इसकी अपेक्षा बड़ी जोत (5 एकड़ से ज्यादा) के 52% किसान इस बारे में जानते हैं।


आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 के बारे में में जानने वालों में 63 फीसदी किसान इस कानून को किसानों के पक्ष में मानते हैं जबकि 33% इसे खिलाफ मानते हैं। 4.8 फीसदी किसानों ने इस पर कुछ भी कहने से मना कर दिया। 69 फीसदी सीमांत और छोटे किसानों को लगता है कि आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 उनके पक्ष में है। 50 फीसदी मध्यम और बड़े किसान भी इसे पक्ष में मानते हैं।

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर कहते हैं, "आवश्यक वस्तु अधिनियम जब बनाया गया था तब हालात और थे। उस वक्त बफर स्टॉक और निगरानी की जरूरत थी। खाने की शॉर्टेज थी, कालाबाजारी और जमाखोरी की होती थी, लेकिन अब खाद्यान आवश्यकता से कहीं ज्यादा है। बड़ी मात्रा में फसलें बर्बाद होती हैं। एफसीआई के गोदामों में अनाज रखा रखा सड़ जाता है, सरकार के पैसे और जनता के टैक्स सबका नुकसान होता है। कालाबाजारी और जमाखोरी तब होती है जब किसी चीज की शॉर्टेज हो, अब जमाखोरी क्यों होगी?"

"इससे निजी निवेश बढ़ेगा, क्योंकि अभी लिमिट तय है। मान लीजिए वो 100 टन की लिमिट है तो कारोबारी उसी के अऩुसार खरीदारी करते हैं। अपना गोदाम बनाते हैं। लेकिन अब अगर उसकी क्षमता 1000 टन की है तो वो खरीदेगा, इसके लिए इंफ्रास्ट्रैक्टर डेवलप करेगा। निवेश होता तो रोजगार होगा। रिफार्म होने से निवेश गांव के नजदीक पहुंच जाएगा। जिसका किसानों को लाभ मिलेगा। मोदी सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम में सुधार करके अपने अधिकार कम किए हैं।" वे आगे कहते हैं।

सर्वे के मुख्य तथ्य

  • 52% किसानों ने कहा कि वो कृषि कानूनों का विरोध करते हैं, लेकिन विरोध करने वाले किसानों में 36 %किसानों को कृषि बिलों की जानकारी नहीं थी
  • 35% किसानों ने नए कृषि बिलों का समर्थन किया, लेकिन इनमें से 18% नए बिलों को लेकर जागरुक नहीं थे
  • 66% किसान नहीं चाहते कि उनका बच्चा भी किसान बने
  • 49% किसानों को एफपीओ (किसान उत्पादक संगठन) के बारे में कोई जानकारी नहीं
  • 51% किसानों ने कहा खेती फायदेमंद है
  • 25% किसानों ने कहा- तीनों कृषि कानून मोदी सरकार का सबसे बड़ा किसान विरोधी कदम
  • 25% किसानों ने कहा- देश में कर्ज़माफी न करना मोदी सरकार का सबसे बड़ा किसान विरोधी कदम
  • 32% किसानों की राय पीएम किसान निधि (साल के 6000 रुपए) को मोदी सरकार का सबसे बड़ा किसान हितैषी फैसला
  • 44% किसानों ने कृषि कानूनों के लागू करने के फैसले पर कहा कि मोदी सरकार किसान हितैषी है
  • 35% किसानों ने कृषि कानूनों को देखते हुए मोदी सरकार को किसान समर्थक बताया
  • 44% किसानों ने कहा मोदी सरकार बड़ी कंपनियों, एमएनसी, निजी व्यापारियों और व्यापारियों की समर्थक है
  • 46% किसानों ने कहा, कृषि बिलों से किसानों का शोषण करने वाली कंपनियों/निजी कंपनियों को बढ़ावा मिलेगा


  

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