सावधान ! दिल्ली में पानी के लिए एक व्यक्ति को पीट-पीटकर मार डाला, लेकिन अभी तो ये शुरुआत है

Mithilesh DharMithilesh Dhar   20 March 2018 5:18 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
सावधान !  दिल्ली में पानी के लिए एक व्यक्ति को पीट-पीटकर मार डाला, लेकिन अभी तो ये शुरुआत हैदिल्ली में पानी के लिए एक व्यक्ति को पीट-पीटकर मार डाला गया।

देश की 10 करोड़ की आबादी को स्वच्छ जल सहज उपलब्ध नहीं है, जो पूरी दुनिया के देशों में स्वच्छ जल से वंचित रहने वाले लोगों की सर्वाधिक आबादी है

नई दिल्ली में एक आदमी की पीट-पीटकर पानी के लिए हत्या कर दी गयी। टैंकर से पानी लेने को लेकर विवाद हुआ और दिल्ली के वजीरुर क्षेत्र में एक 60 वर्षीय बुजुर्ग की हत्या कर दी गयी। अभी तो ये शुरुआत है। हमें अभी भी लगता है कि देश में पानी की पर्याप्त मात्रा है, लेकिन ये खबर पढ़ने के बाद हो सकता है कि आप सोचने पर मजबूर हो जाएं।

‘रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून, पानी गए न उबरे, मोती, मानुस चून।’

आज से करीब 500 साल पहले जब रहीमदास जी ने ये दोहा लिखा होगा, उन्हें बिल्कुल आभाष नहीं रहा होगा कि ये आज की सबसे बड़ी समस्या होगी। अफ्रीकी लोग अगर हिंदी में अनुवाद कर ये दोहा पढ़ रहे होंगे तो अपने बुजुर्गों को कोस रहे होंगे, कि उन्होंने इस पर रहीम दास की चेतावनी पर अमल क्यों नहीं किया, क्योंकि भारत से करीब साढ़े 8 हजार किलोमीटर अफ्रीका के केपटाउन में पानी खत्म हो चुका है और वहां जिंदगी सूनी हो रही है।

पानी के बगैर जीवन की कल्पना करना बेहद मुश्किल है लेकिन शायद मानते नहीं वरना देश में पानी का संकट यूं जंगल की आग की तरह न फैलता। पानी का प्रयोग आमतौर पर खाने-पीने, कृषि और औद्योगिक कार्यों में किया जाता है। पानी हमें दो प्रकार से प्राप्त होता है एक तो धरती के ऊपर और दूसरा-धरती के नीचे, लेकिन अब प्रश्र यह उठता है कि जिस देश में नदियों का अपार भंडार है वहां पर पानी का इतना भीषण संकट आखिर क्यों? ऋग्वेद में जल को अमृत के समतुल्य बताते हुए कहा गया है- अप्सु अन्तः अमतं अप्सु भेषनं।

ये भी पढ़ें- बोतल बंद पानी और RO छोड़िए , हर्बल ट्रीटमेंट से भी पानी होता है शुद्ध, पढ़िए कुछ विधियां 

भारत में पेय जल का संकट लगातार गंभीर होता जा रहा है। भारत, अमेरिका, चीन और फ्रांस के एक शोध के मुताबिक अगर पानी की खपत की मौजूदा दर से जारी रही तो वर्ष 2040 तक देश में पीने का पानी ही नहीं बचेगा। केंद्रीय जल संसधान मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक दुनिया की कुल आबादी में से 18 प्रतिशत भारत में रहती है लेकिन देश में महज चार प्रतिशत जल संसाधन हैं। यह बेहद गंभीर स्थिति है।

यूएन ने 2015 में चार साल तक दुनिया के 500 बड़े शहरों पर एक रिसर्च किया था, जिसमें से ये बात सामने आयी थी कि साल 2030 तक दुनिया में पीने के पानी की मांग सप्लाई से 40 फीसदी अधिक हो जाएगी। दुनिया के कई ऐसे देश हैं जहां पीने के पानी की कमी थी। पानी की कमी में भारत का बेंगलुरु शहर भी शामिल था।

