नाबार्ड का सर्वे, किसानों की आमदनी में हुई 37 फीसदी की बढ़ोतरी
सर्वे के नतीजों के आधार पर नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने उम्मीद जताई है कि 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का लक्ष्य आसानी से हासिल किया जा सकता है।
गाँव कनेक्शन 17 Aug 2018 12:55 PM GMT
नाबार्ड हर तीन साल में ये सर्वे करता है। इस सर्वे के मुताबिक खेती-किसानी से जुड़े परिवारों की आय में बढ़ोतरी ही है। और इसका सबसे ज्यादा फायदा छोटे और सामान्य किसानों को हुआ..
लखनऊ। राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण बैंक (नाबार्ड) के सर्वे के मुताबिक 2012-13 से 2015-16 के बीच देश के किसानों की आमदनी में 37.4 फीसदी की वृद्धि हुई है। हर तीसरे साल होने वाले अखिल भारतीय समावेश सर्वेक्षण (एनएएफआर्इएस) के आधार पर नाबार्ड ने कहा है कि 2015-16 में खेती से होने वाली औसत वार्षिक आय 1,07,172 रुपए पाई गई, जबकि 2012-13 में यह 77,977 रुपए थी। सर्वे के नतीजों के आधार पर नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने उम्मीद जताई है कि 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का लक्ष्य आसानी से हासिल किया जा सकता है।
इस सर्वेक्षण के मुताबिक, 2015-16 के दौरान देश में ग्रामीण परिवार की औसत मासिक आय 8,059 रुपए थी, जबकि उसका औसत खर्च 6,646 रुपए था। इस लिहाज से हर महीने इन परिवारों को 1,413 रुपए की बचत होती है।
पंजाब, हरियाणा और केरल में रहने वाले ग्रामीण परिवार की मासिक आय देश में सबसे ज्यादा क्रमश: 23,133 रुपए, 18,496 रुपए और 16,927 रुपए थी। सर्वे के अनुसार, उत्तर प्रदेश इस मामले में सबसे नीचे है। उत्तर प्रदेश के गांवों में रहने वाले परिवारों की औसत मासिक आय महज 6,668 रुपए है।
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सर्वे का कहना है कि आंध्र प्रदेश में आमदनी की तुलना में मंहगाई अधिक होने से ग्रामीण परिवार एक महीने में महज 95 रूपए बचा पता है। बिहार के ग्रामीण परिवार की एक माह की बचत 262 रुपए और उत्तर प्रदेश के गांव में रहने वाला परिवार एक महीने में 315 रुपए बचा पाता है।
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सर्वे में यह भी पता चला कि 88.1 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के बैंक खाते खुल गए हैं। पर इनमें से केवल 24 प्रतिशत ही तीन महीने में एक बार एटीएम कार्ड का इस्तेमाल करते हैं। इसी तरह 55 प्रतिशत कृषक परिवारों के पास एक बचत खाता है।
इन सभी परिवारों की औसत बचत आय करीब 17,488 रुपए है। सर्वे का कहना है कि कृषि से जुड़े करीब 26 प्रतिशत परिवार और गैर-कृषि क्षेत्र के 25 प्रतिशत परिवार बीमा के दायरे में हैं। इसी तरह, 20.1 प्रतिशत कृषक परिवारों ने पेंशन योजना ली है वहीं महज 18.9 प्रतिशत गैर-कृषक परिवारों के पास पेंशन योजना है। सर्वे में किसानों की परिसंपत्ति के आधार पर आंकड़े जुटाए गए। इसमें उत्पादन और खपत पर घरेलू खर्च, कर्ज, बचत, बीमा, पेंशन जैसे वित्तीय पहलुओं को भी शामिल किया गया था।
