गरीबी रेखा के नीचे या अंत्योदय अन्न योजना कार्डधारकों के सामने पैसे देकर कोविड वैक्सीन लगवाने की चुनौती

भारत के सबसे बड़े ग्रामीण मीडिया प्लेटफॉर्म गांव कनेक्शन के सर्वे के अनुसार 44 फीसदी ग्रामीण कोविड वैक्सीन के लिए पैसे तो खर्च करना चाहते हैं लेकिन गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाली एक बड़ी आबादी चाहती है कि कोविड वैक्सीन की कीमत कम हो या न ही हो।

Mithilesh DharMithilesh Dhar   29 Dec 2020 1:30 PM GMT

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covid vaccine, corona, covid 19गरीबी रेखा के नीचे या उससे भी नीचे रहने वालो लोगों के सामने पैसे खर्च कर कोविड वैक्सीन लगवाने की चुनौती है। फोटो : गाँव कनेक्शन

"लॉकडाउन के समय औरंगाबाद से आते समय पति की एक्सीडेंट में मौत हो गई थी। दो बच्चों को बूढ़े सास-ससुर की जिम्मेदारी मेरे ऊपर है। सिलाई-कढ़ाई करके घर का खर्च चला रही हूं। 15 हजार रुपए का कर्ज भी हो गया है। बाहर कमाने जाना चाहती हूं लेकिन सोच रही हूं कोरोना की दवा आ जाये तब जाऊंगी, लेकिन समाचार में देखा था कि सरकार टीके के लिए पैसे लेगी। यह तो गलत है। जिसके पास पैसे नहीं हैं वह पैसा देखकर टीका कैसे लगवायेगा। जब हमें राशन फ्री में मिल रहा तो गरीबों को टीका भी तो फ्री में लगना चाहिए।" पुष्पा देवी कहती हैं।

मध्य प्रदेश के जिला उमरिया, पंचायत ममान के गांव नेऊसा की रहने वाली 12वीं पुष्पा के पति की मौत लॉकडाउन के समय आंरगाबाद से पैदल लौटते उस समय हो गई जब वे अपने साथियों के साथ ट्रेन की पटरियों से होते हुए अपने घर के लिए पैदल ही निकले थे। मालगाड़ी की चपेट में आने से उस हादसे में 16 लोगों की मौत हो गई थी।

कोविड-19 से अब तक पूरी दुनिया में 17 लाख से ज्यादा जानें जा चुकी हैं। भारत में इस महामारी से अब तक लगभग डेढ़ लाख लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। लोगों को उम्मीद हैं कि नये साल में दुनिया इस महमारी पर काबू पा लेगी। इसके लिए कई देशों में इसे रोकने के लिए टीकाकरण (वैक्सीनेशन) शुरू हो चुका है।

भारत सरकार भी स्वदेशी टीका लगाने की तैयारी कर रही है, कई टीकों का आखिरी दौर में हैं तो कुछ विदेश वैक्सीन भी अपनी दावेदारी पेश कर रही हैं। कई रिपोर्ट में दावा किया जा रहा है कि कोविड वैक्सीन के लिए लोगों को पैसे चुकाने होंगे, लेकिन क्या पैसे देकर टीका लगवाना सबके लिए संभव हो पायेगा?

यह मुश्किल क्यों हो सकता है, इसे भी समझना होगा। भारत के सबसे बड़ी ग्रामीण मीडिया प्लेटफार्म गांव कनेक्शन ने कोविड वैक्सीन को लेकर ग्रामीण भारत के लोग क्या सोच रहे हैं? यह जानने के लिए देश के 16 राज्यों और एक केंद्रशासित प्रदेश के 6,040 लोगों के बीच सर्वे किया। सर्वे में शामिल लोगों से कई तरह के सवाल पूछे गये। इन्हीं में से एक सवाल था कि जब देश में कोविड वैक्सीन आ जायेगा तो क्या वे इसके लिए भुगतान (पैसे खर्च) को तैयार हैं?


