सर्वे: किसान की आमदनी दोगुनी होने में लगेंगे अभी कम से कम 25 साल

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सर्वे: किसान की आमदनी दोगुनी होने में लगेंगे अभी कम से कम 25 साल

नीति आयोग एक सर्वे के जरिए किसानों की आय में हर साल होने वाली वृद्धि का आंकलन कर रहा है। भारतीय कृषि के इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है जब किसानों की आय में साल दर साल होने वाली बढ़ोतरी का अध्ययन किया जा रहा हो। इसके शुरुआती नतीजे बताते हैं कि फिलहाल वास्तविक कीमतों पर किसानों की आमदनी हर साल 3.8 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। इस हिसाब से 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का मोदी सरकार का सपना पूरा होता नहीं दिखाई देता। ऐसा होने में कम से कम 25 साल का वक्त लगेगा। नीति आयोग ने अभी इस अध्ययन के नतीजे सार्वजनिक नहीं किए हैं।

अध्ययन के मुताबिक, बाजार कीमतों पर किसानों की आमदनी बढ़ने की दर 11 प्रतिशत है। सरकार के पास इसके अलावा ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं है जिसमें किसानों की आमदनी को वर्षवार नापा गया हो। सरकार की एजेंसी नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन (एनएसएसओ) हर दस साल में किसानों की आमदनी का अध्ययन करती है।

असंगत है किसानों की आय की गणना का तरीका

नीति आयोग ने अपने इस अध्ययन में 2011 से 2016 के बीच खेती, पशुपालन और मछलीपालन से आय में होने वाली बढ़त को शामिल किया है। लेकिन इसमें वनों से होने वाली आमदनी को शामिल नहीं किया गया है। यह एक चूक है, क्योंकि इस आधार पर हिमाचल प्रदेश के कृषि परिवार की आय में बढ़त की दर शून्य से नीचे चली गई और केरल व उत्तराखंड में भी किसानों की आय वृद्धि दर घटकर 1.6 तक रह गई है। चूंकि इन राज्यों में खेती से होने वाली आय में वानिकी का बड़ा योगदान है, इसलिए इसे गणना में शामिल न करना बड़ी भूल है।

हालांकि, अधिकांश अन्य राज्यों में, कृषि आय में वानिकी का मामूली योगदान है। इसलिए, उन राज्यों में, यदि वानिकी से होने वाली आय को जोड़ा जाता है, तो आय की दर और कम हो जाएगी।

किसानों की आमदनी में बढ़ोतरी नापने के लिए राज्य के शुद्ध घरेलू उत्पाद (एनडीपी) में से मजदूरी घटा कर उसे 2011 की जनगणना के अनुसार किसानों की संख्या से विभाजित किया जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि हर साल किसानों की संख्या कम हो रही है, इसलिए परिणामों को देखकर ऐसा लगेगा कि किसानों की आय में बढ़ोतरी हो रही है।

साभार: डाउन टू अर्थ

अलग-अलग राज्यों में क्या है स्थिति

महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक और गुजरात की गिनती ऐसे राज्यों में की जाती है जहां खेती संकट के दौर से गुजर रही है। यहां किसानों की आय में बहुत कम बढ़त हो रही है। इन्हीं राज्यों से किसानों की आत्महत्या की खबरें सबसे ज्यादा आती हैं।

महाराष्ट्र में कृषक परिवार की आय में बढ़ोतरी लगभग 0.7 प्रतिशत पर रुकी हुई है। पंजाब में यह 1.2 प्रतिशत और हरियाणा में 1.6 प्रतिशत है। कर्नाटक (2 प्रतिशत) और गुजरात (2.2 प्रतिशत) की स्थिति इनसे कुछ बेहतर है।

इस अध्ययन के मुताबिक, मध्य प्रदेश में किसानों की आय सालाना 16.5 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है, यह सभी राज्यों में सबसे ज्यादा है। लेकिन विडंबना है कि मध्य प्रदेश में ही पिछले कुछ वर्षों में उपज के उचित मूल्य और कर्ज माफी को लेकर ढेरों किसान आंदोलन और विरोध प्रदर्शन भी हुए हैं।

2016 में जिस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का वादा किया था उस समय किसी को पता नहीं था कि वास्तव में किसानों की आमदनी कितनी है। उस समय तक कृषक परिवारों की आय पर एनएसएसओ के सर्वे (2012-13) का ही संदर्भ दिया जाता था जिसमें किसान परिवारों की औसत आय 6,424 रुपए प्रति माह बताई गई थी। पर हाल ही में नाबार्ड ने एक रिपोर्ट जारी करके अनुमान लगाया है कि पिछले तीन वर्षों में किसानों की आमदनी में 39 प्रतिशत का इजाफा हुआ है।

नाबार्ड की रिपोर्ट पर भी उठे सवाल

महज तीन वर्षों में किसानों की आय में ऐसी असाधारण वृद्धि पर कई जानकारों ने कई सवाल उठाए हैं। इस रिपोर्ट की प्रस्तावना में नाबार्ड के चेयरमैन हर्षकुमार भानवाला ने कहा है कि इस सर्वे में एनएसएसओ की 2012 की रिपोर्ट में बताई गई किसानों की आय से तुलना की गई है और सर्वे की कार्यप्रणाली और परिणामों को नीति आयोग, वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के साथ भी साझा किया गया है। दूसरी ओर, नाबार्ड की इस रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि अवधारणाओं और परिभाषाओं में मतभेद की वजह से मौजूदा दूसरे सर्वेक्षणों और अनुमानों के नतीजों के साथ इस सर्वे के नतीजों की तुलना नहीं की जा सकती।

इस पर दिल्ली के रहने वाले किसान कार्यकर्ता अभिषेक जोशी का कहना है, "नाबार्ड की इस रिपोर्ट का मकसद महज राजनीतिक फायदा उठाना है न कि यह सुनिश्चित करना कि किसानों को लाभ हो।"

नाबार्ड के इस ताजा सर्वे का अगर एनएसएसओ की रिपोर्ट के आधार पर विश्लेषण करते हैं तो पता चलता है कि खेती और पशुपालन से होने वाली आमदनी लगभग स्थिर है। जो भी बढ़त देखी गई है वह सिर्फ गैर-कृषि उद्यम और मजदूरी में हुई है।

(यह लेख अंग्रेजी में डाउन टू अर्थ में प्रकाशित हो चुका है)

         

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