" दिल्ली में दम घुटता था, अब पटना का भी वही हाल "

महानगर ही नहीं छोटे शहरों में भी खतरनाक स्तर पर वायु प्रदूषण, छोटे शहरों में भी घुट रहा लोगों का दम, साफ हवा को तरस रहे लोग

Chandrakant MishraChandrakant Mishra   10 Dec 2019 6:05 AM GMT

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 दिल्ली में दम घुटता था, अब पटना का भी वही हाल

दिल्ली की बसी बसाई गृहस्थी छोड़कर राजाराम सिंह (70वर्ष) एक दिन आचानक ट्रेन पकड़कर पटना इसलिए आ गए क्योंकि वहां प्रदूषण बहुत ज्यादा था, दिल्ली में उनका दम घुटता था। सांस के मरीज राजाराम को अब अपने फैसले पर अफसोस हो रहा है, क्योंकि पटना की आ-बो-हवा भी दिल्ली जैसी जहरीली हो गई है।

वायु प्रदूषण अब महानगरों तक सीमित नहीं रहा। छोटे शहर भी इसकी चपेट में हैं। पांच नवंबर 2019 को पटना का वायु गुणवत्ता सूचकांक 424, मुजफ्फरपुर का 385 और लखनऊ का 422 था जबकि नई दिल्ली का 360 था। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार छोटे शहरों में प्रदूषण का स्तर देश की राजधानी दिल्ली से भी कहीं ज्यादा है। वायु प्रदूषण अब छोटे शहरों के लोगों के स्वास्थ्य के लिए भी खतरा बनता जा रहा है।

राजाराम गाँव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "दिल्ली स्थित एक फैक्ट्री में मैंने 40 साल तक काम किया। दिल्ली में घर भी बनवा लिया था, लेकिन दिल्ली में प्रदूषण ज्यादा था, मुझे सांस की बीमारी है इसलिए रिटायर होने के बाद पटना आ गया। लेकिन अब यहां का हाल भी बुरा है। वायु प्रदूषण की समस्या यहां भी विकराल रूप लेती जा रही है।"

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चौंकाने वाली बात यह है कि छोटे शहरों में वायु प्रदूषण की समस्या को इतनी गंभीरता से नहीं लिया जाता, सरकारें भी इसे लेकर फिक्रमंद नजर नहीं आतीं। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट के अनुसार कानपुर, लखनऊ, प्रयागराज, बागपत, पटना और मुजफ्फरपुर जैसे शहरों में वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण धूल कण हैं। इसके साथ बिना ढंके निर्माण कार्य, सड़क पर गंदगी धूलकण के वाहक हैं। पुरानी गाड़ियों का काला धुआं, सड़कों की धूल भी वायु प्रदूषण को बढ़ाने में अहम कारण बनते हैं।

पांच नवंबर २०१९ को दिल्ली से ज्यादा प्रदूषित हवा पटना की थी।

वायु गुणवत्ता सूचकांक (एयर क्वालिटी इंडेक्स) शून्य से 50 तक हो तो ठीक है। 100 तक भी हो तो वो स्वास्थ्य पर बुरा असर नहीं पड़ता, लेकिन उससे ज्यादा हो जाए तो वो सेहत को काफी नुकसान पहुंचाता है। इससे लोगों में सांस की बीमारियां हो जाती हैं।पर्यावरण पर काम करने वाली संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट में काम करने वाले चन्द्रभूषण गाँव कनेक्शन को बताते हैं, "नवंबर माह में पूरे देश में सबसे प्रदूषित शहर कानपुर था, लेकिन नेशनल मीडिया के लिए यह मुद्दा नहीं था। दिल्ली के नेता और वहां के लोग वायु प्रदूषण को लेकर काफी संवेदनशील हैं। नेशनल मीडिया भी नई दिल्ली में है, इसलिए उसे लगता है कि यहां का मुददा सबसे बड़ा है। मैंने कभी नहीं देखा है कि यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ या बिहार के सीएम नीतीश कुमार वायु प्रदूषण जैसे गंभीर मसले को लेकर कभी चिंतित हुए हों। छोटे शहरों में रहने वाले लोगों के साथ-साथ यहां के जनप्रतिनिधियों को गंभीर होना होगा।"

वर्ष 2018 में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी एक रिपोर्ट में देश के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में भारत के 15 शहर शामिल थे। इन शहरों में उत्तर प्रदेश के कानपुर, प्रयागराज, वाराणसी, लखनऊ, आगरा और फिरोजाबाद शामिल थे। बढ़ते प्रदूषण के बीच छोटे शहरों में प्रदूषण से होने वाली बीमारियां भी बढ़ी हैं।

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वहीं केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार पांच नवंबर 2019 को देश भर में करीब 15 ऐसे शहर थे जहां एयर क्वालिटी इंडेक्स औसतन 400 से ज्यादा था। इन पंद्रह शहरों में से उत्तर प्रदेश के ही 9 और हरियाणा के पांच शहर थे। सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में हरियाणा का जींद और दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश का बागपत था, जहां एयर क्वालिटी इंडेक्स 440 दर्ज किया गया था। इन दोनों शहरों की गिनती छोटे शहरों में की जाती है।


