Farm Bills पर कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा- MSP थी, है और रहेगी, कॉन्ट्रैक्ट फसल का होगा खेत का नहीं, कालाबाजारी नहीं होगी

किसान बिलों की लेकर 3 चीजों पर विवाद है। खुले मार्केट से MSP और मंडियों का खत्म होना, कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में कॉरपोरेट का किसानों की खेती पर कब्जा और आवश्यक वस्तु अधिनियम में बदलाव से कालाबाजी और जमाखोरी को बढ़ावा। लेकिन केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर इन सबको निराधार और बिलों को खेती की दशा बदलने वाले बता रहे हैं। पढ़िए तीनों बिलों के उनकी सफाई।

Arvind ShuklaArvind Shukla   25 Sep 2020 1:11 PM GMT

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Agri bills, farmers billsकृषि मंत्री ने कहा कि कृषि विधेयकों से भारतीय कृषि में बड़ा बदलाव होगा।

कृषि सुधार से जुड़े तीनों कृषि अध्यादेशों को लेकर मामला संसद से निकलकर फिर सड़क पर पहुंच गया है। संसद में बिल पास हो चुके हैं, लेकिन सड़क पर विपक्ष और किसान संगठनों ने मोर्चा खोल दिया है। सरकार बिलों को किसानों की किस्मत बदलने वाला बता रही है तो विपक्ष और किसान संगठन इसे डेथ वारंट कह रहे हैं।

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने एक फेसबुक लाइव में इन बिलों से जुड़े प्रमुख विवादित मुद्दों, कांग्रेस पार्टी का स्टैंड, पूर्व मुख्यमंत्रियों की कांट्रैट फार्मिंग को लेकर सिफारिशों और इन बिलों से किसानों को कैसे फायदा होगा उन्हें बताया।

नीचे जो लिखा है वो कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा है...

मैं देश भर के किसान और किसान भाइयों को कहना चाहता हूं कि ये विधेयक किसान के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव लाने वाले हैं। इन विधेयकों के जरिए किसानों को स्वतंत्रता मिलने वाली है। ये बिल उचित दाम दिलाने में मददगार होंगे। किसान की माली हालत सुधारने में मददगार होंगे। इन विधेयकों के मदद से किसान महंगी फसलों की खेती करने की ओर आकृषित होगा, किसान तकनीकी से जुड़ेगा। किसान को बुवाई से पहले मूल्य प्राप्त करने या तय करने की राह खुलेगी। जो लोग विरोध कर रहे हैं कभी वो भी ऐसे बदलाव करना चाहते हैं, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं दिखाई, नरेंद्र मोदी सरकार ने ये करके दिखाया है। इन बिलों को लेकर लोकसभा और राज्यसभा में 4-4 घंटे से ज्यादा चर्चा हुई है। बिल के प्रावधान किसान हितैषी हैं, लेकिन कुछ लोगों को सिर्फ किसानों को गुमराह करना है।

अब मैं क्रमवार बताता हूं बिल में क्या है और क्या नहीं

एमएसपी क्यों नहीं है?- एममएसपी थी, है और रहेगी

अगर एमएसपी (MSP) कानून आवश्यक था तो कांग्रेस जो 50 साल सत्ता में रही तो उन्होंने क्यों नहीं बनाया? एमएसपी भारत सरकार का प्रशासकीय निर्णय है जो आगे भी लागू रहेगा। उपभोक्ता मंत्रालय जल्द खरीफ सीजन के लिए खरीद शुरू करेगा। रबी की फसल के बुवाई से हमने एमएसपी घोषित कर दी है तो इस मामले में किसी को शंका नहीं होना चाहिए। जबरन भ्रम फैलाया जा रहा है। एमएसपी थी, है और रहेगी।

खुले बाजार से प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, टैक्स कम होंगे, किसान को फायदा होगा।

कृषक उपज व्‍यापार और वाणिज्‍य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक, 2020 में सरकार ने तीन-प्रावधान किए हैं।

किसान अभी तक अपना उत्पादन मंडी में लाने को विवश था, पंजाब की मंडी में विभिन्न जिंसों पर 8.5 फीसदी टैक्स है। जो व्यापारी खरीदता था वो इस टैक्स को कम करके खरीदता है। किसान फसल को लेकर मंडी लेकर आता है, वहां उसकी बोली लगती थी। अब अगर धान या गेहूं की बोली 1600 रुपए की लगी जबकि एमएसपी 1900 की है तो किसान वापस ले जाने का खर्च बचाने के लिए औने-पौने दाम पर बेचकर जाता था।

तो बिल में नया क्या है?

कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश (Farmers' Produce Trade and Commerce (Promotion and Facilitation) Act, 2020) के जरिए हमने किसान को स्वतंत्रता दी है। वो मंडी में बेचे, मंडी के बाहर बेचे, घर, वेयर हाउस पर जब जहां जैसे चाहे, जिस व्यक्ति को चाहे अपनी उपज बेचने को स्वतंत्र है।

मंडी के बाहर टैक्स नहीं लगेगा

मंडी के अंदर टैक्स लगेगा, लेकिन बाहर न तो राज्य सरकार का कोई टैक्स लगेगा ना केंद्र सरकार का। कोई भी एक्ट किसान को भुगतान की गारंटी नहीं देता था, लेकिन इस बिल के माध्यम से तत्काल भुगतान अथवा, बैंक आदि न खुलने पर छुट्टी का दिन है तो अधिकतम तीन दिन के भीतर भुगतान करना ही पड़ेगा। इसे अंतराराज्जीय व्यापार को बढ़ावा मिलेगा। किसी एक मंडी में 25-30 व्यापारी होते हैं, अब पैनकार्ड धारक कोई भी ट्रेड कर सकता है, तो व्यापारियों की संख्या बढ़ेगी जिसका फायदा मिलेगा। तो

  • प्रति स्पर्धा (कंपटीशन) होने पर किसानों को फायदा होगा।
  • टैक्स कम होगा तो किसानों को फायदा मिलेगा
  • घर से सामान बिक गया तो परिवहन बचेगा
  • एपीएमसी राज्य के एक्ट से बनी है, जब तक राज्य चहेगी रहेगी

कृषि उत्पाद बाजार समिति (Agricultural produce market committee ) यानी सरकारी मंडियां राज्य के एक्ट से बनी हैं। वो जब तक राज्य चाहेगा चलेंगी। उन्में ये कृषि एक्ट कोई बदलाव नहीं कर रहे।

किसानों को आश्वासन- कांट्रैक्ट फार्मिग- संविदा खेती

देश में 86 फीसदी छोटे किसान हैं। खेती का रकबा (खेती की जोत) दिनों-दिन कम हो रही है। तो किसान अपने खेत में कोई निवेश नहीं कर पाता। दूसरा आदमी (कारोबारी-कंपनी) किसान तक नहीं पहुंच पाता। ऐसे में कई बार छोटा किसान के पास इतना कम उत्पादन होता है कि अगर वो मंडी ले जाए तो किराया नहीं निकलता है। ऐसे में अगर छोटे किसान मिलकर महंगी फसलों की खेती करेंगे और एकत्र होकर बेचेंगे तो उन्हें फायदा होगा।

इस तरह की खेती के लिए सामान्य तौर पर जो शब्द प्रचलित है वो कांट्रैक्ट फार्मिंग है, मेरी दष्टि से वो गलत शब्द है लेकिन उसका उद्देश्य सही है। बिल में किसान फसल के लिए करार की बात है। कांट्रैक्ट खेत का नहीं है, उस पर उपजने वाली फसल का है। किसान ही खेत का मालिक है और वो ही रहेगा। विधेयक में बुवाई से पहले किसान अपनी फसल का एग्रीमेंट कर सकता है इसका प्रावधान है।

कैसे तय होगा कांट्रैक्ट फार्मिंग में रेट

जब एक किसान (प्रॉड्यूसर- उत्पादक) किसी प्रोसेसर (संस्था, कंपनी, एफपीओ आदि) के साथ करार करेगा तो ये फसल के औसत मूल्य पर होगी। मान लीजिए अगर कोई किसान मौसंबी की फसल लगाता है, तो वो पिछले कई वर्षों का औसत मूल्य और उस पर लागत के आधार पर रेट 10 रुपए प्रति किलो तय करता है। तो गारंटी मूल्य 10 रुपए का भुगतान तो प्रोसेसर को करना ही होगा। किसान इस एक्ट के माध्यम से किसान अपना जोखिम प्रोसेसर पर ट्रांसपर करता है।