इस सवाल के जवाब में 44% (2,658) परिवारों ने हां कहा, यानी वे टीके के लिए पैसे चुकाना को तैयार हैं, लेकिन लगभग 36% लोगों ने नाम में भी जवाब दिया। और वे लोग जो भुगतान करने को तैयार है यानी 2,658 परिवारों में से 66% उत्तरदाता यह भी चाहते हैं कि कोविड वैक्सीन की कीमत 500 रुपए से कम होनी चाहिए।

महज 25% उत्तरदाताओं ने कहा कि वे वैक्सीन की दो खुराक के लिए 500 से 1,000 रुपए खर्च कर सकते हैं। लगभग 6% ने 1,000 से 1,500 रुपए और 2% लोगों ने 1,500 से 2,000 रुपए तक खर्चने की बात कही। महज आधा फीसदी यानी कि .5% ही ऐसे हैं जो वैक्सीन के लिए 2,000 रुपए से ज्यादा भी खर्च करने के लिए तैयार हैं।


अगर राशन कार्ड की स्थिति को ध्यान में आंकलन करें तो गरीबी रेखा के ऊपर (Above Poverty Line) वाले लगभग 53% लोग (कुल 6,040 लोगों में से) वैक्सीन के लिए पैसे खर्च करने के लिए तैयार हैं, जबकि 32% पैसे नहीं खर्च करना चाहते। 15% ने कुछ नहीं कहा।

वहीं गरीबी रेखा के नीचे (Below Poverty Line) रहने वाले महज 37% लोग ही वैक्सीन के लिए पैसे खर्चे करने को तैयार हैं जबकि 39% से ज्यादा लोगों ने ना में जवाब दिया। 23% ने कुछ भी कहने से मना कर दिया। अंत्योदय अन्न योजना का राशन कार्ड रखने वाले 33% लोगों ने हां, 34% ने ना और 32% ने इस पर अभी कुछ भी कहने मना कर दिया।

2,658 (44%) वे लोग जो टीके के लिए पैसे खर्च करने के लिए तैयार हैं, उनमें गरीबी रेखा के ऊपर वाले 64.4% राशन कार्डधारक कोविड वैक्सीन की दो खुराक के लिए 500 रुपए से तक खर्च करने को तैयार हैं जबकि 500 से 1,000 रुपए के बीच 27% खर्च करने को तैयार हैं।


बात अगर गरीबी रेखा के नीचे वालों की करें तो लगभग 69% कार्डधारक 500 रुपए तक खर्च कर सकते हैं लेकिन 500 से ज्यादा खर्च करने के लिए महज 23% ही तैयार हैं। 1,000 से 1,500 और 1,500 से 2,000 रुपए तक खर्च करने की बात आती है तो ये आंकड़ा 5.7%, 1.6% पर आज जाता है।

अंत्योदय अन्न योजना का राशन कार्ड रखने वाले लोग जिनकी स्थिति गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों से भी खराब होती है, ऐसे 68% से ज्यादा लोगों ने कहा कि वैक्सीन की दो डोज के लिए 500 रुपए तक तो खर्च कर सकते हैं, लेकिन जैसे ज्यादा पैसे खर्च करने की बात आती है, ये संख्या कम होने लगती है। गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले जहां 23% लोग 500 से ज्यादा रुपए खर्च करने को तैयार थे वहीं यहां अंत्योदय अन्न योजना का राशन कार्डधारकों की ऐसी संख्या 15.7% पर आ जाती है। महज 12.7% और 2.9% अंत्योदय अन्न योजना का राशन कार्डधार की ही 1,000 से 1,500 या उससे ज्यादा भुगतान करने को तैयार हैं।

सर्वे में शामिल कुल 6,040 लोगों से यह भी पूछा गया कि क्या उन्हें लगता है कि कोविड वैक्सीन की दो खुराक की कीमत 1,000 रुपए ज्यादा है या बजट में हैं?


इस सवाल के जवाब में 48% ने कहा कि 1,000 रुपए बहुत ज्यादा है और लगभग 29% लोगों ने इस कीमत को ज्यादा बताया। 16% लोगों ने ही इसे बजट (मतलब वे 1,000 रुपए तक खर्च कर सकते हैं) में बताया और 5% लोग तो ऐसे भी रहे जिन्होंने कहा कि वे कोविड वैक्सीन के लिए कोई भी कीमत चुका सकते हैं।

राशन कार्ड धारकों के हिसाब से देखें तो 63% अंत्योदय अन्न योजना कार्डधारक परिवारों को लगता है कि कोविड वैक्सीन की दो खुराक के लिए 1,000 रुपए बहुत ज्यादा है जबकि 7% ने बजट में भी बताया। जबकि सबसे ज्यादा 18% गरीबी रेखा के ऊपर यानी एपीएल राशन कार्डधारक परिवारों को लगता है कि टीके के लिए 1,000 रुपए बजट में है। बात अगर गरीबी रेखा के नीचे वाले लोगों का यानी की बीपीएल कार्डधारकों की करें इसमें शामिल 49% लोगों ने इसे बहुत ज्यादा बताया जबकि गरीबी रेखा के ऊपर वाले 48% ने ही इसे बहुत ज्यादा बताया।

