नर्मदा के साथ-साथ भाग-3 : सांयकालीन, “हरसूद था, निसरपुर हो रहा है ‘था’

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नर्मदा के साथ-साथ भाग-3 : सांयकालीन, “हरसूद था, निसरपुर हो रहा है ‘था’अस्थाई घर।

‘नर्मदा के साथ-साथ’ कड़ी की ये तीसरी खबर है। कारवां बढ़ता जा रहा है। कुछ नई बातें भी सामने अा रही हैं। मध्य प्रदेश से अमित की विशेष रिपोर्ट

पहला भाग यहां पढ़ें- नर्मदा के साथ-साथ : पहला दिन, कहानी जलुद की, जहाँ सौ-फीसदी पुनर्वास हो गया है

दूसरा भाग यहां पढ़ें- नर्मदा के साथ-साथ : दूसरा दिन धरमपुरी, एक मात्र डूब प्रभावित क़स्बा

करीब पांच साल पहले मैंने पत्रकारिता की पढ़ाई में समाचार लेखन के अलग-अलग तरीकों में, उदाहरण स्वरूप हरसूद पर एक समाचार पढ़ा था। वह कुछ यूं था- सुबह के छह बज गए थे, हरसूद शहर के बीचों-बीच खड़ी नगरपालिका की मीनार घड़ी ने आखिरी बार घंटे बजाए। शहर में नर्मदा नदी का पानी भर रहा था। अगले कुछ घंटों में पूरा शहर डूब जाएगा और लोग भूल जाएंगे कि यहाँ कभी जीवन का कोलाहल से भरा कोई शहर भी था।

उस समय मेरे पास सिर्फ शब्द थे, उसी से हरसूद की तस्वीर अपने दिमाग में बनानी थी, तस्वीर बनी भी... ऐसी बनी कि जब मैं निसरपुर पहुँचा तो सिर्फ हरसूद याद आया और कुछ नहीं।

दूसरा दिन, निसरपुर गाँव, जनपद धार, इंदौर से दूरी 175 किमी, मध्यप्रदेश

इससे पहले नर्मदा के किनारे बसे जिस गाँव या क़स्बों में जाना हुआ था, उनमें वह सब नहीं था जो यहाँ देखा। बस से उतर कर पुराने निसरपुर की ओर बढ़ते हुए मुझे कुछ अज़ीब सी चीजें दिखाईं दीं... जो जीवन में पहली बार देखीं थीं। ये ट्रैक्टर-ट्रॉली में बेतरतीब भरा हुआ घर-गृहस्थी का समान था, जिसे उदास और हताश चेहरे किसी तरह संभालने की कोशिश कर रहे थे। इस बड़े से गाँव में नर्मदा का पानी भरना शुरू हो गया है।

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दिवाली से करीब डेढ़ महीने पहले ही यहाँ 'दिवाली के पहले' जैसा माहौल था, जहाँ लोग हड़बड़ी में अपनी-अपनी दुकानों का सामान भरने में लगे थे, उन्हें 'हमेशा के लिए' उखाड़ने में लगे थे।

मुख्य बाज़ार में सड़क के किनारे बनी तमाम दुकानों में ही असलम की दुकान है। इलेक्ट्रिक वर्क्स की अपनी छोटी सी दुकान चलाने वाले असलम कहते हैं कि प्रशासन ने जिस नई जगह पर हमें जाने के लिए कहा है, वहाँ कीचड़ के सिवा कुछ नहीं है। असलम की बात को आगे बढ़ाते हुए आनंद गिरी गोस्वामी कहते हैं कि प्रशासन चाहता है कि पहले हम दो कदम चलें, फिर वो एक कदम चलेगा। जबकि पहल प्रशासन तो को करनी चाहिए।

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स्थानीय शासन के दस्तावेज़ों में इन दुकानों का रिकॉर्ड है लेकिन किसी को कोई मुआवजा नहीं दिया गया है।

