आखिर देश में नये नागरिकता कानून पर क्यों बढ़ रहा विरोध ?
नए नागरिकता कानून को लेकर पूर्वोत्तर राज्यों से शुरू हुए हिंसक प्रदर्शनों की आग देश की राजधानी दिल्ली समेत कई राज्यों में फैलती जा रही है।
Kushal Mishra 17 Dec 2019 10:58 AM GMT
नए नागरिकता कानून को लेकर पूर्वोत्तर राज्यों से शुरू हुए हिंसक प्रदर्शनों की आग देश की राजधानी दिल्ली समेत कई राज्यों में फैलती जा रही है। मगर सवाल यह भी है कि इस नये कानून का विरोध लगातार क्यों बढ़ता जा रहा है।
इस कानून के खिलाफ सबसे पहले हिंसक प्रदर्शनों का गढ़ बने असम राज्य के गुवाहाटी शहर में राज्य सरकार ने 17 दिसंबर की सुबह कफ्र्यू को हटा लिया है और इंटरनेट सेवा को फिर से शुरू कर दिया है।
गुवाहाटी में सेंटर फॉर डेवलपमेंट एंड पीस स्टडीज के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर और वरिष्ठ पत्रकार वसबीर हुसैन 'गाँव कनेक्शन' से फोन पर बताते हैं, "गुवाहाटी में जो हिंसक प्रदर्शन हुए उसमें नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट्स यूनियन ने हवाला दिया है कि इन प्रदर्शनों को हिंसक रूप देने में उनके छात्र संगठनों में कोई नहीं है। वहीं सरकार ने इन प्रदर्शनों में करीब 1500 प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया और वीडियो व अन्य माध्यमों के जरिए जांच चल रही है। सरकार ने भी माना है कि हिंसा फैलाने वालों में बाहरी तत्व के लोग भी शामिल रहे हैं। विरोध करने वाले लोगों के खिलाफ सरकार पड़ताल कर रही है।"
अब तक देश में नए नागरिकता कानून के खिलाफ पूर्वोत्तर राज्यों और दिल्ली के अलावा ये हिंसक प्रदर्शन उत्तर प्रदेश के सात जिलों (अलीगढ़, मेरठ, कासगंज, बुलंदशहर, सहारानपुर, बरेली और मऊ), पश्चिम बंगाल, पंजाब, बिहार, केरल में बड़ा रूप अख्तियार कर चुके हैं। कई जिलों पर कफ्र्य लगाने के साथ इंटरनेट सेवाएं बंद कर गई हैं। हाई अलर्ट जारी कर दिया गया है और पुलिस झड़प में कई लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है।
नागरिकता पर क्या कहता है नया कानून ?
नागरिकता बिल पास होने के बाद मुस्लिम बाहुल्य देश पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से धार्मिक उत्पीड़न का शिकार हुए और भारत आए हिन्दू, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध और पारसी समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है। इसमें मुस्लिम समुदाय के लिए कोई प्रावधान नहीं किया गया है।
नए कानून के तहत 31 दिसंबर, 2014 तक भारत में रह रहे अवैध प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान की जाएगी। इससे पहले बिल के तहत 11 वर्ष तक भारत में रहने वाले लोगों को ही भारतीय नागरिकता मिल सकती थी। मगर नये बिल के बाद अब पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यक लोग अगर 06 वर्ष भारत में रहे हैं तो उन्हें भारतीय नागरिकता मिल सकेगी।
बिल में यह भी प्रावधान है कि देश में अवैध निवास को लेकर पहले से चल रही कोई भी कानूनी कार्रवाई उनकी पात्रता को लेकर स्थायी नागरिकता के लिए बाधक नहीं बनेगी।
पूर्वोत्तर राज्यों खासकर असम में क्यों शुरू हुआ विरोध ?