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इन आंकड़ों को देखेंते तो समझ आता है कि जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक वे लोग ही पैस खर्चकर वैक्सीन लगवाने के पक्ष में हैं और ज्यादा पैसे भी खर्च करने को तैयार हैं। वैक्सीन के लिए पैसे खर्च वालों की बात हो या फिर कितना खर्च कर सकते हैं वालों की बात हो, दोनों ही जगह गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले या अंत्योदय अन्न योजना का राशन कार्डधारक पीछे हैं, लेकिन इसकी वजह क्या हो सकती है?

फाइनेंस एंड इकनॉमिक्‍स थिंक काउंसिल, काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के संस्थापक और अध्यक्ष विक्रांत सिंह देश के प्रतिष्ठित अखबारों में लगातार लिखते हैं। वे कहते हैं, "सरकार योजना बनाते समय उच्च वर्गों का ज्यादा ध्यान देती है। सरकारें देश की 70-75 फीसदी गरीब आबादी को भुला देती है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि वैक्सीन में खर्च आयेगा लेकिन एक बहुत बड़ी आबादी 1,000 या 2,000 रुपए इतनी आसानी से वहन नहीं कर सकेगी। वह भी ऐसी स्थिति में जब लोगों को अपनी नौकरी गंवानी पड़ी, आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा। गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों को टीक फ्री में कैसे मिले, सरकार को इस ओर ध्यान देना होगा।"


"हमने देखा कि जब लॉकडाउन में काम बंद हो गया तब लोगों कर्ज लेकर खर्च चलाना पड़ा या एक बड़ी आबादी अभी भी भूखे सोती है। ऐसे में ज्यादा पैसे देकर टीका लगवाना इनके लिए मुश्किल होगा।" वे आगे कहते हैं।

उत्तर प्रदेश के जिला हमीरपुर के राठ के रहने वाले उपेंद्र कुशवाहा लॉकडाउन से पहले तक गुजरात के अहमदाबाद में जिंस बनाने वाली कंपनी में काम करते थे। कंपनी बंद हो गई और उन्हें पैदल घर आना पड़ा। वे तब से घर पर ही हैं। वे बताते हैं, "गांव में कोई काम नहीं मिला। जमीन-जायदाद भी नहीं है। काफी कर्ज हो गया है। अब मजदूरी कर तो रहा हूं लेकिन पैसे बहुत कम मिल रहे हैं। अब जब पैसा होगा तो पहले कर्ज चुकाऊंगा। कोरोना से बचना तो हैं लेकिन अब अगर 2,000 रुपए लगेगा तो घर के छह लोगों को टीका लगवाना मुश्किल होगा।"

लॉकडाउन के समय अगस्त में गांव कनेक्शन ने ग्रामीण भारत पर कोरोना संकट को जानने के लिए एक राष्ट्रीय सर्वे कराया था। 30 मई से 16 जुलाई 2020 तक फेस-टू-फेस हुए सर्वे में देश के 23 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 179 जिलों के 25,300 उत्तरदाता शामिल हुए थे। तब इसमें से हर चौथे व्यक्ति ने कहा था कि उन्हें घर चलाने के लिए कर्ज लेना पड़ा था।

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सर्वे में शामिल 23 फीसदी लोगों ने कहा था कि खर्च चलाने के लिए जमीन, गहने, कीमती सामान को गिरवी रखना पड़ा या बेचना पड़ा। पांच फीसदी ने जमीन बेची या गिरवी रखी। सात फीसदी ने गहने या तो बेचे या गिरवी रखे। वहीं आठ फीसदी लोगों ने महंगे सामान या तो बेचे या गिरवी रखे। लोगों से यह सवाल पूछा गया था कि लॉकडाउन के दौरान क्या आपने या आपके परिवार के किसी व्यक्ति ने किसी से उधार पैसे लिए या ऋण लिया, जमीन बेची या गिरवी रखी, आभूषण बेचे या गिरवी रखे, कीमती सामान जैसे- घड़ी, बाइक, कार और फोन को बेचा या गिरवी रखा तो 23% ने कहा था कि उन्होंने इस दौरान लोन या उधारी लिया, 05% ने जमीन बेची या गिरवी रखी, 07% गहने बेचने या गिरवी रखने की बात स्वीकारी थी तो 08% ने कीमती सामान बेच दिया या गिरवी रख दिया।