वायु प्रदूषण के कारण अस्पतालों में सांस से जुड़ी बीमारियों के मरीजों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है। वायु प्रदूषण से होने वाली बीमारियों पर किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ के श्वसन चिकित्सा विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ सूर्यकांत बताते हैं," अगर बार-बार छींक आ रही है, नाक से पानी आ रहा है, नाक में खुजली हो रही है, नाक चोक हो रही तो समझिए आप वायु प्रदूषण का शिकार हो रहे हैं। अब हम नाक से आगे बढेंगे तो जैसे-जैसे हवा सांस के द्वारा नीचे जाती है, गले में खिच-खिच हो जाती है, गले में खराश हो जाती है खांसी आने लगती है इसके बाद हम अस्थमा हो जाता है और अगर लम्बे समय तक अगर ये प्रदूषण रहता है तो फेफड़े का कैंसर भी होने का खतरा बढ़ जाता है।"

जनवरी 2019 में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक एनजीओ द्वारा लगाये गये कृत्रिम फेफड़े दो दिन में ही मटमैले पड़ गये। यह तथ्य बताते हैं कि हम बहुत खतरनाक प्रदूषण की जद में हैं और सांस की बीमारी का शिकार होने के साथ हमारे फेफड़ों और खून में कई जहरीले तत्व पहुंच रहे हैं।

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खुले में रखी निर्माण सामग्री वायु प्रदूषण बढ़ाने में काफी जिम्मेदार हैं।

नवी मुंबई में रहने वाले पवन मिश्रा (36वर्ष ) नवंबर माह में व्यक्तिगत काम से तीन बार नई दिल्ली गए फिर वहां से लखनऊ। पवन मिश्रा को दोनों शहरों के वायु प्रदूषण में ज्यादा अंतर नहीं दिखा। पवन ने गाँव कनेक्शन को बताया, " नई दिल्ली की हवा बहुत दमघोंटू थी, सांस लेने में भी तकलीफ हो रही थी। दिल्ली में वाहनों की संख्या और फैक्ट्रियां ज्यादा हैं, इसलिए लगा कि यहां प्रदूषण ज्यादा है। लेकिन लखनऊ की हवा भी ठीक नहीं थी। मुझे लगा था कि लखनऊ छोटा शहर है, इसलिए यहां की हवा उतनी प्रदूषित नहीं होगी, लेकिन दिल्ली और लखनऊ में कोई अंतर नहीं था।"

छोटे शहरों में वायु प्रदूषण को लेकर लोग सावधानी भी बरत रहे हैं। उत्तर प्रदेश के जनपद गोरखपुर में मेडिकल स्टोर चलाने वाले राहुल श्रीवास्तव (33 वर्ष) बताते हैं, "पहले महीने में एक या दो मास्क बिक जाते थे, लेकिन इस बार नवंबर महीने में मेरे दुकान से रिकॉर्ड मास्क की बिक्री हुई है। दीपावली के बाद से जैसे ही हमारे यहां की हवा थोड़ी खराब हुई लोग मास्क खरीदने के लिए उमड़ पड़े।"

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जहरीली हवा से लोगों को सांस लेने में हो रही है परेशानी। साभार इंटरनेट

वायु प्रदूषण पर काम करने वाली गैर सरकारी संस्था 'द क्लाइमेट एजेंडा' की निदेश एकता शेखर के अनुसार छोटे शहरों में वायु प्रदूषण की समस्या महानगरों से कहीं ज्यादा है, लेकिन लोग इस तरफ ध्यान नहीं देते हैं। एकता शेखर ने गाँव कनेक्शन को बताया, " उत्तर प्रदेश में वायु प्रदूषण का सबसे अहम कारण टूटी सड़कें हैं। टूटी सड़कों से उड़ने वाली धूल वायु को प्रदूषित करती है। टूटी सड़कों के कारण वाहनों की गति धीमी हो जाती है जिस वजह से ज्यादा धुआं निकलता है। जब प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी थी तो बिजली व्यवस्था ठीक थी,लेकिन अब बिजली की किल्लत के कारण लोग डीजल से चलने वाले जेनरेटर का बहुत प्रयोग करने लगे हैं। ये सब वायु प्रदूषण को बहुत तेजी से बढ़ा रहे हैं। "

" लाख कोशिशों के बावजूद वायु प्रदूषण से निजात नहीं मिल रही है। सरकार के दावों और कथित उपायों के बावजूद वायु प्रदूषण की समस्या जस की तस है। जाहिर है कि पुख्ता इंतजाम बाकी है। अदालतें फिर चिंता जाता रही हैं। अदालत की तरफ से भी जानकारों से सुझाव देने की बात कही जा रही है कि विशेषज्ञ आयें और तरीके बताएं ताकि सरकार को वैसा करने के निर्देश दिए जा सकें।" एकता ने आगे बताया।

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