असल में बांग्लादेश और नेपाल के पास बसे देश के पूर्वोत्तर राज्य (असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा) लंबे समय से शरणार्थियों का बसेरा रहे हैं। इसमें असम राज्य सबसे ज्यादा प्रभावित रहा है।
वर्ष 1985 में शरणार्थियों की समस्या को लेकर हुए असम समझौते के तहत इसी साल अगस्त में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने राज्य में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) जारी किया जिसमें असम में बसे 19 लाख लोगों के नाम भारतीय नागरिकता से बाहर हो गये।
असम के 3.5 करोड़ लोग सरकार के नये नागरिकता बिल के खिलाफ हैं। हम जो लंबे समय से रहते आ रहे हैं, उन मूल निवासियों को क्यों सताया जा रहा है। हम लंबे समय से लड़ाई लड़ते आ रहे हैं और अब असम समझौते के तहत हमें 1971 के बाद किसी शरणार्थी का आना मंजूर नहीं है। हम अपनी राज्य की संस्कृति और पहचान बचाए रखने के लिए अब कोई समझौता नहीं करेंगे।
प्रेम तमांग, अध्यक्ष, ऑल असम गोरखा स्टूडेंट्स यूनियन
प्रदर्शन में शामिल ऑल असम गोरखा स्टूडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष प्रेम तमांग ने 'गांव कनेक्शन' से फोन पर बताया, "असम के 3.5 करोड़ लोग सरकार के नये नागरिकता बिल के खिलाफ हैं। हम जो लंबे समय से रहते आ रहे हैं, उन मूल निवासियों को क्यों सताया जा रहा है। हम लंबे समय से लड़ाई लड़ते आ रहे हैं और अब असम समझौते के तहत हमें 1971 के बाद किसी शरणार्थी का आना मंजूर नहीं है। हम अपनी राज्य की संस्कृति और पहचान बचाए रखने के लिए अब कोई समझौता नहीं करेंगे।"
वहीं प्रदर्शन में शामिल हुए असम जाकियातावादी युवा परिषद के जनरल सेक्रेटरी उद्यन कुमार गोगोई ने 'गांव कनेक्शन' से फोन पर बताया, "हम लोग असम को दूसरा कश्मीर जैसा नहीं बनाना चाहता है। केंद्र सरकार के पहले एनआरसी और अब नये नागरिकता बिल से असम के लोग परेशान हो चुके हैं। हम चाहते हैं कि असम के सभी जिलों में आईएलपी लागू किया जाए ताकि असम के मूल लोग बसे रहें।"
एलआईपी सिस्टम के लिए पूर्वोत्तर राज्यों को राहत
इनर लाइन ऑफ परमिट यानी आईएलपी शरणार्थियों को बसने के लिए रोकने के लिए बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन, 1873 के तहत सीमाई राज्यों के इलाकों के लिए लागू किया गया था। इसके तहत इलाकों में प्रवेश करने के लिए विदेशियों समेत भारतीयों को भी आईएलपी के तहत ही राज्य में प्रवेश दिया जाता है।
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पूर्वोत्तर राज्यों के मेघालय, मिजोरम, नागालैंड और मणिपुर में भी एलआईपी सिस्टम है। जनवरी महीने में इन राज्यों के लोग भी नये कानून के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। मगर इन राज्यों को राहत देते हुए लोक सभा में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि आईएलपी वाले पूर्वोत्तर के इलाके नये नागरिकता बिल से बाहर रहेंगे और इन राज्यों के लोगों को राहत मिलेगी।
मगर असम के 33 जिलों में से सिर्फ 07 जिलों में ही एलआईपी सिस्टम लागू है। इसलिए असम में नए नागरिकता कानून के खिलाफ कई हिंसक प्रदर्शन सामने आए।
नये कानून पर विपक्षी दलों ने उठाए सवाल