जन स्वास्थ्य अभियान मध्य प्रदेश से जुड़े और स्वास्थ्य अधिकार पर लंबे समय से काम कर रहे हैं अमूल्य निधि गांव कनेक्शन से फोन पर कहते हैं, "बेहतर स्वास्थ्य सबका अधिकार है। पैसे के कारण ही देश की एक बड़ी आबादी स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित रह जाती है। सरकार को ऐसे गरीब लोगों का भी ध्यान देना चाहिए। इन लोगों की आर्थिक स्थिति वैसे ही बिगड़ी है, अब कहीं ऐसा ना हो कि पैसे के चक्कर में इन्हें टीका ही ना लग सके। यह गंभीर मसला है। कोविड वैक्सीन की कीमतों को लेकर सरकार को ध्यान देना पड़ेगा।"

कैसे हुआ सर्वे

कोविड महामारी और कोरोना वैक्सीन को लेकर अपने तरह का ये अनूठा सर्वे देश से सबसे बड़े ग्रामीण मीडिया हाउस गांव कनेक्शन की सर्वे विंग "गांव कनेक्शन इनसाइट्स" के द्वारा 16 राज्यों और 1 केंद्र शाषित प्रदेश के 60 जिलों के 6040 लोगों के बीच फेस टू फेस किया गया। एक दिसंबर से 10 दिसंबर 2020 के बीच हुए इस सर्वे में क्षेत्रों का चुनाव केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के द्वारा कोविड-19 के असर के आधार पर किया गया। सर्वे में मार्जिन ऑफ इरर 5 फीसदी है।

सर्वे में शामिल 41 फीसदी लोगों की मासिक आय 5 हजार से कम थी तो 37 फीसदी लोग 5000 से 1000 के बीच कमाई करने वाले थे। वहीं एक लाख से ज्यादा प्रति माह कमाई करने वालों का प्रतिशत दशमलव एक (.1) फीसदी था। सर्वे में लोगों से कोरोना वैक्सीन की जरूरत, उस पर भरोसा, कोरोना की गंभीरता, उनके आसपास के कोविड मरीज निकलने, उनके इलाज, खानपान, कोरोना से बचने के लिए आजमाए गए उनके उपायों पर सवाल किए है। इस सर्वे के सभी नतीजों को आप द रुरल रिपोर्ट-3 नाम से जारी किया है, जिसे आप www.ruraldata.in पर पढ़ सकते हैं।


सर्वे में देश की विविधता को ध्यान में रखते हुए सभी जाति, धर्म, लिंग, आय-वर्ग, समुदाय और क्षेत्र के लोगों को शामिल किया गया। जहां उत्तरी क्षेत्र से जम्मू कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड राज्य शामिल किए गए। वहीं दक्षिणी क्षेत्र से कर्नाटक, केरल और आंध्र प्रदेश शामिल हुए। पश्चिमी राज्यों में महाराष्ट्र, गुजरात और मध्य प्रदेश को शामिल किया गया, जबकि पूर्वी व पूर्वोत्तर राज्यों में असम, अरूणाचल प्रदेश, ओडिशा और पश्चिम बंगाल इस राष्ट्रव्यापी सर्वे में शामिल हुए।

राज्यों की जनसंख्या और कोविड से प्रभावित सरकारी आंकड़ों के अनुसार अलग-अलग राज्यों से सैंपल का चुनाव किया गया ताकि कोरोना और वैक्सीन को लेकर देश की सही राय को उचित ढंग से जाना जा सके। इस सर्वे में कोरोना मरीजों की संख्या के आधार पर सभी 17 राज्यों को तीन जोन- कोरोना से बहुत अधिक प्रभावित, कोरोना से प्रभावित और कोरोना से कम प्रभावित राज्यों में बांटा गया। यह संख्या देश के स्वास्थ्य विभाग के मंत्रालय के आंकड़ों के आधार पर ली गई थी और उसके अनुसार आंध्र प्रदेश, अरूणाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल और महाराष्ट्र सबसे अधिक प्रभावित राज्यों में, असम, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, ओडिशा, पंजाब और पश्चिम बंगाल प्रभावित राज्यों में और बिहार, गुजरात, झारखंड, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश कम प्रभावित राज्यों में आते हैं।

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