सर्वेक्षण के मुताबिक वित्तीय समावेशन अभियान का व्यापक असर हुआ है। ग्रामीण क्षेत्रों में 88.1 फीसदी परिवारों के पास बचत खाते हैं। साथ ही ये भी जानकारी मिली है कि सर्वेक्षण के दिन बकाए कर्ज के मामले में कृषि से जुड़े 52.5 फीसदी जबकि गैर कृषि वाले 42.8 फीसदी परिवार कर्ज़दार है।
सर्वे पेश करते समय नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार का कहना था, "औसत जमीन की जोत में कमी होने के बावजूद कृषक परिवार की आय में बढ़ोतरी बताती है कि देश में गरीबी कम हो रही है। अगर वैल्यू चेन विकसित की जाए और किसानों को मार्केटिंग सुविधाएं मुहैया कराई जाएं तो किसानों की आय में और भी बढ़ोतरी हो सकती है। सर्वे के नतीजे बताते हैं कि 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का लक्ष्य पाया जा सकता है।"
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आमधारणा के विपरीत सर्वे में पाया गया कि देश के महज 48 प्रतिशत ग्रामीण ही पूरी तरह खेती पर निर्भर हैं। सर्वे में उस परिवार को कृषक परिवार माना गया है जिस परिवार की केवल खेती से ही 5000 रुपए की आमदनी होती है। पाया गया कि केवल 12.7 प्रतिशत कृषक परिवार ही एक स्रोत पर निर्भर थे, बाकी परिवारों के पास आमदनी के दूसरे जरिए भी थे। वहीं गांवों में रहने वाले 79.4 प्रतिशत गैर कृषक परिवार आमदनी के लिए एक ही स्रोत पर निर्भर थे। कृषक परिवारों की आमदनी का 35 फीसदी खेती से, जबकि मजदूरी से 34 फीसदी हासिल होता था।
आय के दूसरे स्रोतों में शामिल हैं: सरकारी/निजी सेवाएं (16%), पशुपालन (8%) और दूसरी गतिविधियां (7%)। सर्वेक्षण के अनुसार, प्रतिमाह 7269 रुपए कमाने वाले गैर कृषक परिवार की आमदनी से कृषक परिवार की आमदनी 23 प्रतिशत अधिक (8,931 रुपए) थी।
सर्वे में देखा गया कि 52.5 प्रतिशत कृषक परिवारों पर कर्ज बकाया था, जबकि सिर्फ 42.8 प्रतिशत गैर कृषक परिवारों को अपना कर्ज चुकाना था। कृषक परिवारों पर औसत बकाया कर्ज 1,04,602 रुपए था वहीं गैर कृषक परिवारों पर औसत बकाया 76,731 रुपए था। इस सर्वे में 29 राज्यों के 40,327 कृषि और गैर कृषक ग्रामीण परिवारों के 1.88 लाख लोगों को शामिल किया गया था।
So, #Govt changed the goalpost & included those households with #agri produce worth Rs 5000 & not Rs 3000 as was done in 66 NSSO Survey; then it's quite but natural that the avg #farmer income will increase. #NABARD juggled figs or was it asked to by the Govt ? @mkvenu1 @nistula https://t.co/WDGWTgricB
— Ramandeep Singh Mann (@ramanmann1974) August 17, 2018
उठने लगे हैं सवाल
किसान मामलों के तमाम जानकार इस रिपोर्ट पर सवाल खड़े कर रहे हैं। किसानों के हक की बात करने वाले रमनदीप सिंह मान का कहना है कि इस सर्वे में किसानों की परिभाषा बदल कर आंकड़े जुटाए गए हैं। 2012-13 के आंकड़े एनएसएसओ या नेशनल सैंपल सर्वे में एकत्र किए गए थे तब उस परिवार को कृषक परिवार माना गया था जिसे केवल खेती से ही 3000 रुपए तक की आमदनी हो। वहीं इनकी तुलना 2015-16 में जिन आंकड़ों से की गई जिनमें खेती से 5000 कमाने वालों को कृषक परिवार का दर्जा दिया गया है। रमनदीप के अनुसार, ऐसे में तो आमदनी ज्यादा दिखनी ही थी।
नोट- सर्वे को विस्तार से पढ़ने के लिए नाबार्ड की वेबसाइट पर जाएं या यहां क्लिक करें
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