एक तरफ असम और पूर्वोत्तर राज्य नये नागरिकता कानून के खिलाफ जहां अपने राज्य की पहचान बचाए रखने की लड़ाई लड़ रहे हैं दूसरी तरफ विपक्षी दल इस कानून को लेकर संविधान की धारा 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन बता रहे हैं। कांग्रेस समेत विपक्षी दलों का आरोप है कि केंद्र सरकार नये कानून में धर्म के नाम पर बांट रही है और यह समानता के अधिकार का उल्लंघन है।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ट्वीट कर कहा, "यह भाजपा की राजनीति है। भारत सभी लोगों का है। अगर सबका विकास नहीं रहेगा तो सबका विकास कैसे होगा? नागरिकता कानून किसके लिए है? हम सभी नागरिक हैं। हम नए नागरिकता कानून और एनआरसी को वापस लेने तक अपना विरोध जारी रखेंगे।"
West Bengal Chief Minister Mamata Banerjee in Kolkata: We will continue our protest till the #CitizenshipAmendmentAct and National Register of Citizens (NRC) are withdrawn. pic.twitter.com/RLrrpMRCzg
— ANI (@ANI) December 16, 2019
वहीं केरल के मुख्यमंत्री पिनारयी विजयन ने कहा, "यह माहौल भाजपा और आरएसएस की ओर से बनाया गया है। दोनों ही अपने एजेंडे को देश में लागू करने की कोशिश कर रहे हैं। देश में स्थिति अस्थिर है। केरल नए नागरिकता कानून के खिलाफ एक साथ खड़ा है।"
Kerala Chief Minister Pinarayi Vijayan at LDF-UDF joint protest: The present atmosphere has been created by BJP-RSS,they are trying to implement their agenda. Situation in the country is volatile.Kerala is standing together against the #CitizenshipAmendmentAct https://t.co/EqseGb39tI pic.twitter.com/AwJdxtiVuL
— ANI (@ANI) December 16, 2019
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टर अमरिंदर सिंह ने ट्वीट किया, "कोई भी कानून जो धर्म के आधार पर बांटता हो, असंवैधानिक हो वो गैरकानूनी है। नया नागरिकता कानून इसके आधारभूत सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। इसलिए मेरी सरकार इसे पंजाब में लागू नहीं होने देगी।"
Any legislation that seeks to divide people on religious lines is illegal, unethical & unconstitutional. India's strength lies in its diversity and #CABBill2019 violates the basic principle of the constitution. Hence my govt will not allow the bill to be implemented in Punjab.
— Capt.Amarinder Singh (@capt_amarinder) December 12, 2019
पांच राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने नए कानून का किया विरोध
देश के कुछ राज्यों में नए नागरिकता कानून को अपने यहां लागू करने से इनकार किया है। अब तक पांच राज्यों के मुख्यमंत्री कह चुके हैं कि वो इसे अपने राज्य में लागू नहीं करेंगे। इनमें पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ शामिल हैं। विपक्षी दलों ने इस नये कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दी हैं।
वहीं साहित्य, कलाकार और लेखकों ने भी इस कानून का विरोध किया है। लेखिका और उर्दू की वरिष्ठ पत्रकार शिरीन दलवी ने नए नागरिकता कानून के विरोध में महाराष्ट्र उर्दू साहित्य अकादमी से मिला सम्मान वापस कर दिया है।
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सम्मान लौटाने के बाद शिरीन ने अपने एक लेख में लिखा, "इस बिल में मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया है, जबकि इस देश में रहते हुए नागरिकता हासिल करने का मुसलमानों का भी उतना ही हक़ है।" उन्होंने लिखा, "देश के संविधान में धारा 14 के तहत धर्म या आस्था की बुनियाद पर दो धर्मों के बीच फ़र्क़ नहीं किया जा सकता, बिल पारित करने से पहले इस बात का ध्यान रखना चाहिए था।"
