लेकिन कभी लोकसभा चुनाव नहीं जीत पाए अम्बेडकर

Basant KumarBasant Kumar   14 April 2017 6:51 PM GMT

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लेकिन कभी लोकसभा चुनाव नहीं जीत पाए अम्बेडकरडॉ. भीमराव अंबेडकर

लखनऊ। समाज में फैले छुआछूत के प्रखर विरोधी बाबा साहेब ने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में शामिल भारत का संविधान लिखा लेकिन वो कभी उस संसद तक चुन कर नहीं पहुंच पाए, जिसपर संविधान को लागू करने की जिम्मेदारी थी। बाबा साहेब दो बार आम चुनाव लड़े लेकिन विजय नहीं हुई।

डॉ. भीम राव अंबेडकर आजादी के बाद हुए पहले आम चुनाव में अनुसूचित जाति संघ के टिकट पर चुनाव लड़े थे, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। 1952 में हुए पहली लोकसभा चुनाव में अम्बेडकर उत्तरी बंबई से एससीएफ पार्टी से उम्मीदवार थे और उनको एक समय उन्हीं के सहयोगी कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार नारायण काजोलोलर ने हरा दिया था।

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1954 में भंडारा में हुए लोकसभा उप चुनाव एक बार फिर अम्बेडकर लोकसभा का चुनाव लड़े, लेकिन इस बार भी अम्बेडकर की बुरी तरह हार हुई। अम्बेडकर उपचुनाव में तीसरे नम्बर पर रहे। दूसरे लोकसभा चुनाव से पहले ही अम्बेडकर की मौत हो चुकी थी। अम्बेडकर की मौत 65 साल की उम्र में 6 दिसम्बर को 1956 में हो गयी।

अम्बेडकर ने 1942 में ही अनुसूचित जाति संघ (एससीएफ) नाम से एक राजनीतिक दल का निर्माण किया था। एससीएफ की स्थापना अम्बेडकर ने दलित समुदाय के अधिकारों के लिए लड़ने के लिए की थी, लेकिन इस दल का 1946 में हुए भारत की संविधान सभा के लिए के चुनावों में खराब प्रदर्शन किया था।

मुझे लगता है कि बाबा साहेब की विद्वता और अस्मिता को लोग नीचा दिखाना चाहते थे। विशेषकर कांग्रेस के नेता। कांग्रेस नहीं चाहती थी कि बाबा साहब दलितों के नेता के रूप में प्रचारित और प्रसारित हों। इसीलिए उन्होंने बाबा साहेब को हरवा दिया।
प्रोफ़ेसर विवेक कुमार, समाजशास्त्री, जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय, दिल्ली

समाजशास्त्री और जेएनयू के प्रोफ़ेसर विवेक कुमार कहते हैं, "मुझे लगता है कि बाबा साहब की विद्वता और अस्मिता को लोग नीचा दिखाना चाहते थे। विशेषकर कांग्रेस के नेता। कांग्रेस नहीं चाहती थी कि बाबा साहब दलितों के नेता के रूप में प्रचारित और प्रसारित हो। कांग्रेस के लोग चाहते थे कि केवल वहीं दिखें की वहीं नेता है और कांग्रेस ही दलितों की एक मात्र उनकी सरपरस्त है, इसीलिए उन्होंने बाबा साहेब को हरा दिया।"

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