कृषि कानून: सुप्रीम कोर्ट की कमेटी में शामिल वे चार लोग कौन हैं? किसान संगठन नाराज क्यों हैं?

कृषि कानूनों पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को मसले को सुलझाने के लिए चार सदस्यीय कमेटी का गठन किया है। कमेटी में शामिल ये चार लोग कौन हैं और इनका विरोध क्यों हो रहा है? आइये समझने की कोशिश करते हैं।

Mithilesh DharMithilesh Dhar   12 Jan 2021 1:45 PM GMT

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सुप्रीम कोर्ट, farm laws, Supreme Court, farmers protest, Bhupinder Singh Mann, pramod kumar joshi, ashok gulati, anil ghanwatसुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई समिति के सदस्य। (फोटो सोशल मीडिया से, ग्राफिक्स- गांव कनेक्शन)

केंद्र सरकार के तीनों कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट ने अगले आदेश तक रोक लगा दी है। कोर्ट ने मंगलवार को यह फैसला सुनाया और साथ ही इस मामले को सुलझाने के लिए एक कमेटी का भी गठन किया है जिसमें चार लोगों को शामिल किया है। लेकिन कई किसान संगठन अभी भी नाराज हैं, कमेटी में शामिल सदस्यों पर सवाल भी उठ रहे हैं, लेकिन क्यों?

किसान संगठनों की अब आगे क्या रणनीति है? जिन चार लोगों को कमेटी में शामिल किया गया है वे लोग कौन हैं वे क्या करेंगे? आइये इन्हीं सवालों के जवाब जानने की कोशिश करते हैं।

सबसे पहले समझते हैं कमेटी बनी क्यों है?

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने साफ-साफ कहा कि कमेटी कोई मध्यस्थता नहीं करेगी बल्कि मामले में निर्णायक की भूमिका निभायेगी। कमेटी के सदस्य कृषि कानून का विरोध और समर्थन करने वाले लोगों से बात करेंगे, दोनों पक्षों को सुनेंगे। कोर्ट ने यह भी कहा कि वे कानून पर अगले आदेश तक रोक लगा रहे हैं। "कमेटी हमारे लिए होगी, ये कमेटी कोई आदेश नहीं जारी करेगी बल्कि आपकी समस्या सुनकर हम तक एक रिपोर्ट भेजेगी," कोर्ट ने कहा।

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"कमेटी को दो महीने के अंदर रिपोर्ट सौंपने को कहा गया है और 10 दिन में पहली बैठक आयोजित होगी। समिति इसलिए बनाई जा रही है ताकि इस मुद्दे को लेकर तस्वीर साफ हो, हम ये बहस नहीं सुनेंगे कि किसान समिति के सामने पेश नहीं होंगे," कोर्ट ने निणर्य सुनाते हुए आगे कहा।

कमेटी में शामिल चार सदस्य कौन हैं?

कृषि कानून को लेकर उपजे विवाद को निपटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जो कमेटी बनाई है उसमें भूपिंदर सिंह मान (अध्यक्ष, भारतीय किसान यूनियन), डॉ. प्रमोद कुमार जोशी (अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान), अशोक गुलाटी (कृषि अर्थशास्त्री) और अनिल धनवट (शिवकेरी संगठन, महाराष्ट्र) शामिल हैं। आइये इन सदस्यों के बारे में और ज्यादा जानते हैं।

भूपिंदर सिंह मान

सरदार भूपिंदर सिंह मान भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और 1990 से 1996 तक राज्यसभा सदस्य भी रह चुके हैं। वे किसान कोऑर्डिनेशन कमेटी (केकेसी) के चेयरमैन भी हैं और प्रदर्शन कर रहे किसानों के संगठन में ये संगठन शामिल नहीं है।

केकेसी के चेयरमैन और पदाधिकारी कृषि कानून के समर्थन में कृषि मंत्री को पत्र सौंपते हुए। फोटो- दी हिंदू से साभार

कृषि कानूनों पर राय- भूपिंदर सिंह मान केकेसी के चेयरमैन हैं और इसी संगठन के लेटरपैड पर 14 दिसंबर को केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को एक खत लिखा गया था जिसके माध्यम से कृषि कानूनों का समर्थन किया गया। खत में क्या लिखा था, उसके कुछ अंश आप भी पढ़िये-