आईआईटी कानपुर के प्रो. विनोद तारे बताते हैं "नदियों में काफी मात्रा में औद्योगिक कचरा एवं गंदा जल प्रवाहित किया जाता है। उद्योग नदियों से पानी लेते हैं, भूजल का दोहन करते हैं और फिर गंदा जल नदी में प्रवाहित करते हैं। इस विषय को देखते हुए औद्योगिक इस्तेमाल के लिए उद्योगों पर ‘जल उपकर’ लगाया जाना चाहिए। दुनिया के विभिन्न देशों में ऐसी व्यवस्था है। देश में जल संरक्षण की उचित व्यवस्था नहीं होने के कारण हर साल अरबों घनमीटर वर्षा जल बेकार चला जाता है। भूजल स्तर लगातार गिर रहा है और प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता घटकर चिंताजनक स्थिति में पहुंच गई है। ऐसे में जलस्रोतों को बहाल करने एवं भंडारण की समुचित व्यवस्था करने की तात्कालिक जरूरत है। यहां समझना ये भी जरुरी है कि एक बार धरती के अंदर का पानी दूषित हो गया तो शुद्ध नहीं होगा।

ये भी पढ़ें- बुंदेलखंड में पानी की किल्लत शुरू, महिलाएं मजदूरी और लड़कियां पढ़ाई छोड़ भर रहीं पानी 

भारत में पानी की समस्या गंभीर रूप से बढ़ रही है। कुएं, तालाब, जलाशय सूख रहे हैं और नदियों में पानी का स्तर कम हो रहा है। इस समस्या से निपटने और भूजल के संरक्षण के लिए केन्द्र सरकार ने 6000 करोड़ रुपए की ‘अटल भू-जल योजना’ शुरू की है। इसका उद्देश्य जल के उपलब्ध स्रोतों का प्रबंधन करना और लोगों को इससे जोड़कर जागरूक करना है। इसके तहत भूजल के पुनर्भरण की प्रक्रिया को बेहतर करने का काम किया जाएगा। गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा, कर्नाटक, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में जल की कमी वाले क्षेत्रों के लिए यह योजना प्रस्तावित की गई है, साथ ही इन प्रदेशों के 78 जिलों, 193 ब्लॉकों और 8350 ग्राम पंचायतों को भी इसमें शामिल किया गया है।

लोकसभा में पेयजल और स्वच्छता मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने पिछले साल लोकसभा में बताया "देश की 10 करोड़ की आबादी को स्वच्छ जल सहज उपलब्ध नहीं है, जो पूरी दुनिया के देशों में स्वच्छ जल से वंचित रहने वाले लोगों की सर्वाधिक आबादी है।"

2017 में आयी वाटरएड की रिपोर्ट के अनुसार आपदा और गंभीर होने वाली है। भारत में 73फीसदी भूमिगत जल का दोहन किया जा चुका है। जिसका मतलब है कि हमने भरण क्षमता से अधिक जल का उपयोग कर लिया है। स्वच्छ जल के सबसे बड़े स्रोत छोटी नदियां और जलधाराएं सूख चुकी हैं, जबकि बड़ी नदियां प्रदूषण से जूझ रही हैं। इन सबके बावजूद हम कुल बारिश की सिर्फ 12 फीसदी जल ही संरक्षित कर पाते हैं। भारत की कुल आबादी का छह प्रतिशत हिस्सा स्वच्छ जल से वंचित है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भूमिगत जल कुल पेयजल का 85 फीसदी आपूर्ति करता है, लेकिन देश के 56 फीसदी हिस्से में भूमिगत जल के स्तर में गिरावट आई है।

ये भी पढ़ें- पानी पंचायत की महिलाओं ने एक साल में 180 तालाबों को बचाया, जानिए कैसे ?

आबादी के तेजी से बढ़ते दबाव और जमीन के नीचे के पानी के अंधाधुंध दोहन के साथ ही जल संरक्षण की कोई कारगर नीति नहीं होने की वजह से पीने के पानी की समस्या साल-दर-साल गंभीर होती जा रही है। पानी की इस लगातार गंभीर होती समस्या की मुख्य वजह हैं आबादी का लगातार बढ़ता दबाव। इससे प्रति व्यक्ति साफ पानी की उपलब्धता घट रही है।

भारत सरकार ने मार्च 2021 तक देश की 28,000 बस्तियों को स्वच्छ जल की आपूर्ति के लिए 25,000 करोड़ रुपए खर्च करने की घोषणा की है

