महिलाओं ने बनवाई हैं देश की ये 8 मशहूर इमारतें

Anusha MishraAnusha Mishra   11 Feb 2018 4:53 PM GMT

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महिलाओं ने बनवाई हैं देश की ये 8 मशहूर इमारतेंएत्माद - उद -दौला

देश में ऐसी कई इमारते हैं जो अपनी बेजोड़ कला के लिए मशहूर हैं। हर साल भारत सरकार को इन इमारतों से करोड़ों रुपये का राजस्व मिलता है। वैसे तो जब किसी मशहूर इमारत को बनवाने की बात आती है तो किसी बादशाह या अंग्रेज़ों का नाम ही जेहन में आता है लेकिन इतिहास में कई ऐसी महिलाएं भी हुई हैं जिन्होंने मशहूर इमारतों को बनवाया है।

1. हुमायूं का मकबरा

दिल्ली की प्रमुख इमारतों में से एक हुमायूं के मकबरे को उनकी बीवी हमीदा बानो बेगम ने 1562 में बनवाया था। इसे पर्शियन आर्किटेक्ट मिरक मिर्ज़ा घियाथुद्दीन ने डिज़ाइन किया था। कहते हैं कि भारत में बनी इमारतों में यह पहली इमारत थी जिसे चारबाग कला से बनवाया गया था। 1993 में इस मकबरे को विश्व विरासत स्थल घोषित किया था। सबसे पहली इसी इमारत में लाल बलुआ पत्थर का इतने बड़े स्तर पर इस्तेमाल हुआ था। हुमायूं की कब्र के अलावा इस मकबरे में उनकी बेगम हमीदा बानो, शाहजहां के बड़े बेटे दारा शिकोह, जहांदर शाह, फर्रुख्शियार, रफी उल-दर्जत, रफी उद-दौलत और आलमगीर द्वितीय आदि की कब्रें हैं।

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2. एत्माद-उद-दौला

एत्माद-उद -दौला मुग़ल बादशाह जहांगीर की बेगम नूरजहां ने अपने पिता मिर्ज़ा गियास बेग की याद में आगरा में बनवाया था। एत्माद-उद-दौला उनके पिता की उपाधि थी। उठे हुए बलुआ पत्थर के चबूतरे पर यह मकबरा सफेद संगमरमर से बना है। इसके पीछे की तरफ युमना नदी बहती है। इस मकबरे का निर्माण 1625 ईसवी में किया गया था। बेबी ताज के नाम से मशहूर इस मकबरे की कई चीजें ऐसी हैं जिन्‍हें बाद में ताजमहल बनाते समय अपनाया गया था। यह मकबरा भारत में बना पहला मकबरा है जो पूरी तरह सफेद संगमरमर से बनाया गया था। इसकी दीवारों पर पेड़ पौधों, जानवरों और पक्षियों के चित्र उकेरे गए हैं। दूर से देखने पर यह मकबरा जेवर के बक्से की तरह लगता है।

3. रानी की वाव

रानी की वाव गुजरात के पाटण में बनी एक मशहूर बावड़ी है। बावड़ी का मतलब होता है सीढ़ीदार कुआं। इस बावड़ी को साल 1063 में सोलंकी शासन के राजा भीमदेव प्रथम की याद में उनकी पत्नी रानी उदयामति ने बनवाया था। इसे 22 जून 2014 को इसे यूनेस्को के विश्व विरासत स्थल में सम्मिलित किया गया। बावड़ी में मारू-गुर्जरा आर्किटेक्चर स्टाइल में एक कॉम्प्लेक्स में बनाया था। इसके अंदर एक मंदिर और सीढ़ियों की सात कतारें भी हैं जिसमे 500 से भी मूर्तियां बनी हैं। 1980 तक यह बावड़ी पूरी तरह से पानी से ही भरी हुई थी लेकिन फिर कुछ समय बाद जब आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया ने इसे खोज निकाला था, उस समय इसकी हालत काफी खस्ता थी। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने सायआर्क और स्कॉटिस टेन के सहयोग से वाव के दस्तावेजों का डिजिटलाइजेशन भी कर लिया है।

