लॉकडाउन और खराब मौसम के बाद बीमारियों ने बढ़ायी आम किसानों की मुश्किलें

इस बार गर्मी कम पड़ने और लगातार बारिश होने से आम के बाग में कई तरह की बीमारियों को पनपने का मौका मिल गया। जिस वजह से आम में धब्बे पड़ गए हैं, जिससे सस्ते में आम बेचना पड़ रहा है।

Divendra SinghDivendra Singh   15 July 2020 11:58 AM GMT

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मोहित सैनी, कम्युनिटी जर्नलिस्ट

लखनऊ। आम की खेती से जुड़े किसानों और व्यापारियों को उम्मीद थी कि लॉकडाउन खुलने के बाद नुकसान से बच जाएंगे, लेकिन आम किसानों की मुसीबतें कम नहीं हो रही हैं। अब जब बाजार खुल गए तो बीमारी की वजह से फलों में दाग लग गए, जिसकी वजह से आम कौड़ी के भाव बिक रहे हैं।

उन्नाव के हसनगंज ब्लॉक के पमेधिया गाँव के श्रीकृष्ण अवस्थी के इस समय चालीस बीघा में आम लगा हुआ है, लेकिन पंद्रह दिनों में ज्यादातर पेड़ों के आम पर धब्बे पड़ गए हैं। किसी तरह आम लेकर मंडी पहुंच रहे हैं तो सस्ते में बेचना पड़ रहा है। वो बताते हैं, "आम से जुड़े लोग साल भर इंतजार करते हैं, जब साल भर की कमाई इसी कुछ महीनों में हो जाती है। इस बार कोरोना, आंधी-पानी से पहले ही बहुत नुकसान पड़ा, और अब जब आम पकने को हुए तो आम में रोग लग गए। इस बार कमाई तो दूर की बात है मजदूरी भी बड़ी मुश्किल से निकल पा रही है।

किसान मार्च महीने में बौर लगते ही बाग की देखभाल करने लगते हैं, तीन-चार महीनों में हजारों रुपए खर्च करते हैं, ताकि अच्छे फल मिले, लेकिन दाग लगने की वजह से आम आठ-दस रुपए प्रति किलो थोक मंडी में बिक रहा है।

इस बार आम बागवानों को बहुत सारी समस्याओं से जूझना पड़ा। लॉकडाउन की वजह से सही समय पर सही रसायनों पर छिड़काव नहीं हो पाया। केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के निदेशक डॉ. शैलेंद्र राजन कहते हैं, "मार्च से हो रही रुक रुक कर बारिश के कारण बीमारियों और कीटों से संबंधित समस्याओं में बढ़ोतरी हुई। शुरू में थ्रिप्स के आक्रमण से फलों पर धब्बे पड़ गए। उसके बाद फल भेदक ने फलों को नुकसान पहुंचाया, जिससे कि फल फटने साथ काले होने लगे। लगातार हो रही बारिश के कारण फल मक्खी का भी प्रकोप अधिक हुआ, जिससे ऊपर से दिख रहे सही आम अंदर से खराब हो गए।"


आम में पड़ रहे धब्बों के बारे में वो बताते हैं, "इस वर्ष गर्मी कम पड़ने और पर्याप्त नमी के कारण एंथ्रेक्नोज का आक्रमण जल्दी प्रारंभ हो गया। एंथ्रेक्नोज नामक बीमारी फैलने के लिए उचित तापक्रम और नमी उपलब्ध थी। यह बीमारी फल पकने से पहले आमतौर पर नजर नहीं आती लेकिन पकने शुरू होते ही फल पर काले काले धब्बे दिखने लगते हैं। कीटनाशकों का अत्याधिक उपयोग भी प्रभाव ना रहा क्योंकि उनका सही चुनाव ना होने से कई छिड़काव के वावजूद कीटों में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ गई। भुनगा कीट द्वारा स्रावित मधु स्राव के कारण पत्तियों और टहनियों व फलों पर फफूंद के कारण भी कालापन आ गया। कई जगह पर अधिक वर्षा के साथ-साथ इन सभी कारकों के कारण फलों पर धब्बे विकसित हो जाते हैं।"

उत्तर प्रदेश के 13 जिलों में हर साल 50 लाख मिट्रिक टन आम का उत्पादन होता है, इसमें से लखनऊ जिले के मलिहाबाद में सात लाख मीट्रिक टन आम का उत्पादन होता है। आम में बौर आते ही ओला-बारिश होने पेड़ों से बौर गिर गए थे, जिससे इस बार कम फल आए थे। मार्च से लेकर मई तक कई बार तेज हवाओं के साथ बारिश हुई, जिससे बचे हुए आम भी गिर गए। उत्तर प्रदेश के प्रमुख आम उत्पादक जिले लखनऊ, अमरोहा, सम्भल, मुजफ्फरनगर और सहारनपुर हैं। लगभग ढाई लाख हेक्टेयर क्षेत्र में विभि‍न्न कि‍स्में उगायी जाती हैं। इनमें दशहरी, चौसा, लंगड़ा, फाजली, मल्लिका, गुलाब खास और आम्रपाली प्रमुख हैं।