दिनेश शांतिलाल, मुकेश हीरालाल, विनोद हीरालाल और पूजा सहित कुल चार परिवार डूबते हुए निसरपुर में एक ऐसी टापू-नुमा जगह पर हैं जिसकी लंबाई-चौड़ाई बमुश्किल 30 गुणा 30 फीट होगी। चूंकि यह ज़मीन आसपास से थोड़ी ऊंची है तो यहाँ पानी अभी 'झोपड़ियों' में नहीं घुस पाया है। इन चार परिवारों में से तीन को ना तो मुआवजा मिला है, ना प्लॉट दिया गया है। एक परिवार को प्लॉट मिल चुका है, मुआवजा नहीं मिला है। ऐसा नहीं है कि ये लोग कहीं से आकर यहाँ बसे हों, इनके पास राशन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र और आधार जैसी मूलभूत पहचान है।

निसरपुर में ऐसे सिर्फ चार नहीं बल्की दर्जनों परिवार मिले, हर कोई अपनी कहानी बताना चाहता था, हर कोई अपने घर की हालत दिखाना चाहता था, जिसमें पानी भरने लगा है। हम नहीं जा सकते हैं सबसे यहाँ।

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ऐसा नहीं है कि इन घरों में पहली बार पानी भरा है, पहले भी नर्मदा ने इनके घरों की देहरी को छुआ है, लेकिन सिर्फ कुछ समय के लिए। लेकिन इस बार तो हमेशा के लिए, फिर भी लोग अपने खाली घरों में ताले लगाकर जा रहे हैं, इस झूठी आशा से कि एक दिन वे फिर अपने पुराने घर में लौट आएंगे। इसीलिए हरसूद था, निसरपुर हो रहा है 'था'

अगला गाँव, चिखल्दाः जहाँ मेधा पाटेकर कुछ समय पहले अनिश्चित 30 दिनों का अनशन पर बैठीं थीं और राज्य के 'संवेदनशील' मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने उन्हें उनकी इच्छा के विरुद्ध 12वें दिन हटवा दिया था। चिखल्दा में हमें नर्मदा नदी के रूप में नहीं बल्कि कुछ-कुछ समुद्र के रूप में दिखाई देती है।

कहानी वही है। इस गाँव में लोगों को प्लॉट मिले लेकिन उन्होंने वापस कर दिए। दरअसल, नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण (एनवीडीए) के एक प्रावधान के अनुसार अगर आप प्लॉट का उपयोग करने की स्थिति में नहीं (थे) तो आप इसे प्राधिकरण को जमा करवा कर 50 हज़ार का लाभ पा सकते हैं। ऐसे में तमाम लोगों ने इस प्रावधान का लाभ लिया। अब स्थिति यह है कि इन लोगों को ना तो प्लॉट मिल रहा है और ना मुआवजा। और तो और कुछ लोगों को प्लॉट मिले भी तो उनका आकार निर्धारित 60 गुणा 90 फीट का या तो आधा कर दिया गया, या एक-तिहाई।

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चिखल्दा में हमने, अपने आप को 'हरिजन' कहने वालों की बस्ती में जो हाल देखा, उसे कुछ यूं समझिए-

  • करीब 60-70 लोगों का हुज़ूम, महिलाएं-पुरुष और बच्चे, सभी शामिल
  • हर घर की हालत जर्जर, पानी के निशान बड़ी आसानी से दिख रहे हैं
  • हर महिला और पुरुष मुझे, मेरे कैमरे को अपने घर (झोपड़ी) की ओर ले जाना चाहती है
  • इतने लोगों में से एक समय, एक साथ करीब 10-12 लोग मुझसे मुझसे अपनी बात कह रहे हैं

