मुंबई में रहने वाले तेंदुए अजूबा की अनोखी कहानी

Janaki LeninJanaki Lenin   6 Oct 2018 11:56 AM GMT

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मुंबई में रहने वाले तेंदुए अजूबा की अनोखी कहानी

उस बुजुर्ग तेंदुए के दांत पीले पड़ चुके थे, शिकार को चीड़-फाड़ने वाले नुकीले दांत भी अब कुंद हो गए थे। अप्रैल 2009 के आखिर में एक कुत्ते का पीछा करते समय यह तेंदुआ पुणे के उत्तर में खेतों में बने एक खुले कुएं में गिर गया था। तेंदुए के लिए मदद तीसरी रात को पहुंची जब वन विभाग के कर्मचारियों ने कुएं में सीढ़ी लटकाई। चौकन्ने कदमों से तेंदुआ सीढ़ी चढ़ता हुआ सीधे पिंजरे में जा पहुंचा।

शोधकर्ता विद्या आत्रेय ने तेंदुए के गले में जीपीएस ट्रांसमीटर वाला कॉलर बांध दिया। इसके बाद तेंदुए को 60 किलोमीटर दूर मलशेज घाट की तलहटी में छोड़ दिया गया। अगले एक साल तक इस कॉलर को तेंदुए के ठौर-ठिकाने के बारे में टेक्स्ट मेसेज भेजते रहना था। इस तरह खेतों में रहने वाले तेंदुए पर पहली रिसर्च की शुरूआत हुई। इस तेंदुए का नाम रखा गया अजूबा।


विद्या को उम्मीद थी कि अब अजूबा प्याज, गोभी, गन्ने के खेतों में दिखाई देगा। लेकिन इसकी जगह उन्होंने पाया कि अजूबा नाम का यह तेंदुआ पहाड़ों पर चढ़ रहा है। यह बड़ी अजीब बात थी।

इसके बाद अजूबा तीन दिन के लिए गायब हो गया। जब दोबारा टेक्स्ट मेसेज आए तो पता चला कि वह पश्चिमी घाट की पहाड़ियों के दूसरी तरफ कोंकण इलाके के व्यस्त मुंबई-आगरा हाइवे को पार कर चुका है। विद्या ने अपनी एक ईमेल में हैरानी से पूछा, "ये कर क्या रहा है?" विद्या का दिल उछलकर उनके मुंह में आ गया जब अजूबा ने कसारा रेलवे स्टेशन पार किया। कसारा रेलवे स्टेशन मुंबई उपनगरीय रेलों का आखिरी स्टेशन है। अगर उसे जरा सी भी चोट लग जाती तो यह उस तेंदुए और रिसर्च प्रोजेक्ट दोनों के लिए एक बड़ा झटका साबित होता।

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तीसरे सप्ताह के अंत तक वह वसई के औद्योगिक क्षेत्र में पहुंच चुका था। मुंबई के बाहर बसे इस इलाके में फैक्ट्रियों और इमारतों की भरमार है। इस बात की बहुत ज्यादा आशंका थी कि कोई इस घुसपैठिए को देख लेगा और शोर मचा देगा। विद्या तनाव में आ गई थीं। अजूबा जितनी उम्र के तेंदुए अपने क्षेत्र से बहुत दूर नहीं जाते हैं। फिर वह जानबूझकर पश्चिम दिशा की ओर क्यों भागा जा रहा था?