मेरठ मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूर रघुनाथपुर गांव के किसान जुनैद फरीदी आम के बाग को लेकर काफी चिंतित है। वह बताते हैं, "मैंने पिछले साल 20, लाख रुपए में दो साल के लिए आम का बाग लीज पर लिया था सोचा था अच्छा मुनाफा कमा कर कुछ पैसा जोड़ लूंगा लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ एक तरफ लॉकडाउन की मार दूसरी तरफ आम में एन्थ्राक्नोज़ रोग ने हमारी कमर तोड़ दी है। आम में यह रोग लग रहा है आधे से ज्यादा माल बेकार ही चौपट हो रहा है।"



वह आगे बताते हैं, "हमारी 6 लड़कियां हैं इस बार 2 की शादी करनी थी लेकिन अब क्या करें ब्याज का पैसा भी नहीं निकल पा रहा। जमा की तो दूर की बात आलम यह है आम के बाग का मालिक आम भी नही तोड़ने दे रहा पैसे मांगता है बताओ कहां से लाकर दें।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान दिल्ली की मंडी में फल लेकर जाते हैं। किसान मोहम्मद एहसान बताते हैं, "हम अपना माल दिल्ली, फरीदाबाद माल भेज रहे हैं तो वहां माल की बेकद्री हो रही है। माल मंडी में दो-दो, तीन-तीन दिन पड़ा रहता है बिक ही नहीं रहा, कैरेट में माल वहां सड़ जा रहा है मंडी से फोन आता है कि अपना माल ले जाओ बेकार हो रहा है नहीं बिका तो बताओ किसान को क्या लगेगा मजबूर है हम चाहते हैं सरकार हम किसानों का कुछ करें नहीं तो आत्महत्या के सिवाय कुछ नहीं बचेगा।"

आम किसानों का तो लगातार ही नुकसान हो रहा है, इस बार वैसे भी कम आम आए थे और अब लगातार आंधी पानी से 20-25 प्रतिशत तक नुकसान हो गया। हर बार 50 लाख मीट्रिक टन उत्पादन होता है, उसमें से 30-35 लाख टन आम ही इस बार आया था, आंधी-पानी से उसका भी नुकसान हो गया। किन इस बार एक व्यापारी नहीं आए हैं, हर बार 80-90 प्रतिशत बाग व्यापारी खरीद लेते थे, पहली बार हुआ है जब बाग नहीं बिके हैं। इस बार किसानों को बाग बचाने में भी मुश्किल आ रही है, क्योंकि लेबर ही नहीं आए हैं इस बार लॉकडाउन की वजह से।

बहुत से व्यापारी एक दो-साल के लिए बाग खरीद लेते हैं। मोहम्मद फुरकान ने भी किराए पर आम की बाग ले रखी है। लेकिन आम ही नहीं बिक पा रहा, जिसकी वजह से बाग मालिक को पैसे नहीं दे पा रहे हैं। मोहम्मद फुरकान बताते हैं, "अब हमारे साथ आम के मालिक भी अत्याचार करने लगे बताइए साहब हम गरीब किसान हैं लीज पर बाग ले रखा है जैसे-तैसे काम चला रहे हैं,कुछ पैसे हमने बाग के मालिक को पहले दे दिए लेकिन वह बकाया भुगतान मांगता है। रोज सुबह बाग में आकर बैठ जाता है ताकि हम आम ना तोड़ सके बताओ ऐसे में हम क्या करें कहां से पैसे लाएं पहले ही लाकर हमने पैसे बाग में लगा दिए मजदूर की मजदूरी नहीं दी जा रही घर का खर्च तो चलना दूर की बात है बस अब तो यह है कि समय कट जाए तो अच्छा है ।

भारत दुनिया में ताजा आमों का एक प्रमुख निर्यातक देश भी है। साल 2018-19 में भारत ने 406.45 करोड़ रुपए का 46510.27 मीट्रिक टन ताजे आमों को निर्यात किया था।

चौधरी आबिद ने बताया इस बार कौड़ियों के दाम आम बिक रहा है आठ रुपए किलो इसमें हमें कुछ नहीं बच रहा मजदूर हमारे पास काफी है समझ लीजिए मजदूरी ही दी जा रही है। किसान खेती या व्यापार इसलिए करता है ताकि उसे कुछ मुनाफा हो सके लेकिन हमारे साथ ऐसा कुछ नहीं इस बार लॉकडाउन ने किसानों की कमर तोड़ दी सरकार से हाथ जोड़कर विनती है कि हम लोग के बारे में भी सोचो।

चौधरी अशफाक बताते हैं वेस्ट यूपी के आम व्यापारी किसानों के सामने बड़ी चुनौतियां हैं कई हजार हेक्टेयर में आम का व्यापार होता है इस बार वह बाहर नहीं जा पा रहा मंडी में ग्राहक नहीं है जो फुटकर व्यापारी हैं उन्हें पुलिस परेशान करती है आपने सोशल मीडिया पर भी देखा होगा पुलिस किस तरह ठेले वालों को परेशान करती है तो कहां से व्यापार चलेगा हम लोगों का भी सरकार हमारी ओर भी ध्यान दें।


     

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