वहीं मुस्लिम यूथ एसोसिएशन के अध्यक्ष और राष्ट्रवादी नेता मो. आमिर राशिद ने पत्रकारों से बातचीत में कहा, "केंद्र सरकार की ओर से पेश किया गया नागरिक संशोधन बिल मुस्लिम समुदाय के हित में है क्योंकि दूसरे देशों से शरणार्थी बनकर आने वाले मुसलमान सबसे ज्यादा इस देश के मुसलमानों को ही नुकसान पहुंचा रहे हैं।"
सुप्रीम कोर्ट ने दखल देने से किया इनकार
सुप्रीम कोर्ट ने 17 दिसंबर को दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय हिंसा मामले में दखल देने से इनकार करते हुए याचिकाकर्ताओं को हाई कोर्ट जाने का निर्देश दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कई स्थानों पर घटनाएं हुई हैं और सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई संभव नहीं है। हाई कोर्ट गिरफ्तारी समेत कैसा भी फैसला लेने के लिए स्वतंत्र हैं।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबड़े ने कहा कि हम नागरिकों के अधिकारों का निर्धारण करेंगे मगर राज्यों में हो रहे दंगों के माहौल में नहीं। पहले इन्हें रुकने दीजिए फिर हम इस पर संज्ञान लेंगे।
'यह कानून देश के मुस्लिमों के खिलाफ बिल्कुल भी नहीं'
नए कानून पर बढ़ते विरोध को लेकर सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्वनी दुबे 'गांव कनेक्शन' से फोन पर बताते हैं, "इस नए नागरिकता कानून के जरिए देश की सरकार ने उन देशों के अल्पसंख्यकों को संरक्षण देने की बात कही है जो पहले ही मुस्लिम बाहुल्य देश में हैं। इन देशों में अल्पसंख्यकों को प्रताणित करने की बात है तो संयुक्त राष्ट्र में भी उठाई गई है और उन्होंने माना भी है।"
इन तीनों देशों में मुस्लिम समुदाय अल्पसंख्यक तो हैं नहीं। अब जहां तक संविधान की धारा 14 के तहत समानता के अधिकार की बात हो रही है इसे समझना चाहिए कि समानता का अधिकार उनके लिए है जो देश के नागरिक हैं। ऐसे में अल्पसंख्यकों के नाम पर उन लोगों का बहाना देना जो देश के नागरिक है ही नहीं, ये गलत होगा।
अश्वनी दुबे, वकील, सुप्रीम कोर्ट
अश्वनी दुबे बताते हैं, "इन तीनों देशों में मुस्लिम समुदाय अल्पसंख्यक तो हैं नहीं। अब जहां तक संविधान की धारा 14 के तहत समानता के अधिकार की बात हो रही है इसे समझना चाहिए कि समानता का अधिकार उनके लिए है जो देश के नागरिक हैं। ऐसे में अल्पसंख्यकों के नाम पर उन लोगों का बहाना देना जो देश के नागरिक है ही नहीं, ये गलत होगा।"
"मैं नहीं समझता कि यह नया कानून देश के संविधान के खिलाफ है। जो व्यक्ति अभी देश का नागरिक है ही नहीं, उनके लिए संविधान की धारा 14 का उल्लेख किया जाना सही नहीं है," वह आगे कहते हैं।
वकील अश्वनी दुबे, "यह कानून देश के मुस्लिमों के खिलाफ बिल्कुल भी नहीं है, यह कानून सिर्फ उन लोगों के लिए है जिनकों इन तीनों देशों में धर्म के आधार पर प्रताणित किया जा रहा है। अगर विपक्षी दल अपना विरोध सुप्रीम कोर्ट में करते भी हैं तो फिर भी यह बिल पास होने की उम्मीद है।"
'लोगों में भ्रम फैलाकर देश में उन्माद पैदा कर रहे'
