एक शोध का दावा, घरेलू यात्राओं पर प्रतिबंध लगाकर प्रवासियों को शहर में रोकने से बढ़ सकता है संक्रमण

शिकागो विश्वविद्यालय के बेकर फ्रीडमैन इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स की ओर से की गई स्टडी में रखे गए कई तथ्य। शोध में ग्रामीण-शहरी प्रवास, यात्रा प्रतिबंध की नीतियों और कोरोना के मामलों के विस्तृत डेटा का इस्तेमाल किया गया।

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एक शोध का दावा, घरेलू यात्राओं पर प्रतिबंध लगाकर प्रवासियों को शहर में रोकने से बढ़ सकता है संक्रमण

भारत में 6 मई को कोरोना के 4 लाख से ज्यादा नए मामले सामने आये। (फोटो- अरेंजमेंट)

भारत कोरोना महामारी की दूसरी लहर के साथ जूझ रहा है। वायरस को फैलने से रोकने के लिए राज्यों की ओर से नाइट कर्फ्यू और लॉकडाउन की घोषणा की जा चुकी है। बावजूद इसके मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। तो क्या ऐसे में वायरस के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए यात्राओं पर भी अब प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। हालांकि इससे पहले इस नए शोध पर नजर डालें जिसके मुताबिक प्रवासी श्रमिकों की बड़ी आबादी वाले शहरों में रोकना, संक्रमण के प्रसार में सहायक हो सकता है।

शिकागो विश्वविद्यालय के बेकर फ्रीडमैन इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स की ओर से की गई इस स्टडी "कोविड-19 पर घरेलू यात्रा प्रतिबंधों का प्रभाव" को 29 अप्रैल को जारी किया गया।

इस शोध में ग्रामीण-शहरी प्रवास, यात्रा प्रतिबंध की नीतियों और कोरोना के मामलों के विस्तृत डेटा का इस्तेमाल किया गया, ताकि यह साबित किया जा सके कि पिछले साल महामारी की पहली लहर के दौरान जब मुंबई छोड़ने के इच्छुक श्रमिकों पर प्रतिबंध लगाए गए थे तो भारत में एक नकारात्मक परिणाम सामने आया था।

अध्ययन के लेखक और द एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट, साउथ एशिया के डायरेक्टर अनंत सुदर्शन बताते हैं,

"भारत में पहली लहर में लॉकडाउन के कारण बड़े शहरों के अंदर लाखों प्रवासी फंस गए थे। जैसे कि मुंबई, जहां तेजी से कोरोना के हॉटस्पॉट बढ़े थे।"

"इसे इस बात से भी समझ सकते हैं कि जिन्हें श्रमिक एक्सप्रेस व अन्य साधनों से जल्दी घर लौटा दिया गया वहां संक्रमितों की संख्या बेहद कम रही। इसके उलट जहां बड़ी संख्या में श्रमिक बड़े शहरों में कंटेनमेंट जोन में लंबे समय तक रह गए, वह मजदूर जब अपने शहर लौटे तो वहां भी केस बढ़ गए। कारण साफ था, उनका कंटेनमेंट जोन में लंबे समय तक फंसे रहना।" अनंत सुदर्शन ने आगे कहा।

मुंबई के अलावा इस अध्ययन में पांच अन्य देशों चीन, इंडोनेशिया, फिलीपींस, दक्षिण अफ्रीका और केन्या के शहरों को शामिल किया गया। इन देशों में वैश्विक आबादी की लगभग 40 प्रतिशत आबादी रहती है और सभी ने कुछ हॉटस्पॉट स्थानों पर प्रारंभिक प्रकोप देखा।

इस शोध के सह-लेखकों में से एक शिकागो विश्वविद्यालय में हैरिस स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी की सहायक प्रोफेसर फियोना बर्लिग ने कहा,"आपदा की स्थिति में लोगों को घर जाने की जल्दी होती है। ऐसे लोगों को रोकने के बजाय, उन्हें जाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए, उसके लिए इंतजाम करना चाहिए। बजाय इसके कि उन्हें एक दूसरे शहर में रोक कर रखें। लोकतांत्रिक व्यवस्था में ऐसे प्रतिबंध लंबे समय तक लगाए भी नहीं जा सकते हैं।"

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