इसके बाद अजूबा मुंबई के संजय गांधी पार्क के नगला ब्लॉक में पाया गया। जब दो हफ्तों बाद भी अजूबा इसी इलाके में रुका रहा तो विद्या को लगा कि शायद अब वह वहीं बस गया है। अजूबा साढ़े तीन हफ्तों में 120 किलोमीटर का सफर तय कर चुका था। इसके बाद उसने उल्लास नदी पार की, पार्क के मुख्य इलाके में पहुंच कर वहां तीन दिन तक रहा उसके बाद वापस लौटा। तीन हफ्तों बाद जीपीएस ट्रांसमीटर बंद हो गया। मुमकिन है कि नदी पार करते समय उसमें शॉर्ट सर्किट हो गया हो।


यह भी हो सकता है कि संजय गांधी नेशनल पार्क अजूबा का वास्तविक घर रहा हो। पार्क से तेंदुओं की संख्या कम करने के प्रयासों की वजह से उसे यहां से खदेड़ दिया गया हो और वह मलशेज घाट तक पहुंच गया हो। पर अगर जीपीएस ट्रैकर न होता तो हमें अजूबा की इस अनोखी यात्रा की कोई जानकारी न होती। ऐसे कई मौके आए जब वह इंसानों के बहुत नजदीक पहुंच गया था, पर न तो किसी की नजर उस पर पड़ी और न ही उसने किसी को कोई नुकसान पहुंचाया।

विज्ञान की दुनिया के लिए अजूबा ने शानदार काम किया था। उसने दिखाया कि तेंदुए अस्थिर, घबराए से जानवर नहीं हैं जो जरा से उकसावे पर इंसानों पर झपट पड़ें।

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लंबी दूरी, हाईवे पर तेज रफ्तार गाड़ियों, रेललाइन पर गरजती ट्रेनों और चारों तरफ इंसानों की मौजूदगी के बाद भी उसने आत्मविश्वास और दृढ़ संकल्प का परिचय दिया और अपनी दिशा से जरा भी नहीं भटका। मैं अजूबा से कभी नहीं मिली लेकिन नक्शे पर खिंची पीले रंग की उस लकीर ने मुझे बांध सा लिया था जो अजूबा की इस यात्रा का प्रतीक थी।

अजूबा को जंगल में छोड़ने के तुरंत बाद विद्या ने कहा कि अजूबा शायद इसलिए शांत था क्योंकि वह कुएं की तली में गिरने के बाद काफी थक गया था। जब वह लगातार सफर कर रहा था, उस समय मैं कल्पना करती थी कि वह शांत है, हमेशा चौकन्ना, सतर्क, हर मुसीबत से निकलने में सक्षम, वह किसी के उकसावे में आकर जल्दबाजी में फैसले नहीं लेता। मैं उसके जिंदा रहने की प्रार्थना कर रही थी, चाहती थी कि वह सुरक्षित रहे, खुशी मनाती थी जब वह एक और इंसानी बाधा को पार करके आगे बढ़ता था। फिर इसके बाद हमारा उससे संपर्क टूट गया।

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ढाई साल बाद, एक रात को एक मृत तेंदुआ मिला। नगला से 12 किलोमीटर दूर भारी ट्रैफिक वाले घोड़बंदर वाले हाईवे पर, वह शायद किसी सड़क दुर्घटना का शिकार हुआ था। हो सकता है कि वह किसी तेज रफ्तार गाड़ी की स्पीड को न भांप पाया हो या हो सकता है किसी गाड़ी की हेडलाइट के सामने उसकी आंखें चौंधिया गई होंगी। अगर उस खतरनाक सड़क को पार करने के लिए कोई अंडरपास बना होता तो शायद वह अभी भी जिंदा होता। आजकल जैसी आम परंपरा है, अधिकारियों ने उसके शरीर पर मौजूद किसी माइक्रो-चिप की पड़ताल की। आखिरकार वह मिली, उस पर लिखा था 00006CBD68F अजूबा।

(जानकी लेनिन एक लेखक, फिल्ममेकर और पर्यावरण प्रेमी हैं। इस कॉलम में वह अपने पति मशहूर सर्प-विशेषज्ञ रोमुलस व्हिटकर और जीव जंतुओं के बहाने पर्यावरण के अनोखे पहलुओं की चर्चा करेंगी।)

     

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