उत्तर प्रदेश के भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता हरीश श्रीवास्तव 'गांव कनेक्शन' से बताते हैं, "यह कानून मानवता और न्याय के हित में लिए गया एक बड़ा फैसला है। जो लोग बरसों से धार्मिक आधार पर प्रताणित किए गए, बेघर किए गए और आज भी उनका परिवार उन देशों में प्रताणना झेल रहा है, ऐसे लोगों को संरक्षण देने का काम सरकार ने किया है।"
विरोध बढ़ने के सवाल पर प्रदेश प्रवक्ता ने आगे कहा, "राजनीति में जो लोग हारे हुए हैं और जिन्हें देश की जनता ने पहले ही किनारे कर रखा है, ऐसे लोग देश के लोगों में भ्रम फैलाकर उन्माद की स्थिति पैदा कर रहे हैं। हिंसा जहां भी हो रही हैं, वहां अराजक तत्व शामिल हैं, जो राजनीतिक स्वार्थ के लिए काम कर रहे हैं। यही उनका मकसद है।"
हरीश श्रीवास्तव ने कहा, "मेरी जनता से कहना है कि किसी भी तरह की भ्रम नहीं है। यह कानून उन देशों के लोगों के लिए जो वहां सताए गए हैं, उनको देश में संरक्षण देने का कानून है, शेष देश के लोगों को किसी भी तरह के संशय में नहीं पड़ना चाहिए।"
'हम लगातार विरोध करेंगे'
नए नागरिकता कानून को लेकर उत्तर प्रदेश के कांग्रेस प्रवक्ता संजय बाजपेयी ने 'गांव कनेक्शन' से फोन पर बताया, "नया नागरिकता कानून भाजपा सरकार की तानाशाही को दर्शाता है और यह जनता अच्छी तरह समझ रही है। हम लगातार इस कानून के खिलाफ विरोध करेंगे और अभियान चलाएंगे। मगर देश के लोगों के हितों को दांव पर नहीं लगा सकते हैं। कानून के खिलाफ हमारा विरोध जारी रहेगा।"
दूसरे राज्यों में और हिंसक हुए प्रदर्शन
दिल्ली
नए नागरिकता कानून के खिलाफ देश की राजधानी दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में 15 दिसंबर की शाम प्रदर्शन बेकाबू हो गया और हिंसा और आगजनी की घटनाएं सामने आईं। देर रात प्रदर्शनकारियों ने पुलिस मुख्यालय के बाहर जमकर नारेबाजी की। इसके बाद पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा।
पुलिस पर आरोप है कि लाठीचार्ज के दौरान पुलिसकर्मी हॉस्टल में घुस गए और छात्रों पर जमकर लाठियां भांजीं। पुलिस ने इस मामले में कई छात्रों को हिरासत में लिया जिन्हें सुबह छोड़ दिया गया।
वहीं दिल्ली के सीलमपुर इलाके में 17 दिसंबर को प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच जमकर झड़प हुई। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर आंसू गैस के गोले दागे और लाठीचार्ज कर इलाके की सड़कों को बंद कर दिया है।
#WATCH Delhi: Earlier visuals of protesters targeting policemen in Seelampur. #CitizenshipAmendmentAct pic.twitter.com/JPJLub29ln
— ANI (@ANI) December 17, 2019
Delhi Chief Minister Arvind Kejriwal: I am very worried over the worsening law and order situation in Delhi. To ensure peace returns to the city immediately, I have sought time from Home Minister Amit Shah for a meeting. (file pic) pic.twitter.com/XvO5mG89zp
— ANI (@ANI) December 16, 2019
पश्चिम बंगाल
नये नागरिकता कानून को लेकर पश्चिम बंगाल में लगातार प्रदर्शन जारी है। पूर्वी मिदनापुर और मुर्शिदाबाद ने विरोध कर रहे लोगों ने सड़क और रेल मार्ग बाधित कर दिया। वहीं मालदा, उत्तर दिनाजपुर, मुर्शिदाबाद, हावड़ा, उत्तर 24 परगना जिलों में इंटरनेट सेवाओं में प्रतिबंध लगा दिया गया है।
Just because few trains were set on fire, Centre has stopped railway services in most parts of Bengal: Chief Minister Mamata Banerjee at Kolkata rally