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4. विरुपाक्ष मंदिर पट्टदकल

विरुपाक्ष मंदिर कर्नाटक के हम्पी शहर में बना है। इस मंदिर को राजा विक्रमादित्य द्वितीय की पत्नी रानी लोकमहादेवी ने उनकी जीत की खुशी में 270 ईस्वी में बनवाया था। यह मंदिर हम्पी में स्थापित है और रानी लोकमहादेवी ने अपने पति राजा विक्रमादित्य द्वितीय की विजय उपलक्ष्य में बनवाया था। यह मंदिर, रानी लोकमहादेवी के द्वारा स्थापित किये जाने के कारण ऐश्वर्यशाली, अद्भुत है एवं इसे लोकेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर की स्थापना 720 ई.सी में हुई थी। यह मंदिर भी यूनेस्को की विश्व विरासत स्थलों की सूची में शामिल है। नौ स्तरों और 50 मीटर ऊंचे गोपुरम वाला यह मंदिर तुंगभद्रा नदी के दक्षिणी किनारे पर हेमकूट पहाड़ी की तलहटी पर बना है। दक्षिण भारतीय द्रविड़ स्थापत्य शैली को दर्शाता यह मंदिर ईंट और चूने से बना है।

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5. मोहिनिश्वरा शिवालय मन्दिर

गुलमर्ग, कश्मीर की सुंदर वादियों में बना यह मंदिर कश्मीर के शासक राजा हरिसिंह की पत्नी महारानी मोहिनी बाई सिसोदिया ने 1915 में बनवाया था। उनके नाम पर ही इसका नाम मोहिनिश्वरा रखा गया। मंदिर की खासियत है कि यह गुलमर्ग के हर कोने से दिखाई देता है। यह कश्मीर के डोगरा राजवंश का शाही मंदिर है। चमकदार लाल ढलुआ छत से ढका हुआ है यह मंदिर।

6. ख़ैरुल मंज़िल मस्जिद

दिल्ली के पुराने किले के सामने बनी दो मंज़िला ख़ैरुल मंज़िल मस्जिद को 1561 में महम अंगा ने बनवाया था। हम अंगा अकबर की दाईमां थीं। अकबर का पालन - पोषण माहम अंगा ने ही किया था। मस्जिद को बनाने में शिहा-बुद-दीन-अहमद खान जो अकबर के दरबार का प्रभावशाली मंत्री और महम अंगा का रिश्तेदार था, ने भी साथ दिया था। इस मस्जिद में पांच ऊंचे मेहराब हैं। लाल बलुई पत्थरों से बनी यह मस्जिद बहुत ही ख़ूबसूरत लगती है।

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7. माहिम कॉज़वे

माहिम कॉज़वे दक्षिणी मुंबई को उत्तरी उपनगरों से जोड़ती एक सड़क है। कॉज़वे दक्षिण में माहिम के पड़ोस को बांद्रा से उत्तर में जोड़ता है। 1.57 लाख की लागत से बने माहिम कॅाज़वे का निर्माण 1843 में मशहूर पारसी व्यापारी जमशेदजी जीजीभाई की पत्नी लेडी अवाबाई जमशेदजी ने करवाया था। माहिम नदी में एक हादसा हुआ था, जिसमें 20 नाव दलदली भंवरयुक्त जमीन में पलट गई थी। इस हादसे ने अवाबाई को बांद्रा आइसलैण्ड और बॅाम्बे की मुख्य भूमि को जोड़ने वाला एक कॉज़वे बनवाने के लिए विवश कर दिया। माहिम कॅासवे आज भी मुम्बई के लोगों के लिए जीवन रेखा का काम करता है।

8. लाल दरवाज़ा मस्जिद

लाल दरवाजा मस्जिद या रूबी (लाल) गेट मस्जिद जौनपुर शहर के बाहरी इलाके में स्थित है। इसे 1447 में सुल्तान महमूद शर्की की बेगम बीबी राजी ने बनवाया था और यह मस्जिद जौनपुर के एक मुस्लिम संत मौलाना सैय्यद अली दाऊद कुतुबुद्दीन को समर्पित है। इसे खास तौर से बेगम के निजी प्रार्थना कक्ष के रूप में बनवाया गया था। इस मस्जिद की वास्तुशिल्पीय शैली अटाला मस्जिद से काफी मिलती है। हालांकि आकार के मामले में यह अटाला मस्जिद से छोटा है। इसके उत्तर, पूर्व और दक्षिण में तीन दरवाजे हैं, जिसके जरिए इसके अंदर पहुंचा जा सकता है।

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