वहीं दूसरी तरफ अगर आज 10 रुपए में रेट तय हुआ है और कल को भाव 25 रुपए प्रति किलो पहुंच गया तो किसान के मन में आएगा कि कितने कम में बेच दिया। लेकिन अगर एक खास प्रतिशत के बाद जिंस (कृषि उपज) में बढ़ोतरी होती है तो उसका एक हिस्सा भाव बढ़ने पर किसानों को भी मिलेगा।

गुजरात-महाराष्ट्र में किस कंपनी कब्जाई ली किसी किसान की जमीन?

लोग कह रहे हैं कि अडानी, अंबानी आ जाएगा, ये लोक तांत्रिक देश है ऐसे कोई कैसे किसी जमीन पर कब्जा कर लेगा। गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा समेत कई राज्यों में कांट्रैक्ट फार्मिंग पर खेती होती है वहां क्या किसी किसी की जमीन किसी कंपनी ने कब्जा की है तो हमें उसका आंकड़ा दीजिए.. दरअसल इस विधेयक के अंतर्गत जमीन की लिखापढ़ी हो ही नहीं सकती है।

किसान अपनी मर्जी से तोड़ सकेंगे करार

इस विधेयक के अंतर्गत किसान जब चाहे कारोबारी-कंपनी ट्रेडर के साथ समझौता तोड़ सकता है, लेकिन अगर प्रोसेसर ऐसा करता है तो उसे किसान को वो निश्चित रकम जो किसान के तय हो चुकी है उसका भुगतान करना ही होगा।

विधेयक में विवाद के लिए न्यायिक अधिकार प्राप्त एसडीएम को अधिकृत किया गया है। अब अगर किसान और कंपनी वहां जाएंगे किसी विवाद में तो वो कहेगा आपस में सुलझा लो लेकिन वो आप पहले कर चुके हैं तो किसान और प्रोसेसर के सुझाए नामों के आधार पर वो एक सुलह बोर्ड बनाएगा जो 15 दिन के अंदर सुलह कराएगा। अगर फिर भी एसडीएम के पास केस पहुंचता है तो एसडीएम को 30 दिन में निर्यण करना ही होगा।

ऐसे में अगर गलती किसी की हुई तो वो किसान से सिर्फ उतना ही पैसे वसूलने के अधिकार दे सकता है जितना कंपनी ने खाद, बीज आदि के नाम पर लगाया हो। ये वसूली जमीन बेचकर नहीं हो सकती है। किसान किस्तों में अगली फसल पर ये इस पैसे के भुगतान करेगा।

लेकिन अगर गलती प्रोसेसर ( कंपनी व्यापारी आदि) की हुई तो जो एग्रीमेंट में पैसा तय है वो किसान को मिलेगा साथ में 150 फीसदी तक पेनाल्टी भी लगाई जा सकती है।

निर्यातक, निजी निवेशकों आदि गांवों में इसलिए काम नहीं कर पा रहे थे। क्योंकि कोई कानून नहीं था। निवेशक डरते थे, लेकिन अब गांव तक निवेश पहुंचेगा। किसानों तक अच्छा बीज, कीटनाशक और तकनीकी मुहैया होगी, जिससे किसान महंगी और नकदी फसल की तरह जाएंगे।

किसान रिस्क लेने में सक्षम होगा, क्योंकि जोखिम पूरा प्रोसेसर पर होगा। खेती आगे बढ़ेगी। नए बच्चे खेती में आएंगे। नए प्लेटफार्म आएंगे तो नए अवसर बढ़ेंगे, कृषि जीडीपी बढ़ेगी, निर्यात की क्षमता बढ़ेगी।