पीने के पानी से संबंधित आंकड़ों से इस संकट की गंभीरता का पता चलता है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार पानी की क्वालिटी के मामले में दुनिया के 122 देशों में से भारत 120वें स्थान पर है जबकि इसकी उपलब्धता के मामले में 180 देशों में यह 133वें स्थान पर है। ग्रामीण आबादी के महज 18 फीसदी हिस्से को ही साफ पानी उपलब्ध है। इन इलाकों में महज एक-तिहाई घरों में ही पाइप से पानी की सप्लाई होती है। वर्ष 2011 के जनगणना के आंकड़ों में कहा गया था कि देश में लगभग 14 करोड़ घरों को पीने का शुद्ध पानी नहीं मिलता। ग्रामीण इलाकों में पीने के पानी की सप्लाई के लिए पाइप तो बिछाए गए हैं लेकिन उनमें से आधे से ज्यादा पाइपों में अपरिशोधित पानी की ही सप्लाई होती है।

वाटर मैन आफ इंडिया कहे जाने वाले राजेंद्र सिंह कहते हैं "तेजी से बढ़ते शहरीकरण की वजह से बारिश का पानी अब कई इलाकों में भूमिगत पानी की कमी पाटने में असमर्थ है। देश की आबादी के लिए पीने के पर्याप्त साफ पानी की भारी कमी है। सरकार को ही नहीं, हम सबको इस ओर सोचना चाहिए।"

ये भी पढ़ें- यहां पीने के लिए नहीं मिलता है पानी, 15-15 दिन तक नहीं नहाते लोग 

डेनमार्क के आरहुस विश्वविद्यालय ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि ऊर्जा की बढ़ती जरूरतें पूरी करने के प्रयास में लगातार नए बिजली संयंत्र बनाए जा रहे हैं। लेकिन इस चक्कर में पानी की बढ़ती खपत को नजरअंदाज कर दिया जाता है। इन संयंत्रों को ठंडा रखने के लिए भारी मात्रा में पानी की खपत होती है। अगर ऊर्जा बनाने की होड़ इसी रफ्तार से जारी रही तो वर्ष 2040 तक लोगों की प्यास बुझाने के लिए पर्याप्त पानी नहीं बचेगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत जैसे विकसित देश में बिजली की लगातार बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए नए-नए बिजली संयंत्र बनाए जा रहे हैं। इससे पेयजल और बिजली की मांग के बीच टकराव की स्थिति पैदा होगी।

भारत सरकार ने मार्च 2021 तक देश की 28,000 बस्तियों को स्वच्छ जल की आपूर्ति के लिए 25,000 करोड़ रुपए खर्च करने की घोषणा की है। सरकार का कहना है कि 2030तक देश के हर घर को पेयजल की आपूर्ति करने वाले नल से जोड़ दिया जाएगा। देश में इस समय प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष करीब 1,745 घन मीटर जल की उपलब्धता है जो वर्ष1951 में 4 हजार घनमीटर था। जबकि प्रति व्यक्ति 1700 घनमीटर से कम पानी की उपलब्धता को संकट माना जाता है। अमेरिका में यह आंकड़ा प्रति व्यक्ति 8 हजार घनमीटर है। केंद्रीय जल आयोग के मुताबिक बीते पांच वर्षों के दौरान स्वच्छ जल की उपलब्धता 3,000 घन मीटर से घटकर 1,123 घन मीटर रह गई है। देश में इस समय कुल 1,123अरब घन मीटर स्वच्छ जल उपलब्ध है जिसका 84 फीसदी कृषि में इस्तेमाल होता है।

ये भी पढ़ें- विश्व जल सप्ताह विशेष : पानी बना नहीं सकते, बचा तो लीजिए 

भारत सरकार का दावा भले ही कुछ भी करे लेकिन हालात यह है कि देश के लोगों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध करा पाना आज भी एक बड़ी चुनौती है। देश के ग्रामीण क्षेत्र के काफी लोगों को पीने का स्वच्छ पानी उपलब्ध नहीं है। झारखंड, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक,उत्तर प्रदेश, राजस्थान और बिहार आदि राज्यों में रहने वाले अधिसंख्य आदिवासी नदियों, जोहड़ों, कुएं और तालाबों के पानी पर ही निर्भर हैं।

आदिवासी बहुल इलाके में विकास की कोई भी रोशनी आजादी के इतना साल बाद भी नहीं पहुंच पाई है। देश के कई ग्रामीण इलाकों में कुएं और ट्यूबवेलों के पानी का उपयोग करने वाली आबादी को यह भी पता नहीं होता है कि वे जीवित रहने के लिए जिस पानी का उपयोग कर रहे हैं, वही पानी धीरे-धीरे उन्हें मौतें के मुंह में ले जा रहा है।

   

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.