"आज भारत की कृषि व्यवस्था को मुक्त करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में जो तीनों कानून पारित किये गये हैं हम उन कानूनों के पक्ष में सरकार का समर्थन करने के लिए आगे आये हैं। हम जानते हैं कि उत्तरी भारत के कुछ हिस्सों और विशेषकर दिल्ली में जारी किसान आंदोलन में शामिल कुछ तत्व इन कृषि कानूनों के बारे में किसानों में गलतफहमियां पैदा करने को कोशिश कर रहे हैं।"

डॉ. प्रमोद जोशी

सुप्रीम कोर्ट की कमेटी में डॉ. प्रमोद जोशी भी शामिल हैं। डॉ जोशी सरकारी संस्थान साउथ एशिया इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर हैं और नेशनल एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज और इंडियन सोसाइटी ऑफ एग्रीकल्चरल इकोनॉमिक्स के फेलो भी हैं। इसके अलावा कृषि अर्थशास्त्र अनुसंधान केंद्र (AERC), दिल्ली विश्वविद्यालय के मानद निदेशक के पद पर भी हैं।



उन्होंने 16 दिसंबर 2020 में एक ट्वीट कर कहा था कि हमें एमएसपी से परे नई मूल्य नीति पर विचार करने की जरूरत है और यह किसानों, उपभोक्ताओं और सरकार के लिए जीत होनी चाहिए। एमएसपी को घाटे के समय तैयार किया गया था। इसे हम अब पार कर चुके हैं। अधिकांश वस्तुओं के उत्पादन में सरप्लस हैं। सुझावों का स्वागत है।

8 दिसंबर को उन्होंने गांव कनेक्शन से बातचीत में एमएसपी को अनिवार्य बनाये जाने का विरोध करते हुए कहा था, "एमएसपी को कानूनन अनिवार्य बनाना बहुत मुश्किल है। पूरी दुनिया में कहीं भी ऐसा नहीं है। इसका सीधा सा मतलब यह भी होगा कि राइट टू एमएसपी। ऐसे में जिसे एमएसपी नहीं मिलेगा वह कोर्ट जा सकता है और न देने वाले को सजा हो सकती है।"

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"अब मान लीजिए कि कल देश में मक्का या दाल का उत्पादन बहुत ज्यादा हो जाता है और बाजार में कीमतें गिर जाती हैं तो वह फसल कौन खरीदेगा? कंपनियां कानून के डर से कम कीमत में फसल खरीदेंगी ही नहीं। ऐसे में फसल किसानों के पास ऐसी ही रखी रह जायेगा। लोगों को इसके दूसरे पहलुओं पर भी विचार करने चाहिए।" वे आगे कहते हैं।



कृषि कानूनों पर राय- डॉ. प्रमोद जोशी ने 15 दिसंबर को फाइनेंशियल एक्सप्रेस में अरबिंद पढी के साथ एक आर्टिकल लिखा था। उसमें वे लिखते हैं, "यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि किसान हर बातचीत से पहले अपना टारगेट बदल देते हैं। सरकार के सकारात्मक रवैये के बाद भी मामला सुलझ नहीं पा रहा तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है।"


उन्होंने इसी आर्टिकल अपनी मांगों को लेकर दिल्ली में प्रदर्शन कर रहे किसानों के बारे में लिखा है, "उनकी मांगे समर्थन के काबिल नहीं हैं।"

प्रो. अशोक गुलाटी

प्रो. अशोक गुलाटी देश के जाने-माने कृषि विशेषज्ञ हैं और भारतीय अनुसंधान परिषद (ICRIER) में इन्फोसिस के चेयर प्रोफेसर हैं। वह नीति आयोग के तहत प्रधानमंत्री की ओर से बनाई गई एग्रीकल्चर टास्क फोर्स के मेंबर और कृषि बाजार सुधार पर बने एक्सपर्ट पैनल के अध्यक्ष भी हैं साथ ही कमीशन ऑफ एग्रीकल्चरल कॉस्ट एंड प्राइजेस (CACP) के पूर्व चेयरमैन भी हैं। सीएसीपी ही फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय करती है। इन्हें 2015 में पद्मश्री पुरस्कार से भी नवाजा चुका है


