साल 2017 के मुकाबले 2018 में किसानों की आत्महत्या में आयी थोड़ी कमी

एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2017 में कृषि क्षेत्र (कृषक और कृषि श्रमिक) में कुल 10,655 लोगों ने आत्महत्या की थी जबकि साल 2016 में 11,379 लोगों ने आत्महत्या की और साल 2018 में 10,349 लोगों ने आत्महत्या की।

Divendra SinghDivendra Singh   13 Jan 2020 8:54 AM GMT

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साल 2017 के मुकाबले 2018 में किसानों की आत्महत्या में आयी थोड़ी कमी

लखनऊ। बीते साल नौ नवंबर को पैंतीस साल के गजानन शिंदे का शव उन्हीं के खेत के किनारे लगे पेड़ पर लटका मिला। किसान गजानन महाराष्ट्र के नांदेड़ जिले की लोहा तालुका के खंभेगांव के रहने वाले थे। उनपर बैंक और साहूकारों का दो लाख से अधिक का कर्ज था।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2018 में कृषि क्षेत्र में काम करने वाले 10,349 लोगों ने आत्महत्या की। पिछले साल के मुकाबले खेती से जुड़े आत्महत्या में थोड़ी कमी आयी है। एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2017 में कृषि क्षेत्र (कृषक और कृषि श्रमिक) में कुल 10,655 लोगों ने आत्महत्या की थी जबकि साल 2016 में 11,379 लोगों ने आत्महत्या की। और इस साल 2018 में 10,349 लोगों ने आत्महत्या की।

यह देश में इस अवधि में हुए खुदकुशी के मामलों का सात फीसदी हैं, वर्ष 2018 में कुल 1,34,516 लोगों ने आत्महत्या की।

पिछले वर्ष गाँव कनेक्शन ने महाराष्ट्र के कई जिलोंं से रिपोर्ट की थी, जिसमें किसान या तो किसी परिजन ने आत्महत्या की। महाराष्ट्र के किसान गजानन ने अपने तीन एकड़ खेत में सोयाबीन की फसल बोई थी, लेकिन सितंबर-अक्टूबर की अतिवृष्टि से उनकी पूरी फसल बर्बाद हो गई थी। गजानन अपने पीछे वो 29 साल की पत्नी, 60 साल की बुजुर्ग मां, 10 साल का एक बेटा और 7 साल की एक बेटी छोड़ गए हैं, जिनके पास रहने के लिए टीन का छोटा सा टूटा-फूटा घर और 2 लाख से ज्यादा बैंक और साहूकारों का कर्ज़ है।

सितंबर से लेकर नवंबर तक हुई भीषण बारिश के चलते पिछले साल 2019 मेे 14 अक्टूबर से 11 नवंबर के बीच मराठवाड़ा में 68 किसानों ने जान दी थी। भारत में सबसे ज्यादा किसानों की आत्महत्याएं महाराष्ट्र में होती हैं। एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार आत्महत्या के सबसे अधिक मामले महाराष्ट्र (17,972) में दर्ज किए गए। दूसरे, तीसरे, चौथे और पांचवें स्थान पर क्रमश: तमिलनाडु (13,896), पश्चिम बंगाल (13,255), मध्य प्रदेश (11,775) और कर्नाटक (11,561) है। इन पांच राज्यों में ही 50.9 फीसदी खुदकुशी के मामले दर्ज किए गए।

एनसीआरबी की ओर से बीते आठ जनवरी को जारी रिपोर्ट के मुताबिक आत्महत्या करने वाले किसानों में अधिकतर पुरुष हैं।

देश में अपराध के आंकड़ों का संकलन कर विश्लेषण करने के लिए जिम्मेदार एजेंसी के मुताबिक 2016 के मुकाबले 2018 में किसानों की खुदकुशी के मामलों में कमी आई है। वर्ष 2016 में 11,379 किसानों ने आत्महत्या की थी। इससे पहले साल 2014 में 12,360 और 2015 में 12,602 किसानों ने आत्महत्या की थी।

बीते साल 2019 में सितंबर महीने के दूसरे हफ्ते में पंजाब में हुए एक प्रकरण ने भारत में किसान के शुभचिंतकों को सोचने पर मजबूर कर दिया। पंजाब के बरनाला जिले के भोजना गांव में 22 साल के एक युवक ने कीटनाशक पीकर आत्महत्या कर ली थी। कर्ज़ के कारण ये परिवार में चौथी पीढ़ी की पांचवीं मौत थी, और इसी के साथ ये वंश खत्म हो गया। इससे पहले युवक के परदादा, दादा दादा के भाई और पिता भी आत्महत्या कर चुके थे। 50 साल पहले युवक ने परदादा जोदिंगर सिंह ने जो 13 एकड़ जमीन के मालिक थे, आढ़ती से कर्ज़ लिया था, कर्ज लेने के 10 साल बाद उन्होंने जान दे दी, बढ़ते कर्ज़ से परेशान युवक के दादा भगवान सिंह 25 साल पहले, और कमाई न होने से परेशान उसके दादा के भाई नाहर सिंह ने भी 10 साल पहले जान दे दी। जबकि पिछले साल लवप्रीत सिंह उसे परिवार में दादी, माता और एक बहन है।