रही बात विपक्ष के विरोध की कांग्रेस ने खुद 2019 के अपनी चुनावी घोषणापत्र में एपीएमएसी एक्ट को बदलने, कांट्रैक्ट फार्मिंग, अंतरार्ष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देने, कृषि पर टैक्स कम करने की बात कही है। कांग्रेस के मेनोफेस्टो और पंजाब में चुनाव हुए तो वहां भी कांट्रैक्ट फार्मिंग और आवश्यक वस्तुओं के बिल में संसोधन की बात थी। तो कांग्रेस को सबसे पहेल चाहिए कि वो सार्वजनिक तौर पर अपने घोषणापत्र से मुकरने की बात स्वीकार करे।

कांट्रैक्ट फार्मिंग की बात है तो मुख्यमंत्रियों के उत्ताधिकार प्राप्त एक समिति, जिसके अध्यक्ष महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस थे, मैं कृषि मंत्री होने के नाते उसका सदस्य था। 7-8 मुख्यमंत्रियों की इस समिति में मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ भी थे।

उन्होंने कहा था जो लिखित में है कि आश्वयक वस्तु अधिनियम अपने उद्देशय को प्राप्त कर चुका है इसे अब खत्म कर देना चाहिए। मुख्यमंत्रियों की बैठक की ये लिखित रिकमेंडएशन है।

चलो आप मोदी जी का बात न मानो, स्वामीनाथन जी की बात ना मानों, नेशनल फार्मर कमीशन की बात मानो, शेतकरी संगठन के नेता रहे शरद जोशी जी की बात मानो, आपकी सरकार में कृषि मंत्री रहे शरद पवार की बात मानो, नहीं तो यूपीए के प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह जी की बात मानो, इन सब लोगों ने ऐसे प्रावधानों की वकालत की थी।

किसानों के नाम पर लोगों का बरगलाने से कांग्रेस को सफलता नहीं मिलेगी। मोदी सराकार खेती और किसानों के प्रति समर्पित है। 75 हजार करोड़ रुपए मोदी सरकार ने पीएम किसान के जेब पहुंचाए हैं, किसानें की पेंशन, दलहन तिलहन उत्पादन, खरीद में जिसों को जोडने का मामला हो, पहले ज्यादा उत्पादन का बढ़ाने का मामला हो, हित में काम किया है।

इन छह सालों में सरकारी खरीद के माध्यम से 7 लाख करोड़ किसानों के जेब में गए हैं जो यूपीए सरकार के 10 साल के दोगुने से से भी ज्यादा हैं।

हम किसान को कर मुक्त करना चाहते हैं। कुछ लोग किसानों के कर से आजीविका चलाने चाहते हैं। अब देखिए दो दिन पहले ही पंजाब सरकार ने बांसमती चावल पर टैक्स कम किया है। आगे-आगे आप देखते चाहिए क्या होता है।

जमाखोरी और कालाबाजी बढ़ेगी क्या?

आवश्यक वस्तु अधिनियम जब बनाया गया था तब हालात और थे। उस वक्त बफर स्टॉक और निगरानी की जरूरत थी। खाने की शॉर्टेज थी, कालाबाजारी और जमाखोरी की होती थी, लेकिन अब खाद्यान सरप्लस है। बड़ी मात्रा में फसलें बर्बाद हुई हैं। एफसीआई के गोदामों में अनाज रखा रखा सड़ जाता है, सरकार के पैसे और जनता के टैक्स सबका नुकसान होता है।

कालाबाजारी और जमाखोरी तब होती है जब किसी चीज की शॉर्टेज हो, अब जमाखोरी क्यों होगी? इससे निजी निवेश बढ़ेगा, क्योंकि अभी लिमिट तय है। मान लीजिए वो 100 टन की लिमिट है तो कारोबारी उसी के अऩुसार खरीदारी करते हैं। अपना गोदाम बनाते हैं। लेकिन अब अगर उसकी क्षमता 1000 टन की है तो वो खरीदेगा, इसके लिए इंफ्रास्ट्रैक्टर डेवलप करेगा। निवेश होता तो रोजगार होगा। रिफार्म होने से निवेश गांव के नजदीक पहुंच जाएगा। जिसका किसानों को लाभ मिलेगा। मोदी सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम में सुधार करके अपने अधिकार कम किए हैं।

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