— Press Trust of India (@PTI_News) December 16, 2019
उत्तर प्रदेश
नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में प्रदर्शनों को लेकर उत्तर प्रदेश के अलीगढ़, मेरठ, कासगंज, बुलंदशहर, सहारानपुर, बरेली, मऊ में हाई अलर्ट जारी किया गया है। बीती 16 दिसंबर को एक तरफ जहां मऊ जिले में सैकड़ों प्रदर्शनकारियों ने सड़क पर उतरकर तोड़फोड़ और आगजनी की, वहीं यूपी की राजधानी लखनऊ में 16 दिसंबर को नदवा कॉलेज के बाहर छात्रों ने प्रदर्शन किया। कॉलेज को पांच जनवरी तक बंद कर दिया गया है। इससे एक दिन पहले अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भी 15 दिसंबर की शाम को छात्रों ने जमकर प्रदर्शन किया। पुलिस को स्थिति नियंत्रण करने के लिए आंसू गैस के गोले दागे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सभी से शांति बनाए रखने की अपील की है।
Gyan Prakash Tripathi, DM Mau: Few people who had gathered at Hajipura to hold protest over yesterday's Jamia Millia Islamia incident, have been disbursed. Few motorbikes were torched by them. The situation is peaceful now. Section 144 has been imposed in Hajipura Chowk area. pic.twitter.com/zPYnVxnBXO
— ANI UP (@ANINewsUP) December 16, 2019
बिहार
नए नागरिकता कानून के खिलाफ बिहार में भी कई जिलों में 16 दिसंबर को लोगों ने प्रदर्शन किया। लोगों ने प्रधानमंत्री का पुतला फूंका और संविधान बचाओ, देश बचाओ का नारा लगाया। प्रदर्शनकारियों ने बिल को वापस लेने की मांग की है। वहीं राष्ट्रीय जनता दल ने 21 दिसंबर को बिहार बंद का आह्वाहन किया है। दल के तेजस्वी यादव ने कहा, "संविधान की धज्जियां उड़ाने वाले नागरिकता संशोधन विधेयक जैसे काले कानून के खिलाफ राष्ट्रीय जनता दल 22 दिसंबर को बिहार बंद करेगा।"
Correction- बिहार बंद 21 दिसंबर, शनिवार को रहेगा क्योंकि 22 दिसंबर को बिहार पुलिस बहाली की परीक्षा है।
— Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) December 13, 2019
नौजवानों और परीक्षार्थियों को बिहार बंद के चलते परीक्षा स्थल पर पहुँचने में किसी प्रकार की कोई कठिनाई नहीं हो इसलिए बिहार बंद अब शनिवार, 21 दिसंबर को रहेगा।
कानून का विरोध दुर्भाग्यपूर्ण : प्रधानमंत्री मोदी
देश में बढ़ते विरोध प्रदर्शनों को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर कहा, "नागरिकता संशोधन कानून पर हिंसक विरोध दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है। बहस, चर्चा और असंतोष लोकतंत्र के आवश्यक अंग हैं लेकिन हमारे लोकाचार का कभी भी सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना और सामान्य जीवन में अशांति हिस्सा नहीं रहा है।" प्रधानमंत्री मोदी ने सभी से शांति, एकता और भाईचारा बनाए रखने और किसी भी तरह की अफवाह और झूठ से दूर रहने की अपील की है।
#WATCH PM speaks on #CitizenshipAmendmentAct, in Jharkhand's Berahit. Says "Congress&its allies are creating an atmosphere of lies to scare Indian Muslims. They're spreading violence. Citizenship Amendment Act doesn't snatch away any right of an Indian citizen or cause any harm." pic.twitter.com/JKRnjF99yu
— ANI (@ANI) December 17, 2019
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