एनसीआरबी के मुताबिक, पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा, उत्तराखंड, मेघालय, गोवा, चंडीगढ़, दमन और दीव, दिल्ली, लक्षद्वीप और पुदुचेरी ऐसे राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेश रहे जहां पर कृषि क्षेत्र में कार्यरत किसी भी व्यक्ति की खुदकुशी की घटना दर्ज नहीं की गई।


एनसीआरबी की ओर से बीते आठ जनवरी को जारी रिपोर्ट के मुताबिक आत्महत्या करने वाले किसानों में अधिकतर पुरुष हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, 'वर्ष 2018 में कृषि क्षेत्र से जुड़े 10,349 लोगों ने खुदकुशी की। इनमें भी 5,763 किसान हैं जबकि शेष 4,586 खेतिहर मजदूर हैं। यह आंकड़ा देश में कुल आत्महत्या के मामलों का 7.7 प्रतिशत है।'

एनसीआरबी के अनुसार, 2018 में आत्महत्या करने वाले 5,763 किसानों में 5,457 पुरुष और 306 महिलाएं हैं ( इसी प्रकार आत्महत्या करने वाले 4,586 खेतिहर मजदूरों में 4,071 पुरुष और 515 महिलाएं शामिल हैं।

कृषि संकट के चलते किसानों के बाद उनके परिवार वाले भी आत्महत्या कर रहे हैं। सूखे के लिए कुख्यात महाराष्ट्र के लातूर जिले में 17 साल के एक छात्र ने फांसी लगा कर जान दे दी। परिजनों का कहना है उसकी 12वीं की फीस और खर्च के लिए पैसे नहीं मिल पा रहे थे, इसलिए उसने जान दे दी। महाराष्ट्र में सूखाग्रस्त जिलों में से एक मराठवाड़ा के लातूर जिले में औसा तालुका के बोरोगांव के श्रीधर पाटिल ने आत्महत्या कर ली थी। श्रीधर पाटिल अभी 12वीं में पढ़ता था और डॉक्टर बनना चाहता था। लेकिन लगातार बर्बाद होती फसल और पैसों की कमी से मजबूर होकर उसने आत्महत्या कर ली थी।

खेती के संकट का, किसान की आत्महत्या के बाद उसके परिवार पर क्या फर्क पड़ता है। इसे समझने के लिए साल 2015-16 में किसान मित्र नेटवर्क नाम के संगठनों के समूह ने महाराष्ट्र के कई जिलों में एक्शन एड के साथ मिल कर एक सर्वे किया। किसान मित्र नेटवर्क की प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर संजीवनी पंवार गांव कनेक्शन को फोन पर बताती हैं, "किसान ज्यादातर बार कर्ज़ के चलते आत्महत्या करते हैं, लेकिन उनका कर्ज़ माफ नहीं होता। कई बार मुआवजा तक नहीं मिलता। मिलता है तो बैंक लोन में काट लेते हैं। किसान का परिवार रोजमर्रा की जिंदगी में इतना संघर्ष करता है। वो तिल-तिल कर मरता है।"

अपनी बात को जारी रखते हुए वो कहती है, "किसान के ज्यादातर परिवारों के बच्चे उच्च शिक्षा नहीं पाते। पढ़ाई छोड़कर मजदूरी करते हैं। महिलाएं बच्चियां शोषण का शिकार होती हैं। कई बार बच्चे आत्महत्या तक कर लेते हैं। कई उन लड़कियों ने भी आत्महत्या की है, जिनके घरों में शादी के लिए खर्च का इंतजाम नहीं हो पा रहा था। आमतौर पर ऐसे परिणाम दूर से नजर नहीं आते हैं।"

पिछले साल के तुलना में खेती से जुड़े लागों की आत्महत्या में आयी थोड़ी कमी

एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2017 में कृषि क्षेत्र (कृषक और कृषि श्रमिक) में कुल 10,655 लोगों ने आत्महत्या की थी जबकि साल 2016 में 11,379 लोगों ने आत्महत्या की। वर्ष 2016 और वर्ष 2017 की तुलना में वर्ष 2018 में किसान एवं कृषि श्रमिकों की आत्महत्या में कम आई है। साल 2017 में कुल 5,955 किसानों और 4,700 कृषि श्रमिकों ने अपनी जान दी थी, जबकि 2016 में 6,270 किसानों और 5,109 कृषि श्रमिकों ने आत्महत्या की थी।


   

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