कृषि कानूनों पर राय- प्रो. गुलाटी इन कानूनों पर देशभर के समाचार पत्र और मीडिया के दूसरे माध्यमों से अपनी बात रखते आये हैं। न्यूज वेबसाइट दी प्रिंट को दिये एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि वे इस बात को मानते रहे हैं कि कृषि कानून के बारे में सरकार किसानों को समझाने में नाकाम रही है और इन कानूनों में बदलाव बीस वर्ष पहले होना चाहिए था। उन्होंने तीनों कृषि कानूनों का स्वागत किया था और इसे भारतीय कृषि के लिए 1991 के बाद सबसे महत्वपूर्ण पल बताया था। उन्होंने विपक्ष पर भी सवाल उठाते हुए कहा था कि सुधारों को लेकर अफवाहें फैलाई जा रही हैं जबकि सच तो यह है कि एपीएमसी एक्ट के जरिए किसानों को एक और रास्ता अपनी फसलों को बेचने का मिल रहा है। इससे मार्केट में कंपटिशन बढ़ेगा और किसानों को फायदा होगा।

अनिल घनवट

अनिल घनवत महाराष्ट्र के शेतकारी संगठन के अध्यक्ष हैं। राज्यसभा सदस्य रहे शरद जोशी ने इस संगठन की स्थापना की थी। इस संगठन से महाराष्ट्र के हजारों किसान जुड़े हैं।

कृषि कानूनों पर राय- केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के समर्थन में जब किसान दिल्ली में विरोध प्रदर्शन कर रहे थे तब 14 दिसंबर को केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को एक पत्र लिखकर देश के कुछ किसान संगठनों ने कृषि कानून का समर्थन किया था। उनमें शेतकारी संगठन भी था।


संगठन ने कानूनों का स्वागत किया था और इन्हें 'किसानों की वित्तीय आजादी' की तरफ पहला कदम बताया था। इस बारे में घनवत ने कहा था, "नए कानून एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केटिंग कमेटियों (APMC) की शक्तियों को सीमित करते हैं और ये स्वागत योग्य कदम है। इन कानूनों को वापस लेने की आवश्यकता नहीं है, जो किसानों के लिए कई अवसर को खोल रही है। हालांकि कमेटी के गठन के बाद एनडीटीवी से बातचीत में उन्होंने कहा कि कृषि कानूनों में अभी बदलाव की जरूरत है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि कृषि कानून रद्द करने की मांग ठीक नहीं है।

किसान नेता क्या कह रहे?

सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानून के मसले के हल के लिए कमेटी तो बना दी है लेकिन इसमें शामिल लोगों का विरोध हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बोलते हुए किसान नेता राकेश टिकैत ने गांव कनेक्शन को बताया, "देश के किसान कोर्ट के फैसले से निराश हैं। अशोक गुलाटी की अध्यक्षता वाली कमेटी ने ही कृषि कानूनों की सिफारिश की थी फिर उन्हें कमेटी में कैसे शामिल किया जा सकता है। वे तो खुद कानून के समर्थक हैं।"

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"किसानों की मांग है कि तीनों कृषि कानून रद्द हो और एमएसपी पर कानून बने। जब तक यह मांग पूरी नहीं होगी, तब तक हमारा आंदोलन जारी रहेगा। आगे की रणनीति पर संयुक्त मोर्चा बुधवार को बात करेगा।" राकेश टिकैत आगे कहते हैं।


वहीं अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने मंगलवार शाम को कहा कि हमने तो पहले भी कहा था कि हम किसी भी कमेटी का हिस्सा नहीं बनेंगे। सुप्रीम कोर्ट को कानून खत्म करने का आदेश देना चाहिए था। सभी को समझना चाहिए कि किसान और भारत के लोग इन कानूनों के खिलाफ हैं।

किसान नेता और राजनीति पार्टी स्वराज इंडिया के संस्थापक योगेंद्र यादव ने बताया, "संयुक्त किसान मोर्चा ने पहले ही एक बयान जारी किया है कि हम इस कमेटी की प्रक्रिया में भाग नहीं लेंगे। यह सरकारी कमेटी है।"

वह आगे बताते हैं, "कोर्ट ने कृषि कानूनों पर अस्थायी रोक लगाई है जो कभी खत्म की जा सकती है। ऐसे में हम आंदोलन खत्म नहीं कर सकते। कमेटी में अशोक गुलाटी को शामिल किया गया है जो कृषि कानून लाने में प्रमुख थे। कमेटी में जिन चार लोगों को शामिल किया गया है उनका आंदोलन से कोई लेना-देना नहीं है।"

  

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