इन्हीं में से रमेश बिल्लौरे कहते हैं कि उन्हें प्लॉट दिया गया है। हमारा गाँव अक्सर नर्मदा से प्रभावित रहता है। लेकिन इस बार की विभीषिका कभी ना खत्म होने वाली है। रमेश का कहना है कि जब उन्हें प्लॉट दिया गया तो जैसे-तैसे इधर-उधर से मांग कर, जोड़-तोड़ कर रहने लायक मकान बना लिया। लेकिन इतना करते ही हम प्रशासन की नज़र में इस गाँव के निवासी नहीं रहे और इस तरह अब हमें मुआवजा नहीं दिया जा रहा है।

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रमेश पूछते हैं कि ऐसा करने वालों ने तो शासन-प्रशासन की मदद ही की है ना तो फिर उन्हें ही ये व्यवस्था कैसी भूल सकती है? यह कहानी सिर्फ रमेश की हो या, इस चिखल्दा गाँव में पहली बार सुनने में आई हो, ऐसा नहीं है। निसरपुर में भी हमें ऐसा बहुत सुना।

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अब इस समस्या के मूल में चलते हैं। पिछली कड़ी में हमने मुख्यमंत्री शिवराज चौहान की उस घोषणा का जिक्र किया था जिसमें उन्होंने हर पीड़ित परिवार को 5 लाख 80 हज़ार रुपए का पैकेज देने की घोषणा की थी। मुख्यमंत्री ने यह घोषणा 27 जुलाई को की थी। इस दिन कहीं कोई ऐसी बात नहीं थी कि जो लोग गाँव में रह रहे हैं, सिर्फ उन्हें मिलेगा। इतना ही नहीं 29 जुलाई को म.प्र. जनसंपर्क द्वारा समाचारों में विज्ञापन जारी किए जाते हैं, उसमें भी कहीं कोई ऐसा जिक्र नहीं है लेकिन 1 अगस्त को जब इसकी अधिसूचना जारी की गई तो उसमें इस अंतर को एक शर्त के रुप में रखा गया था। तो समस्या का मूल यहाँ से आता है।

समाचार पत्र में विज्ञापन।

किसको सही कहेंगे, किसको गलत, स्वयं फैसला करें आप। आप पाएगें कि पलड़ा पीड़ितों के पक्ष में झुका होगा।

पुनर्वास स्थल: चिखल्डा को दो अलग-अलग पुनर्वास स्थलों पर बसाने की योजना है। इसमें से हम एक को देखने गए। न्यायालय के आदेशानुसार 31 जुलाई तक प्रभावित गाँव खाली हो जाने चाहिए थे। लेकिन वे तो हुए नहीं थे क्योंकि लोगों के पास घर बनाने के संसाधन नहीं थे तो सरकार ने अपनी तरफ से पहले करते हुए जून-जुलाई में टीन-शेड से थोक में अस्थाई आवासों का निर्माण किया है।

अस्थाई आवास।

ये पूरी तरह टीन के बने हैं, जिसमें बिजली की व्यवस्था है। एक पंखा हैं, और एक सीएफएल या एलईडी लाइट। पानी का प्रबंध टैंकरों से करने की व्यस्था है। अंत में... एक परिवार के लिए एक अस्थाई घर (इसको घर कहना घर शब्द का अपमान है, कमरा कहना ज्यादा ठीक है), जिसकी लंबाई-चौड़ाई है- 15 गुणा 10 फीट... फिर से पढ़िए, 15 गुणा 10 फीट! अंत में चिखल्दा के लिए बनाए गए इस पुनर्वास स्थल में ना तो कोई अस्थाई अवासों में रहने आया है और जो प्लॉट यहाँ आवंटित हैं, ना उसमें किसी ने एक ईंट रखी है। क्योंकि ना तो वहाँ बिजली है और ना पानी। हाँ बरसात का पानी जरुर प्लॉटों में भरा है। जाते-जाते यहाँ बनाया गया था, उस पुनर्वास स्थल पर जहाँ 4-5 किमी की त्रिज्या में कोई नहीं रहता। आप भी देखिए...

मीदोंज़ स्कूल।

दूसरे दिन के शब्द ख़त्म हुए।

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