न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ नहीं उठा पाते देश के 75 फीसदी किसान
Ashwani Nigam 10 Jun 2017 6:32 PM GMT

लखनऊ। महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के किसान आंदोलन के बीच किसानों को उनकी उपज का उचित दाम मिले इसके लिए सरकार से न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने की मांग सबसे ज्यादा हो रही है। हालांकि इस मामले में एक पक्ष यह भी है कि देश के एक चौथाई किसानों को यह पता ही नहीं है कि न्यूनतत समर्थन मूल्य क्या है। बाराबंकी जिले देवा रोड कूटी गांव के किसान रामशरण गेहूं और धान उगाते हैं, उनसे इस साल सरकार की तरफ से इन दोनों अनाजों पर सरकार की तरफ से घोषित किए गए न्यूनतम समर्थन मूल्य के बारे में पूछा गया, तो वह जवाब नहीं दे पाए। उन्होंने बताया '' न्यूनतम समर्थन मूल्य होता है उन्हें नहीं पता, अपना अनाज वह मंडी में व्यपारियों से पता करके आढ़तियों को बेचते हैं। ''
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नीति आयोग की एक रिपोर्ट बताती है कि देश के 25 फीसदी से कम किसानों को ही न्यूनतम समर्थन मूल्य के बारे में जानकारी होती है। इसी साल मई महीने में तमिलनाडु के किसानों के नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन के समय सुप्रीम कोर्ट ने सरकारों पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा था कि फसलों के न्यूनत समर्थन मूल्य के बारे में सरकार किसानों को जागरूक करें। यहां पर बताया गया था कि देश में केवल 35 प्रतिशत किसान ही न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ उठा पाते हैं। बाराबंकी जिले के मछरिया गांव के किसान अमर सिंह ने बताया '' सरकार ने गेहूं का सरकार रेट क्या तय किय है मुझे नहीं पता। हमारे गांव में किसी को भी इसकी जानकारी नहीं दी गई। ''
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न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम कीमत पर किसान कैसे अपनी उपज बेचने पर मजबूर हैं इसका खुलासा पिछले दिनों agmarknet.gov.in का विश्लेषण करने पर भी हुआ है। इसके अनुसार देश की प्रमुख मंडियों में पिछले दो हफ्ते में न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी कम कीमत पर दाल, गेहूं, ज्वार, रागी, ज्वार, मक्का, बाजरा जैसे अनाज कम न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम कीमत पर बिके हैं। अरहर की दाल पर घोषित 5050 कुंतल समर्थन मूल्य की जगह यह दाल 3800 रूपए प्रति कुंतल किसानों से खरीदी जा रही है। गेहूं का घोषित 1625 रुपए प्रति कुंतल समर्थन मूल्य की जगह किसान 1530 रुपए प्रति कुंतल पर गेहूं बेच रहे हैं।
साल 2013 में घोषित राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण की रिपोर्ट में बताया गया था कि देश के 85 किसान सरकार की तरफ से खेती-किसानी के लिए चलाई जा रही कल्याणकारी योजनाओं का लाभ नहीं उठा पाते हैं। सरकार की तरफ से भी इसका प्रचार-प्रसार नहीं गांवों तक नहीं किया जाता, जिसके नतीजे में न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी कम कीमत पर किसान अपनी उपज को आढ़तियों के पास बेचने को मजबूर होते हैं।
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न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करके सरकार किसानों से उनकी उपज खरीदने का दावा तो करती है लेकिन इस लक्ष्य को वह कभी पूरा नहीं करती है। इसका ताजा उदारहण उत्तर प्रदेश है। यहां पर सरकार ने किसानों को उनके गेहूं का उचित मूल्य दिलाने के लिए रबी विपणन वर्ष 2017-18 में केन्द्रीकृत प्रणाली के अंतगर्त न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना के तहत उत्तर प्रदेश सरकार ने किसानों से इस साल 80 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीद का लक्ष्य रखा है।
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सरकार की विभिन्न एजेंसियों के जरिए प्रदेश के 5 हजार गेहूं क्रय केन्द्रों पर 1 अप्रैल से गेहूं खरीदने काम शुरू हुआ है लेकिन अभी तक सरकार अपने लक्ष्य का आधा गेहूं भी नहीं खरीद पाई है। 9 जून तक सरकार ने मात्र 3262550.69 मीट्रिक टन गेहूं की खरीद कर पाई है। जो गेहूं खरीद लक्य का 41 प्रतिशत है। पांच दिन में सरकार अपना लक्ष्य कैसे प्राप्त यह सोचने की बात है। 15 जून तक एजेंसियों की तरफ से गेहूं खरीदने का अंतिम दिन है।
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